मै कौन हूँ? कहाँ हूँ ?
अंधेरी रातों मे
गुमशुदा हूँ।
कुछ साये अंजाने से,
डराने लगे हैं।
कुछ दर्द पुराने से
याद आने लगे हैं।
लेकिन,
ये तो साये हैं,
इनका वजूद ही,
कहाँ है!
इन अंधेरी रातों की,
सुबह होगी,
उजाले मे ये साये
डूब जायेंगे,
क्योंकि,
निराशा और आशा,
के बीच,
केवल दो पल का
अंतराल है।
इस अंतराल
के बाद
उम्मीद, हौसला,
नई सोच होगी।
ये मेरे गुमशुदा
होने के अहसास को
मिटा देंगे !
तब मै खुद को,
ढूँढ ही लूँगी,
मै कौन हूँ,
पहचान ही लूँगी।
मै कहाँ हूँ,
जान ही लूँगी।
आप दोनो को बहुत बहुत धन्यवाद
निराशा को दूर करती और आशा देती यह कविता अच्छी लिखी है ।
विजय निकोर
ASHA JAGAATEE BINU JI KEE KAVITA NE MAN KO MOH LIYAA HAI.