चार सालों में नरेंद्र मोदी भारत के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री बन कर उभरे हैं?

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डॉ मनीष कुमार

मोदी सरकार के चार साल पूरे हो गए. पांचवां साल को चुनावी साल माना जाता है इसलिए ये वक्त सरकार के आंकलन का है. प्रधानमंत्री सरकार के मुखिया होते हैं. इसलिए, सबसे पहले नरेंद्र मोदी का आंकलन जरूरी है. इसके दो बिंदु हो सकते हैं. पहला, नरेंद्र मोदी के कामकाज का. दूसरा राजनीतिक हो सकता है. यानि, प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने पिछले चार सालों में राजनीतिक दृष्टि से क्या हासिल किया और क्या-क्या गंवाया? काम-काज का लेखा जोखा अगले पोस्ट में करूंगा. आज सिर्फ राजनीतिक आंकलन.

जबाहरलाल नेहरू, बेशक आधुनिक भारत के निर्माण में नेहरू की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता लेकिन ये भी झुठलाया नहीं जा सकता है कि 1947 के बाद सत्ता के साथ साथ स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत और कांग्रेस संगठन नेहरू के हिस्से आ गया. विपक्ष के न के बराबर होने का भी फायदा नेहरू को मिला. साथ ही, उनकी मौत के बाद इंदिरा गांधी द्वारा खड़ा किए गए इतिहासकारों और लेखकों ने भी नेहरू की महिमामंडन में कोई कमी नहीं की. एक नेरैटिव खड़ा किया गया जिसमें नेहरू भारत में हुए परिवर्तन का श्रेय दिया गया. जबकि, हकीकत यही है कि इंदिरा गांधी को राजनीति के शिखर पर बने रहने के लिए नेहरू से ज्यादा संघर्ष करना पड़ा.

आजाद भारत में जितने भी प्रधानमंत्री हुए उनमें इंदिरा गांधी को अब तक का सबसे कद्दावर नेता माना जाता है. लेकिन, जेएनयू की कांग्रेसी इतिहासकार मृदुला मुखर्जी और राजनीतिशास्त्र की प्रोफेसर जोया हसन के लेखों को पढ़ कर अवाक रह गया. ये दोनों घूर मोदी विरोधी हैं. फिर, इन्हें मोदी की तुलना इंदिरा गांधी से करने की जरूरत क्यों पड़ी? मतलब साफ है कि कांग्रेसी-इंटेलिजेंशिया घबड़ाया हुआ है. लेकिन जरा इनकी दलीलों को देखिए. मृदुला मुखर्जी ने लिखा कि इंदिरा इसलिए बेहतर थीं क्योंकि उनकी आर्थिक नीति लेफ्ट-ऑफ-सेंटर थी जबकि मोदी की नीति राइट-ऑफ-सेंटर है. लेकिन, इन्होंने ये बताने की जरूरत नहीं समझी की इंदिरा गांधी के वक्त विकास दर क्या था? सरकार कितना कर्ज ले रही थी? गरीबों की हालत क्या थी? अकाल क्यों पड़ रहे थे? गरीबों के लिए इंदिरा ने क्या क्या किया?

वैसे इन सवालों का जवाब सबके पता है इसलिए मृदुला मुखर्जी मामले को ट्विस्ट किया. आगे बताया कि इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के इस्लामिक चरित्र को निशाना नहीं बनाया और देश में कभी जिंगोस्टिक चॉविनिस्टिक ‘राष्ट्रवाद’ को प्रोत्साहित नहीं किया. ये तर्क से ज्यादा कुतर्क है क्योंकि मृदुला मुखर्जी को पता होना चाहिए कि इंदिरा गांधी के दौर में इस्लामिक आतंकवाद का खौफनाक चेहरा दुनिया के सामने नहीं आया था. प्रोफेसर जोया हसन की दलीलें और भी निराली है. वो कहती हैं कि मोदी आरएसएस के हैं जबकि इंदिरा गांधी एक सेकुलर नेता थीं इसलिए दोनों में कोई मुकाबला नहीं है. जबकि इतिहास गवाह है कि मुसलमानों को वोट बैंक में तब्दील करने का काम इंदिरा ने ही किया था. मुझे याद है ये जब हमें पढ़ाया करती थी आरएसएस के नाम से ही इनका चेहरा लाल हो जाया करता था.

अब जब इन महान इतिहासकारों और राजनीतिकशास्त्रियों ने मोदी और इंदिरा की तुलना कर ही दी है तो इस बहस को आगे बढ़ाने में बुराई नहीं है. हकीकत यही है कि राजनीतिक दृष्टि से नरेंद्र मोदी की पिछले चार सालों की सबसे बड़ी उपलब्धि ये है कि वो आजाद हिंदुस्तान की राजनीति के बड़े नेताओं की पंक्ति में खड़े हो गए हैं. इतिहास में प्रधानमंत्री मोदी का नाम सबसे पॉपुलर नेताओं की लिस्ट में दर्ज होगा. इस बात पर कोई विवाद नहीं है. लेकिन, विवाद तब खड़ा हो जाता है जब कोई ये कहता है कि नरेंद्र मोदी आजाद भारत के सबसे लोकप्रिय और बड़े नेता है. मतलब ये कि मोदी की लोकप्रियता नेहरू और इंदिरा से भी ज्यादा है. इसकी कई वजहें हैं. पहला ये कि, हिंदुस्तान की राजनीति का केंद्र पहली बार कोई नेता बना है. देश मोदी समर्थक और मोदी विरोधी में बंट गया है. भारत की राजनीति में विचारधारा, नीति और पार्टी-पॉलिटिक्स का महत्व नहीं रहा. भारत की राजनीति मोदी पर आकर टिक गई है.

आजादी के बाद कई बड़े नेता हुए लेकिन ऐसा एक भी नहीं हुआ पचांयत से लेकर लोकसभा के चुनावों के केंद्र में कोई नेता रहा हो. पिछले चार सालों में जितने भी चुनाव हुए वो मोदी बनाम XYZ हुए. विपक्ष ने हर बार मोदी की लोकप्रियता को मापा. दिल्ली और बिहार में बीजेपी हारी तो उसे मोदी की हार बताया गया. इसलिए, जहां जहां बीजेपी जीती उसका क्रेडिट मोदी को गया. हालत तो ये रही कि पंचायत चुनावों में भी कैंपेन से लेकर नतीजे तक मोदी ही मोदी छाए रहे. नोट करने वाली बात ये है कि बीजेपी से ज्यादा विपक्ष ने मोदी को राजनीति के केंद्र लाकर खड़ा किया है. वर्तमान में जिस तरह मोदी के नाम पर राजनीति हो रही है भारत में ऐसा कभी नहीं देखा गया. इसलिए आजाद भारत की राजनीति में मोदी सबसे आगे निकल गए हैं.

देश मोदी समर्थक और विरोधी में बंट चुका है. आप या मोदी समर्थक हैं या फिर मोदी विरोधी. दोनों ही केस में मोदी ही वो सेंट्रल फिगर हैं जिनके इर्द गिर्द ही लोगों की सोंच और देश की राजनीति घूम रही है. आजादी के बाद से ऐसा कब हुआ था? किस नेता के नाम पर लोगों की राजनीतिक प्रार्थमिकता तय हुई? 1947 के बाद से तो नरेंद्र मोदी के सिवा कोई दूसरा नेता नजर नहीं आता है. राजनीतिक दृष्टि से नेहरू से ज्यादा कद्दावर नेता इंदिरा रहीं. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि इंदिरा गांधी के दौर में ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस पार्टी के पास लोकप्रिय स्थानीय नेताओं की फौज थी. इनकी अपील और लोकप्रियता उन राज्यों इंदिरा गांधी से कम नहीं थी. लेकिन मोदी के साथ ये बात नहीं है. राज्यों के चुनाव में भी मोदी का ही चेहरा सबसे आगे होता है.

हर विधानसभा चुनाव में वो जम कर प्रचार करते हैं. विपक्ष और मीडिया के द्वारा हर चुनाव को मोदी की अग्निपरीक्षा बताई जाती है. हर बार उनकी लोकप्रियता पहले से ज्यादा बढ़ जाती है. हकीकत यही है कि लोगों को आज भी नरेंद्र मोदी पर भरोसा है. लोगों को लगता है कि यही वो नेता है जो देश के लिए कुछ कर सकता है. सबसे बड़ी बात मोदी के साथ संजय गांधी जैसा कोई बोझ है. न ही भ्रष्टाचार का आरोप है. कोई मोदी को पोलाराइजिंग फिगर बता सकता है. मोदी की नेहरू और इंदिरा से तुलना करने पर कांग्रेस समर्थक नाराज हो सकते है. लेकिन हकीकत तो यही है कि इससे न तो इतिहास बदलेगा और न ही वर्तमान परिदृश्य बदल सकता है.

तीसरी बात ये कि इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी में सबसे बड़ा फर्क ये है कि वो जवाहरलाल नेहरू की बेटी थी. वो सीधे राजनीति की शीर्ष पर जा पहुंची. जबकि नरेंद्र मोदी एक गरीब परिवार में पैदा हुए. राजनीति का हर पड़ाव पार कर वो प्रधानमंत्री चुने गए हैं. यहां तक की मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बनने का रास्ता भी आसान नहीं था. 2012 में गुजरात चुनाव जीतते ही ये लगभग तय हो चुका था नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के अगले प्रधानमंत्री उम्मीदवार होंगे. लेकिन, उस वक्त मीडिया पर ऐसे लोगों का कब्जा था जो सालों से लगातार नरेंद्र मोदी के खिलाफ कैंपेन चला रहे थे. घृणा करने के स्तर पर जाकर ये लोग दावा करने लगे कि अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो देश में दंगे होगें. मुसलमानों का जीना दूभर हो जाएगा. प्रजातंत्र खतरे में पड़ जाएगा. विदेश नीति बर्बाद हो जाएगी. दुनिया हमारे देश पर हंसेगी. वो ये अक्सर कहते थे कि मोदी को देश के बारे में क्या पता है? वो सिर्फ गुजरात के नेता है.

घृणा की इंतेहा ऐसी को कई लोगों ने सार्वजनिक लोगो ये तक कह दिया कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो वो देश छोड़ देंगे. और कुछ लोग तो इतने गैरतहीन निकले कि 2013 में अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा को चिट्ठी लिख दी. ये मांग कर दी कि उन्हें वीजा न दिया जाय. टीवी चैनलो अखबार सेमिनार और दिल्ली के लुटियन गैंग ने नरेंद्र मोदी को रोकने की हर कोशिश की. ऐसे माहौल में नरेंद्र मोदी एक आंधी की तरह गांधीनगर से दिल्ली का रुख किया. एक तरफ वो बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार चुने गए तो दूसरी तरफ देश में मोदी-विऱोधी गैंग खड़ा हो गया. चुनाव के परिणाम के निकलने से पहले तक बड़े बड़े राजनीतिक विश्लेषक और संपादक ये कहते रहे कि मोदी के नेतृत्व में बीजेपी 180 सीट भी क्रास नहीं कर पाएगी. इन लोगों की राजनीति की समझ का सबसे बड़ा आधार यही था कि इस देश में बिना मुस्लिम वोट के कोई प्रधानमंत्री नहीं बन सकता है. दूसरी बात ये कि बीजेपी अपरकास्ट हिंदू पार्टी है और नार्थ इंडिया के चार पांच स्टेट्स में ही सीमित है. तीसरी बात ये कि राम मंदिर, गोहत्या और 377 का मुद्दा इतना डिविसिव है कि जनता कभी बीजेपी का समर्थन नहीं करेगी. हिंदुत्व के समर्थन में चंद बहके हुए हिंदू हैं इसलिए बीजेपी कभी बहुमत नहीं ला सकती.

जब चुनाव के परिणाम आए तो बीजपी अकेली ही बहुमत का आंकड़ा पार कर गई. 1984 के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब किसी पार्टी को बहुमत मिला. इस हिसाब से नरेंद्र मोदी की ये जीत ऐतिहासिक थी. मोदी विरोधी गैग की सट्टी-पिट्टी गुम हो गई. इनकी सारी थ्योरी फेल हो गई. इनकी राजनीतिक समझ और ज्ञान को देश की जनता ने कूड़ेदान में फेंक दी. कुछ महीने तक ये शॉक से बाहर नहीं आ सके. और जब बाहर आए तो कहने लगे कि मोदी को सिर्फ 32 फीसदी लोगों का समर्थन है. लेकिन एक के बाद एक राज्यों में चुनाव होने लगे. महाराष्ट्र, हरियाणा, जे एंड के, झारखंड, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, गोवा, त्रिपुरा के चुनाव मोदी ने अपने कैंपेन से जीत कर साबित कर दिया कि वो देश के सबसे बड़े लीडर हैं.

नोट करने वाली बात ये है कि इन सब जगहों पर मोदी ने न सिर्फ कैंपेन किया बल्कि केंद्र सरकार के कामकाज के आधार पर बीजेपी ने वोट मांगे. हर चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा गया. हर चुनाव में मीडिया यही पूछती रही कि क्या यहां भी मोदी का जलवा चलेगा. क्या मोदी की पॉपुलारिटी बरकरार है? हर सर्वे.. हर चुनाव के नतीजे इस बात के सबूत हैं कि नरेंद्र मोदी जैसा लोकप्रिय लीडर फिलहाल हिंदुस्तान में कोई नहीं है. ये एक हकीकत है. अगर कोई इस सच्चाई को मानने से इंकार करता है तो ये मान लेना चाहिए कि वो शख्स पुर्वाग्रह से ग्रसित है. मोदी से घृणा करने वालों में से है. इतना ही नहीं, एक राजनेता के रूप में प्रधानमंत्री मोदी न सिर्फ हिंदुस्तान बल्कि पूरे विश्व में अपने नेतृत्व-क्षमता को साबित किया है. दुनिया भर में हुए कई सर्वे इस बात के सबूत हैं, लेकिन जिस तरह से विश्व स्तर पर और अतंर्राष्ट्रीय मंचों पर हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री की इज्जत होती है. भारत को तरजीह दी जाती है. वो अपने आप में हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है.

अब विपक्ष ने ‘मोदी हटाओ’ गठबंधन बनाना चाहती है. ये बन पाएगा या नहीं तो वक्त बताएगा लेकिन जिस बेकरारी से ये लोग मोदी को हटाना चाहते हैं वो भी इस बात का सबूत है कि सारी राजनीतिक दलों ने ये मान लिया है कि अकेले मोदी को हराना मुश्किल नहीं नामुमकिन है. और हकीकत भी यही है कि मोदी ने एक बाद एक चुनाव जीतकर अपनी लोकप्रियता प्रमाण दिया है. वर्तमान में नरेंद्र मोदी जैसा पॉपुलर नेता तो कोई दूर दूर तक नजर नहीं आता लेकिन जिस तरह मोदी भारत की राजनीतिक केंद्र बन चुके हैं उससे ये साबित होता है कि आजादी के बाद से अब तक मोदी जैसा लोकप्रिय प्रधानमंत्री कोई नहीं हुआ.

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  1. कर्नाटक में जैसा राजनैतिक उदंड देखा है वहां विधान सभा निर्वाचनों और अपवित्र राजनैतिक गठबंधन देखते सचमुच देश मोदी समर्थक और विरोधी में बंट चुका है| ऐसी स्थिति में वहां जनादेश में कोई पूछे देश का क्या हुआ?

    तथाकथित स्वतंत्रता के बहुत पहले से ही भारत देश व देश के नागरिकों के प्रति शासकीय कामकाज और राजनीति दोनों एक साथ जुड़े रहे हैं क्योंकि मुझ बूढ़े गंवार ने उनकी राजनीति में अधिकतर शांति से रहते हिंदू, सिख और मुसलमानों में लाखों निर्दोष लोगों को देश के रक्तपात पूर्ण विभाजन की क्रूर चपेट में आये विश्व में सबसे बड़े जनसमुदाय के स्थानांतरण में जान-माल गंवाते देखा है| और, लूटमार की राजनीति खेलते अब उनके कामकाज में देश के दो तिहाई जनसमूह को रियायती खाद्य-सामग्री प्रदान करने में उनके प्रगति-पत्र, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम २०१३ को भी देखा है| देश में १९४७ के रक्तपात पूर्ण विभाजन से लेकर २०१३ में उनके प्रगति-पत्र के बीच शासकीय मध्यमता और अयोग्यता के कारण फैले भ्रष्टाचार और अराजकता के कीचड़ में युगपुरुष मोदी कमल स्वरूप खिले हैं|

    भला अब उस कीचड़ से क्यों कोई अलौकिक कमल की तुलना करे जो कीचड़ के प्रदूषण को हटाने की क्षमता रखता है? कांग्रेस-मुक्त भारत में प्रगति की ओर अग्रसर, सब का साथ सब का विकास लक्ष्य होना चाहिए!

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