जलवायु परिवर्तन की वित्तीय मार के लिए नहीं हैं भारतीय बैंक तैयार

संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित नेट-ज़ीरो बैंकिंग एलायंस में 40 देशों के बैंकों को किया गया सदस्य के रूप में सूचीबद्ध, मगर सूची में नहीं है एक भी भारतीय बैंक

जलवायु परिवर्तन का हमारे ऊपर व्यापक असर होता है। और यह नकारात्मक असर सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक भी होता है। भारत जैसे विकासशील देश में एक आम नागरिक के लिए नकारात्मक आर्थिक असर झेलना आसान नहीं होता। इस असर के दर्द को कम करने के लिए एचएम रुख़ करते हैं बैंकों का। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि हमारे बैंक ऐसी किसी स्थिति के लिए संभवतः तैयार नहीं हैं।

दरअसल, क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स नाम के एक थिंक टैंक द्वारा भारत के अग्रणी बैंकों के एक विश्लेषण से पता चलता है कि भारत का बैंकिंग क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के वित्तीय प्रभावों के लिए तैयार नहीं है। “अनप्रिपेयर्ड: इंडियाज़ बिग बैंक्स स्कोर पुअरली ऑन क्लाइमेट चैलेंज” नाम कि इस रिपोर्ट में देश के 34 सबसे बड़े बैंकों को कई मानदंडों पर रैंक किया गया है। इसमें पाया गया है कि कुछ उदाहरणों को छोड़कर, अधिकांश बैंकों ने जलवायु परिवर्तन को उनकी व्यावसायिक रणनीतियों में शामिल करना शुरू भी नहीं किया है।

यह विश्लेषण इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की इम्पैक्ट, एडाप्टेशन एंड वल्नेरेबिलिटी (प्रभाव, एडाप्टेशन और भेद्यता) पर रिपोर्ट के ठीक बाद आता है। IPCC कि इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि भारत समुद्र के स्तर में वृद्धि और नदी के बाढ़, असहनीय गर्मी के कारण श्रम क्षमता में कमी, फसल और मछली उत्पादन में गिरावट और पानी की कमी से गंभीर आर्थिक खतरों का सामना कर रहा है।

कई अध्ययनों ने जलवायु परिवर्तन से भारतीय आर्थिक विकास और GDP (जीडीपी) पर प्रभाव का अनुमान लगाया है। विश्व बैंक का अनुमान है कि 2050 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 2.8% वार्षिक गिरावट होगी। डेलॉइट इकोनॉमिक्स इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि 3 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि (वर्तमान में जिस राह पर ग्रह है) के अनुरूप उत्सर्जन मार्ग से अब से 2050 तक सकल घरेलू उत्पाद का 3% वार्षिक नुकसान होगा और 2070 तक 35 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिक क्षमता खो दी जाएगी।

क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स के CEO (सीईओ) और रिपोर्ट के लेखकों में से एक आशीष फर्नांडीस कहते हैं, “यहां तक कि सबसे बेहतरीन जलवायु परिदृश्य में भी, भारतीय अर्थव्यवस्था पर जलवायु संकट का प्रभाव दूरगामी होगा। लेकिन हमारे विश्लेषण से संकेत मिलता है कि बैंकिंग क्षेत्र ऐसी अर्थव्यवस्था के प्रति एडाप्ट होने के लिए तैयार नहीं है, और आवश्यक पैमाने पर वित्त एडाप्टेशन और मिटिगेशन प्रयासों के लिए कदम नहीं उठा रहा है। अच्छी खबर यह है कि कुछ बैंक सही दिशा में कदम उठाने लगे हैं।”

YES (यस) बैंक, IndusInd (इंडसइंड) बैंक, HDFC (एचडीएफसी) बैंक और Axis (एक्सिस) बैंक कुल मिलाकर शीर्ष रैंकिंग के बैंक हैं और उन्होंने जलवायु मुद्दे पर विचार करना शुरू कर दिया है। सार्वजनिक क्षेत्र की दिग्गज SBI (एसबीआई) दूर छठे स्थान पर है। सामान्य तौर पर, रैंकिंग से पता चलता है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, अपने प्रभाव और प्रभुत्व के बावजूद, निजी क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों से पीछे हैं।

क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स द्वारा निर्धारित प्रमुख निष्कर्षों कुछ इस प्रकार हैं:

34 बैंकों में से 29 ने अधिकतम 20 अंकों में से 10 से कम स्कोर किये हैं;

किसी भी बैंक ने 1, 2 और 3 के दायरे में सभी उत्सर्जन को कवर करते हुए एक शुद्ध शून्य वर्ष निर्धारित नहीं किया है;

34 में से 26 बैंकों ने सबसे बुनियादी पर्यावरणीय संकेतकों का खुलासा तक नहीं किया है, अर्थात, दायरा 1 और 2 ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन;

केवल 7 बैंकों की नीतियां हैं जो वनों की कटाई, मानवाधिकारों के उल्लंघन, और जैव विविधता के नुकसान आदि में विश्वसनीय रूप से शामिल संस्थाओं को उधार/सेवाएं का वर्जन करती हैं। केवल 2 बैंकों ने कोयला खदानों और कोयला बिजली संयंत्रों के लिए नए वित्तपोषण का वर्जन किया है;

किसी भी बैंक ने अपने पोर्टफोलियो के लचीलेपन का आकलन करने के लिए जलवायु परिदृश्य विश्लेषण या स्ट्रेस (दबाव) परीक्षण नहीं किया है और 34 में से केवल 3 बैंकों ने ऐसा करने के लिए आंतरिक क्षमता का निर्माण शुरू किया है।

सकारात्मक पक्ष पर, 27 बैंकों ने जलवायु परिवर्तन मिटिगेशन/एडाप्टेशन के लिए हरित ऋण/बांड/वित्तपोषण जारी किया है।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अभी तक अनुसूचित और वाणिज्यिक बैंकों के लिए इन जोखिमों के आकलन या प्रबंधन पर कोई जलवायु संबंधी दिशानिर्देश जारी नहीं किए हैं, हालांकि 2022 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, बैंकिंग नियामक बैंकों की जलवायु जोखिमों के प्रबंधन की प्रगति का आकलन करने की प्रक्रिया में है।

अध्ययन के प्रमुख लेखक सागर असापुर कहते हैं, “34 में से केवल 8 बैंकों ने आंशिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की सूचना दी और ये 500,000 से अधिक यात्री वाहनों से एक वर्ष के उत्सर्जन के बराबर थे। यदि सभी बैंकों ने अपने परिचालन और निवेश उत्सर्जन का खुलासा किया होता तो ये संख्या काफी अधिक होती। जब तक कि भारतीय बैंकिंग क्षेत्र जीवाश्म ईंधन के वित्तपोषण से दूर एनेरजी ट्रांज़िशन की एक योजना शुरू नहीं करता, हम फंसे हुए, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों और अधिक गंभीर जलवायु संकट के दोहरे खतरे का सामना करते रहेंगे।

फर्नांडीस आगे बताते हैं, “विश्व स्तर पर, केंद्रीय बैंक जलवायु के मुद्दे पर जागरूक हो रहे हैं। वैश्विक स्तर पर 68 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की संपत्ति का प्रतिनिधित्व करने वाले 106 से अधिक बैंकों ने 2050 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता घोषित की है। ध्यान रहे कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित नेट-जीरो बैंकिंग एलायंस में 40 देशों के बैंकों को सदस्य के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, लेकिन भारत का एक भी बैंक नहीं है। यह सुनिश्चित करने में RBI (आरबीआई) की महत्वपूर्ण भूमिका है कि भारतीय वाणिज्यिक बैंक जलवायु परिवर्तन को प्रणालीगत आर्थिक खतरे के रूप में, जैसा कि ये है, मानते हैं।”

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