आस्तिक हो तो मानो सबका एक ही है ईश्वर

—विनय कुमार विनायक
ये रिश्ता है अपनापन और इंसानियत का,
ये रिश्ता है आत्मीयता और रुहानियत का!
इंसान हो इंसान से खुशी खुशी गले मिलो,
चाहे मानते हो किसी भी धर्म मजहब को!

रुह सभी जीव जन्तुओं की एक जैसी होती,
आत्मा सबकी एक परमात्मा से ही निकली!
मानव शरीर को पाना आत्मा की उपलब्धि,
मानव देही आत्मा सचेत होती पाओ मुक्ति!

कोई इंसान अपना धार्मिक चिन्ह प्रतीक लेकर,
गर्भ से आता नहीं जन्म के साथ में जीवनभर!
विधाता कोई धार्मिक भेद करता नहीं सृजन में,
तुम कृत्रिम भेद से खोट क्यों पाल बैठे मन में?

हिन्दू और मुसलमान होते हैं सब एक समान,
जन्म देनेवाले एक ही होता है सबके भगवान!
तिलक उपनयन खतना व वपतिस्मा ग्रहणकर
इस कुदरती जहां में कोई आता नहीं है नश्वर!

ये रस्म-रिवाज, रहन-सहन अलगाव हुआ हाल से,
ये सारे वस्त्र लिबास पहनावा विलगाव है हाल से,
ये सारे धार्मिक आडंबर अलगाव बढ़ गए हाल से!

कुछ लोग कोहराम मचाने में माहिर हो गए,
कुछ तो खुलेआम धमकाने में शातिर हो गए!
त्याग दो ऐसे जाहिलाना मत विचारधारा को,
जो इंसानियत के विरुद्ध भड़काने में लगे हो!

मिटा दो चेहरे से क्रूरता की सारी निशानी,
जो मानवता को डराने धमकाने में लगे हो!
करो नहीं अपने ईश्वर खुदा रब से बेईमानी,
क्यों हुजूर पर प्रश्न चिन्ह लगाने लगे हो?

उगने दो सूरत में कुदरती मासूमियत,
बन जाओ दया ममता करुणा की मूरत!
बन जाओ समाज सुधारक शख्सियत,
मिटाओ मानवीय भेदभाव और नफरत!

पापी नेता के बयान पर हिंसा जायज न कर,
कहो नहीं अगर मगर मानव रक्त बहाने पर!
आस्तिक हो तो मानो सबका एक ही है ईश्वर,
ईश्वर अल्लाह रब को समझो नहीं अलग कर!

ना कोई ईश्वर छोटा है, नहीं कोई खुदा खोंटा,
ना कोई अल्लाह असल, नहीं कोई रब नकल,
सतश्री को जिस संज्ञा से मानो उसमें है फल,
नाम के नाहक फेर में नाकर ईश निंदा छल!
—-विनय कुमार विनायक

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