
इंजि. राजेश पाठक
सन १९९८ में पोप जान पौल II नें भारत में एक यात्रा की थी, जो कि बड़ी सुर्ख़ियों में रही थी, उस बात के लिए जो कि देश में कार्यरत कार्डिनलों के समक्ष कोलकोता में उन्होंने कही थी —‘ उपासना की स्वतंत्रता में मतान्तरण की स्वत्रंता शामिल है. यदि कोई अपना मत बदलना चाहता है तो किसी को ये अधिकार नहीं है कि उसकी मंशा को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बदलने की कोशिश करे. ईसा मसीह के जन्म के प्रथम हजार वर्षों में ईसाइयत यूरोप में स्थापित हुई. दूसरे हजार वर्षों में अफ्रीका में, अब तीसरे हजार वर्षों में हमें एशिया में ईसाइयत को स्थापित करना है.’ अब क्यूंकि मुसलमान देश और चीन, जापान जैसे अन्य देशों में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर धर्मान्तरण छूट मिलना संभव नहीं, ऐसे में भारत से ज्यादा अनुकूल जगह मिशनरीयों को एशिया में और कहाँ मिलेगी जहां वे अपने सर्वोच्च धर्म गुरु पोप की इच्छा को पूर्ण कर सकें. यही कारण है कि पिछले दिनों हिन्दू संतों के पालघर में हुई हत्या को लेकर मिशनरीयों के उपर भी ऊँगली उठ रही है. वैसे इसी प्रकार २००८ में लक्ष्मणानन्द सरस्वती के साथ जो कुछ हुआ उससे इस संदेह को बल मिलता है. सामाजिक उत्थान के कार्यों में जीवन लगा देने वाले लक्ष्मणानंद सरस्वती का जन्म ओड़िसा के वनवासी बाहुल्य कंधमाल जिले के गुरुजंग गांव में हुआ था. उनके द्वारा चलाये गए कार्यों में प्रमुख थे- वनवासी गाँव चकापद में एक संस्कृत विद्यालय; जलेस्पट्टा में कन्या आश्रम,छात्रावास,विद्यालय; भगवान् जगन्नाथ की विशाल रथयात्रा निकालकर गौरक्षा, जैविक-खेती, नशाबंदी व सामाजिक कुरीतीयों को लेकर वनवासी बंधुओं में जागरण. साथ ही भागवत कथाओं का आयोजन कर एक हजार से भी अधिक भागवत घर स्थापित कर उनमें श्रीमदभागवत की प्रतिष्ठा की. बताते हैं कि वनवासियों के हिंदुत्व जागरण व उनके बीच लक्ष्मणानंद की ये लोकप्रियता ईसाई मिशनरीज को खटकने लगी थी. फिर क्या था उन पर हमलों का सिलसिला शुरू हो गया. ऐसे एक या दो नहीं कुल १२ हमले हुए, पर स्वामीजी हर बार अंततः बचकर निकल गए. लेकिन २३ अगस्त २००८ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन हुआ १३वाँ हमला उनके जीवन का अंत कर देने वाला सिद्ध हुआ. जलेस्पट्टा आश्रम में हत्यारे घुसे और उन पर गोलीयों की बोछार कर दी.इस पर भी संतुष्टी न मिलने पर कुल्हाड़ी से उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर डाले.इस हमले में तीन अन्य साधू और एक साध्वी भी मारे गए. इस कुकृत्य की कीमत कंधमाल व इससे लगे जिलों के लोगों नें चुकाई. दंगे की लपट नें इन इलाकों को भी अपनी चपेट में ले लिया.अन्य स्थानों पर आंदोलन-धरना-प्रदर्शन हुए सो अलग. प्रशासन हरकत में आया और आठ लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. पुछताछ में हत्या के पीछे माओवादीयों और ईसाईयों की सांठगाँठ का खुलासा हुआ; गिरफ्तार माओवादी नेताओं ने इसकी पुष्टि करी.
सूत्र बताते हैं की पालघर की स्थिति भी कंधमाल से भिन्न नहीं. पालघर जिला ईसाई मिशनरीयों की गतिविधी का केंद्र रहा है. उनकी वामपंथीयों के साथ सांठ -गांठ जग जाहिर है. ज्यादातर स्थानीय ग्राम पंचायत मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नियंत्रण में है. यहाँ तक कि स्थानीय विधायक भी कम्युनिस्ट पार्टी का है. घटना को लेकर गिरफ्तार हुए लोगों में कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं की अच्छी-खासी संख्या है. इस सम्बन्ध में ये रिपोर्ट भी देखें-‘ ठाणे-पालघर-नासिक जिले का पूरी वनवासी पट्टी को मिशनरी, वामपंथी और जिहादी अपने लिए एक उर्वरक भूमि के तौर पर देखते हैं. वनवासियों को रावण का वंशज स्थापित करना व हिन्दू मानबिंदुओं को ख़त्म करने की मुहीम ने जोर पकड़ लिया है. साधुओं की हत्या के बाद सोशल- मीडिया पर एक विडियो खूब चला जिसमें बताया जा रहा था कि गणपति और हनुमानजी पशु मात्र हैं, ये तुम्हारी कैसे रक्षा करेंगे ? केवल जीसस ही तुम्हारी रक्षा कर सकता है.’