मै गुमशुदा हूँ

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बीनू भटनागर

मै कौन हूँ? कहाँ हूँ ?

अंधेरी रातों मे

गुमशुदा हूँ।

कुछ साये अंजाने से,

डराने लगे हैं।

कुछ दर्द पुराने से

याद आने लगे हैं।

लेकिन,

ये तो साये हैं,

इनका वजूद ही,

कहाँ है!

इन अंधेरी रातों की,

सुबह होगी,

उजाले मे ये साये

डूब जायेंगे,

क्योंकि,

निराशा और आशा,

के बीच,

केवल दो पल का

अंतराल है।

इस अंतराल

के बाद

उम्मीद, हौसला,

नई सोच होगी।

ये मेरे गुमशुदा

होने के अहसास को

मिटा देंगे !

तब मै खुद को,

ढूँढ ही लूँगी,

मै कौन हूँ,

पहचान ही लूँगी।

मै कहाँ हूँ,

जान ही लूँगी।

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मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

3 COMMENTS

  1. निराशा को दूर करती और आशा देती यह कविता अच्छी लिखी है ।
    विजय निकोर

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