संदर्भ: देश भर में देवी विसर्जन पर हुए हमलों की श्रंखला
निस्संदेह षड्यंत्र ही तो हैं!!
भारतीय जनमानस में गणेशोत्सव व दुर्गात्सव का आदर व आस्था एक स्पष्ट तथ्य है. पिछले कुछ वर्षों से इन दोनों उत्सवों पर जिस प्रकार से प्रशासन को अतीव चुस्त-चौकन्ना रहना पड़ रहा है उससे इन त्यौहारों की छवि बिगड़ नहीं रही अपितु योजनापूर्वक बिगाड़ी जा रही है. अक्सर गणेशोत्सव तथा दुर्गोत्सव के दौरान स्थापना तथा विसर्जन की शोभायात्राओं पर होनें वाले कथित हमलों से वातावरण निरंतर वातावरण को बिगाड़ा जा रहा है. क्रिया की प्रतिक्रया होती है इस बात को इन शोभायात्राओं पर हमले करनें वाले तत्व भली भांति समझते हैं. देश भर में हुई पिछले एक सप्ताह की घटनाओं को देखें तो लगता है कि इस वर्ष कुछ अधिक ही दुर्दांत योजना के साथ कट्टरवादी मुस्लिमों ने दुर्गात्सव पर वातावरण बिगाड़ने की योजना बना रखी थी. देश में विशेषतः मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश व राजस्थान में पिछले चार पांच दिनों में दुर्गा उत्सव व ताजियों के दौरान जिस प्रकार की सुनियोजित घटनाएं हुई हैं वह चिंतनीय ही नहीं अपितु देश के समक्ष एक विशाल चुनौती की भांति दिख रही हैं. लगता है एक साथ हुई उपद्रव व विध्वंस करनें की इन घटनाओं के पीछे कोई शैतानी दिमाग सुनियोजित रूप से कार्यरत है.
ग्वालियर में पिछले दिनों कर्फ्यू लगा, सतत तीन-चार दिनों से वातावरण सुलग रहा है. मंदिरों में तोड़फोड़ की घटना की गई, प्रतिष्ठित मूर्तियों को खंडित करनें के प्रयास हुए: हिन्दू समाज द्वारा विरोध प्रतिक्रिया व्यक्त करनें पर हिन्दू समाज के घरों में लोग घुस गए व तोड़फोड़ की, पथराव किया, सड़क पर खड़े वाहनों की तोड़फोड़ हुई, एटीएम मशीन को तोड़ा गया.
खरगोन में भी ठीक इसी प्रकार की घटनाएं हुई. रावणदहन के बाद हुए उपद्रव में तोड़फोड़, मारपीट व आगजनी की घटनाओं की गई. कर्फ्यू लगा रहा व स्थिति यह बनी की दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन के कार्यक्रम स्थगित हो गए. मंडलों को मजबूरन दो दिन बाद तक विसर्जन कार्यक्रम करना पड़े. देश भर में हुई घटनाओं के एक भाग के रूप में हुई खरगोन की घटना से परिस्थिति इतनी बिगड़ी की खरगोन के कुछ घरों में हुई सामान्य मृत्यु की स्थिति में भी लोगों को अंतिम संस्कार तक करनें हेतु रूकना पड़ा. घरों में शव पड़े रहे और प्रशासन को मजबूर हो अपनें सरंक्षण में उनके अंतिम संस्कार करानें पड़े.
इन घटनाओं के एक सुनियोजित षड्यंत्र की कड़ी होनें की आशंका इसलिए भी सुदृढ़ लगती है क्योंकि उत्तरप्रदेश में भी ठीक इस स्वभाव की व इनके जैसी घटनाएं अनेकों स्थानों पर हुई. कन्नौज, फतेहपुर में हुई घटनाओं के घाव अभी भरे भी न थे कि कानपुर में दिल दहला देनें वाली घटनाएं हुई व हिन्दू समाज को बेतरह उपद्रवी दंगाइयों का शिकार होना पड़ा.
उधर राजस्थान में भी इसी स्वभाव-प्रकार की दो घटनाएं हुई. बीकानेर जिले के डूंगरगढ़ व भीलवाड़ा में तोड़फोड़, आगजनी, कर्फ्यू की घटनाओं ने देश भर में इस आशंका के सत्य होनें के प्रमाण दे दिए हैं कि इस बार समूचा देश गणेशोत्सव से लेकर दीवाली तक इन आतताईयों, आतंकवादियों व कट्टरवादियों के षड्यंत्रों तले जीनें को मजबूर रहेगा.
यह विचारणीय तथ्य है कि कुछ कट्टर तथा अतिवादी प्रकार के मुस्लिम तत्व ऐसा करते समय यह भी नहीं समझतें हैं कि उनके इन दुष्कृत्यों से शेष साधारण मुस्लिम समाज को कितनी जिल्लत व हानि झेलनी पड़ती है?! निस्संदेह ऐसा कृत्य करनें वालों का मानस-भाव भारत भूमि को अपनी नहीं अपितु पराई भूमि समझनें का है. आज की मूल आवश्यकता यही है कि इस राष्ट्र का प्रत्येक निवासी स्वयं में इस देश का नागरिक नहीं अपितु इस राष्ट्र का राष्ट्रपुत्र होनें का भाव विकसित करे. समय समय पर होनें वाली इन घटनाओं ने देश के दो समाजों में जो संदेह का बीज उग आया है वह अकारण नहीं है. इस देश के मुस्लिम समाज को अब नई परिस्थितियों में इस बात की रपत डालनी पड़ेगी कि हिन्दू समाज के मानस व भावनाओं को चोटिल करनें वाली घटनाओं को मुस्लिम समाज का सामाजिक नेतृत्व हतोत्साहित करे. मुस्लिम समाज के लोग यह भी ध्यान रखें कि हिन्दुओं के जिन आग्रहों व आस्थाओं का वे हनन करते हैं वे अचानक उत्पन्न आग्रह नहीं अपितु सदियों से चली आ रही परम्पराओं से उपजें आग्रह हैं. मुस्लिम अतिवादियों व सामान्य समाज को यह तो अवश्य ही ध्यान करना चाहिए कि हिन्दुओं के जिन आग्रहों व आस्थाओं का हनन उनके द्वारा किया जाता है उसके न करनें से मुस्लिम समाज को कुछ भी फर्क नहीं पड़ने वाला है. समय की मांग यही है, अन्यथा देश को इन आतंकी घटनाओं का जो मूल्य चुकाना पड़ेगा उसके दुष्प्रभावों से देश का कोई भी समाज अछूता नहीं बचेगा.