महँगाई का दंश – पुनीता सिंह

1
225

बरसात आती हैinflation

या महँगाई बरसती है

बाजार मे हर चीज बहुत मंहगी है।

बाहर बाढ जैसा नज़ारा है

इधर घर की नाव डूबने को है।

सब्ज़ियों के भाव बादल जैसे

गरज रहे है

हर चीज को महगाई ने डस लिया है

इन्सान और इन्सानियत

क्यों इतनी सस्ती हो गई?

राह चलते इसके दूकानदारो की

हस्ती हो गयी।

बाजार मे आलू,आटा,चावल

प्याज, दूध पानी तक मँहगा है।

मगर आदमी (इन्सान) बहुत सस्ता है

इसे ले जाओ

जैसे मर्जी सताओ

मारो,खाओ,पकाओ

किसी को कुछ फर्क नही पडॆगा

भूखॊ का पेट तो भरेगा

पर महंगाई का दंश नही चुभेगा।

1 COMMENT

  1. बहुत खूब पुनीता जी। आपकी इस रचना को पढ़कर पहले की लिखी निम्न पंक्तियों की याद आयी-

    बिजलियाँ गिर रहीं घर पे न बिजली घर तलक आयी।
    बनाते घर हजारों जो उसी ने छत नहीं पायी।
    है कैसा दौर मँहगीं मुर्गियाँ हैं आदमी से अब,
    करे मेहनत उसी ने पेट भर रोटी नहीं खायी।।

Leave a Reply to shyamalsuman Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here