मैं किताब हूं हां मैं किताब हूं

—विनय कुमार विनायक
मैं किताब हूं मुझे पढ़ लो,
मैं वेद उपनिषद पुराण हूं,
मैं अतीत हूं मैं वर्तमान हूं,
मैं भविष्य का सद्ज्ञान हूं,
मैं किताब हूं मुझे पढ़ लो!

किताब में कुछ लिखी होती,
किताब में कुछ खाली होती,
खाली में विवेक से काम लो,
लिखे को पढ़ो खाली भर दो,
मनुष्य हो और मनुष्य बनो!

मैं किताब हूं, सब को पढ़ा हूं,
मैं आब हूं;सबकी राह गढ़ा हूं,
मैं रुआब हूं; खुद पर अड़ा हूं,
मैं असबाब हूं मुझे सहेज लो,
तुम किताब पढ़ पंथ गढ़ लो!

मैं किताब हूं मुझको पढ़ लो,
मैं किताब हूं; हकीकी जमीनी,
मैं किताब हूं; तबीयत रूहानी,
मैं किताब हूं; हल सबाल की,
मैं किताब हूं; हिसाब किताबी!

मैं किताब मसी कागजी नहीं,
तुम चेहरे की किताब पढ़ लो,
चेहरे पर इंसान लिखे होते है,
निज मन की व्यथा-कथा को,
चेहरे को किताब सा पढ़ लो!

मैं किताब हूं मन का भाव हूं,
चारों वेद के सब ऋचाओं का!
मैं कथा हूं अठारह पुराण की,
मुझमें स्थिति बुद्ध जिन की,
मैं अभिव्यक्ति हूं गुरुग्रंथ की!

मैं आख्या एंजिल बाइबल की,
मैं ज्ञान हूं शरा ए कुरान की,
मैं दस्तावेज सभ्यता संस्कृति,
मैं धरोहर हूं रीति रिवाज की,
मैं किताब हूं पूर्वजों की झांकी!

मैं सभी वेद हूं, सभी पुराण हूं,
मैं शरिया की आयत कुरान हूं,
मैं ईश्वरीय आसमानी ज्ञान हूं,
मैं गुरुग्रंथसाहिब गुरु समान हूं,
मैं किताब हूं नाद ब्रह्म अक्षर!

मैं किताब हूं ग्रहणकर अच्छाई,
त्यागो प्रक्षिप्त मानसिक बुराई,
मेरी उलटबांसियों को समझ लो,
मानव जीवन को व्यर्थ ना करो,
मैं शास्त्र,शस्त्र होने से बचा लो!

पढ़ लो मुझे कि मैं किताब हूं,
देख लो कि मैं श्रेष्ठ ख्वाब हूं,
मैं ना कोई रोब हूं ना दाब हूं,
मैं इंसानियत का इन्कलाब हूं,
मैं किताब हूं, हां मैं किताब हूं!
—-विनय कुमार विनायक

1 COMMENT

  1. This article contains too many Urdu words. Article would have been better if word Pustak was used in stead of Kitab. Kindly use pure Hindii words in Hindii articles.

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