बेघर

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people on footpathयू.पी.ए. सरकार ग्रामीण इलाकों मे बेघर लोगों को एक घर देने प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है, शहरी बेघर क्या भारतीय नागरिक नहीं है, वैसे इस तरह के प्रस्ताव चुनाव से पहले लाना नई बात नहीं है।शिक्षा का अधिकार, स्वास्थ्य सुविधाओं का अधिकार और अब घर का अघिकार। एक और घोटाले की तैयारी, ग़रीब बेघर लोगों के नाम पर ज़मीन और पैसा हज़म करने की तैयारी के अलावा यह और कुछ भी नहीं है।

एक तरफ विशाल हुमंज़िला इमारतें, बड़ी बड़ी कोठियाँ दूसरी ओर फ्लाइओवर के नीचे या फुटपाथ पर रातें गुज़ारते लोग, कभी ठंड कभी गर्मी तो कभी बरसात से बचने की कोशिश करता एक बड़ा जनसमुदाय, मन विचलित सा हो जाता है।क्या है इस समस्या का हल ? क्या हम लोगों को जो 2-3-4 कमरों के फ्लैट मे रहते है, या जो बड़ी कोठियों मे रहते है या जो फार्म हाउस जैसे घरों मे रहते हैं या उन सभी लोगों को जिनके पास रहने के लियें घर है, अपराध बोध से ग्रस्त हो जाना चाहिये क्योंकि देश की बहुत बड़ी जनसंख्या बेघर है ?

आर्थिक असमानता कहाँ नहीं है ? ये बात अलग है कि हमारे जैसे विकासशील देशों के ग़रीब विकसित देश के ग़रीबों से अधिक ग़रीब हैं। जिन लोगों के पास धन दौलत है वे लोग अगर खुल कर ख़र्च न करें तो बहुत से लोगों का रोज़गार चला जायेगा। मुकेश अंबानी ने यदि गगनचुम्बी अट्टालिका अपने लियें बनवाई है तो उसके रख रखाव के लियें 600 से 700 के बीच लोगों को रोज़गार दिया है। ग़रीबों के लियें कोई भी सरकार कितनी ही योजनायें बनाले वे योजनायें ही रह जायेंगी ,जब तक बढती जनसंख्या पर नियंत्रण करने की कोई ठोस योजना न बने। जब तक जनसंख्या पर अंकुश नही लगता कुछ भी हासिल नही होगा ग़रीब बेघर लोगों की संख्या बढती ही जायेगी। प्रजातंत्र मे सबको वोटों की चिन्ता रहती है इसलियें कोई भी राजनैतिक दल सत्ता मे आ जाय जनसंख्या को क़ाबू मे रखने के लियें कोई सख़्त क़दम नहीं उठायेगा। ऐसी स्तिथि मे बेधर लोगों की ही संख्या ज़्यादा बढेगी क्योकि पढे लिखे और आर्थिक रूप से कुछ बहतर लोग तो ज़्यादा बच्चे पैदा नहीं कर रहे हैं। ग़रीब अनपढ और बेघर लोगों के ही ज्य़ादा बच्चे होते हैं, उनकी सोच को बदलना इतना आसान भी नहीं है, स्वयं सेवी संस्थाओं को इस दिशा मे पहल करने की आवश्यकता है, यद्यपि सरकारी सहयोग के बिना यह मुशकिल ज़रूर है।

समाज का एक तबक़ा यदि बच्चे पैदा ही करता जा रहा है जबकि उनके पास न रोटी जुटाने का साधन है न सर पर छत तो कोई समाज सेवी संस्था या सरकार कुछ भी करले समस्या सुलझने की जगह गंभीर ही होती जायेगी। मेरे कहने का यह अर्थ नहीं है कि ग़रीबों को बच्चे पैदा करने के अधिकार से वंचित कर दिया जाय, उन्हे यह समझाना तो ज़रूरी है कि बच्चा पालना एक बड़ी ज़िम्मेदारी है क्या वो चाहेंगे कि उनका बच्चा भीख़ मांगे, कुपोषित रहे या बाल मज़दूर बन जाय ? सही स्थिति तो यह होगी कि पहले महनत करें अपनी आर्थिक स्थिति सुधारें तब बच्चे के बारे मे विचार करें। उन्हें यह भी समझाना होगा कि परिवार नियोजन की जानकारी सभी सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों मे निःशुल्क उपलब्ध होती है। उन्हे यह अहसास भी कराना होगा कि बच्चे का सुख तभी भोगा जासकता है जब माता पिता उनकी ज़िम्मेदारी उठा सकें। कोई भी सरकार वादे चाहें जितने करले ग़रीबों को सस्ता अनाज, सस्ते घर और निशुल्क शिक्षा देने के पर बढती हुई जनसंखया को देखते हुए इन वादों का पूरा होना चुनाव से पहले किया गया वादा ही होता है जो कभी पूरा नहीं होता।

आवशयकता इस बात की है कि सरकार और उद्योगपति ऐसी योजनाओं पर काम करें जहाँ अधिक से अधिक लोगों को रोज़गार मिल सके और महनतकश लोगों को उनकी महनत के हिसाब से सही पैसे सही समय पर मिले, जनसंख्या पहले ही इतनी बढ चुकी है शहर फैलते जा रहे हैं, मकान बनते जा रहे हैं, निश्चय ही खेती केलियें ज़मीन कम हो रही है। इस पर अंकुश तभी लग सकता है जब जनसंख्या पर अंकुश लगे।

अब हम एक काल्पनिक स्थिति के बारे मे विचार करते हैं। मान लेते हैं कि सरकार, उद्योगपति वे सभी लोग जो कुछ अनुदान दे सकते हैं, मिलकर देश के सभी बेघर लोगों को घर बना कर दे देते हैं, इनमे से कुछ अवश्य उन्हे बेचकर फिर सड़क पर आजायेंगे क्योंकि रोटी की आवश्यकता घर से बड़ी होती है। जो लोग उन घरों मे रह जायेंगे वे कुछ सालों मे जनसंख्या इतनी बढा देंगे कि फिर काफ़ी लोग फुटपाथ पर सोने के लियें मजबूर हो जायेंगे। जनसंख्या पर अंकुश लगाये बिना तो बेघर लोगों की संख्या बढ़ेगी ही।

 

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

2 COMMENTS

  1. सरकार ka इरादा गरीबी खत्म क्र रजगार dena नही है.

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