हिमपात – कैलिफ़ोर्निया में लेक टाहो पर

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एक बालगीत

 ऊँचे पर्वत पर हम आए ।
 मन में हैं ख़ुशियाँ भर लाए।
             पाइन के  हैं  वृक्ष बड़े।
             सीधे  प्रहरी  से हैं खड़े ।।
  देखो कैसी झरती झर झर।
  गिरती जाती बर्फ़  निरन्तर।।
              बरस रही  है  सभी तरफ़ ।
              दुग्ध धवल सी दिखे बरफ़ ।।
  आज हुआ कैसा हिमपात।
   ढक गई धरा, ढके तरुपात।।
                ऐसा लगे शीत के भय से।
                सूरज भी न निकला घर से ।।
   बादल की वह ओढ़ रज़ाई।
    बिस्तर में छिप लेटा भाई ।।
                हैं मकान सब ढके बर्फ़ से।
                बन्द  रास्ते  हुए  बर्फ़  से ।।
  देखो  ज़रा निकल कर  बाहर।
  चलो बर्फ़ में सँभल सँभल कर।।
              बर्फ़  थपेड़े  दे  गालों  पर ।
              जूतों में गल जाए पिघलकर।।
  ऊँचे  कोमल बर्फ़  के गद्दे ।
  बिछे हुए सब कहीं हैं भू पर।।
               मन करता है उन पर लोटें ।
               बच्चों के संग मिल मिलकर।।
 बर्फ़ के लड्डू बना बना कर।
 बच्चे खेलें ख़ुश हो हो कर।।
               मारें  इक दूजे को हँस कर।
               फिर भागें किलकारी भरकर।।
  और कभी मन होता ऐसा।
  बचपन में खाया था जैसा।।
              बर्फ़ का चूरा कप में लेकर।
              उस पर शर्बत लाल डालकर।।
  चुस्की लेकर  उसको खाएँ।
  घिसी बरफ़ का लुत्फ़ उठाएँ।।
              दृश्य मनोरम बड़ा यहाँ है ।
              अपना मन खो गया यहाँ है।।
                     *************
                        - शकुन्तला बहादुर

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शकुन्तला बहादुर
भारत में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मी शकुन्तला बहादुर लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उसके महिला परास्नातक महाविद्यालय में ३७वर्षों तक संस्कृतप्रवक्ता,विभागाध्यक्षा रहकर प्राचार्या पद से अवकाशप्राप्त । इसी बीच जर्मनी के ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फ़ेलोशिप पर जर्मनी में दो वर्षों तक शोधकार्य एवं वहीं हिन्दी,संस्कृत का शिक्षण भी। यूरोप एवं अमेरिका की साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता । अभी तक दो काव्य कृतियाँ, तीन गद्य की( ललित निबन्ध, संस्मरण)पुस्तकें प्रकाशित। भारत एवं अमेरिका की विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लेख प्रकाशित । दोनों देशों की प्रमुख हिन्दी एवं संस्कृत की संस्थाओं से सम्बद्ध । सम्प्रति विगत १८ वर्षों से कैलिफ़ोर्निया में निवास ।

2 COMMENTS

  1. ऋतुओं के वर्णन पर आपकी पकड सराहनीय है. गीत की पंक्ति पंक्ति में आपने ऋतु की विशेषता सहित बाललीलाओं को भी सजीव कर दिया है. धन्यवाद. प्रवक्ता को भी इस स्फॄर्तिदायक रचना के प्रकाशन के लिए.धन्यवाद करना चाहूँगा. प्रवक्ता आज कल टिप्पणियों पर ध्यान दे नहीं पाता क्या? ३ ३ दिन तक टिप्पणी अनदेखी रहती है.

  2. ऋतुओं के वर्णन पर आपकी पकड सराहनीय है. गीत की पंक्ति पंक्ति में आपने ऋतु की विशेषता सहित बाललीलाओं को भी सजीव कर दिया है. धन्यवाद. प्रवक्ता को भी इस स्फॄर्तिदायक रचना के प्रकाशन के लिए.धन्यवाद करना चाहूँगा.

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