भारतीय लोकतंत्र अब ८७ वां आदर्श-भ्रष्ट तंत्र

-एल. आर. गाँधी

कलमाड़ी जी की असीम कृपा से – खेल खेल में कम से कम एक क्षेत्र में तो हमने अपने पडोसी चीन को पीछे छोड़ ही दिया- कठोर स्पर्धा के बाद ‘भ्रष्टाचार की ऊंची कूद’ में हमने यह सफलता अर्जित की. अब हम भ्रष्ट देशों की सूची में ८७ वीं पायदान पर पहुँच गए हैं और हमारा प्रतिद्वंद्वी चीन हमारे से ८ अंक पिछड़ कर ७९वें अंक पर लुढ़क गया. इस सफलता का एकांकी श्रेय हमारे खिलाडियों के खिलाडी कलमाड़ी जी को जाता है. विश्व के चोर-उच्चक्के देशों में देश का नाम रौशन करने के इस महान उपलब्धि के लिए कलमाड़ी जी को ‘भारत रत्न’ के साथ साथ आगामी ओलम्पिक खेलों का ठेका भी अभी से दे देना चाहिए ताकि शीघ्र से शीघ्र हम अपने चिर-प्रतिद्वंदी पाकिस्तान से आगे निकल सकें. कितनी शर्म की बात है कि हमारे से महज़ २४ घंटे पेहले पैदा हुआ दो कौड़ी का मुलुक भ्रष्टाचार के क्षेत्र में हम से मीलों आगे १४३ वे पायदान पर जा पहुंचा है. यह बात दीगर है कि पाकिस्तान को इस मुकाम तक पहुँचाने में अमेरिका से मिली भीख का बहुत बड़ा योग दान है. यदि हमें इतनी अमेरिकी मदद मिली होती तो हम आज अफगानिस्तान को प्राप्त श्रेष्ठ स्थान पर होते.

देश में भ्रष्टाचार एक रिले-रेस की माफिक कभी न ख़त्म होने वाली दौड़ का रूप ले गया है. दिल्ली का खेल अभी ख़त्म नहीं हुआ कि ‘रेस’ देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में चालू हो गई. मुंबई में तो भ्रष्टाचार को ‘आदर्श’ सोसाईटी का नाम दिया गया और सीमा पर अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों के नाम पर करोड़ों के फ़्लैट औने पौने दामों पर सफेदपोश नेता और उच्चाधिकारी हड़प गए. कल्मादिजी ने राहत की साँस ली -उनके पीछे पड़ा मिडिया अब ‘आदर्श सोसाईटी’ घोटाले पर पिल पड़ा है. मिडिया का भी इन घोटालों को उजागर कर और बीच में ही छोड़ नए घोटालों के पीछे पड़- इनके महत्त्व को न्गंन्य करने में विशेष योगदान रहा है. मिडिया भी व्यवसाए हो कर रह गया – सब कुछ महज़ टी.आर.पी की खातिर?

१९९१ से २००९ के डेढ़ दशक में लगभग ७३ लाख करोड़ के बड़े घोटालों का अनुमान है. जिनमें स्विस बैंकों में देश का ७१ लाख करोड़ रूपया सबसे बड़ा घोटाला है. उसके बाद है २-जी स्पेक्ट्रम में ६० हजार करोड़ का घोटाला जिसे केंद्रीय मंत्री ए.राजा डी.एम्.के के दलित सांसद ने सरंजाम दिया. प्रधान मंत्री का इन्हें वरद हस्त प्राप्त है- हो भी क्यों न …राजा की कृपा के बिना सरकार दो दिन की महमान है. सी. बी. आई को लगा रखा है केस को कछवा चाल पर लटकाए रखने को. यह बात अलग है कि सर्वोच्च न्यायालय ने सी.बी.आई को लताड़ लगाई है- साल भर से केस लटकाने पर और राजा को अभी तक मंत्री पद पर बनाए रखने पर! अब देखो क्या होगा तेरा ‘राजा’? तीसरा घोटाला है – ५० हजार करोड़ – कर चोरी का, पूने के अरब पति हसन अली खान के नाम !!! अब इस से कम तो हम घोटाले को घोटाला ही नहीं मानते भ्रष्टाचार का वटवृक्ष आज ८७ मीटर ऊंचा बरगद सा फ़ैल गया है यह जितना ऊंचा है उतनी ही इसकी जडें पाताल तक फैली हैं. इस बरगद का बीजारोपण भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु जी के करकमलो से ही हुआ था. उनका राज परिवार तो बस इसे आँखें मूँद पानी दिए चला जा रहा है. नेरुजी ने ५ वर्षीया योजनाओं की नींव रखी -बिना सोचे समझे योजनाओं पर केंद्र से धन लुटाया गया- यह किसी ने नहीं देखा कि जिन लोगों के लाभार्थ ये योजनायें बनी गई हैं उन तक इसका लाभ पहुंचा भी है. नेहरु जी के राज पौत्र ‘राजीव गाँधी’ ने भी माना की इन योजनाओं का महज़ १०-१५ % ही आम आदमी तक पहुँच पाता है.बाकि पैसा तो रास्ते में भ्रष्ट तंत्र ही हड़प जाता है. ६० साल से यह योजनाबद्ध लूट बदस्तूर जारी है.

देश के प्रथम बड़े घोटाले का श्रेय भी हमारे नेहरु जी को ही जाता है. १९४८ का जीप घोटाला जिसमें भारतीय सेनाओं के लिए ८० लाख रूपए की जीपें खरीदी जानी थी. ब्रिटेन में भारतीय हाई कमिश्नर वी. के. कृष्ण मेनन पर जीप सप्लाई में घोटाले का दोष लगा. मेनन साहेब नेहरु जी के खासमखास थे. सज़ा तो क्या मेनन को देश का रक्षा मंत्री पद से नवाज़ा गया. हमारी सेनाएं चीन के हाथो परस्त हुईं और हजारों मील भूमि पर दुश्मन का कब्ज़ा हो गया. जिन लोगों के हाथ में देश को इमानदार प्रजातंत्र के रूप में विकसित करने की जिमेदारी थी उन्होंने ही उनकी नाक के नीचे फलफूल रहे भ्रष्ट-तंत्र से आँखें मूँद लीं और आज हम विश्व के सबसे बड़े भ्रष्ट तंत्र की दौड़ में नई नई बुलंदिओं को छूते जा रहे हैं. वह दिन दूर नहीं जब हम अफगानिस्तान को पछाड़ कर भ्रष्ट राष्ट्र तालिका के शिखर पर होंगे.

2 COMMENTS

  1. तिवारीजी,मैंने पहले भी लिखा है की हमाम में सब नंगे हैं.भ्रष्टाचार का स्तर हमें किसी एक कल्मांदी या एक राजा की बदौलत नहीं मिला है.यह तो हमारा वह धरोहर है जिसे हमने सदियों से संजोया है.एक तरह से यह हमारे खून में है.हम मन बहलाने के लिए इस पर कितने भी वार्तालाप कर ले या कितने भी तर्क वितर्क प्रस्तुत करे इससे पन्ने रंगने के अलावा कुछ हासिल होने को नहीं है.आजादी केबाद तो शुरू से ही हम सब इसमे निमग्न हैं,पर इतिहास के पन्नों को पलतियेगा तो पाइयेगा की यह भ्रष्टाचार हमारे अन्दर हमेशा से रहा है और यही कारण है की भारतीय इतिहास के ज्यादा पन्ने हमारी कायरता की कहानियों से भरे पड़े हैं.आजादी के पहले की प्रेमचंद की कहानी नमक का दारोगा तो सबको याद है पर सज्जनता का दंड शीर्षक कहानी किसी के जेहन में नहीं है.गोदान का होरी भी उसी लोभी और भ्रष्ट समाज की याद दिलाता है.
    यह तो हुई काल्पनिक पात्रों द्वारा असलियत का बयान ,पर अगर इससे भी पीछे जाएँ और भारत पर आक्रान्ताओं के फेहरिस्त पर नजर डाले तो पता चलेगा की हर जगह मुहकी खाने में हमारी चरित्र हीनता और भ्रष्टता ही कारण रहा है.इन्ही कालमों कुछ लोगों ने लिखा है की हिन्दू कभी घृणा पालन नहीं करता.पर हिन्दुओं का इतिहास तो कुछ और ही कहता है. मैं भी शायद बहक रहा हूँ पर हम जैसे गिरे हुए लोगों को, जब हम जाने या अनजाने उसी तत्र के हिस्से हैं ,इस बहस को उठाना ही बेमानी है.

  2. बेहद अफ्सोशानक है की ,जिस महा व्याधि से भारत का दम घुट रहा उस पर कोई विमर्श क्यों नहीं ?लोग तुच्छ बातों पर तो कट-मर रहे है किन्तु जिसके कारण देश अधः पतन की ओर जा रहा है ,उस पर इस एकमात्र सार्थक आलेख पर किसी ने एक शब्द भी नहीं लिखा .

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