मैं भी अब मास्टर बन सकती हूँ

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शराब के खिलाफ महिलाओं के प्रयास ने सजाया बच्चों की आंखों में सपना

अनीसुर्रहमान खान

बच्चों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में “सभी प्रकार की हिंसा से बच्चों की सुरक्षा” उनका मौलिक अधिकार घोषित किया गया है, बच्चों के खिलाफ हिंसा के सभी रूपों को समाप्त करने के लिए सतत विकास केलक्ष्य 2030 के एजेंडा में एक विशिष्ट लक्ष्य (एसडीजी 16.2) को शामिल किया गया है। जो भय, उपेक्षा, दुर्व्यवहार और शोषण से मुक्त रहने के लिए प्रत्येक बच्चे के अधिकार की प्राप्ति को एक नई गति मिलती है।

एक भयावह सच यह है कि बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण की घटनाओं के मामले में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है। जबकि आदिवासी बहुल राज्य ओडिशा इसी श्रेणी में देश में चौथे स्थान पर है। राष्ट्रीयअपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार ओडिशा में बच्चों के साथ होने वाले अपराधों के अंतर्गत बड़ी संख्या में केस दर्ज किये जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार ओडिशा के एक लाख बच्चों में से प्रत्येक सात बच्चों का यौनशोषण किया जाता है। मनोवैज्ञानिक इन अपराधों के पीछे कई कारणों को ज़िम्मेदार मानते हैं, जिनमें शराब का सेवन भी प्रमुख है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ओडिशा के संभलपुर जिला स्थित लरियापली ग्रामपंचायत की महिलाओं ने सख़्त क़दम उठाते हुए क्षेत्र को शराब जैसी कुरीतियों से मुक्त करने का बीड़ा उठाया है। इससे बच्चों का न केवल भविष्य संवर रहा है बल्कि उनके स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के भी प्रयास जारी हैं। महिलाओं के इस हौसले ने गांव के लोगों विशेषकर पुरुषों में शराब के प्रति सोंच को भी बदलने का काम किया है। शराबबंदी से होने वाले परिवर्तनों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए गांव की एक युवा लड़की बताती है कि”अब मुझे विश्वास हो गया है कि मास्टर बनने का मेरा सपना अब पूरा हो सकता है।” वहीं दूसरी ओर आठवीं क्लास में पढ़ने वाली चौदह वर्षीय सुकांति कालू आत्मविश्वास से लबरेज होकर बताती है कि “पहले मेरे पापान केवल सभी प्रकार का नशा किया करते थे बल्कि घर में झगड़ा और मारपीट भी करते थे। जब शाम को उनके घर आने का समय होता तो हम लोग घर का अंधेरा कोना खोज कर इसमें अपने आप को छिपाने के प्रयास में लग जाते, लेकिन बेचारी माँ! उसकी तो जम कर पिटाई होती थी। माँ को मार खाता देख, बर्दाश्त नहीं होता तो मैं उस को बचाने जाती, मगर जब खुद की पिटाई होती तो न चाहते हुए भी अलग होना पड़ताथा।” सुकांती के पिता घनश्याम कालू एक राजमिस्त्री है, जो दिन भर की अपनी मेहनत की कमाई को शाम में शराब की चंद बोतलों में उड़ा दिया करता था। उसकी एक रिश्तेदार रुक्मणी प्रधान कहती हैं कि “घनश्यामकालू पहले महुआ और चावल से बने स्थानीय शराब का भी आदी था, इतना ही नहीं उसकी पत्नी भी ताड़ी का सेवन की आदी थी”। लेकिन अब उन्होंने इस बुराई से तौबा कर ली है।

 

दाहिने हाथ में कलम और बाएँ हाथ में कॉपी पकड़े कुर्सी पर बैठी सुकांति मुस्कुराते हुए कहती है कि “अब हमारे पापा और मम्मी हमें खूब पढ़ाना चाहते हैं, अब शाम को जब हमारे पिता घर आते हैं तो उनके हाथ मेंहमारे लिए मिठाइयां या फल होते हैं। हमारी एक मांग पर कॉपी, कलम, किताब सब कुछ हाज़िर कर देते हैं और कहते हैं कि एक दिन मेरी बेटी मेरा नाम रोशन करेगी, मैं ने भी सोच रखा है कि अब मैं दिल व जान सेपढ़ाई करूंगी और मास्टर बनकर गांव के सारे बच्चों को भी पढ़ाऊंगी।” गांव में अचानक आये इस बदलाव को लेकर 23 वर्षीय पदमनी बदनाईक कहती हैं कि “मैं खुद बी.ए पास हूँ, मेरा घर सुनदरगढ़ जिले में है लेकिनमैं ने यह तय कर रखा है कि अपने लोगों के लिए कुछ ज़रूर करूँगी, यह उसी का हिस्सा है कि मैं यहाँ महिलाओं को एकत्रित करके उन्हें शराब से होने वाले जानी माली नुकसान से अवगत कराया, और महिलाओं कोतैयार किया कि गांव में शराब की क्रय-विक्रय को बंद किया जाए, शुरू में इस काम में थोड़ी मुश्किल ज़रूर आई, लेकिन अब स्थिति बहुत बेहतर है”।

अपनी मुहिम के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि “शुरुआत में, हमने यहाँ की महिलाओं को समूह से जोड़ने के लिए, उनके घर गए और साथ बैठ कर समस्या का समाधान करने की कोशिश की, लेकिन हताश औरमार खाने की आदी हो चुकी अधिकांश महिलाओं ने यही उत्तर दिया कि “हम क्या कर सकते हैं?” लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और धीरे धीरे दस महिलाओं का एक स्वयं सहायता समूह (एस.एच.जी) बनाया, जिन्होंनेशराब की भट्ठी चलाने वालों का विरोध शुरू कर दिया, देखते ही देखते और भी महिलाएं समूह का हिस्सा बनने लगीं, तो समूह को बड़ा करते हुए इसका नाम “नारी शक्ति संघ” कर दिया गया”।

“नारी शक्ति संघ” की अध्यक्षा हमादरी धरवा अपनी पंचायत की उप सरपंच भी हैं, जबकि सचिव परीमोदोनिय नायक हैं। एक अन्य सदस्य अपना परिचय कराते हुए कहती है कि “मेरा नाम पुष्पलता नायक है, गांव केअन्य पुरुषों की तरह मेरा पति भी शराब पीता था, जिस के कारण हमारे घरेलू हालात बद से बदतर हो गए थे। यही हाल गांव की अन्य महिलाओं के घरों का भी था, इसलिए सभी ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया किइसके ज़िम्मेदार शराब की भट्ठी को बंद करवाना होगा। इस निर्णय को बदलने के लिए हमारे पतियों ने हमपर काफी दबाब बनाया यहां तक कि हमारे साथ मारपीट भी की, वहीं दूसरी ओर हमारे आंदोलन को ख़त्म करनेके लिए शराब भट्टी के मालिकों ने कई तरह के प्रलोभन और धमकियां भी दीं, लेकिन आखिरकार हमारे अटल इरादे के आगे उन्हें घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा।

गांव में शराबबंदी को सख्ती से लागू  समूह ने यह फैसला भी लिया कि यदि गांव में कोई भी पुरुष या महिला शराब पीकर गाली गलौज करेगा तो उस पर पहली बार एक हजार रूपए का जुर्माना लगाया जाएगा। अगरदूसरी बार भी पकड़ा गया तो जुर्माने की राशि बढ़ कर दो हजार हो जाएगी। ऐसे ही शराब की भट्टी वालों के लिए भी एक कानून बनाया कि अगर गांव में शराब बनाते हुए पकड़े गए तो पहली बार पांच हज़ार का जुर्मानादेना होगा और यदि दूसरी बार भी पकड़े जाते हैं, तो दंड की राशि दोगुनी हो जाएगी। हमारे इस फैसले का गांव में सकारात्मक बदलाव देखने को मिला। शराबबंदी से एक तरफ जहां गांव के लोगों के जीवन स्तर में सुधारआया है वहीँ दूसरी ओर उनके घर की आमदनी भी बढ़ी है। अब बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी बल दिया जा रहा है।

लरियापली जैसे हजारों गाँव में लाखों बच्चे न जाने कैसे कैसे सपनों को अपनी आँखों में सजाते होंगे। लेकिन क्या हर बच्चे अपने सपनों को सुकांति की तरह पूरा कर पाते है? यह वह प्रश्न है जो हर शराबी को कम सेकम एक बार अपने हाथ में शराब की बोतल पकड़ने से पहले अवश्य करना चाहिए, आप का यह प्रश्न और उत्तर लाखों बच्चों की ज़िंदगी बदल देगा।

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