हरिहर शर्मा
किसी जमाने में श्री गोविन्दाचार्य राष्ट्रवादी चिंतकों में अग्रगण्य माने जाते थे ! निश्चित तौर पर राष्ट्रवादी तो वे आज भी हैं, किन्तु उनकी चिंतन की धार एकांगी होती जा रही है ! शायद सतत उपेक्षा और बढ़ती उम्र इसका कारण हो !
आज के एक समाचार पत्र में उनका एक आलेख प्रकाशित हुआ है, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 500 और 1000 रुपये के नोट बदलने के निर्णय को महत्वहीन प्रमाणित करने का प्रयास किया है ! उन्होंने यहाँ तक लिखा कि यह कदम एक और चुनावी जुमला बनाकर रह जाएगा तथा नोटों को इस प्रकार बंद करना “खोदा पहाड़ निकली चुहिया” सिद्ध होगा ! उन्होंने इसे लोगों की आँखों में धूल झोंकना भी लिखा !
गोविन्द जी का मानना है कि विगत 15 वर्षों में ही न्यूनतम लगभग 400 लाख करोड़ का काला धन बना जिसमें से अधिकाँश सोने चांदी, जमीन जायदाद तथा विदेशी बैंकों आदि में खप गया, नोटों की शक्ल वाला काला धन तो अधिकतम तीन प्रतिशत भर होगा, जिसमें से भी बमुश्किल एक प्रतिशत ही सरकारी खजाने में आ पायेगा !
जैसा कि मैंने पूर्व में लिखा यह नकारात्मक मानसिकता से उपजा एकांगी चिंतन व आमजन में भ्रम उत्पन्न करने की कुचेष्टा भर है ! सचाई यह है कि वे भी वामपंथियों के समान मोदी विरोध के अंधकूप में गोता लगा रहे हैं ! उन्होंने अगर इस निर्णय के सभी पक्षों का विवेचन किया होता, तो मैं पहले के समान उनका मुरीद बना रहता !
उन्होंने इस निर्णय के कारण जाली नोट और आतंकवाद पर पड़ने वाले प्रभाव का रत्तीभर उल्लेख नहीं किया और नाही केसलैस समाज की दिशा में एक अच्छे कदम के रूप में इसका महत्व आंका ! राजनैतिक दलों को मिलने वाला चंदा अब दो नंबर में मिलना कठिन होगा, क्या समग्र चिंतन में इसका महत्व नहीं आंकना चाहिए था ? साथ ही इस निर्णय के बाद अगर आमजन पैसे को घर में रखने के स्थान पर बैंक में रखकर सतत राष्ट्र निर्माण में सहभागी बनने को प्रवृत्त होता है, तो क्या देश की यह एक बड़ी उपलब्धि नहीं है !
मोदी जी के सोच की दिशा सही है, वे साहस के साथ सही दिशा में सही कदम उठाने का माद्दा रखते हैं ! वरिष्ठ पत्रकार उमेश जी त्रिवेदी के शब्दों में “वे निर्णायक और निडर फैसले लेकर समर्थन में तालियाँ और विरोध में गालियाँ सहने का साहस रखते हैं” ! मेरा मानना है कि वे सुविचारित कदम उठाते है, दूरंदेश हैं, मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि उनके नेतृत्व में आमजन में वैचारिक परिवर्तन होगा, भ्रष्टाचार को शिष्टाचार मानने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा ! जिन लोगों ने काला धन, संपत्ति और स्वर्णाभूषण के रूप में छुपाया हुआ है, वह भी देर सबेर सामने आयेगा, क्योंकि नेतृत्व की नियत साफ़ है ! आज लोग यह देखकर खुश हैं कि भ्रष्ट नेता और अफसर परेशान हैं ! जाली नोटों के रद्दी में बदल जाने से, आतंकियों की कमर टूट गई है !
भुनगे केवल अपना पेट भरने की सोचते हैं, जबकि राजा – सम्राट या चक्रवर्ती बनने की महत्वाकांक्षा संजोता है | देश के जिन नेताओं की अधिकतम ख्वाहिश केवल स्विस बेंक में एक एकाउंट तक सीमित रही, उनकी तुलना में मोदी कहीं अधिक महत्वाकांक्षी हैं | उनकी आँखों में एक स्वप्न है | एक विराट स्वप्न | उनका मानना है कि भारत महाशक्ति था, है और रहेगा | अंगारे पर चढी राख को हटाना भर है | और उसी राख को हटाने, भारत का खोया आत्मविश्वास जगाने का लक्ष्य लेकर मोदी चल रहे हैं, उसके लिए रात दिन एक कर रहे हैं | मुझे इसमें किंचित मात्र भी संशय नहीं है |
ऐसे में गोविन्दाचार्य जी जैसे व्यक्ति का यह वैचारिक स्खलन देखना सचमुच दुखदाई है !
दरअसल आज के दौर में लगता है कि पूरा देश ही नकारात्मकता लिए हुए है, पहले तो हम कहते हैं कि देश में बहुत भ्रष्टाचार है, इसको कोई भी नेता रोक नहीं रहा है, और अब जब एक शुरुआत हुई है तो सब उसमें कमियां निकालने में लग गए हैं, आज सारे विपक्षी एक हो गए हैं, माया, मुलायम, ममता, गांधी, केजरी, लालू, शरद सब विरोध में हैं, मैं ये नहीं कहता कि इससे भ्रष्टाचार पूरी तरह से रुक जाएगा, लेकिन इसमें कुछ कमी तो आएगी ही, क्या कोई भी विपक्षी दल सरकार को ये कह रहा है कि इसमें हम पूरी तरह से सरकार के साथ हैं और अगर वर्तमान सरकार के प्रयास में कुछ कमी है तो उस कमी को कैसे दूर करें ये कोई नहीं बता रहा…
नमो की विरुदावली गाने में लोग गोविंदाचार्य को कुछ भी अनाप सनाप बोले जा रहे हैं.क्या गलत कहा है उन्होंने ने ?उनका यह कहना एक दम सही है की नगदी के रूप में काले धन का बहुत कम हिस्सा रहता .है.दूसरी बात क्या नोटों का बाहरी आवरण बदल देने से जाली नोट बनने बंद हो जाएंगे? हो सकता है ,एक दो महीने का विराम हो जाये, पर .जब नोटों के सुरक्षात्मक ढाँचे में कोई परिवर्तन ही नहीं हुआ,तो रंग बदलने में कितना समय लगेगा?
मैं साधारण व्यक्ति हूँ और प्रस्तुत विषय, ५०० और १००० रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण, पर मोदी-शासन का समर्थक हूँ| आज के असाधारण राजनैतिक वातावरण में केवल दो पक्षों को देखता हूँ, एक जो मोदी-शासन का समर्थक है और दुसरा जो मोदी-शासन का विरोधी है और क्रमशः उन्हें राष्ट्रवादी व राष्ट्रद्रोही मानता हूँ| गोविन्दाचार्य कदापि राष्ट्रवादी नहीं हैं| यदि उन जैसे व्यक्ति चरित्र और व्यवहार से राष्ट्रवादी होते हैं तो ऐसी स्थिति में अपनी व्यक्तिगत पहुँच द्वारा मोदी-शासन से सीधा संपर्क बना अपने निष्पक्ष विचारों को प्रस्तुत कर अपनी राष्ट्रवादिता का कर्तव्य निभा सकते हैं| वे बीच चौराहे अधिकांश मोदी-विरोधी मीडिया रूपी सड़क पर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी पर राजनैतिक प्रहार करते राष्ट्रद्रोही तत्वों का साथ नहीं देते|
अब तक मोदी-शासन विरोधी वक्तव्यों में कोडीपकम नीलामेघाचार्य गोविन्दाचार्य का विमुद्रीकरण को लेकर समाचार पत्रों में लेख केवल उनके अंतरस्थ में प्रतिशोध की ज्वाला से उठा धुआं है|
गोविंदाचार्य के बारे तो नहीं कहूँगा पर हाँ बहुत से अंधभक्त बन गए हैं इस देश में . इसका दुख तो है. ये जिसे जैसा चाहे अपनी साँस्कृतिक भाषा में सम्मान करते रहते हैं क्या तहजीब पाई है. भगवान का वरदान है.
कृपया अंधभक्त की परिभाषा लिखें तो आपके विचारों को ठीक से समझा जा सके|
शत्रुधन से ले कर अरुण शौरी तक और अब गोविंदाचार्य तक पद के लालची है, महत्व न मिलने से उतपन्न खीज उलूल जुलूल बोल के रूप में निकल पड़ती है. वैसे 500 तथा 1000 के नोट के विमुद्रिकरन के बारे में फरक मत रखने के लिए स्वतंत्र है. मेरा मानना है कि यह मोदी का एक सार्थक प्रयास है. जाली नोटों का निर्मूलन और काले धन पर अंकुश के लीए शरखलाबद्ध काम आवश्यक है. उस कड़ी में यह प्रयास महत्वपूर्ण है.