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पाकिस्तान को गहरे जख्म देने होंगे

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-अरविंद जयतिलक
पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के आत्मघाती दस्तों द्वारा जम्मू-श्रीनगर हाइवे पर गोरीपोरा में आत्मघाती हमला रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि पाकिस्तान और उसके पाल्य आतंकी संगठनों का दुस्साहस चरम पर है और उन्हें सबक सिखाने के लिए उन पर निर्णायक प्रहार आवश्यक है। इस आत्मघाती हमले में सीआरपीएफ के 44 जवान शहीद हुए हंै और हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन जैश ए मुहम्मद ने ली है। यह वहीं संगठन है जो गत वर्ष पहले पठानकोट और जम्मू-कश्मीर के उड़ी में आर्मी बेस पर हमला बोलकर कई जवानों की जान ली थी। बहरहाल इस बात की जांच होनी चाहिए कि अफजल गुरु स्क्वाॅयड के स्थानीय आतंकी आदिल अहमद उर्फ वकास 320 किलो विस्फोटकों से लदी गाड़ी को सीआरपीएफ के काफिले में शामिल जवानों से भरी बस को उड़ाने में किस तरह सफल रहा? इस हमले में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ की भूमिका क्या रही? सेना को ध्यान देना चाहिए कि आखिर वह कौन-सी चूक है जिसकी वजह से बार-बार आतंकी उन्हें लहूलुहान करने में सफल हो रहे हैं? उन लोगों की भी जांच होनी चाहिए जिन पर संदेह है और जो पैसों की लालच में देश से गद्दारी पर उतारु है। इस संकट की घड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को आश्वस्त किया है कि जवानों की शहादत बेकार नहीं जाएगी और हमले के जिम्मेदार गुनाहगारों को छोड़ा नहीं जाएगा।

अच्छी बात यह भी है कि दुनिया भर में हमले की निंदा हुई है और सभी देशों मसलन अमेरिका, रुस, फ्रांस, जर्मनी, आस्टेªेलिया, तुर्की और चेक गणराज्य ने आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ प्रतिबद्धता जतायी है। लेकिन असल सवाल यह है कि इन सबके बावजूद भी पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज क्यों नहीं आ रहा है? हां, यह सही है कि वह आतंकी संगठनों के जरिए देश-दुनिया का ध्यान जम्मू-कश्मीर की ओर आकर्षित कराना चाहता है ताकि भारत पर दबाव बना रहे। पाकिस्तान कई किस्म की अंदरुनी संकटों से भी जूझ रहा है और वह उस संकट की आग को सीमा पर रखकर अपनी जनता का ध्यान बंटाना चाहता है। यहां समझना होगा कि पाकिस्तान की विदेश नीति का मुख्य लक्ष्य किसी भी तरह जम्मू-कश्मीर को हड़पना है। उसकी परराष्ट्र नीति का मूल प्रेरणा स्रोत भारत का भय और उसके निवारण के लिए मित्रों की खोज करना है। इसके लिए वह कश्मीर में आतंक का समर्थन करता है और आतंकियों के मारे जाने पर भारत के खिलाफ मानवाधिकार हनन का दुष्प्रचार करता है। लेकिन अब वक्त आ गया है कि भारत पाकिस्तान को कड़ी सबक सिखाने के लिए उस पर चैतरफा निर्णायक वार करे। यह वार सैन्य, कुटनीतिक और आर्थिक घेराबंदी कई तरीके से हो सकता है। सबसे पहले भारत को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ द्वारा पीओके में आतंकियों को दी जा रही टेªनिंग शिविरों को तबाह करना होगा। ध्यान देना होगा कि पाकिस्तान सिर्फ एक सर्जिकल स्ट्राइक से सुधरने वाला नहीं है। निःसंदेह यह कार्य जोखिम भरा है लेकिन इसके अलावा कोई उपाय भी नहीं है। अब समय आ गया है क पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए उसे दी गयी मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) यानी तरजीही राष्ट्र का दर्जा छीन लिया जाए। अच्छी बात यह है कि केंद्र सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाने का एलान कर दिया। यह इसलिए भी आवश्यक था कि लाख समझाने-बुझाने के बाद भी पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने से बाज नहीं आ रहा है। दो राय नहीं कि पाकिस्तान से तरजीही राष्ट्र का दर्जा वापस लेने से दोनों देशों का आर्थिक कारोबार प्रभावित होगा और संबंध पहले से कहीं ज्यादा बिगडेंगे।

लेकिन पाकिस्तान की कायराना हरकतों को देखते हुए उसके साथ कूटनीतिक-आर्थिक संबंधों पर पुनर्विचार करना जरुरी हो गया है। भारत द्वारा पाकिस्तान से तरजीही राष्ट्र का दर्जा वापस लेने से उसका सर्वाधिक नुकसान पाकिस्तान को ही उठाना होगा। उल्लेखनीय है कि भारत पाकिस्तान को चीनी, तेल, केक, पेट्रोलियम आॅयल, टायर, रबड़, काॅटन, कालीन, गलीचा, शाॅल और स्टोल, नामदा, गब्बा, केमिकल, स्टेपल फाइबर जैसे औद्योगिक कच्चे माल एवं चाय तथा नमक जैसे घरेलू उत्पादों का सस्ते दामों पर निर्यात करता है। इन वस्तुओं के निर्यात से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को गति मिलती है और लाखों लोग रोजगार से लाभान्वित होते हैं। अगर भारत इन वस्तुओं का निर्यात बंद करता है तो फिर पाकिस्तानी उत्पादों की कीमत बढ़ जाएगी और महंगाई आसमान छुने लगेगी। ऐसे में पाकिस्तान को भारत में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने से पहले दस हजार बार सोचना होगा। यहां ध्यान देना होगा कि इस कवायद से भारत के आर्थिक सेहत पर इसलिए बहुत अधिक प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा कि पाकिस्तान को होने वाला निर्यात भारत के कुल निर्यात का बहुत छोटा हिस्सा है। आंकड़ों पर गौर करें तो भारत के कुल निर्यात का महज 0.83 प्रतिशत पाकिस्तान को जाता है जबकि पाकिस्तान से हमारा आयात कुल आयात का 0.13 प्रतिशत है। तरजीही राष्ट्र का दर्जा छीने जाने से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। गौर करें तो आज की तारीख में पाकिस्तान का व्यापार घाटा अब तक का सबसे अधिक 37.7 अरब रुपए है। विदेशी मुद्रा भंडार कम होकर 10 अरब डाॅलर से नीचे पहुंच चुका है। जून, 2018 तक पाकिस्तान को अपनी सभी देनदारियां चुकाने के लिए तकरीबन 17 अरब डाॅलर की जरुरत थी, जिसे वह जुटा नहीं पाया है। इसी तरह बजटीय घाटा 1.481 लाख करोड़ के पार पहुंच चुका है। स्टाॅक बाजार बुरे दौर से गुजर रहा है। पिछले एक वर्ष में पाकिस्तानी मुद्रा की कीमत लगभग 14.5 प्रतिशत गिर चुकी है। ऐसे में भारत पाकिस्तान से तरजीही राष्ट्र का दर्जा छीनता है तो आर्थिक मोर्चे पर उसे घुटने के बल आना होगा।

दूसरी ओर भारत को पाकिस्तान की आर्थिक रीढ़ पर चोट के साथ-साथ उसे सिंधु जल समझौते के तहत अपने हिस्से का पानी रोककर उसे करारा सबक दिया जा सकता है। इसके लिए भारत को अतिशीध्र पंजाब के शाहपुर कांडी बांध परियोजना, सतलुज-ब्यास की दूसरी लिंक परियोजना और जम्मू-कश्मीर में प्रस्तावित उज्ज बांध परियोजना को पूरा करना होगा। ध्यान देना होगा कि सिंधु दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है और पाकिस्तान सिंचाई एवं अन्य कार्यों में जल के उपयोग के लिए इस पर कई बांध बना रखे हैं। इससे बड़े पैमाने पर बिजली का उत्पादन होता है। गौर करना होगा कि सिंधु जल समझौते के मुताबिक सतलुज, ब्यास और रावी नदी का पानी भारत को मिला है जबकि चेनाव, झेलम और सिंधु नदी का पानी पाकिस्तान के हिस्से में है। इन नदियों के कुल 16.8 करोड़ एकड़-फुट पानी में से भारत को उसके लिए आवंटित तीनों नदियों से 3.3 करोड़ एकड़-फुट पानी मिलता है, जो कुल जल का 20 प्रतिशत है। इसमें से भी भारत अपने हिस्से के करीब 93-94 प्रतिशत पानी का ही उपयोग कर पाता है। शेष पानी बहकर पाकिस्तान में चला जाता है। अगर ये तीन परियोजनाएं पूरी हो जाती हैं तो भारत अपने हिस्से के जल का पूरा उपयोग करने लगेगा और पाकिस्तान को अतिरिक्त जल मिलना मुश्किल हो जाएगा। ध्यान देना होगा कि पाकिस्तान की 2.6 करोड़ एकड़ कृषि भूमि की सिंचाई इन नदियों के जल पर ही निर्भर है। सिंधु जल संधि सद्भावना पर आधारित है और यह भारत की उदार रवैए के कारण ही संभव हुआ है। जानना जरुरी है कि विश्व बैंक की मध्यस्थता से ही 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि को आकार दिया गया। सिंधु जल संधि समझने के लिए दो बातों पर विशेष ध्यान देना होगा। एक, यह कि सिंधु नदियों की व्यवस्था राजनीतिक विभाजन की दृष्टि से नहीं बनायी गयी थी। इसीलिए भौगोलिक दृष्टि से विभाजन के उपरांत पाकिस्तान को 18 मिलियन एकड़ भूमि सिंचाई योग्य मिली थी और भारत को 5 एकड़ मिलियन सिंचाई वाली भूिम उपलब्ध हुई थी। तब सिंधु नदी क्षेत्र में भारत की 20 मिलियन जनसंख्या रहती थी जबकि पाकिस्तान की इस प्रकार की आबादी 22 मिलियन थी। दूसरा, यह कि इस सिंधु नदी क्षेत्र में कुल सात नदियां सम्मिलित थी जिसमें से सिंधु स्वयं पश्चिम में थी तथा काबुल एवं उसकी पांच सहायक नदियां-झेलम, चिनाब, रावी, सतलुज और व्यास पूर्व में स्थित थी। इनमें से काबुल को छोड़ सिंधु, झेलम और चिनाब मुख्य रुप से पाकिस्तान में बहती हैं तथा ये सिंधु क्षेत्र में लगभग 80 फीसद पानी को बहा ले जाती हैं। अगर भारत सिंधु नदी जल समझौते को तोड़ता है तो पाकिस्तान पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस जाएगा। बेहतर होगा कि भारत पाकिस्तान को सबक सीखाने के लिए निर्णायक प्रहार को अंजाम दे।

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