जीएसटी से छोटे व्यापारियों की परेशानी बढ़ेगी 

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प्रमोद भार्गव

देश के बाजार में विभिन्न प्रकार की कर प्रणाली में एकरूपता लाने के नजरिए से 1 जुलाई 2017 से ‘वस्तु एवं सेवा यानी जीएसटी प्रणाली लागू होने जा रही है। किंतु जीएसटी के जो कर प्रावधान देखने में आ रहे हैं, उन्हें देखने से पता चलता है कि शून्य समेत चार प्रकार की अन्य दरें भी प्रस्तावित की गई हैं। जबकि उन देशों में यह विसंगति देखने में नहीं आती है जिन 140 देशों में जीएसटी अथवा वैट प्रणाली लागू है। इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि वे सभी छोटे, मध्यम एवं मझोले कारोबारी प्रभावित होंगे जो नगद लेन देन के जरिए अपना कारोबार चलाते हैं। इन उद्योगों की संख्या करीब 5 करोड़ है। नगद लेन देन के कारण फिलहाल इन व्यापारियों को अपनी सुविधानुसार बिक्री दिखाने की छूट है। जीएसटी में ऐसा करना मुश्किल होगा। अभी देश की जीडीपी में लघु उद्योगों का योगदान 30 और निर्यात में 45 फीसदी है। इन उद्योगों से करीब 11 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी चलती है। इनमें से ज्यादातर कारोबारी निरक्षर होने के साथ कंप्युटर साक्षरता से भी अनजान हैं, जबकि जीएसटी का पूरा काम आॅनलाइन होना है। जाहिर है, मुश्किल तो आनी ही है। शायद इसीलिए अर्थशास्त्री सुब्रमण्यम स्वामी ने जीएसटी को भाजपा के लिए वाटर लू बताया है।

लघु उद्योग मुख्य रूप से कपड़ा, कांच के चूड़ी और बर्तन, धातु की मूर्तियां व खिलौने, लकड़ी का सामान, कागज और कई प्रकार की खाद्य सामग्रियों का निर्माण व विक्रय करते हैं। इन वस्तुओं के निर्माण में बड़ी संख्या में आदिवासी समाज लगा हुआ है। ये लोग ज्ञान परंपरा से अपना काम सीखते है। वर्तमान में लघु उद्योगों को 1.5 करोड़ रुपए तक के उत्पादन पर उत्पाद शुल्क की छूट मिल रही है। जीएसटी लघु होने पर यह छूट समाप्त हो जाएगी। ज्यादातर लघु उद्यमी कर चुकाने वाली संस्थाओं में पंजीकृत भी नहीं हैं। किंतु अब जिन कारोबारियों का वार्षिक लेन-देन 20 लाख से ऊपर होगा तो जीएसटी पंजीकरण कराना जरूरी होगा। यह पंजीकरण राज्य जीएसटी और यदि आप एक प्रांत के बाहर अपना उत्पादन बेचते हैं तो केंद्रीय जीएसटी कार्यालय में भी पंजीकरण कराना होगा। यदि कोई कारोबारी एक राज्य से अधिक में व्यापार करता है तो उसे वार्षिक आय 20 लाख रुपए से कम होने पर भी पंजीयन कराना जरूरी होगा।

पंजीयन होने के बाद हर व्यापारी को प्रतिमाह तीन मर्तबा अपने कारोबार का लेखा-जोखा जीएसटी कार्यालय में प्रस्तुत करना होगा। इस तरह से 1 साल में 36 बार रिटर्न फाइल करने के साथ एक बार साल का पूरा लेखा-जोखा भी पेश करना होगा। इस तरह से एक साल में 37 रिटर्न भरने होंगे। फिलहाल साल में केवल 4 बार रिटर्न दाखिल करना होता है। अब व्यापारियों को कारोबार की प्रकृति के हिसाब से कोड दिए जाएंगे। अभी तक सभी प्रकार के रिटर्न के लिए केवल 5 पृष्ठों में जानकारी भरनी होती थी, किंतु अब 36 पेजों में जानकारी भरनी होंगी, वह भी आॅनलाइन। साफ है, छोटे से छोटे कारोबारी को कंप्युटर और नेट सुविधा लेनी होगी। इसे संचालित करने के लिए कंप्युटर आॅपरेटर और चार्टर लेखाकार की भी सेवाएं लेनी होंगी। छोटे व्यापारी के लिए इनका खर्च झेलना मुश्किल होगा। हालांकि जिन देशों में जीएसटी लागू है, वहां लघु उद्यमियों को कर छूट मिली हुई है। यदि इन व्यापारियों को छूट नहीं मिली तो इनका कारोबार चोपट होना तय है।

दावा तो यह किया जा रहा है कि जीएसटी लागू होने से वस्तुओं पर कम कर लगेगा और चीजें सस्ती होंगी। लेकिन यदि वस्त्रों पर 5 प्रतिशत कर लगा देने से ही मूल्यों में 6 से 7 प्रतिशत तक की वृद्धि हो जाएगी। 1000 के कपड़े पर 50 से 60 रुपए तक कर देना होगा। कपड़े के व्यापार से बड़ी संख्या में लघु और मझौले कारोबारी जुड़े हुए है। इन व्यापारियों को अब अपना बहीखाता दुरुस्त रखने के लिए सीए और कंप्युटर आॅपरेटर की सेवाओं का खर्च उठाना अनिवार्य हो जाएगा। कस्बों व ग्रामों में व्यापार करने वाले कारोबारियों की परेशानियां अधिक बढ़ जाएंगी। खादी के कपड़ों और रेडिमेड वस्त्रों पर भी कर लगेगा। कपड़े पर फिलहाल महज 1 प्रतिशत प्रवेश कर था, इसके अलावा अन्य कोई कर नहीं था। किंतु अब उत्पाद कर तथा जीएसटी कर लगेंगे। जो कि 6 से 7 प्रतिशत तक होंगे।

ग्रामीण क्षेत्र के ज्यादातर व्यापारी बिना पढ़े-लिखे हैं। यह जानते हुए भी जीएसटी प्रणाली में जो व्यापार प्रक्रिया अपनाई गई है, उसका पालन करना कस्बाई व्यापारी के लिए आसान नहीं है। ज्यादा सख्ती की गई तो कई व्यापारी काम बंद करने का भी फैसला ले सकते हैं। कस्बाई व्यापारी से सीए की फीस और कंप्युटर आॅपरेटर का वेतन देने की उम्मीद करना बेमानी है। जीएसटी लागू होने पर सराफा बाजार के छोटे एवं मघ्यम वर्ग के व्यापारी भी प्रभावित होंगे। अभी तक इर्स व्यवसाय में कम पढ़े-लिखे व्यक्ति को ज्ञान-परंपरा से हुनर सीखने और गहने बनाकर बेचने की सुविधा थी। किंतु अब जीएसटी के दायरे में आ जाने के कारण सोने पर 3 प्रतिशत कर लगेगा। साथ ही कंप्युटर पर बिल बनाना अनिवार्य होगा। साफ है, इन व्यापारियों को भी कंप्युटर, इंटरनेट सुविधा और और आपरेटर रखने होंगे। सीए की सलाह भी जरूरी होगी। इसी तरह अगरबत्ती और धूपबत्ती निर्माताओं पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगेगा। जूते-चप्पलों पर 5 से 18 प्रतिशत कर व्यवस्था तय की गई है। प्रादेशिक सिनेमा, चमड़ा और छपी हुई पुस्तकों पर भी 28 प्रतिशत जीएसटी लगाई गई है। जबकि अबतक हाथ से बनी चमड़े की वस्तुओं और पुस्तकों पर किसी प्रकार का कर नहीं लगता था। इन सभी व्यवसायों से लघु उद्यमी जुड़े हैं। इन कठोर नियमों को लागू करने से ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार ने जैसे छोटे व्यापारियों को खत्म करने की नीति ही बना दी है। यदि ये व्यापारी परेशान हुए तो भविष्य में आंदोलित भी हो सकते है।

जीएसटी में ई-बे बिल को लागू करना सबसे बड़ी बाधा है। इसके लिए इनवाॅयस अपलोड करने के बाद भी ई-बे बिल जेनरेट करना पड़ेगा। यह तरीका जटिल तो है ही हरेक व्यापारी को इंटरनेट सुविधा हासिल करना भी जरूरी हो जाएगी। यातायात कारोबारियों के लिए ई-तकनीक पर निर्भरता बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी। इस कारण छोटे ट्रांसपोटर्स परेशानी में आएंगे। इस यातायात उद्योग ने केंद्र सरकार को अपनी आपत्तियां भी दर्ज कराई हैं। बावजूद सरकार यातायात कारोबारियों के लिए जीएसटी व्यवस्था को बाध्यकारी बना रही है। जीएसटी कानून में विभिन्न अपराधों के तहत 21 तरह की सजा के प्रावधान हैं। कम कर जमा करने पर कम से कम 10,000 रुपए का जुर्माना देना होगा। कर में जो रकम छुपाई गई है, उस पर भी 10 प्रतिशत के बराबर अतिक्ति जुर्माना देना होगा। इस लिहाज से जीएसटी को ठीक से समझने के लिए उद्योग चेंबर एसोचैंप ने केंद्र सरकार से मांग की है कि यदि 1 जुलाई 2017 से जीएसटी लागू कर ही दी जाती है तो कम से कम 6 महीने के लिए जुर्माने और सजा के प्रावधानों को लागू नहीं किया जाए। किंतु सरकार ने अभी तक इस मांग पर कोई विचार नहीं किया है।

शायद इसीलिए सलाहकार फर्म डन एंड ब्रैडस्ट्रीट ने कहा है कि जीएसटी से कुछ समय के लिए मुश्किलें  आएंगी और कंपनियों का व्यापार घट सकता है। अर्थशास्त्री अरुण सिंह ने कहा है कि इस नई कर व्यवस्था से विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में दिक्कतें आएंगी। उन्हें सामान्य होने में लंबा वक्त लगेगा। इससे जीडीपी दर भी प्रभावित होगी। शायद इसीलिए भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है कि जीएसटी 2019 के आम चुनाव के बाद लागू की जाए। अन्यथा भाजपा को यह वाटर लू साबित हो सकती है। अर्थात भाजपा 2019 को लोकसभा चुनाव हार भी सकती है। किंतु इन सब चेतावनियों के बावजूद सरकार की चिंता दिखाई नहीं दे रही है।

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