स्वदेशी आर्थिक मॉडल पर आगे बढ़ रही है सरकार : श्री सतीश

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भोपाल, 14 अगस्त। आजादी के समय भारत के साथ विडम्बना ऐसी हुई कि भारतीय अर्थव्यवस्था का मॉडल स्वदेशी न होकर आयातित था। भारत की भौगोलिक और सांस्कृतिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए हमने रशियन मॉडल को अपना लिया। 1990 में जब रूस की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई तब भी हमने सीख नहीं ली। 1991 से अब हम अमेरिकन मॉडल को ढो रहे हैं। हालांकि वर्तमान सरकार थोड़ा-बहुत स्वदेशी आर्थिक चिंतन की ओर बढ़ी है। उसके कारण ही सकारात्मक परिणाम होते दिख रहे हैं। ये विचार स्वदेशी जागरण मंच के श्री सतीश ने व्यक्त किए। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में आयोजित ‘भारतीय अर्थनीति की दिशा’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में वे बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित थे। संगोष्ठी की अध्यक्षता कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने की। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि सामाजिक कार्यकर्ता सतीश पिम्पलीकर भी उपस्थित थे।

श्री सतीश ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान भारत सरकार भारतीय आर्थिक मॉडल को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। उद्योग को बढ़ावा देने के लिए मुद्रा बैंक की स्थापना और जन-धन जैसी योजनाएं भारतीय चिंतन से ही आई हैं। स्वदेशी मॉडल पर आगे बढऩे के कारण ही भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था हो गई है। भारत ने ग्रोथ के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए पूरी दुनिया में नेशनलिज्म, टेक्नोलिज्म और ईकोनलिज्म की अवधारणा काम कर रही है। हमें भी अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए स्वदेशी आर्थिक चिंतन को आगे बढ़ाना पड़ेगा। अमरीकी मॉडल फेल होना शुरू हो गया है। दुनिया के अर्थशास्त्री 2030 में इसके ध्वस्त होने की बात कह रहे हैं। चीनी मॉडल के हालात भी पिछले तीन-चार माह से ठीक नहीं चल रहे हैं। भारत को विकास के लिए रशियन, अमेरिकन या चीनी मॉडल की जरूरत नहीं है बल्कि हमें तो भारतीय मॉडल चाहिए।

सांस्कृतिक और आर्थिक अखण्डता की जरूरत :  संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि विनोबा भावे ने आज से 50 साल पहले अपनी किताब में एबीसी ट्रायएंगल के अर्थव्यवस्था की बात की थी। उन्होंने कहा था कि अफगानिस्तान, बर्मा और श्रीलंका से घिरे भूखण्ड को प्रकृति ने समृद्ध और सम्पन्न बनाया है। प्रो. कुठियाला ने कहा कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से एक हो जाएं तो फिर दुनिया में हमें कोई चुनौती पेश नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि पूंजीवाद पूरी दुनिया में असफल हो रहा है। कम्युनिज्म और समाजवाद पहले ही विफल हो चुका है। इनसे बेहतर मॉडल एकात्म मानववाद हमारे पास है। जिसमें कहा गया है कि प्रकृति का शोषण नहीं पोषण करना चाहिए। हमें एकात्म मानववाद को अपनाकर आगे बढऩा चाहिए। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा, जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी, जनसम्पर्क एवं विज्ञापन विभाग के अध्यक्ष डॉ. पवित्र श्रीवास्तव, पत्रकारिता विभाग की अध्यक्षा डॉ. राखी तिवारी सहित अन्य शिक्षक, अधिकारीगण और विद्यार्थी उपस्थित थे।


– संजय द्विवेदी,

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  1. श्री संजय द्विवेदी ने इस आलेख में बताने का प्रयत्न किया है कि नमो के नेतृत्व वाली केंद्रीय सरकार ने विकास का स्वदेशी मॉडल अपनाया है.इसके लिए उन्होंने स्वदेशी जगरण मंच के सतीश जी का हवाला दिया है.उन्होंने मुद्रा कोष के स्थापना और जन धन योजना का भी उल्लेख किया है,पर विस्तार पूर्वक कुछ भी नहीं कहा.शायद सतीश जी ने भी इसका खुलासा नहीं किया.इससे यह आलेख अपने शीर्षक के अनुकूल सन्देश देने में विफल रहा है.क्या उम्मीद करें कि पाठकोंकी जिज्ञाषा को ध्यान में रखते हुए श्री संजय जी इस पर और प्रकाश डालेंगे.सत्यता यह है कि जनता की निगाहों में यह सरकार केवल कुछ चुने हुए बड़े औद्योगिक घरानों के विकास के सिवा अन्य किसी दिशा में कोई ठोस काम नहीं कर रही है.

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