5 अक्टूबर को भारत में बकरीद अर्थात् इर्द उल अजहा है। संभवतः भारत या उपमहादीप में बकरीद मनाने से एक दो दिन पूर्व सउदी अरब मक्का में वार्षिक हज की अदायगी संभव है। हज का महीना है। मक्का और सउदी अरब में लगभग संपूर्ण विश्व के मुसलमानों का जमावड़ा लगा है। अनेकों समाचार हज, व्यवस्था और हज से जुड़ी सामानें आती रहती है। हज इस्लामी इबादत का चौथा पड़ाव है। हज का शाब्दिक अर्थ योजना है। तीर्थ के इस कार्यक्रम में सउदी अरब के मक्का की यात्रा कर के, हजरत इब्राहीम और इस्माइल के द्वारा निर्मित कावा में रूककर इबादत का नाम है। काबा का चक्कर लगाना और अन्य पवित्र एवं तीर्थंकर स्थानों पर समय व्यतीत करना हज के परिधी के अन्तर्गत आता है।
हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे इस्माइल की कुवार्नी का जो स्वप्न देखा था उसे जानवरों की बलि के रूप में खुदा ने स्वीकारा था। इस्लाम का शाब्दिक अर्थ ही कुर्बानी है। अर्थात् अपने आप को समर्पित कर देने का नाम इस्लाम है। वर्तमान समय में काबा के समीप सफा और मरवा नामक पहाड़ है। मक्का शब्द का अर्थ घर है।
प्रारम्भ के समय में बलि के खुन को काबा पर पोता जाता और माँस को जला दिया जाता था बाद के दिनों में इसे गरीबों में बांटने का परम्परा शुरू हुआ। 630 ई. अर्थात 9 हिजरी में हजरत मुहम्मद के आदेश से अबूबकर ने बिना सिले कपड़े पहन कर काबा की परिक्रमा का आदेश सुनाया था। ऐहराम बाँध्ना, तवाफ करना, हुजरा सुदूर, सफा एवं मरवा के मध्य दौड़ लगाना, आराफात में रूकना, मिना में रूकना, जानवरों की कुर्बानी देना, सिर मुण्डवाना, पत्थर मारना, यह सब हज का पड़ाव है!
हजरत मुहम्मद साहेब ने अपने जीवन काल में एक हज एवं तीन उमरा किऐ थे। हज मुसलमानों पर अनिवार्य होने के पश्चात् वह हज इस्लाम का दूसरा हज था, जो पैगम्बर साहेब का प्रथम एवं अंतिम हज था, इस हज के दो महीने और कुछ दिनों के पश्चात् आपका मुहम्मद साहेब का देहान्त हो गया था।
हज प्रत्येक मुसलमानों पर उस समय अनिवार्य है जब वह जवान और समझदार हो जाऐ, स्वतंत्र हो और हज यात्रा के लिऐ आर्थिक रूप से सम्पन्न हो। और महिना हज का हो। अर्थात् ईसलामी और अरबी महिने के अंतिम महिने अर्थात् जुलहिज्जा की आठ तारिख से तेरह के मध्य कभी भी हज मनाया अथवा सम्पन्न कराया जा सकता है। हज के क्रम में साधारण स्वेत वस्त्र बिना सिले पहना जाता है। हज के अंतिम पड़ाव में बाल दाढ़ी कटवाते हैं और साधारण जीवन जीना हज का एक प्रमुख अंग है। लगभग चार हजार वर्ष पूर्व की परम्परा की पूणावृति हज का नाम है। अल्लाह के प्रथम घर में कहना कि- मैं उपस्थित हूँ, ऐ अल्लाह मैं उपस्थित हूँ। मैं उपस्थित हूँ, तुम्हारे साथ और कोई नहीं है। साम्राज्य में अन्य कोई और नहीं! सफा और मरवा नामक पहाड़ी के मध्य, हजरत इब्राहीम के तरह दौड़ दौड़ कर अपने पापों पर पश्चाताप करना और माफी मांगना और आगामी जीवन को इस्लामी कानून के आधार पर बिताने का प्रण किया जाता है।
इस्लाम धर्म के पूर्व भी अरब में हज मनाने की प्रथा थी। मुहम्मद साहेब के आगमन ओर इस्लाम धर्म की स्थापना से पूर्व हज एक वार्षिक मेला और उत्सव का नाम था। जनजातिये मुखिया अपने कुल देवताओं के साथ काबा के समीप जमा होते ओर अपने अपने कुल की परम्परा एवं शक्ति का प्रदर्शन करता था। मगर मुहम्मद साहेब और इस्लाम की स्थापना से इसके प्रारूप में बदलाव आया। हज में भाग लेने वाला समझदार और जवान हो, हज पर व्यय राशि के सामथ्र्य हो, स्वस्थ्य हो, मार्ग सुगम और शान्तिमय हो, आदि हज के लिऐ आधरभूत आवश्यकताएं हैं।
वर्तमान परिवेश में हज सुगम भी हो गया है और सरल भी। भारत में हज के प्रारूप सरकारी स्तरों पर, अनुदान देकर होता है। मगर सरकारी स्तर के बगैर भी हज करना अब आसान होता जा रहा है जो प्राइवेट ऐजेन्टों के माध्यम से आम लोगों के सामने विकल्प स्वरूप है। मुस्लिम शासकों के भारत आगमन से पूर्व मुसलमानों ने भारत में रहना शुरू कर दिया था। सिंध् प्रान्त में हिन्दु शासकों ने मुसलमानों के लिऐ मस्जिद बनाने और उनके हज के लिऐ व्यवस्था किऐ जाने के साक्ष्य इतिहास में मौजूद है। हज निजामउद्दीन औलिया के भारत आगमन से पूर्व सूफियों के बदायूनी में रहने के प्रमाण और बिहार में सूफियों के प्रवास के साक्ष्य मिलते हैं। जो हज पर प्रत्येक वर्ष जाया करते थे। सूफियों और उनके साथ जाने वालों का मार्ग भाया अफगानिस्तान, ईरान, सउदी अरब था। दूसरा समुद्री मार्ग सूरत के रास्ते, लाल सागर के भाया, जद्दा और मक्का तक जाते थे। यह दोनों ही मार्ग कठिन, थकाव और मुश्किल भरा था। हज के अतिरिक्त भी धर्म को और अधिक समझने के लिऐ, विश्व से धर्मिक गुरु मक्का और मदीना पहुंचते जिसमें भारतीय मुसलमानों की भी अधिक संख्यायें होती थी। मक्का और मदीना के अतिरिक्त मिस्र, दमिशक और बगदाद भी धर्मिक गुरुओं के कन्द्र की श्रेणी में अग्रिनि होने का प्रमाण मिलते हैं।
तेरहवीं शताब्दी में भारत में स्थापित इस्लामी शासन के अध्ीन कुछ गणमानयों, शासित परिवारों और उनके धर्मिक गुरुओं के हज पर जाने के प्रमाण प्राप्त होते हैं। प्रारम्भिक समय में भारतीय मुसलमानों के लिऐ दूर्गम मार्ग और धन हज के मार्ग में सबसे बड़ी रूकावटें थी। सूरत से जद्दा तक का मार्ग एक महीने से भी कम था मगर यात्रियों को मानसून का इंतजार करना पड़ता था, मौसम से बच भी गऐ तो समुद्री लुटेरों से बचना संभव नहीं होता था। सोलहवीं और सत्राहवीं शताब्दी में 1000 से अधिक भारतीयों के हज पर जाने के साक्ष्य मिलते हैं। 500 यात्रियों को ले जाने वाले लगभग छह से सात जहाज को भारतीय शासकों ओर नवाबों, जमीनदारों के द्वारा बनाया जाता था। उन्नीसवीं सदी में भारतीय हज यात्रियों की संख्या एकदम से कम हो गई थी। सोलहवीं सदी में सुल्तान मुज्ज्फर, जो गुजरात के शासक थे उन्होंने हज यात्रिें के लिऐ मक्का तक जाने का पुरा व्यवस्था कर रखा था। मुगल साम्राज्यों में भी हज के लिऐ सहायता दिये जाने के प्रमाण मिलते हैं। मगर अकबर ने अलग से एक हज विभाग और एक अधिकारी की नियुक्ति तक कर रखी थी। शासकों के अतिरिक्त शाही परिवार की शक्तिशाली महिलाओं ने भी हज में अपना सराहनीय योगदान दिया था। गुलबदन बेगम, रोशन आरा और जहाँ आरा ने हज यात्रियों की बहुत सहायता की थी।
मगर आज भारतीय यात्रियों को भारत सरकार अनुदान देकर वोट की राजनीति करती है। अभी तक भारतीय हाजियों को सरकारी कानून में कैद कर रखा है। सरकारी जहाज, सरकारी अनुदान, सरकारी नियंत्रण आदि से भारतीय बंधे हुऐ हैं। भारतीय समाज में हज एक शक्ति प्रदर्शन और धन प्रदर्शन के साथ-साथ राजनीति प्रभाव का उदाहरण बना हुआ है। साथ ही साथ सरकारी शिष्ठमण्डल जिसमें अनेकों गणमान्य मंत्राी और अधिकारी होते हैं। हम जैसे गरीबों को मुंह चिढ़ाने का काम करते हैं।
फखरे आलम
मोदी सरकार को हज सब्सिडी तत्काल खत्म करनी चाहिए और हज के लिए एयर इंडिया के विमान से जाने की शर्त भी हटानी चाहिए जिस से हाजी जो किराया अब दे रहे हैं ग्लोबल टेंडर निकलने पर इस से सस्ते में हज कर सकें और सब्सिडी की लानत से बच सकें।
अगर मोदी सरकार जिसको मुस्लिम तुष्टिकरण भी नहीं करना है और वोट बैंक का भी डर नहीं सब्सिडी फौरन नहीं हटाती है तो ये माना जाएगा कि सब्सिडी सिर्फ बीजेपी का मुस्लिमों और कांग्रेस सहित सेक्युलर दलों को बदनाम करने का एक सियासी और चुनावी हथकंडा था।