कुछ दिनों पूर्व पाकिस्तान के डॉन अखबार ने भारत के मुस्लिमों के विषय में एक लेख प्रकाशित किया था जिसका मजमून भाजपा की ऒर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की दावेदारी से था| अखबार लिखता है कि भारत की मुस्लिम आबादी नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने को लेकर आशंकित और भयाक्रांत है| अखबार के अनुसार यदि मोदी भारत के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित करते हैं तो देश के मुस्लिमों का जीना दूभर हो सकता है| पाकिस्तान के अखबार का ऐसा सोचना किन निष्कर्षों पर आधारित था यह तो वे ही जाने पर क्या पड़ोसी देश की आतंरिक राजनीति में अकारण ही भ्रमजाल उत्पन्न करना स्वस्थ पत्रकारिता है? कहा भी जाता है कि दूसरों पर अंगुली उठाने से पहले अपने गिरेबां में झांक लेना चाहिए| तब क्या पाकिस्तान के पत्रकारों को उनके देश में मुस्लिमों की समस्याएं दिखाई नहीं पड़तीं? क्या पाकिस्तान का मुसलमान खुश है? कदापि नहीं| एक अस्थिर देश में क्या मुस्लिम, क्या हिन्दू, क्या सिख और क्या ईसाई, कोई वर्ग खुश नहीं रह सकता| फिर पाकिस्तान के तथाकथित सेक्युलर पत्रकारों को अपने देश के मुस्लिमों की बजाए भारत के मुस्लिमों की इतनी फ़िक्र क्यों? भारत का मुस्लिम समाज अपने पड़ोसी देशों के मुस्लिम समुदायों से अधिक खुशहाल और वतनपरस्त है| पाकिस्तान के पत्रकारों का यह कृत्य किसी भी मायने में पत्रकारिता के मापदंडों पर खरा नहीं उतरता| पर क्या इस पूरे घटनाक्रम के लिए पाकिस्तान के पत्रकारों को दोष देना सही है? उनकी निंदा तो की ही जानी चाहिए पर क्या इस परिस्थिति के लिए हमारे देश के कर्णधार जिम्मेदार नहीं हैं? बिलकुल हैं| राजनेताओं ने जिस तरह मुस्लिम समुदाय को मात्र वोट बैंक की राजनीति तक सीमित कर रखा है, वह दुनिया को भारत में अस्थिरता और वैमनस्यता बढ़ाने में मदद करता है| देश की सबसे पुरानी पार्टी का कथित दर्जा प्राप्त राजनीतिक दल से लेकर जेपी आंदोलन की उपज के नेताओं तक ने मुस्लिम समुदाय को वोट बैंक के भंवर में फंसाकर उनकी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक उन्नति को अवरुद्ध कर दिया है| आजादी के बाद से लेकर अब तक उन्हें उनका हक़ पाने के लिए राजनीतिक दलों की ऒर ताकना पड़ता है| उनकी इस स्थिति को दुनिया भर का मीडिया चटकारे ले-लेकर पेश करता है| फिर दुनिया भर का मीडिया ही क्यों, भारत में भी ऐसे तत्वों की कमी नहीं है जो मुस्लिम समुदाय की उलट छवि का निर्धारण कर उसे पेश करते हैं| यह सही है कि मुस्लिम समुदाय किसी भी राजनीतिक दल को एकमुश्त वोट देता है किन्तु यह स्थिति कई दशकों पूर्व थी| अब मुस्लिम समुदाय अपने हितों और ताकत को समझता है अतः किसी बहकावे में न आते हुए वह भी सोच-समझकर वोट देता है| पर शायद कुछ नेता अभी भी मुस्लिम समुदाय को अपने हिसाब से हांकने में लगे हैं|
हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली की ऐतिहासिक जामा मस्जिद से शाही इमाम सैय्यद बुखारी से मुलाक़ात कर मुस्लिम समुदाय से कांग्रेस के लिए समर्थन मांगते हुए यह हिदायत दी थी कि कहीं मुस्लिम वोट इधर-उधर न हो जाएं? देश के मुस्लिम समुदाय को आरएसएस और भाजपा का छद्म भय दिखाकार मुस्लिम वोटों को अपने पाले में करने का षड्यंत्र यूं भी काफी पुराना है, किन्तु सोनिया की हालिया अपील इस डर का अतिरेक ही है| यह भी काबिलेगौर है कि सोनिया की सास और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने भी इस तरह की अपील जारी कर कांग्रेस के लिए समर्थन मांगा था| पर वह दौर और था, यह दौर और है| वर्तमान में मुस्लिम समुदाय को आरएसएस का भय दिखाकर उनके वोट पाना असंभव ही है| मुस्लिम समुदाय भी अब यह समझ चुका है कि जिन-जिन ने उसे आरएसएस का सर्वाधिक भय दिखाया है, उसकी ने उसे जमकर छला है| फिर चाहे वह कांग्रेस हो या समाजवादी पार्टी, तृणमूल हो या वाम दल, माया हों या जयललिता| कमोबेश सभी का एजेंडा मुस्लिम समुदाय के एकमुश्त वोट हासिल करने का रहा है और उनकी राजनीति में आज भी इसी की बू आती है| इतिहास गवाह है कि कांग्रेस ने हमेशा मुस्लिम समुदाय का सियासी इस्तेमाल ही किया है| कांग्रेस को विशुद्ध रूप से ब्राह्मणों की पार्टी कहा जाता रहा है मगर कांग्रेस में अल्पसंख्यक राजनीति का चलन राजीव गाँधी के जमाने में शुरू हुआ| मुस्लिम समुदाय के जिस एकमुश्त वोट-बैंक से सत्ता पाने का ख्वाब कांग्रेस देख रही है, उसके नेता यह बताने का साहस कर पाएंगे कि उनकी पार्टी ने कितने मुस्लिम नेताओं के हाथों देश की कमान सौंपी? और यदि नहीं तो क्यूं? कारण स्पष्ट है- कांग्रेस ने कभी किसी मुस्लिम को इस लायक ही नहीं समझा कि वह नेतृत्व संभाले| यह कांग्रेस की रणनीति का अहम हिस्सा रहा है| हालांकि मुस्लिम समुदाय भी अब कांग्रेस और उस जैसे दलों की दोहरी नीति को समझ चुका है तभी वह समझदारी से मतदान करने लगा है| पर उसकी यह समझदारी तब सवालिया घेरे में आ जाती है जब पाकिस्तान जैसे मुल्क में बैठे पत्रकार उसके भविष्य का नीति-निर्धारण करने लगते हैं| और इन सबके लिए वे तत्व अधिक जिम्मेदार हैं जो मुस्लिम समुदाय का यहां, अपने देश में दोहन करते हैं।