24 नवंबर को हर वर्ष भारत में गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस मनाया जाता है और इस दिन सार्वजनिक अवकाश भी रहता है। आपको ज्ञात होगा कि गुरु तेग बहादुर जी सिख धर्म के 9वें गुरु थे और उनके बाद उनके पुत्र गुरु गोविंद सिंह दसवें गुरु के रूप में विराजमान हुए।
सिख धर्म का इतिहास मानवता, प्रेम ,दया और सहिष्णुता के लिए जाना जाता है। साथ ही सिख धर्म ने अंधविश्वास ,रूढ़िवादिता और पाखंड के खिलाफ भी अपनी पहचान बनाई हुई है ।अंधविश्वास पर ,पाखंड पर, किस तरह से गुरु नानक जी ने प्रहार किया यह जगजाहिर है ।गुरु नानक जी जहां भी जाते वही अंधविश्वास और पाखंड को चुनौती देते थे ।
जिस वक्त गुरु तेग बहादुर जी सिख धर्म के नौवें गुरु चुने गए उस वक्त भारत में इस्लाम धर्म काफी उत्कर्ष पर था और जिसका शासक उस वक्त औरंगजेब था। पर औरंगजेब की कट्टर धार्मिक नीति से भारत के अन्य धर्म के लोग काफी व्यथित थे, दुखी थे, और डरे हुए थे।
अगर किसी ने उस वक्त औरंगजेब को चुनौती दी तो वह थे साहसी, पराक्रमी और मानवता के सच्चे पुजारी गुरु तेग बहादुर ।जिनको बचपन में त्याग मल के नाम से जाना जाता था। और बचपन में ही कृपाण में निपुण होने के कारण उनको तेज कहा गया और उनका नाम तेग बहादुर पड़ा जो भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है ।और उनको “हिंद दी चादर “के रूप में पुकारा जाता है। और यहां तक कि सिख धर्म में उनको “संसार की चादर” के रूप में आदर दिया जाता है।
दोस्तों यह चीजें ऐतिहासिक हैं और इतिहास में जो भी घटनाक्रम हुआ क्यों घटित हुआ और उसके पीछे क्या कारण थे और उसका वर्तमान से क्या कनेक्शन हो सकता है और वह किस तरह हमारे भविष्य को, देश के भविष्य को प्रभावित कर सकता है इस पर बात करना जरूरी है। तेग बहादुर जी का इतिहास भी मौजूद है, औरंगजेब का इतिहास भी मौजूद है, सिख धर्म का इतिहास भी मौजूद है, इस्लाम धर्म का इतिहास ही मौजूद है और साथ ही जो इस देश में उत्पन्न हुए या इस देश में बाहर से आए उन सभी को पनाह देने वाला हिंदू धर्म का इतिहास भी इस देश में जिंदा है। तो सोचने वाली बात यह है कि धार्मिक कट्टरता, अंधविश्वास और रूढ़िवादिता किसी भी युग में किसी भी काल में समाज के लिए लाभदायक नहीं हुई है। वह हमेशा समाज के लिए पीड़ादायक, कष्टदायक, दुखदाई और रोग ग्रस्त समाज के निर्माण के लिए उत्तरदाई रही है ।
आज हमको गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी दिवस पर इतिहास को जानने उससे सबक लेने और समाज की सोच बदलने के लिए कुछ लिखने, कुछ बोलने ,और कुछ कहने की जरूरत है ।ताकि इतिहास में जो गलतियां हुई हैं जिनके कारण रक्त रंजित समाज हुआ है, मानव मानव से दूर हुआ है, समाज में नफरत पैदा हुई है ,वैमनस्य पैदा हुआ है, उन कारणों को न अभी बढ़ावा देना है, न कभी उनको पनपने के लिए 1 इंच भी जमीन देनी है। तभी भारत की महानता, भारत की एकता और भारत की विशालता बनी रहेगी।
इन भावनाओं को समझते हुए हमको ऐतिहासिक घटनाओं चाहे -वह किसी युद्ध से जुड़े हो ,किसी महापुरुष के जीवन से जुड़े हैं उन सबसे सबक लेने के लिए और उनसे प्रेरणा लेकर नई सोच पैदा करने के लिए हमको अपनी कलम का इस्तेमाल करना चाहिए।
तो आज मैं एक ऐतिहासिक जो लेख होता है, उससे हटके इस शहीदी दिवस पर जो बात आपसे शेयर करना चाह रहा हूं उसके क्या निहितार्थ हो तो सकते हैं, और उसके क्या मायने लोग निकालते हैं यह तो जब लोग इस आर्टिकल को पड़ेंगे तभी पता चलेगा ।फिलहाल हमको सोच बदलनी है और समाज बदलना है।
भारत के धार्मिक इतिहास पर गहनता से अध्ययन किया जाए तो भारत का इतिहास खून की बूंदों से भरा पड़ा हुआ है। यहां समय-समय पर शासकों ने अपनी असहिष्णुता , धार्मिक कट्टरता से मानवता को शर्मसार किया है, कलंकित किया है ।और मानवता का कत्ल किया है।
प्राचीन काल में छोटे-छोटे जो शासक थे वह आपस में लड़ते रहे और खून खराबा होता रहा। मुगलों के आगमन से पहले भी भारत पर छोटे छोटे राजा थे उन्होंने अपने समीपवर्ती शासकों के खिलाफ हमेशा हिंसक लड़ाइयां लड़ी। जिसके परिणाम स्वरूप लाखों की संख्या में लोगों की जानें गई ।निर्दोष मारे गए शासकों की निर्दयता पूर्ण व्यवहार, धार्मिक कट्टरता और निरंकुशता के कारण हमेशा भारत की जनता ने हजारों नहीं बल्कि लाखों कष्ट झेले हैं और पीड़ाएं सही है।
गुरु तेग बहादुर के संघर्ष और उनके बलिदान की कथा लिखने से पहले मैं यहां पर इसके पूर्व की घटनाओं के बारे में यहां पर जिक्र करना चाहूंगा। जिसके कारण सिख धर्म का उदय हुआ, बौद्ध धर्म का उदय हुआ और जैन धर्म का उदय हुआ। और कई छोटे-छोटे संप्रदाय इस भारतवर्ष में बने। हम औरंगजेब की कट्टर नीति का जिक्र करने से पहले, उसकी निरंकुशता का जिक्र करने से पहले उसकी कट्टर धार्मिक नीति का जिक्र करने से पहले एक झलक भारत के वैदिक काल से लेकर के आधुनिक समय तक जो धर्म के नाम पर खेल हुआ है, जो समाज का विभाजन हुआ है उसको भी याद करना चाहंगे।
भारत में धर्म के नाम पर जो सबसे बड़ी विषमता व्याप्त है वह भारत के हिंदू धर्म में व्याप्त है।यहां एक वर्ग को 21वीं सदी तक शुद्र,हरिजन और न जाने क्या क्या अपमानित भरे शब्दों के बाण से संबोधित किया जा रहा है।और भारत का अतीत इसी गलत धार्मिक परिपाटी के कारण गुलामों का भी गुलाम रहा।
सिख धर्म के 9वें गुरु तेगबहादुर जी न सिर्फ सिख धर्म के गौरव को बनाये रखने के लिए बलिदान दिया,अपना सर कटवा दिया,बल्कि हिंदू धर्म को भी बचाया।क्योंकि आँगजेब का फरमान था कि भारत में इस्लाम के अतिरिक्त कोई दूसरा धर्म न हो,इसलिए उसने जबरन धर्म परिवर्तन की नीति को पनाह दी।
कश्मीरी पंडित गुरुतेगबहादुर के पास जाते हैं और आरंगजेब के इस धर्म परिवर्त्तन कि कट्टरता पर उनसे सहयोग करने का अनुरोध करते हैं।
गुरु तेग बहादुर ने औरंगजेब को सन्देश भिजवाया कि अगर वे उनका धर्मपरिवर्तन कर दें तो कश्मीरी पंडित भी इस्लाम को स्वतः ही कबूल कर लेंगे।इस पर औरंगजेब आग बबूला हो जाता है और गुरुतेगबहादुर को सजा देने का हुक्म देता है।आखिरकार जब औरंगजेब उनसे कहता है कि तुम इस्लाम कबूल कर लो तो तुमको क्षमा किया जा सकता है वरना मौत के लिए तैयार हो जाओ।इस पर गुरु के स्वर मुखर होते हैं और वे कहते हैं-“शीश कटा सकता हूँ ,मगर केश नहीं”।
वो दिन था 24 नवम्बर 1675 और स्थान था दिल्ली का चांदनी चौक जब सैयद जलालुद्दीन नामक जल्लाद ने गुरु तेगबहादुर का सिर कलम कर दिया।इस प्रकार एक सच्चा भारत माता का वीर सपूत मानवता,समानता,लोककल्याण,और सहिष्णुता को बचाने के लिए खुद शहीद हो गया।
क्यों आरंगजेब और अंग्रेजों के लिए पनाहगार बना हिंदुस्तान?
धार्मिक उन्माद और अंधविश्वास का परिणाम था औरंगजेब जैसे लोगों को भारत में पनाह मिलना, अंग्रेजों को पनाह मिलना पुर्तगालियों को पनाह मिलना, फ्रांसीसियों को पनाह मिलना आखिर वह क्या कारण थे जिसके कारण भारत का इतिहास खून की स्याही से लिखा गया है या यूं कहें कि खून के छींटे इतिहास के पन्नों को कलंकित करते रहे।