संदर्भः जाकिर नाइक के खिलाफ मामला दर्ज-
प्रमोद भार्गव
आर्थिक उदारीकरण के बाद दुनियाभर में धर्म के उपदेशकों को धार्मिक आडंबर और रूढ़िवादी कट्टरपंथ फैलाने का सुनहरा अवसर मिला है। यह इसलिए जरूरी था, जिससे बाजार को उपभोक्ताओं की एक पूरी जमात मिल सके। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने सुनियोजित ढंग से दुनिया के देशों में नीतिगत हस्तक्षेप किया और किसान, मजदूर, वंचित तथा मध्य वर्ग के आर्थिक हितों से जुड़े सवालों को पीछे धकेल दिया। इस कारण प्रचार माध्यमों के मार्फत युवा शिक्षितों में धर्मांधता बढ़ाने में आसानी हुई। इस आसान अवसर का लाभ जकिर नाइक जैसे आर्थिक रूप से संपन्न धर्म-प्रचारकों ने उठाया और धर्म को अफीम बनाने का काम कर दिया। अब यह अच्छी खबर आई है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने आतंकवादरोधी कानून के तहत जाकिर नाइक के ‘इस्लामिक रिसर्च फाउण्डेशन‘ को प्रतिबंधित करते हुए इसके संस्थापक नाइक समेत अन्य के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। यह मामला भारतीय दल संहिता की धारा 153-ए के तहत दर्ज किया गया है। इस धारा की परिभाषा के अंतर्गत धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना और सौहार्द को नुकसान पहुंचाने के कार्य करना आते हैं।
भूमंडलीकरण का विस्तार हुआ तो इस आवधारणा के साथ था कि इससे दुनिया एक विश्व-ग्राम में बदल जाएगी और समावेशी विकास से असमानता दूर होगी। दुनिया की सामुदायिकता धर्मनिरपेक्ष बहुलतावादी संस्कृति की पैरोकार हो जाएगी। किंतु इस्लाम से संबंधित अतिशुद्धतावादी धर्मगुरूओं ने इसे अतिवादी आतंकी अंदोलन का पर्याय बना दिया। जिसकी कू्ररता से आज पूरी दुनिया त्रस्त है। इंटरनेट खंगालने से पता चलता है कि डाॅ जाकिर नाइक उच्च शिक्षित हैं। पेशेवर चिकित्सक हैं। उसकी विलक्षण्ता वह स्मरण-शक्ति है, जिसकी स्मृति की अक्षुणता के चलते, उसे कुरान व हदीस की आयतें मुंहजुबानी याद हैं। अपने स्वयं के ‘पीस टीवी‘ में वह जब धाराप्रवाह आयतों की मिसाल देते हुए बेवाक बोलता है, तो उससे आकर्षित होना स्वाभाविक है। वह गीता और बाइबल के भी उदाहरण देता है। लेकिन इस्लाम से श्रेष्ठ या उसके बराबर किसी दूसरे धर्म को नहीं मानता। गोया जाकिर कुरान और हदीस के एक-एक अक्षर व शब्द को खुदा का शब्द मानता है। ‘श्रुति‘ को मानता है, ‘स्मृति‘ को नहीं। स्मृति ज्ञान के नए सूत्र मिलने पर बदलती रहती है, जबकि श्रुति स्थिर रहती है। जाकिर के कथित धर्मोपदेश इसी अपरिवर्तनीय व अनुदार श्रुति पर आधारित हैं। लिहाजा वह बिना हिचक के मानता है कि इस्लाम में पत्नी को पीटना बुरा नहीं है। गर्भनिरोधक दवाओं का सेवन इंसान को मारने के बराबर है। पत्थरों से मौत की सजा अनुचित नहीं है। ओसामा का बखान करने में उसे लज्जा नहीं आती। जबकि जाॅर्ज बुश को दुनिया का सबसे बड़ा आतंकी मानता है। इस्लामी व मदरसा शिक्षा की पैरवी करता है। वंदे मातरम् मुसलमानों को ही नहीं हिंदुओं को भी बोलने की मना करता है।
इस्लाम के अलावा जाकिर दुनिया की हरेक उपासना पद्धति का विरोधी है। वह भगवान गणेश के सिर पर हाथी के सिर के प्रत्यारोपण विधि का उपहास उड़ाता है। अन्य हिंदु देवी-देवताओं के खिलाफ भी उसकी टिप्पणियां बेहद अपत्तिजनक है। मूर्ति-पूजा का भी मजाक उड़ाता है। वह ‘मैरी क्रिसमस‘ कहने के भी विरुद्ध है। वह दुनिया के मुसलमानों से अपील करता है कि उन्हें अल्लाह के अलावा अन्य किसी से मदद नहीं मांगनी चाहिए। पैगंबर से भी नहीं। इस विभाजनकारी विचार के चलते ही, सुन्नियों के सूफी, शिया और अहमिदिया समुदायों के प्रति नफरत गहराई है। इस्लामिक स्टेट और बोको हरम इन समुदायों के खिलाफ हिंसा को इसी आधार पर सही ठहराता है। साफ है, उसके रूढ़िवादी जहालत से जुड़े ये विचार मानसिकता को कुंद करने के साथ विभाजन को बढ़ावा देने वाले हैं।
जाकिर का अपना धार्मिक चैनल होने की वजह से अपने कट्टरवादी इस्लामिक धारणाओं और विचारों को फैलाने का मौका मिला। ‘पीस‘ चैनल होने के अलावा उसकी अपनी संस्था इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन है। जिसे विदेशों से बेहिसाब चंदा मिलता है। रमजान के महीने में फाउंडेशन के खाते में एक साथ रकम बढ़ जाती है। 2006 में शुरू हुआ यह इस्लामी चैनल उर्दु, अंग्रेजी, बांग्ला और चीन की मंदारिन भाषाओं में है। उसका लक्ष्य इसे 10 भाषाओं में शुरू करना है। इसके अलावा बड़ी संख्या में उसके मजहबी भाषणों के कैप्सूल यूट्यूब पर बरसों से उपलब्ध हैं। ढाका के आतंकी ही नहीं आइएस के हिंसक चरमपंथ से प्रभावित होकर जो मुस्लिम युवा संदिग्ध परिस्थितियों में हिरासत में लिए गए थे, उनमें से कई ने जाकिर के उपदेशों से उत्प्रेरित होने की बात मंजूर की थी। इसी के बाद भारत सरकार की आंखें खुली और जाकिर के फाउण्डेशन को एनआईए ने जांच के बाद प्रतिबंधित करने की सलाह गृह मंत्रालय को दी। अब इस संगठन और चैनल को विधिवत भारत सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया है।
पहले भी कई मर्तबा जाकिर की कार्य संस्कृति पर सवाल उठे हैं। इसके चैनल का प्रसारण भारत में अवैध रूप से हो रहा था। इसकी अपलिंकिंग सीधे दुबई से सिग्नल मिलने पर हो जाती थी। इसे प्रतिबंधित करने की मांग शिवसेना समेत अनेक हिंदूवादी संगठन उठाते रहे थे। ऐसे कट्टरपंथियों की सरपरस्ती जब दिग्विजय सिंह जैसे राजनेता करते हैं तो एक ओर तो इनका महिमामंडन होता है, वहीं दूसरी और इनके समर्थकों की संख्या बढ़ती है। दिग्विजय सिंह का जाकिर का मंच साझा करना अब तक इसलिए उचित ठहराया जाता रहा है, क्योंकि कांग्रेस की राजनीति का आधार मुस्लिम तुष्टिकरण रहा है। ऐसे में इस्लाम प्रचारक का बखान करना, उनके लिए इसलिए मुफीद हो सकता है, क्योंकि जाकिर की सभाओं में लाखों की भीड़ रहती है और करोड़ो उसके निष्ठांवन अनुयायी हैं।
हालांकि कानूनी नजरिए से यह मुश्किल ही है कि आतंकी महज किसी व्यक्ति के विचार से अभिप्रेरित होने की बात स्वीकार लें और उसे कठघरे में खड़ा कर दिया जाए ? चरमपंथ से जुड़ी जो भी सामग्री किताबों और वीडियो फुटेज के रूप में इंटरनेट पर है, उस पर अंकुश के उपाय भी मुश्किल हैं ? सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद केंद्र सरकार ने पोर्न साइटों पर प्रतिबंध लगाने में असमर्थता जता दी थी। ऐसे में पीस चैनल पर प्रतिबंध भारत में तो संभव है, लेकिन नेट सामग्री से निपटना ढेड़ी खीर है। हालांकि मुंबई पुलिस ने डाॅ जाकिर नाइक के खिलाफ नफरत फैलाने का मामला दर्ज कर लिया है। इसका आधार हिंदू देवी-देवताओं पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों को बनाया है। लेकिन सवाल उठता है कि ये टिप्पणियां तो पिछले एक दषक से जारी थीं, तब क्या केंद्र और राज्य सरकारें सो रही थीं ? भारत में पीस चैनल का प्रसारण शुरूआत से ही अवैध है, बावजूद इसका प्रसारण कैसे होता रहा ?
जाकिर को फिलहाल सऊदी अरब का सरंक्षण मिला हुआ है। सऊदी अरब ने उसे देश के सबसे बड़े सम्मान ‘ किंग फैजल अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया है। जाकिर पर शिकंजा कसना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आतंकवाद के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई की मिसाल है। हालांकि जाकिर पर शिकंजा मात्र कसने से काम चलने वाला नहीं है, इस्लाम के जो प्रगतिशील व्याख्याकार एवं बहुलतावादी संस्कृति के पैरोकार धर्मगुरू हैं, उन्हें आगे आकर वैचारिक मुहिम छेड़नी की जरूरत है। जैसा कि रजा अकादमी ने किया है। यह सिलसिला और व्यापक होता है तो इस्लाम की तो बेहतर समझ बनेगी ही, आज भारत समेत पूरी दुनिया के धर्मनिरपेक्ष बहुलतावादी देशों के जनमानस में एक आम मुसलमान की जो संदिग्ध छवि बन रही है, वह भी टूटेगी। इस हेतु मुस्लिम समाज से राजनेैतिक नेतृत्व भी उभरना चाहिए ? जिससे इस्लाम बनाम अन्य धर्मों में संघर्ष के कारक जो आतंकी संगठन और धर्मगुरू बन रहे हैं, उन पर लगाम लगे। अन्यथा अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को मुस्लिमों के विरुद्ध धर्म के आधार पर अलग-थलग करने का बहाना मिलता रहेगा।