आतंकवाद से कैसे निपटें -बी.एल. शर्मा ‘प्रेम सिंह शेर’

”मरीजे इश्क पर रहमत खुदा की मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की।” आतंकवाद का मर्ज भी बढ़ता ही जा रहा है, उसका कारण यह है कि मर्ज का पता नहीं, फिर इलाज कैसे हो? इस्लाम की विचारधारा के अनुसार सारे संसार को ‘दारुल इस्लाम’ बनाना है। इस संकल्प को पूर्ण करने के लिए पाकिस्तान का निर्माण हुआ था। विख्यात इतिहासज्ञ आर्नल्ड टयनबी ने कहा है कि ”पाकिस्तान का निर्माण मुसलमानों के एक हजार वर्ष पुराने स्वप्न को पूरा करने के लिए हुआ है, जिसके अनुसार बीसवीं शताब्दी में पूरे भारत को इस्लाम के अधीन करना है।” पाकिस्तान का दूसरा लक्ष्य है संपूर्ण विश्व को दारुल इस्लाम बनाना। इसी कारण से पाकिस्तान जिहाद का विश्व केन्द्र बन गया है, जहां संसार के सब देशों के लिए जेहादी तैयार किए जाते हैं।

छद्म युद्ध सस्ता युद्ध

पाकिस्तान ने जन्म लेते ही 1947 में कबाईलियों के नाम से कश्मीर पर धावा बोल दिया और लगभग आधा कश्मीर हथिया लिया है। इसके पश्चात दो बड़े युद्ध 1965 तथा 1971 में हुए। इन सीधे युद्धों में पाकिस्तान को कोई विशेष सफलता नहीं मिली।

इस प्रकार सबक सीखा और छद्म युध्द या गोरिल्ला युद्ध प्रारंभ हो गया, जिससे हजारों आघात लगने पर भारत चरमरा जाये। अब तो गोरिल्ला युद्ध (छापामार युद्ध) जारी है। आपको भले ही अच्छा न लगे पर यह छापामार युद्ध बंद नहीं होगा। भले ही आप कितनी भी कूटनीतिक बयान बाजी करें। कितनी हीं यू एन ओ में जाएं, शिकायत करें, प्रमाण दें, पर यह छपामार युद्ध बंद नही होगा। अचानक, कहीं भी, किसी भी समय आक्रमण हो जाता है और सोते हुए चौक पड़ते हैं।

शत्रु अपने हिसाब से अपने समय पर हमें जहां चाहे निशाना बनाता है और हम धोखा खा जाते हैंऔर बाद में चिल्लाते हैं।

क्या भारतीयों का खून सस्ता होता है? हमारे नेता जो हमेशा वातानुकूलित कोठियों में रहते हैं और जिनकी सुरक्षा के लिए सैकड़ों सुरक्षा कर्मी 24 घण्टे जुटे रहते हैं, इनके लिए आम आदमी का रक्त चाहे सस्ता हो सकता है लेकिन वह दिन दूर नहीं जब एक तुच्छ कीड़ा भी तंग आकर प्रहार करता है। अतः नेता और साहिब लोग जो ताश के पत्तों की तरह एक ओर जनता के रक्त और दूसरी ओर जवानों के रक्त का खेल खेलते रहते हैं उनको जनता के सामने जवाब देना होगा।

छापामार युध्द का मुकाबला छापामार युध्द से ही हो सकता है। पर कैसे? 1.सबसे पहले पाकिस्तानी एजेंटों के अड्डे भारत से समाप्त करने होंगे। 2.भारत और पाकिस्तान के मध्य जो ‘भरोसा बढ़ाओ’ जैसे ‘समझौता एक्सप्रेस’ (पाकिस्तान से भारत आने और जाने की छूट) यह सब तुरंत समाप्त करने होंगे, इन्ही सुविधाओं का लाभ आतंकवादियों को मिलता है। 3. भारत-पाक सीमा, भारत – बंग्लादेश सीमा और अब भारत-नेपाल सीमा के रिक्त स्थान को सील कर दें ताकि मनुष्य तो क्या चिड़िया भी पर न मार सके। घुसपैठियों को देखते ही गोली मार दो। 4. कुछ विद्यालयों के छात्रावास, बंग्लादेशियों के ठिकानों और उन मदरसों में जहाँ भी आतंकवादी शरण लेते हैं, उन सब को उड़ा दिया जाए। पाइनियर में प्रकाशित ”इंटेलिजेंस चॉक्स ओवर क्लीन चिट टु मद्रास ” में लिखा है कि भारत-नेपाल सीमा पर यू.पी. में 350 मदरसे हैं, बिहार में 180, बंग्लादेश सीमा पर 100, राजस्थान-पाक सीमा पर 445 और ऐसे ही पंजा तथा जम्मू-कश्मीर में हैं। 5. पाकिस्तान घुसपैठियों की पहुँच अनेक भारतीय घरों में है जहाँ वह आकर ठहर जाते हैं। इन सब घरों को ध्वस्त कर देना चाहिए। 6.वह सब तथाकथित मानव अधिकार संस्थाएं जिनकी गतिविधियां तालिबान के लिए सहायक हैं और भारत विरोधी कार्य करती हैं, इन पर प्रतिबंध लगाया जाए।

पाकिस्तान को अंतिम चुनौति यदि भारत पर कोई भी जेहादी आक्रमण हुआ तो उसे पाकिस्तानी माना जाएगा। 1. इस स्थिति में भारत-पाक सभी संधियां रध्द कर दी जायेंगी। चाहे वह संधि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की क्यों न हो,चाहे यू.एन.ओ. द्वारा ही क्यों न मनवाया गया हो। 2. 1947 में पाकिस्तानी आक्रमण के दौरान पूर्व की एक संधि मनवाने के लिए गांधी जी की भूख हड़ताल से विवश होकर भारत सरकार नें पाकिस्तान को 55 करोड़ लौटाये थे, जब कश्मीर में युध्द चल रहा था। यह गलती दोहराई न जायेगी। 3. सिंधु तथा उसके पांच सहायक नदीयों का खुलकर उपयोग किया जायेगा क्योंकि पाकिस्तान ने कभी भी किसी भी भारत-पाक संधि का पालन नहीं किया। अतः भारत-सिंध पानी संधि को रध्द करता है। 4. जिस समय पाकिस्तान को शत्रु देश घोषित किया जाये उसी समय भारत में इमरजेंसी घोषित कर सामान्य विधि से संविधान निलंबित रहेंगे।

उस समय : क)मीडिया में जो तत्व जेहादियों को महिमामण्डित करते हैं और देश के सुरक्षा बलों तथा सेना को हतप्रभ करते हैं उन सब को गद्दार घोषित कर मृत्यु दण्ड दिया जाये। ख)जो तत्व शत्रु को शरण देते हों उन घरों, विद्यालयों, छात्रावासों को ध्वस्त कर दिया जाये।

उपयुक्त जबाब (प्रतिक्रिया) क) पाक की हिन्द विरोधी गतिविधिओं का ‘सूद सहित भूगतान’ किया जाये, क्योंकि अब पाकिस्तानी आक्रमणों से लगभग एक लाख भारतीय मारे जा चुके हैं और इससे पाकिस्तानी प्रसन्न भी होते हैं: ”देखो मजा आ गया। दीपावली के मौके पर 150 काफिर हमारे गाजियों ने मार गिराये।” ख)बस बहुत हो चुका : अब इसके बाद एक भी भारतीय मरने पर कम से कम पांच पाकिस्तानी (जेहादी) स्वर्ग में भेज दिये जाने चाहिए। ग) संत-महात्माओं से सावधान : जेहादियों के मरने पर आंसू बहाने वाले और निर्दोष हिन्दुओं के मरने पर चुप रहने वाले तथाकथित शांतिपाठ करने वालों को जेल में डाल देना होगा। काल कोठरी शांति पाठ के लिए उपयुक्त स्थान है। घ) परोक्ष का उत्तर परोक्ष में : युद्ध चाहे घोषित हो या अघोषित, नियमित हो या अनियमित, वह तो युध्द हीं है। ऐसे युद्धों में कभी-कभी निर्दोष भी मारे जाते हैं। पाकिस्तान की परोक्ष कार्यवाही का उत्तर भी परोक्ष कार्यवाही से दिया जाना चाहिये- यदि भारत में हो रहे विध्वंस से पाकिस्तान अपनी जवाबदेही से मुकरता है कि ”अमुक हिंसक तत्वों पर पाक सरकार का कोई नियंत्रण नहीं हैं” तो वर्तमान स्थिति में यदि कोई पाक विरोधी तत्व भी नाम से चुन-चुन कर दुनिया भर में कहीं भी अचानक पाक नेताओं, उग्रवादियों या भारत को अंगूठा दिखाने वालों की हत्या कर उनको जहन्नूम या बहिश्त कहीं भी पंहुचाए तो भारत भी कह सकता है कि ”अमुक तत्व हमारे नियंत्रण से बाहर हैं”। स्कूली छात्र तथा हेडमास्टर अभी तक भारत एक पिटे हुए छात्र की तरह दुनिया के हेडमास्टरों (इंग्लैंड, अमेरिका) के समक्ष जाकर शिकायत करता रहा है।’ देखो मास्टर जी उसने मुझे मारा’ अब समय आ गया है कि पाकिस्तान पिटे और भारत की शिकायत करे कि ‘देखो उसने मेरी टांग तोड़ दी।’

2 COMMENTS

  1. १००% सही बात. आज देश में आंतकवाद की पैरवी करने के लिए लेखको, बुद्धीजीवियों, मानवाधिकारवादियो और वकीलों की होड़ मची हुई है. ऐसे आपका लेख हिम्मत दे जाता है. आपकी साहसी लेखनी को नमन.

  2. दुनिया भरमें एक छोटा देश जो कई आतंकवादियोंसे जूझता रहा है, वह है इसराएल।शायद वह पर्याप्त मात्रामें सफल हि हुआ है, ऐसा मैं मानता हूं।उसकोभी समय समयपर इसका मूल्य चुकाना पडता है। इसके बाद मुझे नं. २ पर अमरिका लगता है।जिसने ९/११ के बाद काफी मात्रामें चौकसी बढाई है। हवाई अड्डोंपर सघन जांच, और पासपोर्टपर गुप्त कोडींग जैसे चिह्न माने जाते हैं।९/११ के बाद बडा अकस्मात हुआ, याद नहीं आता। और कुछ युरपकेभी देश, विशेष रूपसे यु. के., हॉलंड(?), ऑस्ट्रेलिया, इत्यादि भी है। बहुत देशोमें यह काम बिना किसी प्रचार, घोषणा, या बाजे गाजे के बीनाहि किया जाता होगा, ऐसे भी लगता है। जब “क”—-“ख” या “ग” या “घ” किसीके भी साथ मैत्रिसे रह नहीं सकता, तो कॉमन सेन्स से बतलाओ कि दोष किसका है? मै उत्तर नहीं दूंगा। और भी कई देश है, जिन्होने समय समयपर खुलकर(या चुप चाप) आतंकका सामना और उसे सीमित करनेका प्रयास किया है। कुछ देशोने इस कामको गुप्त रूपसे किया है। वे भी सही कारणोंसे डरते हैं।

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