मनोज श्रीवास्तव ”मौन”
पृथ्वी पर विकास मानव की आवश्यकताओं को कितना भी पूरा करे मानव को कम ही प्रतीत होता है। सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने की कोई सीमा नहीं होती है। परिवार की सुख सुविधाओं में बढ़ती हुई आवश्यकताएं बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। इसलिए मानव को इसमें आवागमन के लिए साइकिल से मोटरसाइकिल फिर मोटरसाइकिल से कार के रूप में अपने आप को जोड़ना पड़ता है। मानव के इस काम को प्राकृतिक रूप से देखना ही उचित होगा क्योंकि यह उसकी आवश्यकता बनती जा रही है। कोई भी व्यक्ति विकास करते हुए आगे ही जाना चाहता है न कि पीछे की ओर मगर आज अपने इस विकास के क्रम में उसे पता ही नहीं चल पा रहा है कि कब वह और कैसे प्रकृति को नुकसान पहुचा रहा है। वाहन विकास की कड़ी में नित नई खोज हो रही है जहां पर हम प्रकृति के अनुकूल वाहनों को प्रस्तुत करते जा रहे हैं जिससे कि प्रकृति को कम नुकसान हो मगर फिर भी प्रकृति को होने वाले नुकसानों को जितना रोका जाए वह कम ही होगा क्योंकि प्रकृति में हमारी जो भी ताकत विकास के लिए है वह प्रकृति को नुकसान पहुचाने वाले तत्वों को जन्म अवष्य ही दे रही है।
वायु में प्रदूषण पहुचाने वाले तत्वों का जन्म उस समय ही होना प्रारम्भ हो जाता है जब हम वाहनों का निर्माण करते है वहां पर तमाम सारे रसायनों का प्रयोग होता है जो कि पर्यावरण में घुल जाते है। उसके बाद जब हम रफ्तार के दूत को तैयार करके उसका प्रयोग प्रारम्भ करते है तो रबर के टायरों के घर्षण से, जलते हुए पेट्रोल से, कारों के एयरकण्डीशनर से, अलग-अलग तरह के प्रदूषण को जन्म देते है जो कि हमें लाभ पहुचाने के साथ साथ प्रकृति को नुकसान भी पहुंचाते हैं।
प्रदूषित होती वायु से नेत्र विकार, त्वचा के रोग, गले की समस्या, फेफड़ों की समस्या के रूप में हमारा सामना नित प्रति हो रहा है। इनकी भयावहता इतनी है कि इससे कैंसर जैसी असाध्य बीमारी भी हो रही है। वाहनों के अंधाधुंध प्रयोग से वातावरण में लेड, निकिल और कार्बनिक पदार्थों के माइक्रोपार्टिकल्स की मात्रा में असीमित मात्रा में वृध्दि हो रही है। यही माइक्रोपार्टिकल्स रक्त में घुलकर फेफड़ों के कैंसर को जन्म दे रहे है। प्रकृति में सल्फर और नाइट्रोजन डाई आक्साइड की मात्रा में भारी वृद्धि दर्ज की जा रही है जिससे ब्रांकाइटिस की बीमारी में भी काफी इजाफा हुआ है।
हम बात अगर नवाबों के शहर लखनऊ की करें तो यहां पिछले साल के मुकाबले में 2011 में हल्के वाहनों में 15 प्रतिशत, टैक्सी में 5 प्रतिशत, दोपहिया वाहनों में 2 प्रतिशत, कारों में 14.42 प्रतिशत की वृत्रि हुई है। इन वाहनों की संख्या इतनी बढ़ गयी है कि अक्टूबर 2011 में दो पहिया की संख्या 9 लाख 70 हजार के पार हो गयी है वही कारों की संख्या 1 लाख 66 हजार पहुंच गयी है। इन वाहनों में सार्वजनिक वाहनों की संख्या 2 हजार 9 सौ ही बनी हुई है। जहां कभी बग्घी की सवारियां षान हुआ करती थी तांगों की एक बड़ी मात्रा यहां पर सवारियों को सफर कराने के लिए मौजूद रहती थी वही अब इसकी जगह भारी मात्रा में कारों ने और दो पहिया मोटरसाइकिलों ने ले ली है जिससे यहां की सड़के खचाखच भरी रहती हैं चाहे मध्य रात्रि ही क्यों न हो। तांगों में कम से कम एक बार में 6 सवारियां एक साथ सफर किया करती थी जिससे एक परिवार के सभी सदस्य एक साथ ही कही भी आसानी से सफर कर लेते थे। यह संख्या एक कार में बैठने वालों की संख्या के बराबर ही होती थी। बस कारों के आ जाने से इनकी संख्या केवल पर्यटकों तक ही सीमित हो कर रह गयी है। इनकी एक ही खामी है कि यह एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में समय अधिक लेती थी और आज के मानव के पास अगर नहीं है तो बस समय ही नहीं है।
पांच नवम्बर की आईआईआरटी की सालाना शोध रिपोर्ट यह बताती है कि आवासीय इलाकों में 24 घण्टे सल्फर डाई आक्साइड जैसी जहरीली गैस के तत्व हवा में मौजूद रहते है। इसके पीछे वाहनों की संख्या में विगत वर्ष के मुकाबले इस वर्ष 10 प्रतिशत वाहनों की वृद्धि हुई है इसके कारण से इण्यिन आयल ने 9 प्रतिशत, भारत पेट्रोलियम ने 8 प्रतिशत, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम ने 14.03 प्रतिशत अपने अधिक पेट्रोल की बिक्री की है। इस खपत से केवल नवाबों के शहर लखनऊ में ही प्रतिदिन काफी मात्रा में वृद्धि दर्ज की जा रही है। साथ ही लखनऊ वासियों को पेट्रोल की अच्छी खासी कीमत भी देनी पड़ रही है और बदले में जहरीले होते पर्यावरण के कारणों से बीमारी पर डाक्टरों को इलाज कराने के लिए भी खर्च करना पड़ रहा है। इस प्रकार लोगों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।
सच कहिये तो हम विकास के नाम पर विनाश करने वाली जहरों के समूहों को पर्यावरण में ही फेंक रहे हैं और दिन पर दिन उससे होने वाले नुकसान का सामना भी कर रहे है जिसके कारण हमें कैंसर जैसी असाध्य बीमारी के अधीन होना पड़ा रहा है। आइये विचार करिये कि हमारी प्रकृति आधारित जीवन की गति कही जाने वाली हार्स पावर युक्त वाहन क्या हमारी आज की जरूरत नहीं बन सकते हैं। हमें जरूरत है पर्यावरण को सुरक्षा प्रदान करने की जिससे कि हमारा स्वस्थ्य भी प्रभावित न होने पाये और प्रकृति को भी नुकसान न होने पाये।
ABHI
APNI GALTI KA AHSAS HUA KI VAHAN DAISEY NOKSAN KAR RAHEY HAI
sonia
लेख बहुत उत्तम है
iqbal hindustani
आपको दिली मुबारकबाद. वाहनों की बढती तादाद और प्रदूषण का जहा तक सवाल है, हमारी सर्कार की कोइ नीति नहीं है. जो कुछ दिखावे के लिए है भी वेह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है. जब तक जनता में ही जागरूकता नहीं आती तब तक रास्ता ही क्या है. संपादक पब्लिक ऑब्ज़र्वर नजीबाबाद