Honor Killing

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 honour kilingHonor Killing के लियें हिन्दी मे कोई सही शब्द नहीं मिल रहा, इसलियें हिन्दी लेख का शीर्षक इंगलिश मे देने के लिये मजबूर हूँ।Honor Killing का शाब्दिक अर्थ तो सम्मान हत्या हुआ, इसका अर्थ क्या निकालें सम्मान की हत्या या हत्या का सम्मान! ये तो दोनो ही ग़लत हैं। सम्मान की हत्या हो भी सकती है, पर हत्या का सम्मान कभी नहीं! Honor Killing वाक्यांश जिस संदर्भ मे प्रयुक्त होता है, उसमे हत्या तो ज़रूर होती है, इंसान की भी और सम्मान की भी। गूगल खोज करके हिन्दी मे Honor Killing जो परिभाषा मिली वो ये है-

  1. परिवार को कलंक से बचाने हेतु किया गया वध।
  2. गौरव रक्षा हेतु हत्या।

सम्मान- परिवार का, जाति का या धर्म का ख़तरे मे नज़र आने पर कभी आवेश मे और कभी मिलकर जानी बूझी साज़िश के तहद हत्या करना Honor Killing कहलाता है। शायद किसी भी सभ्य देश का क़ानून इसकी इजाज़त नहीं देता होगा, पर कुछ कबीले, कुछ परिवार कुछ जातियां ,अपने ही क़ानून बना लेती हैं, जिनपर चलना कुछ लोगों की मजबूरी हो जाता है। स्वेच्छा से न सही, क्रोध से भी नहीं, कभी कभी दबाव और डर भी ये अपराध करवा देते हैं।Honor Killing सभी देशों मे होती रहीं हैं, पर सभ्य समाज मे इनके लियें कोई जगह नहीं है। कभी कभी कानून और सज़ा से बचने के लियें इन्हे दुर्घटना या आत्महत्या बनाकर भी पेश किया जाता है।

Honor Killing के मुख्य कारण विवाह से ही जुड़े होते हैं जिनमे मुख्य हैं- दूसरी जाति के व्यक्ति से, या दूसरे धर्म के व्यक्ति से, माता पिता और समुदाय की अनुमति के बिना शादी करना या अपने ही गोत्र मे शादी करना । इसके अलावा किसी ऐसे रिश्ते मे शादी करना या शारीरिक संबध बनाना,जिससे नज़दीकी ख़ून का रिश्ता(incest) हो, इसके लियें देश के अलग अलग भागों और धर्मो की मान्यतायें अलग अलग हैं।विज्ञान यह साबित कर चुका है कि ऐसे रिश्ते नहीं होने चाहियें।इसके अलाव शादी से पूर्व के संबध, विवाहेत्तर संबध बिन ब्याही मां बनना भी ऐसी हत्याओं का कारण हो सकता है।ऐसी हत्यायें न हो उसके लियें सोच बदलने की ज़रूरत है। सबसे अहम बात, कि देश का कानून सबसे ऊपर है। किसी समुदाय को अपने क़ानून बनाकर किसी व्यक्ति या परिवार को दंड देने का हक़ नहीं है। यदि कोई व्यक्ति या संगठन ऐसा करता है तो उसे दंड मिलना चाहिये।

हमारे देश के कानून के अनुसार कोई लड़की 18 साल की आयु और लड़का 21 साल की आयु पूरी होने पर विवाह कर सकते हैं, जिसके लियें माता पिता की सहमति ज़रूरी नहीं है, लड़की लड़के का स्वावलम्बी होना भी ज़रूरी नहीं है।किशोरावस्था मे लड़कियाँ और लड़के एक दूसरे की तरफ़ आकर्षित तो होते हैं, पर विवाह की जो न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित की गई है तब तक न तो स्वावलम्बी बन पाते हैं न शादी की ज़िम्मेदारी के लियें परिपक्व होते हैं।कई बार कुछ इलाक़ों से मांग आई है कि लड़के लड़कियां कोई गलत क़दम न उठा पायें इसलियें उनकी शादी कम उम्र मे कर देनी चाहिये। कानून को विवाह की न्यूनतम सीमा घटा देनी चाहिये।ये तो बहुत ही प्रतिगामी(regressive) क़दम होगा। हम युवाओं से शिक्षा , स्वतंत्रता और स्वावलंभी होने का अधिकार छीन कर उन्हे अपनी मर्ज़ी से किसी खूँटे से नहीं बाँध सकते, बल्कि जब तक वो शिक्षा पूरी करके किसी रोज़गार या नौकरी मे लगकर अपनी गृहस्थी का दायित्व निभाने लायक न हों उनकी शादी के बारे मे गंभीरता पूर्वक विचार करने की भी ज़रूरत नहीं है।ग्रामीण इलाक़ों के लोगों के लियें भी ये बात समझना ज़रूरी है।

किसी किशोर को यदि लगता है कि उसका आकर्षण ही सच्चा प्यार है, तो उसे माता पिता को यह बात बता देनी चाहिये। माता पिता को बच्चों से डर का नहीं, मित्र जैसा संबध रखना चाहिये , जिससे वो कोई ग़लत क़दम न उठाकर उनसे सलाह लें। ऐसी स्थिति मे माता पिता को समय देना चाहिये कि बच्चे अपनी पढ़ाई पूरी करें, कैरियर बनायें उसके बाद उनकी बात पर विचार किया जायेगा। लडके लड़की को परिवार की मर्यादा की सीमा का भी ज्ञान अनौपचारिक रूप से देते रहना चाहिये, मर्यादा पार करने के परिणाम क्या हो सकते हैं, इससे भी अवगत कराना चाहिये।लड़का लड़की अकेले न मिले, उनके लियें यही अच्छा है।ये सब बाते उपदेश की तरह नहीं, डरा धमका कर भी नहीं मित्र की तरह से बताना अच्छा होता है। इस तरह किशोरावस्था मे घर से भागने या किशोरावस्था मे किसी लड़की के गर्भवती होने की संभावना को कम किया जा सकता है। ये बातें भी Honor Killing का कारण बन जाती हैं।

शहरी पढ़े लिखे लोग अब अंतर्जातीय विवाह को स्वीकृति दे देते हैं, पर जाति व्यवस्था की जड़े समाज मे बहुत गहरी हैं। आजकल भी अपने से नीची जाति मे विवाह करना कई लोगों को पसन्द नहीं आता। गाँवों मे यह समस्या शहरों से ज़्यादा है। दो अलग अलग जाति के वयस्क व्यक्ति, जो आत्मनिर्भर भी हों उनके विवाह मे बाधा डालना ग़लत है। यदि माता पिता को कोई आपत्ति है, तो अपना पक्ष बताकर निर्णय अपने बच्चों पर छोड़ देना चाहिये।माता पिता विवाह ख़ुशी से करें , विवाह मे शामिल हों न हों, ये निर्णय वो स्वयं ले, परन्तु हत्या जैसी बात परिवार के सम्मान के लियें सोचना भी ग़लत है, अपराध है।माता पिता की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ जाकर बच्चों को तभी विवाह करना चाहिये जब उनको समझाने की सारी कोशिशें बेकार हो चुकी हों। हां जब मातापिता साथ न दे रहे हों तो लड़के और लड़की दोनो का स्वावलम्बी होना और भी ज़रूरी हो जाता है।केवल भावनाओं मे बहकर विवाह करने से मुश्किलें आ सकती हैं। समाज यदि माता पिता को तिरस्कृत करता है और केवल इसी वजह से वो बच्चों का साथ नहीं देर हे, तो समझिये कि समाज को ये बातें ज़्यादा दिन याद नहीं रहेंगी, अगर हिंसा की आशंका हो तो पोलिस सुरक्षा मांगी जा सकती है।

अंतर्जातीय विवाह से कहीं अधिक समस्या दूसरे धर्म मे विवाहों मे होती है।सबसे पहले तो व्यक्तिगत स्तर पर बहुत समायोजन(adjustment) करना पड़ता है रीति रिवाज, खान पान जीवन शैली मे बदलाव करने पड़ते हैं। समायोजन हर शादी की ज़रूरत है, पर अंतर्जातीय विवाहों मे ज़्यादा और दूसरे धर्म मे विवाहों मे बहुत ज़्यादा समायोजन करना पड़ता है। विरोध भी दोनो पक्ष से होता है। दो लोगों के प्रेम को सांप्रदायिक रंग भी दिया जा सकता है। समाज के ऊपरी तबके मे ये बातें मायने नहीं रखती परन्तु मध्यम वर्ग पर असर होता है। एक प्रश्न धर्मपरिवर्तन का खड़ा किया जाता है।कहीं से आवाज़ उठती हैं कि ऐसी शादियां धर्मपरिवर्तन के लियें ही करवाई जाती हैं। दो अलग धर्म के वयस्क स्वावलम्बी लोग यदि निश्चय करते हैं कि वो शादी करना चाहते हैं तो माता पिता को उनका साथ देना चाहिये और जहां तक संभव हो बिना धर्मपरिवर्तन किये स्पैशल मैरिज ऐक्ट के तहद विवाह होना चाहिये।

कभी कभी लड़के या लड़की मे से एक बहुत अमीर परिवार से हो और दूसरा मामूली हैसियत वाला हो, तब भी अमीर लोग ग़रीब की हत्या करवा देते हैं।माता पिता को आर्थिक असमानता के कारण आगे आने वाली ज़िन्दगी की मुश्किलों से अगाह कर देना चाहिये, पर किसी की हत्या करवाना या अपनी लड़की या लड़के को क़ैद करना अनुचित है।मनोवैज्ञानिकों से सलाह ली जा सकती है पर निर्णय तो लड़के लड़की का ही होना चाहिये। मान लीजिये आगे चलकर वो नहीं निभा पाते तो भी परिणाम उन्हे ही भुगतना होगा। कभी कभी ऐसे समय मे माता पिता मुह फेर लेते हैं, यह भी ग़लत है। किसी का भी निर्णय ग़लत हो सकता है।

एक ही गोत्र के व्यक्तियों के विवाह पर भी समाज पाबन्दी लगाता है । ऐसी शादी करने वालों को परिवार और समाज से ही नहीं ,जीवन से भी निष्कासित करने की घटनाये होती रहती हैं। माना जाता है कि एक गोत्र के लोग ,एक ही पूर्वजों के वंशज होते हैं, उनमे ख़ून का रिश्ता होता है , इसलियें उनका आपस मे विवाह नहीं हो सकता। यह सही है कि नज़दीकी ख़ून के रिश्तों मे विवाह नहीं होना चाहिये, पर एक गोत्र के सभी लोगों का नज़दीकी रिश्ता नहीं होता। पूर्वजों मे संबध हो भी तो वो कई पीढ़ी पहले होता है।आम तौर पर शादी के लियें कम से कम तीन पीढ़ी तक आपस मे ख़ून का रिश्ता नहीं होना चाहिये।

परिवार मे शुरु से ही अनौपचारिक रूप से बच्चों को हर रिश्ते के स्नेह और मर्यादा की सीख मिलती रहती रहती है, बड़े लोग अपना व्यवहार निंयत्रित रखेंगे तो बच्चे भी वही सीखेंगे। परिवार मे ममेरे चचेरे भाई बहनो मे, चाचा भतीजी, मामा भांजी के रिश्तों मे स्नेह पनपने के साथ ही मर्यादा को निभाना ज़रूरी है।यदि माता पिता को लगे कि इन रिश्तों मे किसी भी आयु मे यौन आकर्षण पनप रहा है तो को सतर्क हो जाना चाहिये, उन्हे इन अवांछित संबंधो के शक के कारण दोष न देकर मनोवैज्ञानिक से संपर्क करना चाहिये, क्योंकि हर मामले को सुलझाने का कोई एक तरीक़ा नहीं हो सकता। स्थिति चाहें जितनी जटिल हो, किसी की हत्या उसका हल नहीं है।

पति पत्नी को एक दूसरे के साथ वफ़ादार रहना चाहिये, न चाहते हुए भी किसी तीसरे के आ जाने पर हत्या की बात न सोचकर , समाधान ढूँढना चाहिये। अंतिम विकल्प तलाक हो सकता है हत्या कदापि नही।

हत्या सिर्फ़ हत्या होती है उसे सम्मान को बचाने के लियें की गई हत्या कह देने से न जीवन बचता है और न सम्मान। कुछ अनअपेक्षित घट भी जाये तो धैर्य के साथ सोच समझ कर क़दम उठाना चाहिये ,समाधान ढूंढना चाहिये। हत्या किसी समस्या का हल नहीं हो सकती।

 

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

7 COMMENTS

  1. बिनजी

    जिनकी सोच स्वछन्द से भरी आज़ादीसे जुडी हो वो honor killing को क्या समजेंगे ? जिनकी कोई परंपरा या इतिहास नहीं है वो क्या लिखेंगे और क्या सोचेंगे honor killing के बारे में ,

    आज ही एक पोस्ट थी फेसबुक पर लड़ते लड़ते जब आखिरी गोली बची तो महिला जवान ने अपने आपको गोली मार ली इसे कहते है honor killing!!!!!

    इज्जत बचाने के हेतु की गई हत्या वो चाहे खुदने की हो या अन्यने honor killing कहते है !!!

    दुनिया में सगोत्र विवाह सम्बन्ध और अन्य जाती से विवाह संभंध से कई प्रजाति नस्ट हो है इसका इतिहास गवाह है !! अंग्रेजो ने संसोधन करके लिखा है मगर हमारे शास्त्र सालोसे कहते रहे है !!!

    अस्तित्वको को मिटाने वाली बात को मिटाना ने का मतलब honor killing——

  2. (१) Honor Killing इन शब्दो में अर्थ समाया ही नहीं है।अर्थ आप के मस्तिष्क में है; और वह अर्थ आप ने रूढि से लिया है। ऐसे शब्दों के अर्थ जो रूढ हो जाते हैं, उन्हें रूढार्थ कहा जा सकता हैं।
    (२) उदाहरणार्थ “राम-बाण औषधी”(के रूढार्थ) को अंग्रेज़ी में “Ram’s Arrow Medicine” नहीं कहा जाएगा।
    (३) कुछ शब्दों के अर्थ शब्द में समाये होते हैं, जिसे शब्दार्थ कहा जा सकता है।
    (४) Honor Killing का अर्थ मैं करता हूं, कुल का गौरव बचाने हेतु की गयी हत्त्या।
    (५) ऐसा अर्थ व्यक्त करने के लिए, आप “प्रतिष्ठारक्षक हत्त्या”, “गौरवरक्षी हत्त्या” “कुलीनता रक्षी हत्त्या”, “प्रतिष्ठालक्ष्यी हत्त्या”,”कीर्तिरक्षी हत्त्या” इत्यादि का विचार कर सकती हैं।
    (६) पर ध्यान रहे आज इन शब्दों में से कोई भी शब्द रूढ हुआ ना होने से किसी रूढ हुए Honor Killing जैसे शब्द से तुलना करना सही नहीं होगा। वह वैसे ही होगा, जैसे किसी नए बोए हुए आम के पौधे की आप विकसित आम्रवृक्ष के साथ तुलना करें। इस काम में कुछ स्वतंत्र चिन्तन की आवश्यकता होती है।

    • डा. मधुसूदन यह तो मै जानती हूँ शाब्दिक अनुवाद हमेशा सही नहीं होते और यह मैने लेख लिखते समय शुरू मे ही लिख दिया था। मै यथासंभव हिन्दी के शब्दों का प्रयोग करती हूँ पर जब कोई व्यावहारिक शब्द हिन्दी मे न मिले तो इंगलिश के शब्द प्रयोग करने से परहेज़ नहीं करती।हिन्दी को क्लिष्ट बनाकर मै उसे केवल विद्वानो की भाषा नहीं बनाना चाहती।यदि मुझे कभी लगता है कि आम पाठक को इस शब्द का अर्थ न मालुम हो तो उसका इंगलिश अनुवाद कोष्टक मे लिख देती हूँ। मै ट्रेन को ट्रेन ही लिखती हूँ लौहपथगामिनी नहीं, फोन को दूरभाष, इंटरनैट को अंतरजाल भी नहीं लिखती। हाँ घोड़े को घोडा लिखूंगी नहीं, या मेज़ को टेबल नही लिखूंगी ।
      लेख के कथ्य के बारे मे आपने कुछ नहीं लिखा।

      • (१)Nothing will ever be attempted, if all possible objections must first be overcome.—Samuel Johnson

        (मेरा संदर्भित अर्थ) नवीन शब्द विरोधी आपत्तियाँ, शब्द रूढ होने के पहले ही, हल हो, तो नया शब्द रूढ होगा ही नहीं। उसकी भ्रूण हत्त्या हो जाएगी।
        नया जूता प्रारंभ में चुभता है; इस लिए नया जूता खरीदना बंद नहीं करते।
        जॉन्सन की उक्तिसे , आप नवीन शब्दों के विषय में भी सोच सकती है।

        (२) आलेख आप का है। अर्थ १००% समा जाए वैसे शब्द आपको सुझाए। स्वीकार-अस्वीकार आपका अधिकार है।

        (३) प्रश्न पूछना पाठक का अधिकार भी है।

        (४) और मैं मानता हूँ, कि, यदि हिन्दी को राष्ट्र भाषा के स्थान पर स्थानापन्न करना है, तो उसपर केवल हिन्दी भाषियों का एकाधिकार नहीं हो सकता।ऐसा वर्चस्ववाद नहीं होना चाहिए।

        (५) आप स्वयं Honor Killing जानती होगी; पर और भारत की कितनी प्रतिशत जनता अंग्रेज़ी जानती है? Honor Killing का अर्थ भी होता कहाँ है? नकली अर्थ है। पर आपके कोष्ठक में लिखने पर सहमत हूँ।

        (६) लोह पथ गामिनी वाले डॉ. रघुवीर ने २ लाख नए शब्द रचकर दिए हैं। दो दो पी.एच. डी. याँ प्राप्त विद्वान था वह।
        लोह्पथ गामिनी इतना घटिया नहीं लगता मुझे।गरिमा युक्त भाषा में लोह पथ गामिनी भी शोभा देगा।पर मुझे सामान्य बोलचाल में, रेलगाडी अधिक जचता है। ये सारे प्रश्न भी मेरे आलेखों में (४०-४५) केवल भाषाओं पे हैं। ६ से १० तो जिस विषय की चर्चा चल रही है, उन्हीं पर है। आप विरोधी टिप्पणी भी कीजिए, मुझे उससे बहुत लाभ होगा। मेरा अनदेखा दृष्टिकोण मुझे सहायता करेगा।

        (७) बहन जी, आप नही जानती, कि, मेरे लिए सारी निर्माण अभियांत्रिकी अंग्रेज़ी में ही सहज है। जो आप कह रही हैं, मेरी स्थिति २००५ तक थी।उसी स्थिति से मैं हिंदी (संस्कृत) की ओर बढा। दोनों में मेरे पास कोई उपाधि नहीं– जिज्ञासा से पढा।(गर्व नहीं संदर्भ हेतु लिखा।)आप कह रही है;मेरे लिए नया नहीं। मेरे मित्र परामर्श देते रहे,वह आप का भी पैंतरा है।

        (८)पराए शब्द अपनाने में कौनसा पराक्रम है? वो तो बडा सरल है। उसे मैं पलायनवाद समझता हूँ। (बुरा ना मानें)उसमें मैं गौरव नहीं लेता।

        (९) पराक्रम तो नए शब्द रचनेमें है।
        हिन्दी के हित में आप काम कर ही रही हैं। जो चाहे स्वीकारे, ना चाहे त्यज दे।
        शुभेच्छाएँ।

        • डा. मधुसूदन, हमारा संवाद से भाषा की तरफ़ मुड़ चुका है। मुझे गर्व है कि विदेश मे रहकर आपने हिन्दी और उसके भाषाविज्ञान मे इतनी रुचि बनाये रखी है।भाषा कठिन है, शब्द व्यावहारिक हैं या नहीं ये बहुत हद तक पाठक पर निर्भर करता है।आप विदेश मे रहकर इस ज़मीनी हकीकत को शायद न जानते हों कि आम भारतीय जिसकी मातृभाषा है, हिन्दी मे कितने इंगलिश शब्द ठूंसने का आदी हो चुका है।यहाँ मां भी बच्चे से कहती है देखो वो क्या है cow! ये रंग कौन सा है red वो ‘गाय’ या ‘लाल’ नहीं सिखाती। हिन्दी को मै सरल रखकर स्वयं कम से कम इंगलिश के शब्द लिखती हूँ। आपको ताज्जुब होगा समाचार पत्र और समाचार चैनल इंगलिश के ही पढ़ती/ देखती हूँ, क्योंकि उनकी खिचड़ी भाषा मुझे पसन्द नहीं है। समाचार पत्रों मे honour killing इतना आता रहता है कि ज्यादातर लोग समझते हैं। मेरी कामवाली भी शायद ‘समय’ कहूं तो न समझ पाये पर time ज़रूर समझ लेगी, चाहें उसे ‘टैम’ ही कहे,वस्तुस्थिति यही है।

  3. आपका लेख पढ़ा जो हानर-किलिंग को केंद्र बिंदु में रख कर लिखा है.बहुत अच्छे सवाल उठाये हैं और पाठक को सोचने के लिए मजबूर भी करता है किन्तु समाज में फैली कई विसंगतियों और अजीबोंगरीब चलन ने आज की पीढ़ी को गुमराह ही किया है.मैंने एक जगह पढ़ा था कि गौत्र उस बाड़े को कहते हैं जहां गाय वगैरह एक साथ बांधी जाती हैं.इस तरह हमारी कई जिज्ञासाएं अनुतरित रह जाती हैं.
    इसके इतर ईश्वर ने हमें किसी भी रूप में बाँधा नहीं है.उसने तो बुद्धि दी है.सोचो और आगे बड़ो के नियम के अनुसार उसकी सृष्टि का विस्तार करना है.इसीलिए किसी को मौत के घाट उतारना ईश्वरीय नियम विरुद्ध है.
    आपके इस पर विषय (कई कोणों से) हमारे समाज को इमानदारी से मंथन करना चाहिए ताकि ऐसी घटनाओं को रोका जा सके,और यह जरूरी भी है.

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