यह हमारे देश में ही संभव है कि सांप्रदायिक तुषिटकरण को भी संवैधानिक नीति का दर्जा दे दिया जाता है। शाहबानो मामले में न्यायालय के फैसले को संसद में पलटकर राजीव गांधी ने यही किया। 1992 में ऐसी ही पुनरावृतित पीवी नरसिंह राव ने उस समय की जब अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाया गया था। राव ने मुसिलमों की नाराजगी दूर करने के नजरिए से हज यात्रा में छूट ;सबिसडीद्ध की धन राशि में बेतहाशा वृद्धि कर दी। हाल ही में शिक्षा का अधिकार संशोधन विधेयक को संसद में मंजूरी मिली है। तुषिटकरण के चलते अब मदरसा और वैदिक पाठशालाओं को आरटीआर्इ के दायरे से बाहर कर दिया गया है। दरअसल मुसिलम अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान इस कानून के वजूद में आने के बाद से ही जानने के अधिकार के दायरे से बाहर रहने की पुरजोर मांग उठा रहे थे। केंद्र सरकार तुषिटकरण की कितनी हिमायती है कि उसने निजी पाठशालाओं में गरीब बच्चों को दिए 25 फीसदी आरक्षण का तो कड़ार्इ से पालन नहीं किया, लेकिन मदरसों को आरटीआर्इ के दायरे से बाहर जरुर आनन-फानन में कर दिया। अब इन संस्थाओं में कौन सी तालीम दी जा रही है, कानूनी ढंग से इसकी जानकारी हासिल नहीं की जा सकती ? हज यात्रियों को दी जाने वाली छूट को सर्वोच्च न्यायालय ने भले गलत ठहरा दिया हो, लेकिन संप्रग सरकार इस सुझाव पर अमल करेगी, ऐसी उम्मीद कम ही है।
केंद्र सरकार कठघरे में है। सर्वोच्च न्यायालय ने हज यात्रियों को दी जाने वाली छूट को गलत ठहराते हुए, इसे 10 साल में धीरे-धीरे खत्म करने का सुझाव दिया है। न्यायालय ने हज के लिए जाने वाले सरकारी प्रतिनिधि मण्डल को भी छोटा करने का सुझाव दिया है। यह मण्डल करीब 102 लोगों का रहता है, इसका मकसद मुफत में सैर- सपाटा करना भर है। हज यात्रा से सरकारी खजाने पर बोझ लगातार बढ़ रहा है। देश के पहले प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरु ने विशुद्ध मुसिलम तुषिटकरण की दृषिट से पहली बार 1959 में हज यात्रा पर जाने वालों के लिए रियायती दर पर वायुयान उपलब्ध कराने की शुरुआत की थी। तब इसका इस बात को लेकर चंद बुद्धिजीवियों ने विरोध किया था कि कटटरता के लिए प्रसिद्ध साउदी अरब समेत कोर्इ भी मुसिलम देश जब मक्का-मदीना के जाने के लिए रियायत नहीं देता तो भारत ने यह गलत परंपरा क्यों शुरु की ? लेकिन यह सिलसिला बदस्तूर रहा। 1992 में जब अयोध्या का ढांचा ध्वस्त हो गया तो तात्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने 1994 में मुसिलमों को खुश करने केनजरिये से हज कोटा में छूट की राशि में इजाफा कर दिया। जबकि तमाम मुसिलम संगठनों ने कुरान की आयतों का हवाला देकर इस छूट का विरोध भी किया था। हालांकि लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा लगाए रखने वाले मीडिया ने इस मुददे को कभी नहीं उठाया ?
दरअसल इस्लाम के पांच मौलिक सूत्रों में से एक यह भी है कि हज यात्रा अपने ही खून-पसीने और र्इमानदारी की कमार्इ से की जानी चाहिए। कुरान की आयत में कहा गया है कि व अमेजुस्वालेहाते अर्थात नेक अमल कर, सदकर्म कर। इसी तरह का उददेश्य ऋग्वेद की एक ऋचा में भी है, ‘रमंते लक्ष्मी पुण्यां अर्थात लक्ष्मी का बास वहीं हैं, जहां पुण्य हो। भारत के दोनों ही प्रमुख धर्मों का सार यही है कि तीर्थयात्राएं मेहनत और र्इमानदारी से अर्जित धन से ही करनी चाहिए। जबकि सरकारी खजाने का धन शराब या अन्य नशीले द्रव्यों की बिक्री से की गर्इ कर वसूली और जुर्माने के रुप में प्राप्त धन है। जो धर्मानुसार धार्मिक यात्राओं के लिए वर्जित धन है।
धार्मिक यात्राओं पर छूट केवल इस्लाम धर्मावलंबियों को दी जा रही हो, ऐसा नहीं है, हिंदुओं को मानसरोवर यात्रा के लिए करीब 200 करोड़ की छूट प्रति साल दी जा रही है। हाल ही में भाजपा शासित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी श्रवणकुमार की भूमिका में आ गए। राज्य मंत्रीमण्डल ने फैसला लिया है कि हरेक साल सरकारी खर्च पर एक लाख गरीबों को चार धामों की तीर्थ यात्रा करार्इ जाएगी। यह उस सरकार का फैसला है, जिस सरकार के कार्यकाल में 3936 किसानों ने कर्ज के दबाव में आत्महत्या कर ली है। अच्छा हो प्रदेश सरकार इस फैसले को पलटकर यात्रा में खर्च होने वाली धनराशि से अन्नदाता को कर्ज से मुकित के रास्ते तलाशे ?
2011 में सवा लाख हाजियों पर भारत सरकार ने 605 करोड़ की छूट दी। 2010 में यह छूट 600 करोड़ की थी और 2009 में सरकारी खजाने के 690 करोड़ रुपये हाजियों को बतौर सबिसडी दिए गए। यदि मक्का-मदीना की इस यात्रा के अन्य सरकारी सहायक खर्च भी जोड़ लिए जाएं तो इस यात्रा का करीब 1800 करोड़ बैठता है। इसलिए शीर्ष अदालत ने यदि इस छूट को खत्म करने की सलाह दी है तो इस न्यायिक हस्तक्षेप को हज नीति में सुधार की दृषिट से सरकार को लेना चाहिए। यहां यह एक अच्छी बात है कि प्रमुख इस्लामिक संगठनों के मुखियाओं और बुद्धिजीवियों ने न्यायालय के इस फैसले का समर्थन किया है। अखिल भारतीय काजी बोर्ड के अध्यक्ष मो. सैययद कौशर रब्बानी ने तो इसे 10 साल की बजाय एकदम खत्म करने की सलाह दी है।
इस मुददे को लकर एक नया और अछूता पहलू भी उभरकर सामने आया है कि यह छूट सीधी यात्रियों को न दी जाकर एअर इंडिया कंपनी को राहत पहुंचाने के लिए दी जाती है, जिससे कंपनी के राजसी घाटे की पूर्ति होती रहे। कुछ नेताओं का तो यहां तक कहना है कि यदि सरकार देशी-विदेशी एयर लांइस कंपनियों से प्रतिस्पर्धा के आधार पर किराया दर आमंत्रित करती है तो किराये का मूल्य इतना कम निर्धारित होगा कि छूट नाम-मात्र रह जाएगी। अन्य देशी-विदेशी एयर लाइंस कंपनियां लगातार कम किराए पर हज यात्रा कराने की मांग उठा रही हैं, लेकिन सरकार उनकी मांग को अहमियत नहीं दे रही है। इससे सरकार की नियत में खोट जाहिर होता है। इस बात की पुषिट इस बात से भी होती है कि जब निजी एअर लाइंस ने वीआर्इपी कोटे के कुछ यात्रियों को कम किराए पर हज – यात्रा कराने की मांग करने लगीं तो सरकार राजी नहीं हुर्इ। मजबूर होकर इन कंपनियों ने मुंबर्इ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। न्यायालय का फैसलस कंपनियों के पक्ष में आया। सरकार ने इसे शीर्ष न्यायालय में चुनौती दी। अब सुप्रीम कोर्ट ने सबिसडी खत्म करने का ही लोक कल्याणकारी फैसला दिया है। अल्पसंख्यक मंत्रालय भी इस छूट के खिलाफ है, लेकिन सरकार है कि मानती नहीं। जाहिर सरकार घाटे में चल रहे एअर इंडिया को जीवित बनाए रखने के लिए ‘हज – छूट की संजीवनी देती रहेगी।