-अरविंद जयतिलक
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जाॅनसन ने वर्चुअल शिखर वार्ता के दौरान 10 वर्षों का महत्वकांक्षी रोडमैप लाॅच कर दोनों देशों के रिश्ते को मिठास से भर दिया है। दोनों प्रधानमंत्रियों ने कहा है कि 2030 तक आपसी संबंधों को रणनीतिक साझेदारी में बदलना उनकी शीर्ष प्राथमिकता में होगा। दोनों नेताओं ने स्वास्थ्य, शिक्षा में सहयोग के साथ मौजूदा द्विपक्षीय कारोबार को दोगुना करने और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर तालमेल बढ़ाने पर सहमति जतायी है। कोविड महामारी में भारत की त्वरित सहायता करने वाले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने भरोसा दिया है कि भारत के पढ़े-लिखे पेशेवरों के लिए उनका दरवाजा अब पहले से ज्यादा खुलेगा। उन्होंने अगले दो वर्षों में 3000 प्रशिक्षित भारतीयों को रोजगार देने की बात कही है। शिखर वार्ता के दौरान दोनों देशों के बीच नौ अहम समझौते हुए हैं जिससे दोनों देशों के आर्थिक कारोबार का नए क्षितिज पर पहुंचना तय है। इन समझौतों में एक महत्वपूर्ण समझौता मुक्त व्यापार समझौता है जिसे लेकर दोनों देश बेहद उत्सुक हैं। इस मसले पर दोनों देशों के उद्योग और वाणिज्य मंत्रालयों के प्रतिनिधि बातचीत कर आगे की राह तय करेंगे। यह समझौता कितना महत्वपूर्ण है इसी से समझा जा सकता है कि गत जनवरी में ब्रिटेन के दक्षिण एशिया मामलों के मंत्री लाॅर्ड तारिक अहमद ने कहा था कि भविष्य में होने वाले मुक्त व्यापार समझौता भारत और ब्र्रिटेन की आर्थिक कारोबार के लिए अहम होगा। उन्होंने स्पष्ट कहा कि हमारा अंतिम लक्ष्य मुक्त व्यापार समझौता को मूर्तरुप देना है। गौरतलब है कि मुक्त व्यापार करार के तहत व्यापार में दो भागीदार देश आपसी व्यापार वाले उत्पादों पर आयात शुल्क में अधिकतम कटौती करते हैं। चूंकि भारत ने हमेशा से ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के देशों के साथ व्यापार के मामले में एक ‘मुख्य द्वार’ के रुप में देखा है ऐसे में मुक्त व्यापार समझौता न केवल ब्रिटेन बल्कि भारत के लिए भी फायदे का सौदा होगा। एक अन्य दूसरा समझौता माइग्रेशन और मोबिलिटी पार्टनरशिप से संबंधित है जो भारत के प्रशिक्षित लोगों को ब्रिटेन जाने की राह को सुगम करेगा। बदलते वैश्विक परिदृश्य में दोनों प्रधानमंत्रियों ने आतंकवाद से निपटने, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी का समर्थन, पर्यावरण, रक्षा उपकरणों व अत्याधुनिक हथियारों का साझा उत्पादन तथा अफगानिस्तान के हालात जैसे अन्य कई मसलों पर गंभीरता से चर्चा की। प्रधानमंत्री मोदी ने भारत में आर्थिक अपराध कर ब्रिटेन में छिपे नीरव मोदी और विजय माल्या के प्रत्यर्पण का भी मसला उठाया। अच्छी बात है कि दोनों देशों के बीच आर्थिक कारोबार बढ़ाने के संकल्प के बीच भारत की 20 भारतीय कंपनियों समेत सबसे बड़ी वैक्सीन बनाने वाली भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया ने ब्रिटेन में 2400 करोड़ रुपए का निवेश करने का एलान किया। इसके तहत वह ब्रिटेन में अपना एक नया बिक्री कार्यालय खोलेगी। निःसंदेह इस कारोबारी पहल से दोनों देशों के आर्थिक भागीदारी को नई ऊंचाई मिलेगी और बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित होगा। उल्लेखनीय है कि भारत दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा बाजार है। आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था का डंका बजने वाला है। एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत वर्ष 2025 तक ब्रिटेन को पछाड़कर फिर दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि वर्ष 2030 तक भारत तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अर्थव्यवस्था के आकार में भारत 2025 में ब्रिटेन से, 2027 में जर्मनी से और 2030 में जापान से आगे निकल जाएगा। संभवतः यहीं वजह है कि ब्र्रिटेन भारत के साथ टेªड डील को लेकर बेहद गंभीर है। वर्चुअल वार्ता से पहले ब्रिटिश पीएम जाॅनसन ने भारत में एक अरब पाउंड यानी दस हजार करोड़ रुपए निवेश करने का एलान किया। उल्लेखनीय है कि दोनों देशों के मध्य व्यापार एवं पूंजी निवेश में तीव्रता आयी है। जहां तक द्विपक्षीय व्यापार का सवाल है तो ब्रिटेन भारत का विश्व में दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी देश बन चुका है। गौरतलब है कि दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार जो 2018-19 में 16.7 अरब डाॅलर, 2019-20 में 15.5 अरब डाॅलर था वह अब बढ़कर 23 अरब डाॅलर यानी 2.35 लाख करोड़ रुपए के पार पहुंच चुका है। इससे दोनों देशों के तकरीबन 5 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। गौर करें तो ब्रिटेन में लगभग 800 से अधिक भारतीय कंपनियां हैं जो आईटी क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। इस संदर्भ में टाटा इंग्लैंड में नौकरियां उपलब्ध कराने वाली सबसे बड़ी भारतीय कंपनी बन चुकी है। भारतीय कंपनियों का विदेशों में कुल निवेश 80 मिलियन अमेरिकी डाॅलर के पार पहुंच गया है। दूसरी ओर ब्रिटेन से भारत के बीपीओ क्षेत्र में आउटसोर्सिंग का काम भी बहुत ज्यादा आ रहा है। आउटसोर्सिंग दोनों देशों के लिए लाभप्रद है। एक ओर यह ब्रिटिश कंपनियों की लागत कम करता है वहीं लाखों शिक्षित भारतीयों के लिए रोजगार का अवसर उपलब्ध कराता है। ब्रिटेन में बड़ी तादाद में अनिवासी भारतीयों की मौजुदगी है। यह संख्या लगभग 2 मिलियन है। भारतीय लोग ब्रिटेन की आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था को गति दे रहे हैं। गौर करें तो पिछले दो दशकों में आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के लिए दोनों देशों ने कई तरह की पहल की है। नतीजा ब्रिटेन में परियोजनाओं की संख्या के मामले में भारत दूसरे सबसे बड़े निवेशकर्ता देश के रुप में उभरा है। दूसरी ओर ब्रिटेन भी वर्तमान भारत में कुल पूंजीनिवेश करने वाले देशों में बढ़त बनाए हुए है। आयात-निर्यात पर नजर डालें तो भारत मुख्य रुप से ब्रिटेन को तैयार माल एवं कृषि एव इससे संबंधित उत्पादों का निर्यात करता है। इसके अतिरिक्त वह अन्य सामान मसलन तैयार वस्त्र, इंजीनियरिंग सामान, चमड़े के वस्त्र व वस्तुएं, रसायन, सोने के आभुषण, जूते-चप्पल, समुद्री उत्पाद, चावल, खेल का सामान, चाय, ग्रेनाइट, जूट, दवाईयां इत्यादि का भी निर्यात करता है। जहां तक आयात का सवाल है तो भारत इंग्लैंड से मुख्यतः पूंजीगत सामान, निर्यात संबंधी वस्तुएं, तैयारशुदा माल, कच्चा माल व इससे संबंधित अन्य सामानों का आयात करता है। गौर करें तो दोनों देश वैश्विक निर्धनता की समाप्ति, वैश्विक संगठनों में सुधार और आतंकवाद के खात्मा के लिए परस्पर मिलकर काम कर रहे हैं। भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने के मामले में पाकिस्तान ब्रिटेन के निशाने पर है। पाकिस्तान पर भारत की एयर स्ट्राइक का ब्रिटेन द्वारा समर्थन कर चुका है। अच्छी बात है कि दोनों देश संयुक्त राष्ट्रª सुरक्षा परिषद में सुधारों पर सहमत हैं, जिससे कि 21 वीं शताब्दी की वास्तविकताओं को अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिबिम्बित किया जा सके। इसके अलावा दोनों देश अफगानिस्तान में स्थायित्व लाने और इजरायल-फिलीस्तीन संघर्ष जैसे अन्य विवादित मसलों के समाधान में भी एक जैसे विचार रखते हैं। उल्लेखनीय है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में प्रगाढ़ता बढ़ी है। प्रधापनमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में ब्रिटेन की यात्रा कर दोनों देशों के संबंधों को एक नई ऊंचाई दी। तब उनकी तीन दिवसीय ब्रिटेन यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच 9 अरब डाॅलर मूल्य के सौदे हुए। इसमें असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर के अलावा वित्त, रक्षा, परमाणु उर्जा, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य एवं साइबर सुरक्षा पर भी सहमति बनी। तब दोनों देशों ने रेलवे रुपया बांड जारी करने के अलावा आतंकवाद के मसले पर समान सहमति जतायी। साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि संयुक्त राष्ट्र संघ आतंकवाद की परिभाषा तय करे। तब इंडिया-यूके सीईओ फोरम में अपनी सरकार की ओर से उठाए गए आर्थिक सुधारों का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रिटिश कंपनियों को भारत के तमाम सेक्टरों में पैसा लगाने के लिए आह्नान किया। अच्छी बात है कि दोनों देश भरोसे की कसौटी पर खरा हैं और कोविड-19 के बुरे दौर में एकदूसरे का हाथ मजबूती से पकड़े हैं।