—विनय कुमार विनायक
किसी वंश या जाति को मिटाना है
तो उसका इतिहास बिगाड़ दो!
ऐसा ही किया गया है हैहयवंशी क्षत्रियों के साथ,
हैहय क्षत्रिय चंद्रकुल के यदुवंश की ज्येष्ठ शाखा है,
हैहयवंश की विरुदावली गाई गई है सभी पुराणों में!
हैहयवंश को श्रेष्ठ मुनि महात्मा कुल कहा गया
सभी पुराणों में ,अग्नि पुराण का कथन है—
“हैहयानां कुला: पंच: भोजाश्चावन्तयस्तथा वीतिहोत्रा:
स्वयंजाता: शौण्डिकेयास्तथैव च—(अग्नि पु.174/10,11)”
यानि ‘हैहयवंशी क्षत्रियकुल में भोज, अवंती, वीतिहोत्र,
स्वयंजात और शौण्डिक ये पांच क्षत्रिय शाखाएं हैं!’
“तेषां कुले मुनि श्रेष्ठा हैहयाना महात्मना—“ (ब्रह्म.पु.13/204,205)
“तेषां पंच कुलायेव हैहयाना महात्मनां—“ (पद्म पु.5.12/141,15)
“तेषा पंचगणा: ख्याता हैहयानां महात्मनां—“ (वायु पु.2/32/51,52)
“तेषां पंच कुला ख्याता हैहयानां महात्मनां—“ (मत्स्य.पु.44,48,49)
“तेषाकुलेऽति विमले हैहयानां महात्मनां” (बल्लाल चरित 2.10/51,2)!
ये कुछ पुराणों की बानगी है हैहयकुल के मुनि महात्मा होने का,
अग्नि पुराण आदि और बल्लाल चरित के अनुसार
हैहय क्षत्रिय शौण्डिक व बंगाल के सेन शासक कायस्थ
बल्लाल सेन एक ही वंश जाति हैहय क्षत्रिय मूल के थे!
हैहय वंश के मूल पुरुष चन्द्र महामुनि अत्रि ऋषि के पुत्र थे
और मातृपक्ष से, चन्द्रपुत्र बुध की भार्या इला;
मारीचि कश्यप के अदिति से उत्पन्न पुत्र
आदित्य विवश्वान सूर्यपुत्र वैवस्वत मनु की कन्या थी!
अत्रि ऋषि और अनसुईया के तीन पुत्र चन्द्र, दत्तात्रेय और दुर्वासा
क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और महादेव के अवतार थे!
प्रथम अत्रिपुत्र चन्द्र आत्रेय चन्द्रकुल के मूल पुरुष थे!
द्वितीय अत्रिपुत्र दत्तात्रेय पाशुपत पंथ के संस्थापक
और चन्द्रकुल हैहयवंश के आराध्य देव विष्णु के अवतार थे!
तीसरा अत्रिपुत्र दुर्वासा अति क्रोधी महादेव के रुद्रावतार थे!
चन्द्र पौत्र; बुध-इला के पुत्र चक्रवर्ती शासक पुरुरवा
देवतुल्य मानव अप्सरा उर्वशी के भोगी जैविक पति थे!
पुरुरवा के पुत्र आयु, आयु से नहुष, नहुषपुत्र ययाति,
ययातिपुत्र यदु,यदु के पुत्र सहस्त्रजित, एवं
सहस्त्रजित पुत्र हैहय हैहयशाखा के मूल पुरुष थे!
इस पवित्र हैहयवंश में बड़े-बड़े चक्रवर्ती व विष्णु के अवतार हुए
प्रथम योगी,दानी,प्रजावत्सल,सप्तद्वीपेश्वर,सुदर्शन चक्रावतार
सम्राट सहस्त्रार्जुन और विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण
तथा शेषावतार हलधर बलराम हैहय यदुवंशियों के विघ्नहर्ता थे!
हैहयराज सहस्त्रार्जुन के सौ पुत्रों में पांच प्रधान थे
शूरसेन,शूर, वृषसेन,मधु,जयध्वज—
ये परशुराम के हैहयवंश संहार से बचे थे—
शूर/सूर और शूरसेन/सूरसेन से शुरी/सुरी शौरि/सोढ़ी,
वृषसेन से वृष्णिवंशी/वार्ष्णेय
जिसमें भगवान श्रीकृष्ण और बलराम हुए थे!
मधु ध्वज से माधव वंश,जयध्वज से तालजंघ,
तालजंघ से वीतिहव्य/वीतिहोत्र,शर्यात/स्वयंजात,
तुण्डिकेर/शौण्डिकेर,भोज और अवन्ति ये पांच पुत्र हुए!
महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है
“मेकला द्राविड़ा लाटा पौण्ड्रा: कान्वशिरास्तथा
शौण्डिका दरदा दार्वाश्चचौरा शबर बर्वरा
किराता यवनाश्चैव तास्ता: क्षत्रिय जातय:।
वृषलत्वमनु प्राप्ता ब्राह्मण अमर्षनात्।“ अनु.प.35/17,18)
यानि ‘मेकला,द्राविड़,लाट,पौण्ड्र,कण्व शिरास्तथा
शौण्डिक,दरद,दर्वाश्चौरा,शबर,बर्वर,किरात,यवन क्षत्रिय जाति थे!
अस्तु अग्नि पुराण और महाभारत के अनुसार
हैहयवंशी क्षत्रियों की पांच शाखाओं में शौण्डिक भी एक थे!
पाणिनि ने कहा ‘शौण्डिको युद्ध निपुण क्षत्रिय प्रोच्यते बुधै’।
यानि ‘बुद्धिमान लोग युद्ध कुशल क्षत्रिय को शौण्डिक कहते’
अस्तु शौण्डिक क्षत्रिय जाति का पर्यायवाची शब्द है!
क्षत्रिय राजा प्रद्योत के बाद शुंग, काण्व, सातवाहन, भारशिव
जैसे ब्राह्मण राजाओं के काल में पूर्व काल के विजित राजवंशों पर
अधिकार प्राप्त कर उन्हें क्षत्रिय से व्रात्य जाति बना दी गई!
महाभारत में कहा गया है
‘वृषलत्वं गता लोके ब्राह्मणानां अमर्षनात्”
ब्राह्मण के अमर्ष यानि रोष के कारण ये क्षत्रिय जातियां
क्षत्रिय से वृषल यानि निम्नतर जाति की हो गई!
यही वो समय था जब पौराणिक क्षत्रियों का पतन हो रहा था
यही वो काल था जब पुष्यमित्र शुंग (185-149 ईसा पूर्व) का
उग्र ब्राह्मणवाद का दौर चल रहा था
मनुस्मृति, महाभारत और समग्र पुराणों का
वर्तमान संस्करण लिखा जा रहा था!
अधिक से अधिक ब्राह्मण वर्चस्ववादी
प्रक्षिप्त अंशों को शास्त्रों में जोड़ा जा रहा था
जैसे मनुस्मृति का ये प्रक्षिप्त अंश—
‘ब्राह्मण जायमानोहि पृथ्वियां अधिजायते’
यानि ब्राह्मण जन्म लेते ही पृथ्वी के स्वामी हो जाते’
बौद्ध जैन श्रावकों का उत्पीड़न,मान मर्दन
और कत्लेआम बहुतायत से किया जा रहा था!
वैदिक कर्मकाण्ड, अश्वमेध यज्ञ
और पशु बलि फिर से चलन में आ गए,
हैहय समेत वीर क्षत्रियों को
वर्ण संकर जातियों में ढकेले जाने लगे!
पुष्यमित्र शुंग एक ब्राह्मण सेनापति ने
अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ का बध करके
मगध की गद्दी हासिल कर ली थी!
पंडित विश्वेश्वर नाथ रेउ ने लिखा है
‘’हैहयवंश चन्द्रवंशी राजा यदु के परपोते हैहय से चला,
हैहय वंश के कुछ लोग महाभारत और अग्निपुराण
निर्माण काल में शौण्डिक (कलाल) कहलाते थे
और कलचुरी राजाओं के ताम्रपत्रों में भी उनको
हैहयों की शाखा लिखा गया है!”
ये कलचुरी शौण्डिक लोग शैव थे और दत्तात्रेय ऋषि के
पाशुपत पंथ के अनुयाई होने के कारण
शराब अधिक काम में लाया करते थे!’
मध्यप्रदेश जबलपुर के त्रिपुरी में कलचुरी शासकों ने
पांच सितंबर दो सौ अडतालीस (248) ईस्वी में
एक स्वतंत्र कलचुरी संवत चलाया था,
और शिलालेख ताम्रपत्रों में कलचुरी शासकों ने
हैहयराज सहस्त्रार्जुन को अपना कुलपिता माना है!
कलचुरी संवत् की स्थापना दहरसेन प्रपौत्र
ब्याघ्रसेन के पुत्र जयनाथ ने किया था!
हैहय कलचुरी वंश में कोकल्लदेव, मुग्धतुंग, युवराजदेव,
लक्ष्मन देव,गांगेयदेव,कर्ण देव,यश:कर्णदेव, नरसिंहदेव
जयसिंह,विजयसिंह,अजयसिंह देव जैसे बड़े-बड़े शासक हुए!
—विनय कुमार विनायक
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