भारतीय मंगल अभियान की मंजिल तय

0
201

प्रमोद भार्गव

आखिरकार 66.60 करोड़ किलोमीटर की लंबी यात्रा के

बीच आने वाली सभी बाधाओं को दरकिनार कर भारतीय मंगलयान का मंगल की धरती पर पहुंचना तय है। क्योंकि यान के सभी कल-पूर्जे वैज्ञानिकों द्वारा किए परीक्षण के बाद सही काम करते पाए गए हैं। इसके मुख्य इंजन को दस महीने बाद चालू करके देखा गया,जो बदस्तूर काम करते पाया गया। अब मंगल के गुरूत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश के बाद इस अंतरिक्ष यान को बुधवार की सुबह कंप्युटर द्वारा संचालित नियंत्रण प्रणाली से मंगल की कक्षा में स्थापित कर दिया जाएगा। यह स्थान लाल गृह मंगल से करीब 5.4 लाख किमी दूर है। मंगल पर जीवन की खोज के लिए इस यान को 1 नबंबर 2013 को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से छोड़ा गया था। यह यान पीएएलवी-सी-25 राॅकेट की पीठ पर सवार होकर अपनी मंजिल तय कर रहा है। यदि सब कुशल-मंगल रहा तो यह यान मंगल की कक्षा के बारे में पहली जानकारी बुधवार दोपहर 12 से 1 बजे के बीच दे देगा और रात 9 से 10 के बीच मंगल की धरती की पहली तस्वीर भी भेज देगा।

ऐसा नहीं है कि भारत का नई धरती की खोज में यह पहला कदम है। इसी हरिकोटा में 13 जुलाई 1988 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों ने पहली बार इस दिशा में कदम बढ़ाया था। लेकिन प्रक्षेपण यान से छूटे धुंए के गुब्बारे का अंधेरा छटा भी नहीं था कि मात्र साढ़े तीन मिनट बाद एकाएक यान का अंतरिक्ष नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट गया और यह प्रक्षेपण यान बंगाल की खाड़ी में जा गिरा। चंद पलों में वैज्ञानिकों के स्वप्न चकनाचूर हो गए। लेकिन अब इसरो किसी दूसरे ग्रह यानी मंगल पर यान भेजने की दिशा में सफल होता दिखाई दे रहा है। यह सफलता अभी तक रुस, अमेरिका और योरोपीय संघ के ही खाते में दर्ज है। जापान और चीन इस मुहिम में नाकामी के शिकार हो चुके हैं। जाहिर है, भारत यदि अपने लक्ष्य में सफल हो जाता है तो चौथे देश की श्रेणी में आ जाएगा। लेकिन मंगल ग्रह पर यान उतारना एक कठिन चुनौती होने के साथ, बड़ी जोखिम भी है। अब तक कुल जमा 51 मंगल यान पूरी दुनिया में छोड़े गए हैं, जिनमें से विजयश्री केवल 20 अभियानों को ही मिली है।

इस लिहाज से इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन की इस राय से सहज ही सहमत हुआ जा सकता है कि इससे देश की तकनीकी क्षमता के प्रति भरोसा और अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के आत्मविश्वास को अभूतपूर्व बल प्राप्त होगा। राधाकृष्णन और इसरो के ही पूर्व अध्यक्ष व वैज्ञानिक कस्तूरीरंगन ने इस अभियान का उद्देश्य निर्धारित करते हुए दावा किया है कि मंगल की धरती पर मानवीय जीवन की संभावनाएं तलाशी जाएंगी। क्योंकि ब्रह्रमाण्ड में पृथ्वी के अलावा ज्यादातर समानताओं वाला कोई दूसरा ग्रह है, तो वह मंगल ही है। यह संभावना तब पूरी होगी, जब मंगल पर पानी और मीथेन गैसों की उपलब्धता निश्चित हो जाएगी। बहरहाल मंगल पर जीवन की तलाश पूरी होने से पहले ही उत्साही 8000 भारतीयों ने अपनी जगह आरक्षित करा ली है। दरअसल, वैज्ञानिकों ने उम्मीद जताई है कि 2023 तक मंगल की धरती पर इंसानी बस्तियों में मंगल के वातावरण के अनुरुप घर बनाने का काम जापान कर लेगा। हालांकि फिलहाल ये दावे कल्पना की कोरी उड़ान लगते है।

किंतु इन कल्पनाओं के उलट एक दूसरी तस्वीर भी प्रस्तुत की गई है। इसरो के ही पूर्व प्रमुख रहे जी माधवन नायर ने दावा किया है कि मंगल पर जीवन की संभावना तलाशने की बात न केवल बेमतलब है, बल्कि मूर्ख बनाने जैसी है। क्योंकि मंगल यान के साथ ‘मीथेन सेंसर’ नामक जो उपकरण भेजा गया है, उसकी क्षमता नगण्य है। इसके जरिए मंगल की धरती पर जीवन के लक्षण नहीं खोजे जा सकते हैं, कयोंकि इस लघु उपकरण से जीवन की संभावना के लिए जरुरी मीथेन गैस खोजने की कोशिश करेंगे तो निराशा ही हाथ लगेगी। यह सेंसर गैस की उपस्थिति को तलाशने में सक्षम नहीं है। उन्होंने अपने मत के समर्थन में कहा कि मार्स रोवर के आकलन के आधार पर नासा सार्वजनिक तौर से कह चुका है कि मंगल पर जीवन की रत्ती भर भी उम्मीद नहीं है। इस शोध के बाद जब कोई जीवन तलाशने की बात करता है, तो वह देश को मूर्ख ही बना रहा है।’

डाॅ माधवन के इसी बयान के आधार पर यह सवाल उठा है कि आखिरकार 460 करोड़ रुपए की धनराशि खर्च करके इस मंहगे अभियान से क्या हासिल होने वाला है ? इससे अच्छा तो यह धन शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़कों का ढांचा खड़ा करने में किया जाता। यहां गौरतलब है कि विकास चतुरमुखी और हर क्षेत्र में होना चाहिए, तभी कोई देश बहुउद्देशीय सफलताएं हासिल कर सकता है। सवाल उठाया जा सकता है कि राश्टमंडल खेलों के आयोजन में हमने 450 करोड़ रुपए खर्च किए, आखिर इन खेलों से हमें क्या हासिल हुआ ? इसमें भी एक बड़ी धनराशि भ्रष्टाचार के जरिए कालाधन के रुप में विदेशी बैंकांे में पहुंचा दी गई।

कोई भी बड़ा मिशन शुरु होता है, तो उस पर व्यावहारिक सवाल खड़े करना बुरी बात नहीं है, लेकिन अनर्गल सवाल उठाना भी ठीक नहीं है। यदि मंगल पर जीवन संभव नहीं भी होता है तो इस यान के सफल प्रक्षेपण होने पर मौसम व उपग्रह संबंधी यंत्र बनाने में सहायता मिलेगी। पृथ्वी की सतह और समुद्र में होने वाले परिवर्तनों की पड़ताल करने में मदद मिलेगी। ऐसा इसलिए संभव हो सकेगा क्योंकि मंगलयान की पीठ पर सौर उर्जा शक्ति से संपन्न 15 किलोग्राम के पांच उपकरण लदे है। जो धरती से संकेत मिलते ही सक्रिय हो जाएंगे। अति संवेदनशील कैमरों के अलावा जो पांच उपकरण हैं,उनमें मीथेन संवेदक,ऊष्मा संवेदक,अवरक्त वर्ण विश्लेशक,परमाणविक हाइड्रोजन संवेदक और वायु विश्लेशक यंत्र शामिल हैं। 760 वाट बिजली उत्पन्न करने वाले सौर पेनल भी लगे हैं। ये यंत्र मंगल पर मौसम,पानी,मिट्टी के प्रकार और मीथेन गैस का पता लगाएंगे। मीथेन के अवशेष मिलते है तभी मंगल पर जीवन की उम्मीद बढ़ेगी। क्योंकि मीथेन जीव-जंतु के मल-विर्सजन से पैदा होती है। मवेशियों व वन्य प्राणियों के उदर में सक्रिय जीवाणु मीथेन पैदा करते हैं। मीथेन के मिलने पर ही यह तय होगा कि कभी मंगल पर जीवन था। यदि कालांतर ये जानकारियां सटीक मिलने लग जाएंगी तो अतिवृष्टि,अल्पवृष्टि,भू-स्खलन,भूकंप,समुद्री तूफान और मानसून की भविष्यवाणियां भी विश्वसनीय साबित होने लग जाएंगी। इससे हमारी खेती में सुधार होगा।

सफलता-असफलता की संभावनाओं व आशंकाओं के बावजूद किसी भी देश को इस बात पर गौर करने की जरुरत है कि नए अविष्कार और अनुसंधानों का महत्व तात्कालिक लाभ से जुड़ा नहीं होने की बजाय, दीर्घकालिक लाभ से जुड़ा होता है। ब्रहमाण्ड के खगोलीय रहस्यों को खंगालने की पहली शुरुआतें भारतीय उपनिश्दों में मिलती हैं। और इनकी उपलब्धियां रामायण एवं महाभारतकाल के युद्धों में देखने में आती हैं। राॅकेट, मिसाइलों और वायुयानों के उपयोग इन्हीं कालखण्डों में किए गए। ग्रहों पर मानव बस्तियों के होने और उन पर आवाजाही के ब्यौरे भी रामायण व महाभारत में दर्ज हैं। अंतरिक्ष में सर्वसुविधायुक्त महल बनाने का भी उल्लेख पुराणों में भी है। जाहिर है, ये ब्यौरे कवि की कोरी कल्पना नहीं हैं, एक जमाने में ये हकीकत थे। हजारों साल के अंतराल के बाद यह पहला अवसर है, जब भारत के वैज्ञानिक पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र से बाहर किसी खगोलीय पिंड, मसलन मंगलग्रह की नई धरती पर जीवन की तलाश में निकले हैं। यहां किए अध्ययन जीव जगत के लिए कितने लाभदायी साबित होते हैं, यह तो समय तय करेगा, फिलहाल इन अंतरिक्ष अभियानों को प्रोत्साहित करने की जरुरत है, जिससे भारत वैज्ञानिक उपलब्धियां हासिल करने में समर्थ साबित हो सके।

mars

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

15,470 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress