दिलचस्प दिन

11
169

गङ्गानन्द झा

श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार का सत्तारूढ़ होना गणतान्त्रिक भारत के विकास के इतिहास की दिशा और दशा परिभाषित करनेवाली घटना है। उनका आश्वासन है— “अच्छे दिन आनेवाले हैं।“ हमें विश्वास है कि आनेवाले दिन अच्छे न भी हों पर, दिलचस्प तो अवश्य होंगे। सत्ता परिवर्तन पहली बार नहीं हुआ था, फिर भी यह तय था कि इस सत्ता परिवर्तन से दूरगामी प्रभाव डालनेवाली दिलचस्प सम्भावनों का सिलसिला शुरु होने जा रहा है। इनका विवरण प्रस्तुत करने के लिए नए राजनीतिक मुहावरे और मापदण्ड प्रासंगिक होंगे।
संसदीय निर्वाचन के नतीजों की घोषणा के पूर्व ही इस सम्भावना के संकेत थे। श्री स्वागत गांगुली ने अपने एक आलेख की शुरुआत भारत की उपमा एक कम्प्यूटर से और कांग्रेस पार्टी द्वारा अपनाई गई नेहरुवियन मतैक्य (Nehruvian consensus) की नीति की उसके डिफॉल्ट ऑपरेटिंग सिस्टम से दी है। उन्होंने आगे लिखा है कि नेहरु के बाद के समय में इस सॉफ्टवेयर का काफी अपग्रेड हुआ हैं। परिवारवाद तथा आरक्षण के जरिए जातीय पहचान की राजनीति इसमें शामिल हुए। अटल बिहारी वाजपेई तक ने भी इस मतैक्य की धारा को अक्षुण्ण रखा था। परिवारवाद तथा जाति आधारित आरक्षण आज कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलों के ढाँचों में शामिल है। अब तक भारत मोटामोटी तौर पर नेहरुवियन मतैक्य के द्वारा शासित होता रहा है। यद्यपि इस बीच कांग्रेस विरोधी दलों की हुकूमतें भी रही हैं।
भारत की वर्तमान अवधारणा नेहरुवियन मतैक्य से निर्मित और पुष्ट हुई है। नेहरु गणतंत्रवादी और समाजवादी थे। उन्होंने उस समय सार्वजनिक मताधिकार की वकालत की, जब नए आजाद मुल्कों में इसे सर्वमान्य राह की मान्यता नहीं थी। इसके फलस्वरुप भारत विश्व का ऐसा गणतांत्रिक देश बना जिसकी अधिकतर जनता निरक्षर थी ।
इस अवधारणा में भारत की विविधता को पूरा सम्मान उपलब्ध है। विविधता के प्रति इसी सम्मान का प्रभाव है कि देश के विभिन्न क्षेत्रों के विच्छिन्नतावादी आन्दोलन पनप नहीं पाए और वे अब भारतीय गणतंत्र के ढाँचे के अन्दर ही क्षेत्रीय अधिकारों की स्वीकृति की माँगों के रुप में सहज रुप से संघर्षशील हैं। देश की अक्षुण्णता बरकरार है। जवाहरलाल नेहरु सार्वजनिक भाषणों के दौरान सामान्य जनता से भारत माता की पहचान करवाया करते थे। भारत की विरासत के प्रति उनमें गहरी श्रद्धा थी,साथ ही प्रखर इतिहास-बोध था। आधुनिक भारत के लिए एक स्वप्न था उनकी चेतना में।
इससे उस व्यक्ति के कद की झाँकी मिलती है। इतिहास से हम जानते हैं कि अधिकतर देशों में सार्वजनिक मताधिकार के पहले शिक्षा का प्रसार हुआ। लेकिन सन 1952 ई में भारत के पहले राष्ट्रीय चुनाव के समय उपयुक्त मतदाताओं का 85% निरक्षर था। हमारी आज की अनेकों आजादियों का श्रेय नेहरु एवम् उनके ऐतिहासिक साहस का ही है।
विडम्बना की बात है कि कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के नेहरूवियन मतैक्य से हटकर खुदरा व्यवसाय में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा अमेरिका के साथ नाभिकीय सन्धि हस्ताक्षरित करने जैसे कुछ तात्कालिक कदम उठाने की कोशिश की तो उसके विरोध में भारतीय जनता पार्टी ने सबसे अधिक शोर मचाया था। वामपंथी दलों तक ने मार्क्सवाद को करीब करीब दरकिनार कर नेहरूवियन मतैक्य वरण कर लिया है।
लेकिन साथ साथ नेहरु के उत्तराधिकार के अँधेरे पहलू भी रहे हैं। शिक्षा के बगैर गणतंत्र को बहुत अच्छी तरह काम करने में दिक्कत होती है। लेकिन भारत में शिक्षा के क्षेत्र मे प्रगति बहुत धीमी रही है। गाँधी और नेहरु ने शिक्षा पर बहुत जोर नहीं दिया। नतीजा है कि आज भी भारत विश्व के सर्वाधिक कम शिक्षित देशों की जमात में शामिल है।
एक प्रसंग की चर्चा। भारत सन 1947 ई मे आजाद हुआ और चीन दो साल बाद सन 1949 ई में। सन 1954 ई में जवाहरलाल चीन के सफर से लौटे थे। संवाददाताओं के प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बतलाया कि चीन ने भारत के मुकाबले में काफी अधिक प्रगति की है। अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि भारत ने गणतंत्र का रास्ता अपनाया है, जिसमें प्रगति की गति धीमी होती है, लेकिन हर नागरिक के विचारों और अघिकारों का खयाल रखा जाता है।
लेकिन सम्भवतः नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गठित एवम् संचालित भारतीय जनता पार्टी की सरकार के लिए नेहरूवियन मतैक्य का सॉफ्टवेयर उपयुक्त नहीं होगा। उनकी सामाजिक जड़ें नेहरु और अटल विहारी वाजपेई से यथासम्भव अलग हैं। वे ब्राह्मण नहीं, निम्न जाति के गाञ्ची समूह से हैं। भारतीय स्वाधीनता संग्राम में उनकी दीक्षा नहीं हुई, न ही उसके बाद के अटल बिहारी वाजपेई की तरह संसदीय बहस की भद्र परम्परा में। अटल बिहारी बाजपेई ने बड़े कायदे से अपने आपको नेहरु के विम्ब में गढ़ा था। इसलिए उनको भिन्न सॉफ्टवेयर की जरूरत नहीं पड़ी थी।

मोदी की प्रधानमंत्री के रुप में स्थिर सरकार की अगुवाई के एक अथवा दो दौर नेहरुविन मतैक्य की गुत्थी को सुलझाने की ओर प्रभावी होंगे। इसमें नेहरु-गांधी परिवार के प्रभाव का अन्त भी सन्निहित रहेगा। मोदी के इस पहलू के असर में आशंका है कि मोदी का उदय भारत की वर्तमान अवधारणा नष्ट कर देगा। उनका दर्शन विविधता को नहीं, एकरुपता को सम्मान देता है। विचारों के परिवेश के दूषित होने के खतरे के वास्तविक होने की सम्भावना दिख रही है। विचारों के इस परिवेश को गढ़ने की यात्रा संघर्षपूर्ण रही है। इसके प्रति हम विशेष रुप से संवेदनशील हैं क्योंकि हमारे अधिकतर पड़ोसी मुल्क विविधता के प्रति सम्मान के इस परिवेश से वञ्चित रहे हैं। इसलिए सम्भावना है कि भारत की मौजूदा अवधारणा को गम्भीर खतरे होंगे। हो सकता है कि इसके बारे में तो कुछ कहना जल्दबाजी हो सकती है।
मोदी सरकार के बारे में सबसे अधिक निर्णायक पक्ष होगा कि क्या नेहरुवियन मॉडेल की राजनीतिक स्वाधीनता,अल्पसंख्यकों के प्रति सम्यक् आचरण जैसे सकारात्मक पहलुओं की उपेक्षा राष्ट्र को संकट के सम्मुखीन करती है? क्या बहुसंख्यकवादी अथवा अधिनायकवादी केन्द्र भारत जैसे विशाल एवम् विविधताओं से भरे देश को कायम रखने में असमर्थ होगा?

11 COMMENTS

  1. गङ्गानन्द झा जी, मैं सोचता हूँ कि क्या आप प्रवक्ता.कॉम पर लेख और टिप्पणी के स्वरूप छोड़े अपने पदचिह्न को पुनः लौट देखने आयेंगे? तथाकथित स्वतंत्रता, तथाकथित बुद्धिजीवी, नेहरु चालीसा से आपको जो कुछ याद आया को छोड़ “कल के राजे-रजवाड़ों पर फिरंगी हुकूमत के बाद उनके दल-बल से १८८५ में जन्मी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा उनके अधिराज्य और फिर अधिराज्य के नए स्वरूप, राष्ट्रमंडल के आधीन समस्त भारतीयों को गुलामी की जंजीरों में जकड़े रखा है|” पर शोध कर अब आपको यह समझना होगा कि यथार्थ स्वतंत्रता की दिशा में “कांग्रेस-मुक्त भारत” युगपुरुष नरेन्द्र मोदी जी का विशेष योगदान रहा है| देश में अगले वर्ष हो रहे निर्वाचनों में संगठित १२५ करोड़ नागरिक युगपुरुष नरेन्द्र मोदी जी का समर्थन करते स्वराज प्राप्त कर अपने व भारत के भाग्य जगा सकते हैं|

  2. मित्रों ….
    (१) गुलाब का फूल कांटों के साथ खिलता है. कुछ लोग फूल देखते हैं कुछ लोग कांटें ! मैं आश्वस्त हूँ कि फूल तो खिल रहा है. समय लगेगा.
    (२) ४ साल पूर्व की दारुण अंधेरी रात का अंत हुआ है. हारने वाले हार पचा नहीं पा रहें हैं; डर है: सारे पाप उजागर हो जाएंगे तो? इस लिए भय से बौखला कर छटपटा रहे हैं.
    (३) समझने के लिए क्या नोबेल विजेता होने की आवश्यकता है?

    (४) ऊपर से नीचे तक, कीचड फैला गई थी यु पी ए. और उस कीचड को साफ करने की यंत्रणा जिन अधिकारियों के द्वारा करवानी होती है, वे अधिकारी स्वयं ही भ्रष्टाचार में डूबे थे. ऐसी महा उलझन भरी धरोहर यु. पी. ए. छोड गयी थी.
    (५) पर भारत भाग्यवान है, कि, उसे एक समर्पित प्रधान मंत्री मिला है.
    (६) मैं मोदी पर अंध विश्वास करने सिद्ध हूँ.
    (७) उनके प्रबंधन को गलतियाँ करने की स्वतंत्रता भी देनी तो होगी ही.
    (८) आज हमें राम+ चाणक्य + चंद्रगुप्त मौर्य का सम्मिश्रण चाहिए. ==> ॐ आगे आनेवाला इतिहास मोदी को युगपुरुष मानेगा.
    (९) पर संविधान उनके हाथ बाँध देता है.

    मैं अपने मन की बात रख रहा हूँ. किसी और की नहीं. न मैं कोई वेतन धारी लेखक हूँ.
    वन्दे मातरम्‌ ॥

  3. आगामी लोक सभा निर्वाचनों से पूर्व अभी से भारतीय राजनीति में राष्ट्र-विरोधी तत्व बड़ी सक्रियता से छल-कपट द्वारा आधुनिक सामाजिक मीडिया स्रोत में पाठक और दर्शक, सभी प्रकार से मतदाताओं के मस्तक में युगपुरुष मोदी जी और उनके नेतृत्व में राष्ट्रीय शासन के प्रति असत्य छवि छोड़ने का क्रूर उपक्रम कर रहे हैं| सावधान रहें! कांग्रेस द्वारा मचाए चिरस्थाई भ्रष्टाचार से उत्पन्न समाज के सभी क्षेत्रों में पिछड़ापन और कुछ अधिकारियों के हाड़ मांस में चिपकी अयोग्यता को वर्तमान राष्ट्रीय शासन की देन बताते राष्ट्रद्रोही अराजकता फैलाने लगे हुए हैं| हमें अपने प्रिय भारत और देश में रहते अपने बच्चों व वंश के भविष्य का सोचते राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी को निर्वाचनों में पूर्णतया चयन कर सुदृढ़ बनाना होगा ताकि राष्ट्रीय शासन के साथ भागीदारी में हम सबका साथ, सबका विकास हो सके|

  4. तथाकथित स्वतंत्रता के पश्चात से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में ब्रिटिश-राज के समर्थकों (नेहरु, इत्यादि, जिन्हें सत्ता में बिठला दिया गया था) और राष्ट्रवादी नेताओं (पटेल, इत्यादि, जिन्हें किनारे कर दिया गया था) में निरंतर भेद-भाव नेहरु की कांग्रेस द्वारा स्वतंत्रता दिला देने पर मानो हर्षोल्लास के कोलाहल में डूब कर रह गए थे| तब तक ब्रिटिश-राज को चिरस्थाई बनाए रखने में तत्पर अधिकारी-वर्ग जिन्हें स्वयं शासन का कोई अभ्यास न था अब भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम १९४७ की धारा १० के अंतर्गत वे कांग्रेस-राज के सेवा में लग गए थे—सरकारी नौकर जो ठहरे! कालांतर शासकीय क्षमता में अयोग्यता और मध्यमता के बीच भ्रष्टाचार और अनैतिकता ने कश्मीर से कन्याकुमारी तथा कच्छ से कोलकाता तक देश को व्यापक रूप से प्रभावित करते पाँव पसारने आरम्भ कर दिए| गंगानन्द झा जी, ऐसी संकटपूर्ण स्थिति में आपकी भर्त्सना और छिद्रान्वेषण नहीं बल्कि आपका सहयोग चाहिए|

    परंपरागत भारतीय जीवन और वैश्वीकरण से प्रभावित आधे-अधूरे आधुनिक पाश्चात्य जीवन की दरारों में फंस कर रह गए तथाकथित बुद्धिजीवी जो राजनीति को केवल सत्तारूढ़ व विपक्ष में राजनीतिक दलों द्वारा रस्सा-कसी का खेल समझ इसने क्या कहा और उसने क्या कहा में खो अथवा राष्ट्र की ओर निश्चिंत वे अब तक देश को उस चिरस्थाई बवंडर में ला घसीटते रहे हैं जहां से निकल पाना कठिन ही नहीं असंभव जान पड़ता है| भारतीय मूल की सामान्य भाषा के अभाव में सांस्कृतिक विविधता में एकता का षड्यंत्र और परिणामी नागरिक दुर्बलता पर सत्तारूढ़ ब्रिटिश कार्यवाहक-प्रतिनिधि नेहरु चालीसा अलापते लेखक के लिए दिलचस्प दिन भले ही उन्हें मुबारक लेकिन कांग्रेस-मुक्त भारत में आने वाले अच्छे दिन भारतीय जनसमूह में एकात्मकता द्वारा विकास व संपन्नता के द्योतक होंगे| एकात्मकता का महत्त्व जानते हुए ही युगपुरुष मोदी जी ने १२५ करोड़ भारतीयों को एक साथ कदम मिला आगे बढ़ने को कहा है| श्रम और राष्ट्र के प्रति उनकी निष्ठा द्वारा अवश्य ही आने वाले अच्छे दिन कुछ एक के लिए नहीं बल्कि सभी भारतीयों के जीवन में बराबर दिलचस्प दिन बने रहेंगे!

    • तथाकथित स्वतंत्रता, तथाकथित बुद्धिजीवी, नेहरु चालीसा से याद आया, मेरे एक आत्मीय ने, जो चाटर्ड एकाउंटैंट है और मौजूदा राजनीतिक निजाम का समर्थक है, ने एक बार मुझे फेसबुक पर मोदी चालीसा फारवार्ड किया था। वह काफी पढ़नेलिखनेवाला व्यक्ति है।बुद्धिजीवी का विशेषण उसे मिलेगा कि नहीं मैं नहीं कह सकता। मुझे काफी स्नेह करता है, पर वह मुझसे खुश नहीं है,क्योंकि मै उसकी मोदीभक्ति का अनुमोदन नहीं कर पाता।
      छोटे वाक्य रहें तो पढ़नेवाले को समझने मे सहूलियत होती है. लम्बे वाक्यों में बातें उलझ जाती हैं।

      • आपके छोटे से वाक्य, “मुझे काफी स्नेह करता है, पर वह मुझसे खुश नहीं है,क्योंकि मै उसकी मोदीभक्ति का अनुमोदन नहीं कर पाता।“ ने सहूलियत से कहीं बढ़ कर आपकी सोच को समझने का अवसर दिया है| इस से पहले कि आगामी चुनावों में राजनैतिक दलों द्वारा रस्सा-कसी के खेल में आप स्वयं अपने लिए दिलचस्प दिन लौटाने में लगे रहें, मैं आपको क्षण भर भारत देश और गरीब देशवासियों के लिए —स्वामी विवेकानंद जी के कहे छोटे से निम्नलिखित वाक्य द्वारा—सोचने का अवसर देता हूँ|

        “जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी हैं तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को गद्दार समझता हूँ जो उनके बल पर शिक्षित बना और अब उनकी ओर ध्यान तक नहीं देता|”

  5. डॉ मधुसूदन जी,
    अच्छा लगा कि इस आलेख ने आपका ध्यान आकृष्ट किया। यह आलेख मोदी सरकार के सत्तासीन होने के एक साल बाद लिखा गया था। तब से अब तक की तस्वीर का खाका आपकी टिप्पणी दे रही है। भारत का भाग्य है— वाली बात? क्या कहूँ?
    बाकी चीजें गौण नहीं हैं। मैं समझता हूँ कि डॉ मधुसूदन भी चिन्तित होंगे, उन्हें होना चाहिए। देश की सीमाओं से बाहर रहते हुए भी संवेदनशील व्यक्ति का विवेक उसको परेशान करता होगा। खासकर जब यह उसकी भी उपलब्धि हो।

  6. सबका साथ नहीं होगा तो विकास भी नहीं हो सकता. साथ तो देते नहीं और अच्छे दिन कैसे माँगते हो? उनके पास क्या जादू है?

    • डॉ मधुसूदनजी,
      नमस्कार
      आप नाराज हो गए लगते हो। कुछ लोग असहमत तो होंगे ही।

      • नमस्कार. सबका साथ ना होते हुए भी मोदी जी ने जिस कुशलता से देश को नेतृत्व दिया है, मैं विशेष मानता हूँ.

  7. नमस्कार गंगानन्द जी.

    मैं आज तक के उनके निर्णयों के आधार पर मोदी को मौलिक नेतृत्व मानता हूँ.
    मौलिकता हर समस्या का हल निकालने में सफलता को लक्ष्य़ में रखती है.
    राजनीति और कूट नीति दोनों को संतुलित रखना पडता है.
    कुछ तात्कालिक समझौता भी अपेक्षित होता है.
    कुछ सट्टा भी होता ही है.
    भारत का भाग्य है, कि उसके पास आज घोटालेबाज शासन की काल रात्रि के बाद मोदी है.
    बाकी चीजे गौण हैं.
    पर आप भारत की स्थिति की अधिक जानकारी अवश्य रखते होंगे.
    धन्यवाद
    मधुसूदन

Leave a Reply to गङ्गानन्द झा Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here