द्रोण के बढ़ते बहुआयामी उपयोग

प्रमोद भार्गव
द्रोण देश के लिए बहुआयामी सफलता का उपयोगी उपकरण बनने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत द्रोण महोत्सव उद्घाटन के दौरान द्रोण उड़ाने के बाद कहा कि ‘मेरा सपना है कि देश के हर व्यक्ति के हाथ में द्रोण हो, स्मार्ट फोन हो और हर घर में समृद्धि की बहार हो। ड्रोन तकनीक कृषि क्षेत्र को नए पंख देगी इससे छोटे किसानों को ताकत मिलेगी और उनकी तरक्की सुनिश्चित होगी। द्रोण से पता चलेगा कि किस जमीन पर कितनी और कौनसी खाद डालनी हैं, मिट्टी में किस चीज की कमी है और कितनी सिंचाई करनी है। अभी तक ये सारे कार्य अंदाज से होते थे, जो कम पैदावार और फसल की बर्बादी का कारण बन रहे थे।‘ वाकई देश में द्रोण क्रांति रक्षा क्षेत्र के बाद अब कृषि में भी बड़ी भागीदारी करके किसान को मददगार साबित होने जा रही है। द्रोण रक्षा क्षेत्र में भी अहम् भूमिका निभा रहा है।
भारत सरकार ने पिछले साल 15 सितंबर को द्रोण के इस्तेमाल संबंधी नियमों में ढील दी थी। लाइसेंस हासिल करने की प्रक्रिया को आसान बनाया था। साथ ही भारी पेलोड की अनुमति भी दी थी, ताकि द्रोण को मानव राहित फलाइंग टैक्सियों के रूप में प्रयोग में लाया जा सके। इस नाते भारत दुनिया के सबसे बड़े ब्रांडस को भारत में अपने उत्पाद बनाने और फिर उन्हें दुनिया में निर्यात करने के लिए आकर्षित कर रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में केंद्र सरकार ने भारत में द्रोण और उसके कम्पोनेंट (यौगिक) में निर्माण के लिए कंपनियों को पीएलआई योजनाओं के तहत अगले तीन साल के लिए 120 करोड़ रुपय का प्रोत्साहन देने की घोषणा की हुई है। तकनीकी रूप से दक्ष भारतीय युवाओं को भी स्र्टाटअप के तहत यह लाभ मिलेगा। इस नाते सुरक्षा और कृषि क्षेत्र में अंतरिक्ष विज्ञान की अहम् भागीदारी के लिए दो नवीन नीतियां भी वजूद में लाई जा रही हैं। इस हेतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय अंतरिक्ष संगठन यानी इंडियन स्पेस एसोषिएशन (आईएसपीए) का शुभारंभ कर दिया है। इसके तहत स्पेसकाॅम (अंतरिक्ष श्रेणी) और रिमोट सेंसिंग (सुदूर संवेदन) नीतियां जल्द बनेंगी। इन नीतियों से स्पेस और रिमोट क्षेत्रों में निजी और सरकारी भागीदारी के द्वार खुल जाएंगे। वर्तमान में ये दोनों उद्यम ऐसे माध्यम हैं, जिनमें सबसे ज्यादा रोजगार के अवसर हैं। क्योंकि आजकल घरेलू उपकरण, रक्षा संबंधी, कृषि संचार व दूरसंचार सुविधाएं, हथियार और अंतरिक्ष उपग्रहों से लेकर राॅकेट और मिसाइल ऐसी ही तकनीक से संचालित हैं, जो रिमोट से संचालित और नियंत्रित होते हैं। चंद्र, मंगल और गगनयान भी इन्हीं प्रणालियों से संचालित होते हैं। भविश्य में अंतरिक्ष-यात्रा (स्पेस टूरिज्म) के अवसर भी बढ़ रहे हैं। भारत में इस अवसर को बढ़ावा देने के लिए निजी स्तर पर बड़ी मात्रा में निवेष की जरूरत पड़ेगी। इस हेतु नीतियों में बदलाव की आवष्यकता लंबे समय से अनुभव की जा रही थी। 20 जुलाई 2021 को ब्लू ओरिजन कंपनी ने न्यू शेफर्ड कैप्सूल से चार यात्रियों को अंतरिक्ष की यात्रा कराई थी। ऐसी यात्राओं का सिलसिला आम लोगों के लिए कीमत वसूल कर बड़ी कमाई का माध्यम बनने जा रहे है।
घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के नजरिए से सैंकड़ों रक्षा उपकरणों के आयात पर पहले से ही रोक लगी हुई है। आयात किए जाने वाले उपकरणों, हथियारों, मिसाइलों, पनडुब्बियों, द्रोण और हेलिकॉप्टरों का निर्माण अब भारत में होगा। इस मकसदपूर्ति के लिए आगामी 5 से 7 साल में घरेलू रक्षा उद्योग को करीब चार लाख करोड़ रुपए के ठेके मिलेंगे। प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत-मंत्र के आवाहन के तहत रक्षा मंत्रालय अब रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में स्वदेशी निर्माताओं को बड़ा प्रोत्साहन देने की तैयारी में आ गया है। दरअसल अभी तक देश तात्कालिक रक्षा खरीद के उपायों में ही लगा रहा है, लेकिन इस परिप्रेक्ष्य में दीर्घकालिक रणनीति के अंतर्गत स्वदेशी रक्षा उपाय इसलिए जरूरी हैं, क्योंकि एक समय रूस ने हमें क्रायोजनिक इंजन देने से मना कर दिया था। दूसरी तरफ धनुष तोप के लिए चीन से जो कल-पुर्जे खरीदे थे, वे परीक्षण के दौरान ही नष्ट हो गए थे। इधर चाइनीज द्रोण गुप्तचारी करते हुए भी निशाना बनाए गए हैं। अमेरिका और चीन के बीच इंटरनेट की दुनिया पर नियंत्रण का संघर्श तल्ख बना हुआ है। चीनी हैकर लगातार अमेरिकी व्यावसायिक संस्थानों को निशाना बना रहे हैं।
पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान से युद्ध की स्थिति बनी होने के चलते ऐसा अनुमान है कि भारत को 2025 तक रक्षा सामग्री के निर्माण व खरीद में 1.75 लाख करोड़ रुपए या 25 अरब डॉलर खर्च करेगा। वैसे भी भारत शीर्ष वैश्विक रक्षा सामग्री उत्पादन कंपनियों के लिए सबसे आकर्षक बाजारों में से एक हैं। भारत पिछले आठ वर्षों में सैन्य हार्डवेयर के आयातकों में शामिल है। इन रक्षा जरूरतों की पूर्ति के लिए अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और इजराइल इत्यादि देशों पर भारत की निर्भरता बनी हुई है, जिसमें उल्लेखनीय कमी आएगी। 2015 से 2019 के बीच सऊदी अरब के बाद भारत दूसरे नंबर पर हथियारों की खरीद करता है। अतएव अच्छा है कि भारत ने द्रोण निर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने का अहम् फैसला लिया है। इससे भारतीय कंपनियों की हौसला. अफजाई होगी। हमारे नवोन्मेषी वैज्ञानिक व इंजीनियरों को राष्ट्र के लिए कुछ अनूठा कर डालने का गौरव हासिल होगा। अब तक देश में व्यक्तिगत उपयोग वाली पिस्तौलें और सेना के लिए राइफलें बनती हैं। हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड ने हल्के लड़ाकू विमान तेजस का निर्माण भी किया है। टाटा, महिंद्रा और लार्सन एंड टुब्रो कंपनियां मध्यम मारक क्षमता वाली राइफलें बनाती हैं।
यदि इन कंपनियों को सर्विलांस, राडार और साइवर संबंधी सामग्रियों का बाजार मिलता है तो इनके निर्माण में भी ये कामयाबी हासिल कर लेंगी। साथ ही डीआरडीओ जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को भी प्रोत्साहित करने और उनकी कार्य व उत्पादन क्षमता बढ़ाने की जरूरत है। सरकार भारतीय उद्योगपतियों को भी रक्षा और कृषि उद्योग में उतारने के लिए प्रेरित करे। मौजूदा दौर में अंबानी, अडानी, टाटा, बिरला, अजीम प्रेमजी जैसे कई उद्योगपति हैं, जिनके पास बड़ी मात्रा में अतिरिक्त पूंजी है। लेकिन वे इस पूंजी को केवल ऐसे आसान उद्योग .धंधों में लगाना चाहते हैं, जिनमें मुनाफा तंुरत हो। जबकि रक्षा उद्योग ऐसा क्षेत्र है, जिसमें अत्याधिक पूंजी निवेश के बावजूद देर से लाभ के रास्ते खुलते हैं। किंतु कृषि क्षेत्र में द्रोण जैसे उपकरणों की बिक्री तुरंत शुरू होगी और अनवरत बनी रहेगी। इस दृष्टि से द्रोण निर्माण में 120 करोड़ रुपए की प्रोत्साहन राशि की घोषणा उचित है।

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