तक्षशिला विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय पर संस्थापक कौन ज्ञात नहीं?

—विनय कुमार विनायक
अगर विश्व में भारतीय ऋग्वेद है
प्रथम काव्य कृति तो तक्षशिला भी
था विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय
भारतीय गंधर्वदेश गांधार में स्थित!

तक्षशिला को गंधर्व देश गांधार में
रामानुज भरत ने पुत्र तक्ष के लिए
व दूसरे पुत्र पुष्कल हेतु पुष्कलावत
दो नगर बसाया था गांधार देश में!

गांधार का उल्लेख ऋग्वेद में है, लेकिन
गांधार वर्णन वाल्मीकि रामायण में ऐसा
“तक्षं तक्षशिलायां तु पुष्कलं पुष्कलावते।
गन्धर्वदेशे रुचिरे गान्धारविषये च स:।।“
(उ.का.स.101/11)

निश्चय ही गांधार सिंधुसभ्यता भूमि थी,
गांधार देश फैला सिंधु नदी के दोनों ओर
सम्प्रति पाकिस्तानी पंजाब रावलपिंडी से
अठारह मील उत्तर की छोर सिंधु किनारे
एक ओर तक्ष की राजधानी तक्षशिला थी,
दूसरी ओर पुष्कलावती नगरी पुष्कल की!

महाभारत काल में सुबलपुत्र शकुनि मामा राजा,
महाभारत के बाद अर्जुन के प्रपौत्र जनमेजय था
तक्षशिला का शासक,जिसने नाग यज्ञ किया था,
बुद्ध काल में पुक्कुसाति, फिर यूनानी आक्रांता
सिकंदर सहयोगी पुरु के मामा आम्भी राजा था!

ई. पू. सात सौ में तक्षशिला विश्वविद्यालय की
स्थापना हुई थी मगर किसने की यह ज्ञात नहीं,
तक्षशिला विश्वविद्यालय में आयुर्वेदाचार्य जीवक,
अष्टअध्यायी रचयिता गांधारी वैयाकरण पाणिनि,
अर्थशास्त्र प्रणेता चाणक्य,पतंजलि ने शिक्षा पाई!

इनके साथ ही एक डाकू ब्राह्मण अंगुलीमाल ने
तक्षशिला विश्वविद्यालय से पूरी की थी पढ़ाई!

तक्षशिला विश्वविद्यालय में एक साथ में
दस हजार से अधिक देशी-विदेशी छात्रगण
साठ से अधिक विषयों की पढ़ाई करते थे,
समृद्ध छात्र राजपुत्र शुल्क अदाई करते थे
निर्धन सेवा करके निःशुल्क शिक्षा पाते थे!

यह रहस्य है कि इसकी स्थापना किसने की?
विनाश कब कैसे हुआ? हर्यक बिम्बिसार के
वक्त छ:सौ ई.पू.में. राजवैद्य जीवक ने पढ़ा!

पांच सौ ई.पू. में पाणिनि ने अध्ययन किया,
तीन सौ छब्बीस ई.पू. चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु
चाणक्य विक्रमशिला विश्वविद्यालय में था!

एक सौ छियासी ई.पूर्व. में पुष्यमित्र शुंग का
अश्वमेध यज्ञ पुरोहित पतंजलि वहां छात्र था!

भैषज्य-गुरु बुद्ध के कौमारभृत्य जीवक तथा
बौद्धद्रोही पुष्यमित्र शुंग के पतंजलि तक ही,
भगवान बुद्ध के पहले कुछ भी नहीं है पता!

गौतम बुद्ध के बाद हूणों के आक्रमण के पूर्व
ऐसा अनुमान है कि विक्रमशिला अवस्थित था,
हूणों के आक्रमण से ही विक्रमशिला नष्ट हुआ!
—विनय कुमार विनायक

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