मैं ब्राह्मण की आत्मकथा सुनाता हूं

—विनय कुमार विनायक

मैं ब्राह्मण हूं अन्य वर्ण जाति से अलग हटकर

ब्रह्मा के मुख से जन्म लेनेवाला

ईरान स्थित सुषानगर ब्रह्मलोक का

ब्राह्मण भृगु मनुस्मृतिकार हूं वर्ण व्यवस्थाकार हूं!

भारतवर्ष के सात मनुओं के पुत्रों से इतर

मैं भृगु मनुपुत्र मानव नहीं, ब्रह्मा का मानसपुत्र हूं

मानवों के प्रथम पिता महाराज स्वायंभुव मनु के कहने पर

मनुस्मृति के नाम से मनोनुकूल भृगुस्मृति रचनेवाला

मैं पर्सिया का भृगु, भार्गव शक मग याजकों का पूर्वज हूं!

सच में मानव पिता मनु तो मुफ्त में बदनाम हुए

मनुस्मृति भृगु व भार्गव ब्राह्मणों के मुख से निकली

मनुस्मृति प्रथम अध्याय श्लोक उनसठ पढ़ लें

मानव पिता स्वायंभुव मनु महाराज ने स्वयं ही कहा-

‘एतद्धोऽयं भृगु: शास्त्रं श्रावयिष्यस्यशेषत:।

एतद्धि मत्तोऽधिजगे सर्वमेषोऽखिलं मुनि:।।59।।

अर्थात् ‘यह भृगु इस संपूर्ण शास्त्र को तुम्हें सुनाएंगे

क्योंकि इस भृगु मुनि ने मुझसे इसे पढ़ा है!’

“ऐ ऋषियों सुनो मैं याजक भृगु बोल रहा हूं

इस स्वायंभुव मनु वंश के और भी

महात्मा तथा बड़े बड़े पराक्रमी छः मनुओं  

क्रमशः स्वारोचिष,उत्तम,तामस,रैवत,चाक्षुष

और वैवस्वत मनु महाराज महातेजस्वी

विवश्वान सूर्यपुत्र ने अपनी अपनी प्रजा को

उत्पन्न कर पालन पोषण किया!”

अस्तु मेरे कथन का अभिप्राय समझ लो

प्रथम स्वायंभुव मनु से सातवें वैवस्वत मनु तक

एक श्लोक में एक साथ बातें करने वाला

मैं ब्रह्मा का पुत्र भृगु और मेरे वंशज भार्गव

किसी भी मनु से उत्पन्न संतान नहीं ये जान लो!

स्वायंभुवमनु से इस मन्वंतर के वैवस्वत मनु तक

समस्त मनुपुत्रों मनुर्भरती मानव भारतपुत्रों के लिए

मनुस्मृति लिखनेवाला ब्रह्मा के मुख से जन्म लिया

मैं भृगु और मेरे वंशज भार्गवों ने समय समय पर

मनुस्मृति को लिखी और मनमाफिक संपादित की!

मैं भृगु मूल रूप से पर्सियन ईरानी मूल का याजक हूं

मनुस्मृति प्रथम अध्याय सत्तासीवां श्लोक में लिखा हूं

उस महातेजस्वी परमात्मा ने इस सृष्टि की रक्षा हेतु

मुख से उत्पन्न ब्राह्मण बाहु से क्षत्रिय जंघा से वैश्य

चरणों से शूद्र वर्णों के लिए अलग अलग कर्म बनाए!

मैंने स्मृति में कहा मनुष्य नाभि से ऊपर पवित्र होता

मैंने ब्रह्मा के बहाने कहा मनुष्य का मुख उत्तम होता

क्षत्रियादि वर्णों से पहले मुख से उत्पन्न होने के कारण

ब्राह्मण जन्म लेते ही इस जगत का स्वामी हो जाता-

‘ब्राह्मणो जायमानोहि पृथ्वि्यामधि जायते!’ म.अ1/99

मैं ब्रह्मा का मानस पुत्र, माता का कोई अता पता नहीं

मैं भृगु भग नहीं भगवान के मुख से उत्पन्न विप्र प्रवर

मैं भृगु अयोनिज, बाहु जंघा चरण से जन्मे वर्णों से ऊपर

मैं पर्सिया का भृगु मेरी वंशावली और इतिहास सुन लो!

मेरे पिता ईरानी सुषानगरी ब्रह्मलोक के प्रचेता ब्रह्मा

मैंने दैत्य हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या से विवाह किया

दिव्या ने शुक्र-और्व-काव्या व त्वष्टा-विश्वकर्मा को जाया

मातृपक्ष से शुक्र अरब का दैत्य गुरु शुक्राचार्य कहलाया

और त्वष्टा दैत्य दानव शिल्पी मय दानव कहलाने लगा!

मेरी दूसरी पत्नी पुलोमा दानव वंश की कन्या थी

जिससे च्यवन और ऋचिक दो पुत्रों का जन्म हुआ था

मैं भृगु ईरानी याजक दैत्य दानव का सगा सम्बन्धी

देव आदित्य मानवों का शत्रु, दैत्य दानवों का जीवनदाता!

मैं भृगु और मेरा वंशज भार्गव मृतसंजीवनी विद्या ज्ञाता

मैंने ही आदित्य देव और मानवों के आराध्य देव

श्रीविष्णु की छाती पर लात मारकर उगा दी थी भृगुलता!

मैं भारतीय अधिवासी मनुर्भरती क्षत्रियादि से भिन्न

मैं सुषानगर पर्सिया ईरान से खंभात की खाड़ी तक आया

मनुपुत्र शर्याति की कन्या सुकन्या को पुत्र च्यवन ने पाया

और शर्याति की खंभात की खाड़ी में भृगुकच्छ बसाया!

शोणतट मगध में पौत्र दधिचि ने च्यवनाश्रम बनाया

दधिचि सरस्वती के पुत्र सारस्वत ने सारस्वत ब्राह्मण

अक्षमालापुत्र वत्स ने वत्सगोत्र वात्स्यायनवंश चलाया

यही ब्राह्मणाधिवास गांव बाणभट्ट का मगध में बसा!

मैं भृगु भृगुकच्छ से कान्यकुब्ज या कन्नौज आया

और कान्यकुब्ज अधिपति कौशिक गाधी को मनाया

एक हजार ईरानी श्यामकर्णी घोड़े दान दहेज में देकर

पुत्र ऋचिक हेतु राजकुमारी सत्यवती का हाथ पाया!

यूं अश्व व्यापार से भारतखंड आर्यावर्त में पैर जमाया

गाधीपुरी;गाजिपुर बलिया राजा विश्वामित्र को अपनाया!

फिर आगे चलकर कोशल में ऋचिकपुत्र जमदग्नि का भी

सूर्यवंशी क्षत्रिय प्रसेनजित कन्या रेणुका से विवाह रचाया

पर सूर्य-चन्द्र-मनुवंशी क्षत्रियों से कोई रिश्ता नहीं निभाया!

मैं ब्राह्मण हूं, क्षत्रियों के जैन श्रावक बौद्ध धर्म विरोधी हूं

क्षत्रियों में प्रथम स्वायंभुव मनु से वैवस्वत मनु के वंश में

चौबीस अहिंसक जैन तीर्थंकर हुए, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव

स्वायंभुव मनुपुत्र राजा प्रियव्रत के पौत्र नाभिराज के पुत्र थे!

तीर्थंकर ऋषभदेव पुत्र भरत के नाम से भारतदेश नाम पड़ा

सारे भारतीय स्वायंभुव मनु संतति मनुर्भरती कहलाने लगे

चौबीसवें तीर्थंकर सूर्यपुत्र वैवस्वत मनुवंश में उत्पन्न महावीर

बिहार वैशाली के ज्ञातृक क्षत्रिय सिद्धार्थ व त्रिशला पुत्र थे!

मैं ईरानी शकिस्तान सिस्तान शाकद्वीपी शक मग याजक हूं,

मैं मूल को नहीं भूलनेवाला जमदग्नि पुत्र भार्गव परशुराम हूं

मैंने इक्कीस बार चन्द्रकुल के हैहयवंशी क्षत्रियों पर वार किया

मैंने ही वैश्य शूद्र अंत्यज जनों की संख्या को भरमार किया!

मैं परशुराम मातृहत्यारा, ब्राह्मण वर्ण का अहंकार अभिमान हूं

मैं ब्राह्मण गुरु हूं ब्राह्मणों का, अन्य वर्णों के काल समान हूं

मैं ब्राह्मण हूं आर्य अनार्य से परे सबसे ऊपर केवल ब्राह्मण हूं

मनुपुत्रों को कृत्रिम वर्ण जाति में बांटनेवाला कुटिल यजमान हूं!

मैं ब्रह्मा का मानस पुत्र अंगिरा, पुलह, पुलस्त्य, क्रतु ब्राह्मण हूं

मैं भृगु; अंगिरा भ्राता अंगिरा से वृहस्पति-भरद्वाज-द्रोण-अश्वत्थामा  

मैं भृगु भ्राता हूं पुलह, पुलस्त्य, क्रतु का, पुलह से कर्दम,क्रतु से

बालखिल्य, पुलस्त्य से विश्रवा,विश्रवा से कुबेर यक्ष व रावण राक्षस!

मैं मरीचि-कश्यप-सूर्य-मनुवंशी अत्रि-चन्द्रवंशी मानवों से पृथक हूं

मैं ब्राह्मण वेद में मानवों का भेदकर्ता,याजक पशुबलि समर्थक हूं

अहिंसावादी चौबीस क्षत्रिय तीर्थंकरों और बुद्ध धर्म का नाशक हूं!

मैं ब्राह्मण सभी वर्णों की कन्याओं से पूर्व में विवाह किया हूं

पर स्मृतियों में वर्ण जाति से परे विवाह से उत्पन्न संतान को

वर्णसंकर शूद्र घोषितकर मनुपुत्रों में घृणा द्वेष संचार किया हूं!

मैं ब्राह्मण स्वयं को हिन्दू नहीं, पहले ब्राह्मण कहता हूं

मैं समस्त मानव जाति को कभी बराबर नहीं समझता हूं!

जिसने भी जाति एकीकरण, मानव समता की बात कही

उन्हें छोड़ा नहीं बुद्ध महावीर को व्रात्य कहा क्षत्रिय नहीं

चन्द्रगुप्त मौर्य से शिवाजी तक को शूद्र कहा द्विज नही

मैं दशमेशगुरु गोबिंदसिंह का विश्वासघाती ब्राह्मण गंगू हूं!

मैं ब्राह्मण हूं जब ईसापूर्व में जाति उपाधि नहीं बनी थी

तब भी कृष्ण को गोप ग्वाला जाति कहकर किया लांक्षित

मैं कृष्ण को अवतारी भगवान गीता ज्ञान से नहीं बल्कि

वैश्य शूद्र को गीता में पाप योनज के बखान से मानता हूं

मैं राम को मर्यादावादी नहीं, शूद्रहंता होने से पहचानता हूं!

मैं भगवान राम नहीं ब्राह्मण परशुराम हूं, क्षत्रिय राम से बड़ा

मैं परशुराम सतयुग से त्रेतायुग तक इक्कीसबार क्षत्रियों से लड़ा

मैं भार्गव परशुराम, राक्षस ब्राह्मण रावण से नहीं कभी झगड़ा

मैं द्वापर का ब्राह्मण द्रोण लाखों संहार के क्षत्रिय पे भारी पड़ा

मैं प्रथम भ्रूण हत्यारा ब्राह्मण अश्वत्थामा कृष्ण शाप ले खड़ा हूं!

मैं ब्राह्मण कौटिल्य हूं चन्द्रगुप्त मौर्य को कभी कोइरी

कभी नाई कभी मुरा दासी व धनानंद शूद्रपुत्र बता दिया

शाक्य मौर्य मूल के राजपूत जाति को शक हूण कह दिया

पर दूसरों को नीचा दिखाने में खुद को नीच बना गया!

मित्र और वरुण के उर्वशी अप्सरा से जारकर्म से उत्पन्न

अगस्त व वशिष्ठ ब्राह्मण, वशिष्ठ व अक्षमाला दासीपुत्र से

शक्ति ऋषि, फिर शक्ति व श्वपाकी चांडाली से पुत्र पराशर,

फिर पाराशर व सत्यवती कैवर्त्या पुत्र व्यास सभी ब्राह्मण थे!

मैं द्रोण पात्र में उत्पन्न भरद्वाज का अयोनिज पुत्र द्रोण हूं

गोदान नहीं करने पर मित्र द्रुपद का राज्य हड़पनेवाला द्रोण

बिना शिक्षा दिए एकलव्य का अंगूठा कटानेवाला गुरु आचार्य हूं

मैं हिरणी गर्भ से जन्मे ऋषिश्रृंग दशरथ का जमाता याजक हूं!

मैं ब्राह्मण हूं सारे वेद पुराण रामायण महाभारत स्मृति लिखा हूं

मैं ब्राह्मण वर्ण जाति में भेद,पर ब्राह्मणों में भेद नहीं करता हूं

मैं ब्राह्मण हूं नाम नहीं उपाधि जानकर खाता पीता बतियाता हूं

मैं ब्राह्मण हूं ब्राह्मण होने के मिथ्या दंभ में सदा जीता मरता हूं!

—विनय कुमार विनायक

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