भारत की राज्यसभा स्टेट्स सिम्बल या थके-हारे लोगों का सदन

डा. राधेश्याम द्विवेदी
संवैधानिक व्यवस्था:- भारत की संसद का निर्माण राज्यसभा, लोकसभा और राष्ट्रपति से मिलकर होता है। राज्यसभा को ऊपरी सदन और लोकसभा को निम्न सदन भी कहा जाता है। राज्यसभा के सदस्यों के द्वारा अपना कोई अध्यक्ष नही चुना जाता है, अपितु भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। वही राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 80 में राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है, जिनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्देशित किए जाते हैं और 238 सदस्य राज्यों के और संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं। तथापि, राज्य सभा के सदस्यों की वर्तमान संख्या 245 है, जिनमें से 233 सदस्य राज्यों और संघ राज्यक्षेत्र दिल्ली तथा पुडुचेरी के प्रतिनिधि हैं और 12 राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्देशित हैं। राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्देशित किए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य सभा ने रचनात्मक और प्रभावी भूमिका निभाई है। विधायी क्षेत्र और सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के मामले में इसका कार्य-निष्पादन काफी अहम रहा है। वस्तुत: राज्य सभा ने संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक लोक सभा के साथ सहयोग की भावना से कार्य किया है। राज्य सभा ने जल्दबाजी में कानून पारित नहीं किया है और संघीय सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करते हुए एक आदर्श सभा की तरह कार्य किया है। संघीय सभा होने के नाते इसने देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने का कार्य किया है और संसदीय लोकतंत्र में लोगों की आस्था बढ़ाई है।
विक्षिप्त लोकतंत्र:- भारत की राज्यसभा का प्राविधान तो इसलिए किया गया था कि इसमें अनुभवी वयोवृद्घ, राष्ट्रनीति, कुशल, राजर्षि लोगों को स्थान दिया जाएगा। जिनके राजनीतिक और सामाजिक ज्ञान का लाभ प्राप्त करके उनके परामर्श को राष्ट्र के हित में ग्रहण किया जाएगा। इसके लिए जनसेवी और विद्वान लोगों को चुना जाता था। ये जनसेवी और विद्वान लोग अपने-अपने क्षेत्र के या अपने-अपने विषय के विद्वान होते थे और निष्पक्ष भाव से प्रेरित होकर राजा को राजकार्यों के निष्पादन में अपना परामर्श दिया करते थे। पर सत्तर वर्ष में ही हमने देखा कि आज हमारी संसद के इस सदन में उन थके-हारे पराजित लोगों को भेजा जाता है जिन्हें हमारे देश की जनता लोकसभा चुनावों में ठेंगा दिखा चुकी होती है या उन लोगों को भेजा जाता है जो राज्यसभा में जाकर (राष्ट्रहितों से पूर्व) दलगत स्वार्थों के लिए लडऩे में कुशल हों। कितने ही उद्योगपति और धन्नासेठ, या समाज के ‘गन’ पति लोग गणपति बनने के लिए सौ-सौ करोड़ रूपया व्यय करने के लिए तैयार बैठे हैं। इन लोगों ने राज्यसभा सांसद बनने को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। ये ‘स्टेट्स सिम्बल’ के लिए इतनी बड़ी धनराशि व्यय करना चाहते हैं। ऐसे धनपति, और ‘गन’ पति लोगों को ना तो संविधान की पता है ना ही देश की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की बारीकियों की सही जानकारी है। यदि भारत ने अपने प्राचीन वैभव और राज्यव्यवस्था संबंधी सिद्घांतों की समीक्षा कर उन्हीं के अनुसार अपनी राज्यसभा की स्थापना की होती तो बात कुछ और ही होती। हमने ‘राज्यसभा’ के माध्यम से ही लोकतंत्र को विक्षिप्त कर लिया।
एनडीए खुलकर काम नहीं कर पा रही:- लोकसभा में पूर्ण बहुमत होने के बाद भी भाजपानीत एनडीए सरकार खुलकर काम नहीं कर पा रही है, क्योंकि कोई भी विधेयक राज्यसभा में पास कराने के लिए उसके पास जरूरी संख्या बल नहीं है। विभिन्न विधानसभा चुनावों में भाजपा के शानदार प्रदर्शन के साथ अब यह स्थिति बदलती जा रही है। राज्यसभा में बहुमत हासिल करने की यह मैराथन प्रक्रिया है, जिसमें भाजपा अपने विरोधियों को लगातार पछाड़ती नजर आ रही है। 250 सदस्यीय उच्च सदन यानी राज्यसभा में एनडीए के पास 57 सदस्य हैं, वहीं यूपीए सदस्यों का आंकड़ा 102 है। इसमें भी भाजपा के महज 43 सदस्य हैं, जबकि कांग्रेस सदस्यों की संख्या 68 है। यही कारण है कि मानसून सत्र में बीमा और एफडीआई जैसे सरकार के कई अहम बिल अटके हुए हैं, लेकिन विभिन्न विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत विपक्ष की नींद हराम करती जा रहा है। महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनावों की जीत भाजपा के लिए फायदेमंद होगी, लेकिन दोनों राज्यों की कुल 24 (महाराष्ट्र 19 और हरियाणा 05) सीटों के लिए 2016 में चुनाव होने हैं। इस लिहाज से आने वाले दो वर्ष देश की सियासत के लिए बहुत अहम हैं। इन दो वर्षों में राज्यसभा के 86 सदस्यों का कार्यकाल पूरा होगा। इस दौरान जम्मू-कश्मीर, झारखंड के साथ ही बिहार, केरल और तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव भी होंगे। इन राज्यों में कुल मिलाकर 22 राज्यसभा सीटें (बिहार 05, जम्मू-कश्मीर 04, झारखंड 01, केरल 06 औऱ तमिलनाडु 06) हैं। अगर भाजपा इस विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन करती है तो राज्यसभा में भी उसका दबदबा बढ़ सकता है। इसी अवधि में राज्यसभा के सात मनोनित सदस्यों का चयन भी एनडीए सरकार को ही करना है।
विधेयक पास कराने में कोई रोड़ा नहीं:- मुंबई स्थित राजनीतिक विश्लेषक जय मुर्ग का कहना है कि हालिया विधानसभा चुनावों में जीत के बाद राज्यसभा में भाजपा का प्रभाव बढ़ेगा। पार्टी को इस जीत का लंबे समय तक फायदा मिलता रहेगा। जैसे-जैसे राज्यसभा सीटें बढ़ेंगी, सरकार अपने मन-माफिक बिल पास करवा पाएगी। अगले राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी को फायदा होगा। विश्वेषकों के अनुसार, भाजपा इसी तरह अपने दम पर विधानसभा चुनावों में विजयी होती रही तो 2018 तक राज्यसभा की तस्वीर भी बदल सकती है। नरेंद्र मोदी सरकार का कार्यकाल 2019 में पूरा होगा। अगले लोकसभा चुनावों में भी मोदी और भाजपा का दबदबा रहता तो संसद के दोनों सदनों पर भाजपा का अभूतपूर्व प्रभाव रहेगा।
राज्यसभा में अटके बिल:- राज्यसभा में भाजपा अल्पमत में है। ऐसे में लोकसभा में लिया गया गया निर्णय राज्यसभा में जाते ही गिरा दिया जाएगा या फिर सेलेक्ट कमेटी को भेज दिया जाएगा। बीमा में विदेशी निवेश का बिल इसी तरह अटका है। साम्प्रदायिक हिंसा बिल पर भी सरकार की एक न चल पाई। ज्यूडिशियल बिल भी संसद के ऊपरी सदन में लंबित है।
राज्यसभा की वर्तमान स्थिति:- कांग्रेस 68 , भाजपा 43, बसपा 14, तृणमूल कांग्रेस 12, जदयू 12, एआईएडीएमके 11, सपा 10, मनोनित 10, सीपीआईएम 09, निर्दलीय व अन्य 09, बीजू जनता दल 07, राकांपा 06, टीडीपी 06, डीएमके 04, शिरोमणि अकाली दल 03, शिवसेना 03, आईएनएलडी 02, नेशनल कान्फ्रेंस 02, सीपीआई 02, बीपीएफ 01, जेडीएस 01, जेएमएम 01, केरल कांग्रेस 01, एनपीएफ 01, आरजेडी 01, आरपीआई 01, एसडीएफ 01 औऱ टीआरएस 01।

2017 में भाजपा को कोई फ़ायदा नहीं:- 19 जून को राज्यसभा के उपचुनाव होने हैं। एनडीए को भले ही 543 सांसदों वाली लोकसभा में 334 सदस्यों का बहुमत हो लेकिन क़ानून बनाने या संशोधन करने में उसे मुश्किल पेश होगी। वजह 250 सांसदों वाली राज्यसभा में एनडीए के सिर्फ 58 सदस्य हैं। यह स्थिति अगले पांच साल तक बनी रहेगी। सरकार के लिए राहत की बात सिर्फ यह है कि राज्यसभा में यूपीए को भी बहुमत नहीं है। उनके पास 83 सांसद हैं और वाम मोर्चे को मिला कर भी संख्या 97 तक ही पहुंचती है। यानी 70 सांसद ऐसे हैं जो न पक्ष में हैं, न विपक्ष में। मोदी सरकार को इनसे ही समर्थन की उम्मीद है। इनमें 34 सांसद तो अन्ना द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस और बीज़ू जनता दल के हैं और 32 सपा, बसपा, जद (यू) के। अगले दो साल में 25 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होंगे लेकिन विधानसभाओं की मौजूदा स्थिति के अनुसार भाजपा को एक भी सीट नहीं मिलेगी। 2016 में 67 सांसदों का कार्यकाल ख़त्म हो रहा है। इनमें से सात भाजपा के हैं। द्विवर्षीय चुनावों में भाजपा को 14 सीटें मिलने की उम्मीद है। यानी सात सीटों का फ़ायदा। तब उसके सांसदों की संख्या बढ़कर 51 हो जाएगी। फिर भी बहुमत से कोसों दूर। 2017 में भाजपा को कोई फ़ायदा नहीं होगा जबकि 2018 में होने वाले 65 सीटों के चुनाव में भाजपा के 20-21 सांसद जीत सकते हैं जबकि ख़ाली हो रही सीटों में से 14 भाजपा की ही थीं। यानी छह से सात सांसदों का फ़ायदा। भाजपा सांसदों की संख्या राज्यसभा में 58 ही होगी। सहयोगियों को मिलाकर भी केवल 80 से कम। ऐसे में भाजपा के पास क़ानून पारित कराने के दो रास्ते होंगे। पहला बीजद, टीडीपी, अन्नाद्रमुक, सपा और बसपा जैसी पार्टियों से समर्थन लेना। और दूसरा दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुलाना। दोनों सदनों के कुल 795 सांसदों में से एनडीए के 394 सांसद हैं। यानी बहुमत के बहुत कऱीब। लेकिन आज तक संयुक्त सत्र केवल तीन बारबुलाया गया है – 1961, 1978 और 2002 में। संविधान विशेषज्ञ डा. पीडीटी आचारी के अनुसार संविधान संशोधन के लिए संयुक्त सत्र नहीं बुलाया जा सकता।

उत्तर प्रदेश में क्रास वोटिंग’ की आशंका:- राज्यसभा के द्विवाषिर्क चुनाव में ‘क्रास वोटिंग’ की आशंका की खबरों से हरकत में आए उत्तर प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक दल अब अपने विधायकों को एकजुट रखने के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। मतदान में अब तीन दिन बाकी हैं। राज्यसभा में 11 सीटों के लिए चुनाव होना है और 12 उम्मीदवार मुकाबले में हैं। यही हाल विधान परिषद का है। कुल 13 सीटों के लिए चुनाव होना है लेकिन मुकाबले में 14 प्रत्याशी हैं। सत्ताधारी सपा के खेमे में गतिविधियां देखने को मिलीं। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव दिन भर अपनी पार्टी के विधायकों से अनौपचारिक रूप से मिले और एकजुट रहने का संदेश दिया। सपा प्रमुख ने कहा है कि क्रास वोटिंग से आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाताओं में गलत संदेश जाएगा। राज्यसभा के लिए सपा ने सात प्रत्याशी खड़े किए हैं लेकिन सातवें प्रत्याशी के पास जीत के लिए प्रथम वरीयता वाले नौ मत कम हैं। विधानसभा में 403 सीटें हैं। सत्ताधारी सपा के 229 विधायक हैं। बसपा के 80, बीजेपी के 41, कांग्रेस के 29 विधायक हैं। बाकी छोटी पार्टियों के या फिर निर्दलीय विधायक हैं। राज्यसभा में जीत के लिए एक प्रत्याशी को 34 मतों की जरूरत होगी।
निर्दलीय प्रीति महापात्र के पक्ष में क्रास वोटिंग की आशंका को देखते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने नौ जून को पार्टी विधायकों की बैठक बुलाई है। प्रीति ने 12वें प्रत्याशी के रूप में नामांकन किया है। बीजेपी ने उत्तर प्रदेश इकाई के उपाध्यक्ष और पूर्व मंत्री शिव प्रताप शुक्ल को प्रत्याशी बनाया है। शुक्ल की जीत सुनिश्चित होने के बाद भी बीजेपी के पास सात अतिरिक्त मत रहेंगे। दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की बीजेपी की कोशिशों से चौकन्नी बसपा का साथ कांग्रेस प्रत्याशी कपिल सिब्बल को मिल सकता है। प्रीति के चुनाव मैदान में उतरने से सबसे अधिक दबाव सिब्बल पर ही है।आठ विधायकों वाले आरएलडी का महत्व बढ गया है। कई दल आरएलडी प्रमुख अजित सिंह के संपर्क में हैं। राज्यसभा चुनाव में सपा से अमर सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा, कुंवर रेवती रमण सिंह, विश्वंभर प्रसाद निषाद, सुखराम सिंह यादव, संजय सेठ और सुरेन्द्र नागर प्रत्याशी हैं। बसपा ने सतीश चंद्र मिश्र और अशोक सिद्धार्थ को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस की ओर से सिब्बल, भाजपा की ओर से शुक्ल तथा निर्दलीय प्रत्याशी प्रीति भी मैदान में हैं।

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