इफ्तार को नमस्कार !

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
राष्ट्रपति भवन में अब इफ्तार की पार्टी नहीं होगी, यह खबर पढ़कर मेरे कुछ वामपंथी और मुसलमान मित्रों ने मुझे फोन करके कहा कि अब राष्ट्रपति भवन पर भी आरएसएस का कब्जा हो गया क्या ? उन्होंने पूरी खबर नहीं पढ़ी। वे खबर का शीर्षक पढ़कर ही उत्तेजित हो गए। शायद उन्हें पता नहीं कि राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की अवधि में भी इफ्तार की पार्टियां राष्ट्रपति भवन में नहीं होती थीं। क्या अब्दुल कलाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता थे ? क्या वे मुसलमान नहीं थे ? वास्तव में इस तरह की पार्टियों में लाखों रु. पानी की तरह बह जाते हैं। लोग बहुत सारी जूठन गिराते हैं। ये पार्टी होती है, रोज़े के बाद लेकिन दिन भर भूखे-प्यासे रहकर संयम रखने के बाद पार्टी में लोग सारा सयंम भूल जाते हैं।  उन्हें बदहजमी हो जाती है। रमजान के पीछे जो आत्मसंयम और तप की भावना है, इन ठाठ—बाट वाली पार्टियों में प्राय: उसका उल्लंघन होता है। इसके अलावा ऐसी पार्टियों में ज्यादातर लोग तो वे ही होते हैं, जो रोज़ा नहीं रखते। मैं यह बात सैकड़ों इफ्तार की पार्टियां भारत, अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान में देखने के बाद लिख रहा हूं। राष्ट्रपति भवन अगर सिर्फ इफ्तार की पार्टी रद्द करता तो मैं उसका विरोध करता लेकिन उसने स्पष्ट कर दिया है कि इस प्रकार के किसी भी धार्मिक कर्मकांड को वह वहां नहीं होने देगा। जब भारत को आप पंथ-निरपेक्ष या धर्मनिरपेक्ष कहते हैं तो कम से कम सरकार को तो पंथ-निरपेक्ष रहने दीजिए। भारत में रोज़ ही इतने तीज़-त्यौहार होते हैं कि यह उत्सवप्रेमी देश बन गया है। इन पर सरकारी पैसा क्यों खर्च किया जाए ? गैर-सरकारी स्तर पर जो भी त्यौहार मनाना जरुरी हो, लोग जरुर मनाएं। एक-दूसरे के त्यौहार भी मनाएं। प्रेम और सदभावना फैलाएं लेकिन अपने नेता लोग जो ढोंग करते हैं और पाखंड फैलाते हैं, उस पर वे हंस दिया करें। कर्नाटक के चुनाव के दौरान कांग्रेस और भाजपा के नेताओं ने जैसी धार्मिक मसखरी की, वह देखने लायक थी। इन नेताओं के जीवन में धर्म का क्या स्थान है ? इनका ब्रह्म तो वोट और नोट होता हे। उसके लिए जनेऊ तो क्या, वे कुछ भी धारण कर सकते हैं। यदि वे सचमुच जाति और धर्म का सम्मान करते होते तो इनके नाम पर वे वोट कभी नहीं मांगते, क्योंकि अंधा थोक वोट पाने के लिए वे इनका बेजा इस्तेमाल करते हैं। इफ्तार को नमस्कार कहनेवाले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद विशेष शाबासी के हकदार हैं, क्योंकि अब्दुल कलाम तो मुसलमान थे लेकिन कोविंद ने हिंदू होकर भी यह हिम्मत की। देश के सभी सत्तारुढ़ नेताओं के लिए राष्ट्रपति प्रेरणा-पुरुष बन गए हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,009 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress