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भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं हो सकता

पिछले कुछ दिनो से एक विवाद उठा हुआ है, कि भारत हिन्दू राष्ट्र है या नहीं।संघ और भाजपा से जुड़े कई लोग इसके पक्ष मे तर्क दे रहे हैं, हिन्दू शब्द के उद्गम और अर्थ की जानकारी दे रहे हैं, उसका इतिहास बता रहे हैं और हिन्दुस्तान के भूगोल पर शोध कर रहे हैं, कि यह भूभाग जम्बूद्वीप कहलाता था और माउंटऐवरैस्ट का नाम गौरीशंकर पर्वत था।अपनी बात की पुष्टि करने के लियें उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय को भी उद्धरित किया जा रहा है।

दूसरे पक्ष का कहना है कि भारत एक धर्मनिर्पेक्ष राष्ट्र है, उसे हिन्दू राष्ट्र कहना सांप्रदायिक ही नहीं असंवैधानिक भी है।इसके उत्तर मे पहले पक्ष का कहना है कि हिन्दू धर्म मे सभी धर्म समाहित हो सकतेहैं क्योंकि वह धर्म नहीं इस भूभाग की जीवन शैली है।मेरे विचार से हिन्दू ही नहीं, सभी धर्म जीवन शैली ही हैं, जिनमे पहनावा, खानपान , तीज त्योहार और अपने इष्ट से प्रार्थना करने के तरीक़े भी अलग अलग है जबकि भगवान तो सबका एक ही है…. नास्तिक लोगों के लियें मै भगवान नहीं प्रकृति कह देती हूँ, जो सबके लिये एक ही है।जो लोग आज हिन्दू धर्म मे सभी धर्मो के समाहित होने की बात कर रहे हैं उनसे मुझे यही कहना है कि हिन्दुओं ने भले ही मुसलमानो या इसाइयों से दोस्ती कर ली हो पर ऊंची जाति के हिन्दूओं ने खान पान की दूरी बनाये रखी।

धर्म वह है जो अधर्म न करवाये, पर आजकल हम जिसे धर्म कह रहे हैं वह खुल कर अधर्म करवा रहा है।अपने को धार्मिक मानने वाले खूब अधर्मऔर हिंसा करवा रहे हैं, वह भी अपने धर्म की रक्षा के लियें।

विषय से भटक न जाऊं इसलियें धर्म के आध्यात्मिक पक्ष पर अधिक न लिखकर लिखकर सीधे व्यावहारिक पक्ष की बात करूँगी।मेरे विचार से ये दोनो ही पक्ष, धर्म के नाम पर राजनीति कर रहे हैं।हिन्दु, सिंधु या इन्दु का इतिहास जो भी रहा हो यह महत्वपूर्ण नहीं है। हमारे संविधान ने हिन्दू , इस्लाम, सिख, इसाई, बौद्ध पारसी और  अब जैन धर्म को भी स्वतन्त्र धर्म का दर्जा दिया  है, जबकि सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन धर्म हिन्दू धर्म से ही प्रस्फुटित हुए हैं । संभव है भविष्य मे कुछ और धार्मिक समूहों जैसे आर्य समाज और राधास्वामी सतसंग को भी स्वतन्त्र धर्म का दर्जा मिल जाये और वो अल्पसंख्यकों मे आजायें।

भारत मे इस्लाम मध्य एशिया से और ईसाई धर्म योरोप से आया। कहा जाता रहा है कि हिन्दू धर्म मे सबको समाने की प्रथा चली आरही है, पर हिन्दुओं ने ही हिन्दुओंकी  निचली जातियों के साथ दुर्व्यवहार करके उन्हे हाशिये पर रखा जिस वजह से उन्होने मौक़ा मिलते ही इस्लाम या ईसाई धर्म को स्वीकार लिया। कुछ धर्म परिवर्तन दबाव या लालच के कारण हुए।धर्म जाति की तरह पैदाइश से मिलता है, धर्म परिवर्तन हो सकता है, पर जाति नहीं बदली जा सकती।

राष्ट्रीयता और धर्म दो अलग बाते हैं। हमारी राष्ट्रीयता भारतीय या इण्डियन है, यदि हम सभी भारतीयों को हिन्दू कहने लगेगे, फिरतो हिन्दू धर्म की जगह ‘सनातन’ लिखेंगे जबकि अब सभी हिन्दू सनातनी नहीं रहगये है। एक व्यक्ति राष्ट्रीयता की जगह ‘हिन्दू’ लिखेगा और धर्म की जगह ‘इस्लाम’ तो व्यर्थ मे स्थिति भ्रामक होगी। यदि हमने हिन्दू और भारतीय को समानार्थक बना दिया तो कुछ भ्रम ज़रूर पैदा होंगे, जैसे नेपाल का हिन्दू अपनी राष्ट्रीयता ‘नेपाली’ लिखेगा और धर्म ‘हिन्दू’ तो उसे भारतीय मान लेने की ग़लती हो सकती है।

एक तर्क दिया जा रहा है कि जब जर्मनी का रहने वाला जर्मन है, चीन का चीनी, जापान का जापानी तो हिन्दुस्तान का हिन्दू क्यों नहीं? सबसे पहली बात कि हिन्दुस्तान के अलावा किसी दूसरे देश का नाम धर्म से नहीं जुड़ा है, इसलियें हम अपने देश को हिन्दुस्तान न कहकर सिर्फ भारत या इण्डिया कहेंगे तो स्वाभाविक तौर पर हमारी राष्ट्रीयता भारतीय या इण्यिन ही होगी।

आदर्श स्थिति तो यह होगी कि प्रत्येक भारतीय सार्वजनिक जीवन मे सिर्फ भारतीय हो । किसी का धर्म क्या है, यह बताना ज़रूरी न हो।सबके लियें एक क़ानूनऔर एक सी सुविधाये हों।यदि आरक्षण देना है तो उसका आधार केवल आर्थिक होना चाहिये।व्यक्तिगत जीवन मे सब अपने धर्मको मानने के लियें स्वतन्त्र हों,पर अन्य धर्मो का सम्मान करें। राजनीति से धर्म को दूर रखा जाये