भारतीय मुसलमान नहीं बनेगा विश्व के कट्टरपंथी मुसलमानों की कठपुतली

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वर्तमान समय में भारत में असहिष्णुता को लेकर काफी चर्चा हो रही है। असहिष्णुता के मामले में सच्चाई क्या है, यह एक बहस का विषय है। इस संबंध में तमाम लोग अपने-अपने नजरिये से चर्चा करने में लगे हैं किंतु जहां तक भारतीय मुसलमानों की बात है तो वे अच्छी तरह जानते एवं समझते हैं कि सच्चाई क्या है? भारत का पूरंा मुस्लिम समाज यह कहता है कि मुसलमानों के लिए भारत से सुरक्षित स्थान पूरी दुनिया में कहीं भी नहीं है। हो सकता है कि चंद गिने-चुने लोगों को भारत सुरक्षित नहीं लगता हो किंतु बहुसंख्य मुस्लिम समाज भारत को अपने लिए दुनिया में सबसे अधिक सकून वाला देश मानता है, विशेषकर उन प्रदेशों में मुस्लिम समाज के लिए स्थितियां और अनुकूल हैं जहां भाजपा एवं उसकी समर्थित सरकारें हैं क्योंकि वे यह बखूबी जानते-समझते हैं कि भाजपा उन्हें खुश करने एवं अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए कुछ भी करेगी। वैसे भी देखा जाये तो यह सर्वविदित है कि किसी भी घटना को आधार बनाकर भाजपा को हमेशा सांप्रदायिक घोषित करने का प्रयास निरंतर होता रहता है जबकि बहुसंख्य मुस्लिम समाज चाहता है कि बार-बार भाजपा को बेवजह सांप्रदायिकता के लपेटे में न लिया जाये। भारतीय जनता पार्टी भी इस बात को लेकर हमेशा डरती रहती है कि मुस्लिम समाज कहीं उससे नाराज न हो जाये।
यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार एवं उसके नेताओं के बयानों, नीतियों एवं योजनाओं में अल्पसंख्यक समाज को खुश करने के प्रयास देखने को मिलते रहते हैं। इस कारण कभी-कभी देखने को मिलता है कि बहुसंख्यक समाज की उपेक्षा भी हो जाती है। बहुसंख्यक समाज के हितों की कीमत पर भाजपा एवं उसकी सरकारें अल्पसंख्यक समाज को संतुष्ट करने की नीति पर चलती रहती हैं। इन्हीं सब कारणाों से भारतीय जनता पार्टी एवं उसके द्वारा संचालित सरकारों का दोहन एवं शोषण भी होता रहता है। अल्पसंख्यक समाज को खुश करने के लिए भाजपा नेता एवं सरकारें शोषित भी हो रही हैं। इन सब कार्यों के बावजूद जब कभी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई घटना होती है तो देश के प्रगतिशील एवं कट्टरपंथी लोग इस भाव का प्रकटीकरण कर ही देते हैं कि वे भारत में निहायत ही असुरक्षित हैं जबकि वे यह अच्छी तरह जानते-समझते हैं कि पूरी दुनिया में भारत से सुरक्षित स्थान उनके लिए कहीं भी नहीं है। उसमें भी सबसे प्रमुख बात यह है कि जब भाजपा का शासन होता है तो अल्पसंख्यक समाज के लिए स्वर्णिम काल जैसा होता है। संभवतः यही कारण है कि भारत में पाकिस्तान एवं आईएस का झंडा लहराने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। इससे अधिक सुरक्षा की गारंटी और क्या हो सकती है?
यह भी संभव है कि कुछ लोग सेकुलर ताकतों के सुर में सुर मिलाने के लिए, अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए या फिर अपने आप को हाईलाईट करने के लिए कहते हों कि भारत उनके लिए कितना असुरक्षित है और यहां असहिष्णुता चरम पर है किंतु सच्चाई से वे पूरी तरह वाकिफ हैं। आज नहीं तो कल सच्चाई पूरी दुनिया के समक्ष आकर रहेगी। असुरक्षित होने का बयान देने की जो होड़-सी लगी है, उसका भी पटाक्षेप होकर ही रहेगा।
आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रवादी मुसलमानों के साथ मिलकर इस संबंध में गहन चिंतन करना होगा और अल्पसंख्यक समाज के बीच जो भी ताकतें असंतोष पैदा करने में लगी हैं, उन्हें बेनकाब करना होगा, अन्यथा अराजकता का वातावरण निर्मित करने में तथाकथित सेकुलर ताकतें कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगी। इसके लिए भारतीय जनता पार्टी एवं मुस्लिम समाज दोनों को सतर्क रहना होगा। दादरी कांड पर आजम खान संयुक्त राष्ट्र संघ को पत्रा लिखते हैं तो आमिर खान को देश में डर लगता है जबकि मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि देश का अधिकांश मुस्लिम समाज ऐसे लोगों के विचारों से इत्तफाक नहीं रखता। जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के झंडे लहराये जाते हैं, आईएस की गतिविधियां दस्तक दे रही हैं, हिन्दुस्तानी युवकों को आईएस में खींचने की कोशिशें जारी हैं किंतु सब कुछ जानते हुए भी भाजपा एवं उसकी सरकारें ऐसे अराजक तत्वों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से इसलिए कतराती हैं कि असहिष्णुता एवं सांप्रदायिकता पर बहस तेज हो जायेगी। देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों, नेताओं एवं बुद्धिजीवियों को अच्छी तरह पता है कि भारतीय मुसलमान ऐसा नहीं चाहता है और इस प्रकार की स्थितियों को रोकने में हमेशा प्रयासरत भी रहता है।
देश के चंद कट्टरपंथी एवं विश्व के चरमपंथी हमेशा इस प्रयास में लगे रहते हैं कि भाजपा का भय दिखाकर किसी भी सूरत में भारत के मुसलमानों को उत्तेजित किया जाये। अब वक्त आ गया है कि सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता पर गंभीरता से विचार किया जाये।
हमारे देश के कट्टरपंथियों को लगता है कि सांप्रदायिकता के नाम पर भारतीय मुसलमानों को उत्तेजित एवं आक्रोशित किया जा सकता है। उनको बहला-फुसलाकर उनका इस्तेमाल किया जा सकता है। निरंतर इस प्रकार का प्रयास होते रहने के कारण समाज में चंद लोग गेहूं में धुन की तरह काम करते रहते हैं। हो सकता है कि कुछ लोगों की दाल-रोटी इसी राह पर चलते हुए ही संभव है, किंतु यह सब कब तक चलेगा? इस पर बेहद गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
जो भी लोग सांप्रदायिकता का भय दिखाकर उसका बेजा फायदा उठाने की फिराक में हैं, सच्चाई सामने आने पर उन्हें बेनकाब होना पड़ेगा। अमेरिका में हवाई अड्डों पर दुनिया भर के तमाम हस्तियों के कपड़ें उतरवाकर तलाशी ली जाती है तो वहां असहिष्णुता नजर नहीं आती है। कोई भी घटना होने पर अल्पसंख्यक समाज के साथ अमेरिका एवं यूरोपीय देशों में जो व्यवहार किया जाता है उसके खिलाफ कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। पेरिस में आतंकी हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि मुस्लिम समाज के धार्मिक नेता आतंकवाद एवं आतंकी घटनाओं के खिलाफ प्रतिक्रिया देने एवं उसकी निंदा करने में कोताही बरतते हैं किंतु ओबामा के बयान पर प्रतिक्रियाएं नहीं आ रही हैं। कांग्रेस नेता डॉ. शकील अहमद का बयान आता है कि अंडर वर्ल्ड डॉन छोटा राजन एवं उल्फा प्रमुख अनूप चेतिया यदि मुसलमान होते तो उनके साथ न जाने कैसा व्यवहार किया जाता? डॉ. शकील अहमद को यह गंभीरता से विचार करना चाहिए कि क्या अमेरिका एवं यूरोपीय देशों में कोई आईएस के झंडे लहराकर खुलेआम धूम सकता है। आखिर अब कितनी आजादी चाहिए? पेरिस की घटना पर आजम खान कहते हैं कि यदि यह ऐक्शन का रिएक्शन है तो इस बात पर विचार करना चाहिए।
देश के जो तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल हैं, क्या वे यह बताने की कोशिश करेंगे कि भाजपा के शासन के पहले भारत में दंगे नहीं होते थे। यदि होते थे तो दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती थी। यदि कहीं कोई दंगा होता है तो क्या उसमें एक ही विशेष समुदाय के लोगों की जान जाती है। कश्मीर में बाढ़ आई तो प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी ने जिस तीव्रता एवं तनमयता से काम किया, उससे उनकी पूरी दुनिया में तारीफ हुई। राज्य सरकार जो कुछ भी चाहती थी, उसे केन्द्र सरकार ने पूरा करने का प्रयास किया। जम्मू-कश्मीर में जिस दल को तथाकथित सेकुलरवादी अलगाववादियों का समर्थक मानते हैं, राज्य के विकास के लिए भाजपा ने उस दल के साथ मिलकर सरकार बनाई। आखिर इससे अधिक भाजपा और कौन-सी अग्नि परीक्षा दे सकती है?
यदि यह मान लिया जाये कि भाजपा वास्तविक रूप से सही को सही और गलत को गलत बोलने की स्थिति में नहीं है तो और दल एवं देश के बुद्धिजीवी क्या कर रहे हैं? संगीतकार ए.आर. रहमान के खिलाफ फतवा जारी किया गया तो तब क्यों नहीं कहा गया कि लोकतंत्रा में सबको अपनी बात कहने का हक है। फतवा जारी करने वालों को ए.आर. रहमान से बात करनी चाहिए। आखिर उस समय सत्य वचन बोलने वाले कहां चले गये थे?
भारतीय राजनीति एवं समाज में इस प्रकार के जो दोहरे मापदंड अपनाये जा रहे हैं, यह देश के लिए ठीक नहीं है। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यदि इस प्रकार के रवैये पर तत्काल रोक नहीं लगी तो अराजकता का वातावरण निर्मित होने से कोई रोक नहीं सकता। भारतीय जनता पार्टी की बात की जाये तो यदि वह इस विषय पर बोलेगी तो उसे सांप्रदायिक घोषित कर दिया जायेगा। मंुबई में ताज होटल पर हमले के समय जिन लोगों को कोई भय नहीं महसूस हुआ था, अचानक उनके मन में खौफ कैसे पैदा हो गया? अब वे अचानक अपने आप को क्यों इतना असुरक्षित महसूस करने लगे? क्या भाजपा आतंकी संगठनों से अधिक खतरनाक है? सांप्रदायिकता के अभिशाप से मुक्त होने के लिए भाजपा एवं उसकी सरकारें सच्चाई से कब तक मुंह मोड़ती रहेंगी? देश के मुस्लिम समाज को चाहिए कि वे चंद स्वार्थी तत्वों के मंसूबों को नाकाम करने के लिए उनकी असली औकात बतायें। पेरिस हमले के बाद जिस प्रकार देश के तमाम मुस्लिम संगठनों, बुद्धिजीवियों, धार्मिक गुरुओं ने आतंकवाद एवं आतंकी संगठनों की निंदा की एवं उनके खिलाफ प्रदर्शन किया। इससे कट्टरपंथी तत्वों को यह समझ लेना चाहिए कि वे अपने मंसूबों में किसी भी कीमत पर कामयाब नहीं हो सकते।
कट्टरपंथी तत्व चाहे जितना भी प्रयास कर लें, किंतु इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि भारत का मुसलमान विश्व के कट्टरपंथी मुसलमानों के हाथों की कठपुतली नहीं बनेगा। इसके लिए देश के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी बनती है कि राष्ट्र की एकता एवं अखंडता के लिए काम करे क्योंकि अराजकता का माहौल उत्पन्न होनेे पर सबसे अधिक कष्ट आम आदमी को ही उठाना पड़ता है। यह भी अपने आप में सर्वविदित है कि देश सुरक्षित रहेगा तो हम सभी सुरक्षित रहेंगे तो आइये हम सभी मिलकर राष्ट्र को और अधिक सुरक्षित और मजबूत बनाने के लिए काम करें।

  • अरूण कुमार जैन

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