कविता

महँगाई का दंश – पुनीता सिंह

बरसात आती हैinflation

या महँगाई बरसती है

बाजार मे हर चीज बहुत मंहगी है।

बाहर बाढ जैसा नज़ारा है

इधर घर की नाव डूबने को है।

सब्ज़ियों के भाव बादल जैसे

गरज रहे है

हर चीज को महगाई ने डस लिया है

इन्सान और इन्सानियत

क्यों इतनी सस्ती हो गई?

राह चलते इसके दूकानदारो की

हस्ती हो गयी।

बाजार मे आलू,आटा,चावल

प्याज, दूध पानी तक मँहगा है।

मगर आदमी (इन्सान) बहुत सस्ता है

इसे ले जाओ

जैसे मर्जी सताओ

मारो,खाओ,पकाओ

किसी को कुछ फर्क नही पडॆगा

भूखॊ का पेट तो भरेगा

पर महंगाई का दंश नही चुभेगा।