सरकार को अश्लील एसएमएस की चिंता, बढ़ते बलात्कारों की नहीं?

कम उम्र में लड़कियों की शादी का सुझाव तो तालिबानी सोच है!

इक़बाल हिंदुस्तानी

यूपीए सरकार भ्रष्टाचार के अलावा भी कुछ कर रही है, शायद यही सोचकर मनमोहन सिंह की कैबिनेट ने महिलाओं को अश्लील एसएमएस, एमएमएस और ईमेल भेजने वालों को भी कानून में संशोधन करके एक नये कानून के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। ऐसा करने वालों को पहली बार दो साल की कैद और 50 हज़ार तक जुर्माना तथा दोबारा ऐसा करने वालों को सात साल की सज़ा और आर्थिक दंड एक लाख से पांच लाख तक करने की व्यवस्था की जा रही है। इसके साथ ही विज्ञापनों में महिलाओं को अश्लील या कमज़ोर तरीके से पेश करने पर भी कानूनी कार्यवाही की जा सकेगी।

उधर हरियाणा के हिसार ज़िले के दबरा गांव में 16 साल की एक किशोरी के साथ 9 सितंबर को 7 युवाओं ने ना केवल बलात्कार किया बल्कि उसका मोबाइल से एमएमएस भी बनाकर इधर उधर फैला दिया। दलित समाज की इस लड़की के साथ रेप होने के बाद उसके बाप ने शर्म से आत्महत्या कर ली। अजीब बात यह है कि इस मामले पर हंगामा बढ़ने पर यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी जब इस पीड़ित किशोरी के घर गयीं तो उन्होंने वहां जाकर अपने बयान में जिस बात पर सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया वह यह थी कि पूरे देश में इस तरह की घटनायें हो रही हैं। इन पर कानूनी कार्यवाही होनी चाहिये। सवाल यह है कि यह कौन सी नई बात हुयी? देशभर में ऐसी घटनायंे होने से हरियाणा में ऐसा होना कोई अपराध नहीं रहा क्या? और इन मामलों में कानूनी कार्यवाही होनी चाहिये तो मेडम यह कार्यवाही कौन करेगा? राज्य और केंद्र दोनों जगह आपकी सरकारें हैं।

उधर हरियाणा की कुख्यात खाप पंचायतों ने इस मामले पर अपना ही दकियानूसी राग छेड़ दिया कि इस समस्या का हल यह है कि लोग अपनी बच्चियों की कम उम्र में ही शादी कर दिया करें। इस तालिबानी सुझाव पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्षी नेता ओमप्रकाश चौटाला ने हां में हां मिलाते हुए इस मांग को पहले न्यायोचित ठहरा दिया और बाद में आलोचना होने पर वे इससे यू टर्न लेकर मुकर भी गये। आंकड़ों के हिसाब से बात करें तो देश में हर 22 मिनट के बाद एक महिला या बच्ची का बलात्कार हो रहा है। पिछले दो दशक में रेप की आशंका दो गुनी हो गयी है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार बलात्कार के मामले बढ़ने के साथ ही इसके अपराधियों को पहले से कम मामलों में दंड मिल रहा है। चार में से केवल एक ही केस में बलात्कार के आरोपी को सज़ा मिल पाती है।

यह हालत तो तब है जबकि बड़ी तादाद में लोग लोकलाज और वकीलों और पुलिस के असुविधाजनक सवालों से बचने के लिये कानूनी कार्यवाही के लिये घर से निकलते ही नहीं। आज बलात्कार के 83 प्रतिशत मामले कोर्ट में लंबे समय से लंबित पड़े हैं जबकि पहले यह आंकड़ा 78 प्रतिशत ही था। 2011 में कुल 24206 रेप के केस दर्ज हुए थे। इनमें से अगर सबसे अधिक मध्यप्रदेश के 3406, पश्चिमी बंगाल के 2363, यूपी के 2042, राजस्थान के 1800 और देश में इस मामले मंे पांचवे स्थान पर रहने वाले महाराष्ट्र के 1701 मामलों का अध्ययन किया जाये तो कुल 11312 बालिग और 3814 नाबालिगों के साथ ज़बरदस्ती शारिरिक सम्बंध बनाये गये।

बलात्कार के ऐसे ही मामलों में आज 1लाख 27 हज़ार लोग न्याय की प्रतीक्षा में अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। 1990 में जहां 41 प्रतिशत रेप केस में अपराधियों को सज़ा मिल जाती थी वहीं 2000 में यह अनुपात 29.8 प्रतिशत हुआ और 2011 में घटकर 26.6 प्रतिशत रह गया है।

हमारा सवाल यह है कि जिस देश मंे आधे से अधिक लोगों को यही विश्वास ना हो कि उनको थाने जाने पर दारोगा रपट दर्ज करने को तैयार हो जायेगा और उसके बाद सरकारी डाक्टर बिना जेब गर्म किये रेप का सही सही मेडिकल बनादेगा और उसके बाद कोर्ट में अपनी बची खुची इज़्ज़त तार तार होेेेने से बचाकर पीड़िता समय पर न्याय पा सकेगी वहां कानून की दुहाई देने और बलात्कारी को फांसी की सज़ा देने का कानून बनाने की मांग करने का क्या मतलब रह जाता है? इसके बाद जो आंकड़े खुद भारत सरकार ने जारी किये हैं उनके हिसाब से रेप केस में कितना और कैसा न्याय हो रहा है यह सबके सामने आ जाता है। ज़रूरत सख़्त और नये कानूनों से ज़्यादा जो कानून पहले से मौजूद हैं उनपर पूरी ईमानदारी से अमल करने की है।

सर्वखाप पंचायतों का दावा है कि अगर लड़की की शादी कम उम्र मंे कर दी जाये तो बलात्कार की बढ़ती घटनाओं को रोका जा सकता है। यह ठीक ऐसी ही सोच है कि अगर महिलाओं को पर्दे में रखा जाये तो वे अधिक सुरक्षित रह सकती है। कुछ लोग इससे भी दो क़दम आगे बढ़कर उनको घर की चार दीवारी में कै़द रखना ही सब समस्याओं का हल मानते हैं। ऐसे ही अफगानिस्तान और पाकिस्तान में तालिबान उनके स्कूल जाने को सब मसलों की जड़ मानते हैं। उनको पता है कि लड़की अगर पढ़ लिख लेगी तो अपने बराबरी के अधिकारों के लिये सजग हो जायेगी और अगर वह पुरूष के एकाधिकार वाले काम करने लगी तो उनका सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण हो जायेगा।

ऐसा होने के बाद लिंग के आधार पर उनके साथ पक्षपात और अन्याय करना लगभग नामुमकिन हो जायेगा। पाकिस्तान में 12 साल की शांतिकार्यकर्ता और बहादुर लड़की मलाला पर तालिबान का हमला उस खतरे को बताता है जिससे तालिबान डरा हुआ है कि अगर मलाला की सोच लड़कियों में बढ़ने लगी तो उनका सारा मिशन तबाह हो जायेगा लेकिन वे यह नहीं जानते कि यह सिलसिला अब रूकने वाला नहीं है। यह बात समझ से बाहर है कि लड़की के साथ बलात्कार या छेड़छाड़ लड़के करते हैं जबकि हल यह निकाला जाता है कि उनको ही घर में रखकर, पर्दे में रखकर या अशिक्षित रखकर सज़ा दी जाये। यह क्यों नहीं कहा जाता कि लड़कों या मर्दों को ही घर मंे कैद रखा जाये जिससे ना वे बाहर आयेंगे और ना ही किसी महिला की इज़्ज़त ख़तरे में पड़ेगी। कायदा तो यह कहता है कि जो करेगा वो भरेगा लेकिन यहां उल्टी गंगा बहाई जा रही है। आंकड़ों के हिसाब से देखें तो महिलाओं का रिकॉर्ड किसी पुरूष के साथ जोरज़बरदस्ती करने का ना के बराबर ही मिलता है।

एक तर्क और दिया जाता है कि लड़कियां चूंकि भड़काऊ कपड़े पहनकर और आकर्षक मेकअप करके सड़कों पर निकलती हैं जिससे उनके साथ रेप की अधिकांश घटनाएं उनकी इन हरकतों की वजह से ही होती हैं, जबकि भारत सरकार के आंकड़ें बताते हैं कि गांव में ऐसे मामले अधिक होते हैं और अकसर यह देखने में आया है कि जो लड़कियां अधिक पढ़ी लिखी और आध्ुनिक होती हैं उनके साथ बलात्कार का प्रयास करने वाले दस बार उसके बुरे नतीजों के बारे में सोचते हैं। साथ ही सुशिक्षित और बोल्ड लड़कियां छेड़छाड़ का जहां जमकर विरोध करती हैं वहीं हिम्मत दिखाकर कई बार मनचलों की पिटाई भी कर देती हैं। इसके साथ यह भी देखने में आया है कि आध्ुानिक और प्रगतिशील सोच के लोग ही ऐसी घटनायें होने पर कानूनी कार्यवाही करने में सक्षम होते हैं और साहस भी दिखाते हैं।

कहने का मतलब यह है कि पहले बलात्कार जैसे मामलों को सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और शैक्षिक स्तर पर जांचा परखा जाना चाहिये तब ही इनका कोई सही हल निकाला जा सकता है।

लड़ें तो कैसे लड़ें मुक़दमा उससे उसकी बेवफाई का,

ये दिल भी वकील उसका ये जां भी गवाह उसकी।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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