प्लाज्मा थेरेपी से सिरमौर बन सकता है भारत

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लिमटी खरे

कोरोना कोविड 19 के संक्रमण से मुक्त होने के लिए प्लाज्मा थेरेपी की चर्चाएं आजकल जमकर हो रही हैं। कोरोना के खिलाफ जंग में यह थेरेपी कुछ हद तक कारगर भी दिख रही है। कुछ अस्पतालों में की गई इस थेरेपी के उत्साहजनक परिणाम भी सामने आए हैं। इन परिणामों का स्वागत किया जाना चाहिए और इस थेरेपी का निरंतर जारी रखने के लिए केंद्र सरकार को पहल भी करना चाहिए।

चूंकि कोरोना कोविड 19 नामक बीमारी का उदय हाल ही में हुआ है अतः प्लाज्मा थेरेपी के परिणामों को अप टू द मार्क आने में अभी काफी वक्त लग सकता है। इंडियन कॉऊॅसिंल ऑफ मेडिकल रिचर्स ने इस थेरेपी पर भरोसा जताया है और इस थेरेपी के लिए अपनी मंजूरी भी प्रदाय कर दी गई है, पर औषधि विभाग के ड्रग कंटोरल जनरल ऑफ इंडिया के द्वारा अभी इसे मानयता नहीं दी गई है।

जानकारों का कहना है कि इस पद्यति के जरिए स्वस्थ्य होने वाले मरीजों का प्रतिशत बहुत अधिक होना चाहिए ताकि चिकित्सकों को आश्वस्त किया जा सके कि यह तकनीक कारगर है। यह पद्यति पूरी तरह मुफीद है अथवा नहीं, यह कहा नहीं जा सकता है पर इसके शुरूआती रूझान बहुत ही अच्छे मिल रहे हैं जो राहत की बात मानी जा सकती है। यहां तक कि दिल्ली के निजाम अरविंद केजरीवाल के द्वारा भी इस बात को कहा गया है कि इस तकनीक के जरिए स्वस्थ्य होने वालों की न केवल तादाद बढ़ रही है, वरन मरीजों के श्वसन तंत्र में भी सुधार दर्ज किया गया है।

प्लाज्मा थेरेपी आज की नई तकनीक नहीं मानी जा सकती है। यह लगभग सात आठ दशकों से चली आ रही तकनीक है। इसी तकनीक के जरिए इबोला, स्वाईन फ्लू, सार्स जैसी बीमारियों में भी परीक्षण किए गए थे, जिनके परिणाम बहुत ही आशाजनक मिले थे। कोरोना के इलाज में भी इस पद्यति का उपयोग किया जाने की बात कही जा रही है।

कोरोना पीड़ित वे लोग जो स्वस्थ्य हुए हैं, उनके प्लाज्मा को अन्य संक्रमित मरीजों में इंजेक्ट किया जाएगा। इससे संक्रमित मरीज के अंदर एण्टी बाडीज का निर्माण तेजी से होगा और यही एण्टी बाडीज कोरोना वायरस से लड़ने में कारगर भूमिका निभाने में महती भूमिका निभा सकती हैं।

दरअसल, प्लाज्मा मानव शरीर के रक्त का एक हिस्सा है। देखा जाए तो रक्तदान कई प्रकार के होते हैं। सामान्य रक्त दान, रेड ब्लड सेल्स अर्थात लाल रक्त कोशिकाओं का दान, प्लेटलेट्स का दान और प्लाज्मा दान मुख्य रूप से रक्तदान का अंग माने जाते हैं। प्लाज्मा का उपयोग जलने, आघात आदि के समय किया जाता है।

चिकित्सकों की मानें तो प्लाज्मा मानव शरीर में पाए जाने वाले रक्त का बड़ा हिस्सा है। यह हल्का पीला तरल पदार्थ एंटी बाडीज, पानी, एंजाईम एवं कुछ अन्य तत्वों को अपने आम में समाहित रखता है। कोरोना संक्रमित लोगों को संक्रमण से मुक्त हुए मनुष्य के प्लाज्मा के जरिए ठीक करने का प्रयास प्रशंसनीय है। इसकी भूमिका कितनी होगी, यह बात तो परीक्षणों के उपरांत ही पता चलेगा, किन्तु अभी तक के परिणाम उत्साहजनक माने जा सकते हैं।

अभी जब कोरोना का कोई टीका या दवा विकसित नहीं हो पाई है तब जिस उपचार पद्यति में कुछ संभानाएं दिख रही हैं, तब इसका उपयोग किए जाने में शायद ही किसी को हर्ज हो। आखिर किसी मरीज को विकट स्थिति या क्रिटिकल पोजीशन तक पहुंचने का इंतजार क्यों किया जाए! भारत सरकार को चाहिए कि इस बारे में विस्तार से अध्ययनो के बाद अगर यह उचित है तो इस पद्यति को मान्यता दे दी जानी चाहिए। अगर यह कारगर साबित हुई तो कोरोना की जंग में भारत में विजय पताका फहराकर सिरमौर बन सकता है।

आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए घर पर ही रहें।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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