मानव जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है इंटरनेट

इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी के निहितार्थ

योगेश कुमार गोयल

            अंततः 166 दिनों की बेहद लंबी अवधि के बाद घाटी के लोगों ने उस समय सुकून भरी सांस ली, जब वहां 18 जनवरी को प्रीपेड मोबाइल सेवा शुरू कर दी गई। 5 अगस्त 2019 को इन सेवाओं पर अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद ऐहतियात के तौर पर प्रतिबंध लगाया गया था, जो वहां हालात बिगड़ने से रोकने के लिए अब तक लागू था। प्रीपेड मोबाइल उपभोक्ताओं के लिए अभी इंटरनेट कर सुविधा शुरू नहीं की गई है बल्कि उन्हें फिलहाल केवल कॉल करने और एसएमएस की सुविधा ही मिलेगी। हालांकि पोस्टपेड उपभोक्ताओं के लिए घाटी के दो तथा जम्मू के सभी 10 जिलों में 2जी इंटरनेट सेवा बहाल कर दी गई है। उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा यह निर्णय देश की सर्वोच्च अदालत के 10 जनवरी के उस फैसले के बाद लिया गया है, जब शीर्ष अदालत ने इंटरनेट को मौलिक अधिकार बताते हुए कहा था कि जम्मू कश्मीर प्रशासन आदेशों की तुरंत समीक्षा कर इंटरनेट सेवा बहाल करने पर विचार करे।

            दरअसल सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने जम्मू-कश्मीर में जारी प्रतिबंधों की समीक्षा करते हुए अपने ऐतिहासिक फैसले में इंटरनेट को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लोगों का मौलिक अधिकार बताया था, जिसके बाद से अदालत के उस फैसले को लेकर बहस छिड़ गई है। सर्वोच्च अदालत द्वारा अपने एक फैसले में अप्रैल 2017 में भी कहा गया था कि इंटरनेट एक्सेस नागरिकों का अधिकार है। अब अदालत द्वारा संविधान के जिस अनुच्छेद 19 के तहत इंटरनेट को मौलिक अधिकार बताया गया है, उस अनुच्छेद के तहत सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, बिना हथियार किसी भी जगह शांतिपूर्वक एकत्रित होने, संघ या संगठन बनाने, कहीं भी स्वतंत्र रूप से घूमने, देश के किसी भी हिस्से में रहने या बसने, कोई भी व्यवसाय अपनाने या व्यापार करने का अधिकार दिया गया है।

            माना जा रहा है कि इंटरनेट को लेकर शीर्ष अदालत के फैसले के बाद सरकार की जवाबदेही एवं पारदर्शिता बढ़ेगी और लंबी-लंबी अवधि तक इंटरनेट बंद होने से लोगों को होने वाली परेशानियों से निजात मिलेगी। दरअसल पिछले कुछ वर्षों से बार-बार देखा जाता रहा है कि देश में जहां कहीं भी प्रशासन के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन शुरू होता है, वहां अफवाहों पर नियंत्रण की दलील देते हुए तुरंत इंटरनेट पर पाबंदी लगा दी जाती है। यही कारण है कि 2012 के बाद से अब तक देश में इतनी बार इंटरनेट पर पाबंदी लगाई जा चुकी हैं कि भारत अब इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने के मामले में दुनिया में सबसे आगे है। जम्मू कश्मीर के कई इलाकों में पांच माह से ज्यादा समय बीत जाने पर भी इंटरनेट पर पाबंदी लगी है, जिससे वहां के निवासियों को अत्यधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पिछले दिनों गुजरात में तो राजस्व लेखपाल की परीक्षा के दौरान नकल रोकने के नाम पर उस क्षेत्र में सुबह नौ बजे से एक बजे तक के लिए इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई थी।

            इन्हीं सब परिस्थितियों पर गौर करने के बाद गत दिनों शीर्ष अदालत ने देश में पहली बार इंटरनेट के इस्तेमाल को मौलिक अधिकार करार देते हुए कहा था कि इंटरनेट सेवाओं को अनिश्चितकाल के लिए बंद करना टेलीकॉम नियमों का उल्लंधन है। हालांकि अदालत द्वारा यह व्यवस्था भी की गई है कि इंटरनेट के इस मौलिक अधिकार पर संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध लागू होंगे और ऐसा केवल तभी किया जा सकेगा, जब भारत की सम्प्रभुता, अखण्डता तथा सुरक्षा पर कोई खतरा सामने आए, पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते खराब होने की आशंका उत्पन्न हो, सामाजिक मर्यादा व नैतिकता की रक्षा करनी हो या व्यवस्था कायम रखनी हो लेकिन इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाते समय प्रशासन को अब उसके उपयुक्त कारण भी बताने होंगे। अपने फैसले में जस्टिस एन वी रमना, बी आर गवई तथा आर एस रेड्डी की पीठ का साफतौर पर कहना था कि इंटरनेट सेवा को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित नहीं रखा जा सकता, ये प्रतिबंध आनुपातिक सिद्धांत पर आधारित और अस्थायी होंगे, जिन्हें जरूरत से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता और ये आदेश न्यायिक समीक्षा के दायरे में होंगे। अदालत ने स्पष्ट कहा था कि इंटरनेट पर लंबे समय तक पाबंदी सिर्फ उसी स्थिति में लगाई जा सकती है, जब और कोई विकल्प शेष न हो लेकिन तब भी समय-समय पर उसकी समीक्षा होनी चाहिए।

            सितम्बर 2019 में केरल उच्च न्यायालय द्वारा भी इंटरनेट के उपयोग को नागरिकों का मौलिक अधिकार बताया जा चुका है और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद भी इसे मौलिक स्वतंत्रता करार दे चुकी है। दरअसल आज के दौर में इंटरनेट केवल सूचनाओं के आदान-प्रदान अथवा मनोरंजन का ही माध्यम नहीं रह गया है बल्कि यह आज मानव जीवन का ऐसा अभिन्न अंग बन चुका है, जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इंटरनेट बंद किए जाने के बाद वहां के लोगों को ऐसा लगता है, मानो उन्हें पूरी दुनिया से अलग-थलग कर दिया गया हो। शिक्षा से लेकर व्यापार तक, स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर खानपान तक, बैंकिंग सेवाओं से लेकर शिक्षा तक, शॉपिंग से लेकर पर्यटन तक हर कहीं इंटरनेट जरूरी हो गया है। ऐसे में इंटरनेट पर बार-बार लगती पाबंदियों से आम आदमी की जिंदगी थम सी जाती है क्योंकि अधिकांश सरकारी सुविधाओं का डिजिटलीकरण होने के अलावा दूसरी बहुत सी सुविधाएं भी अब ऑनलाइन ही उपलब्ध होती हैं और इंटरनेट पर पाबंदी से सारे ऑनलाइन कामकाज ठप्प हो जाते हैं। यही कारण है कि समय-समय पर इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाकर लोगों को इंटरनेट के उपयोग से वंचित कर देना लोकतंत्र के विरूद्ध माना गया है।

            इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी का सीधा सा अर्थ है लोगों को उस पुराने दौर में पहुंचा देना, जहां इंटरनेट मुट्ठी भर लोगों की पहुंच तक ही सीमित था और लोगों को तमाम सेवाएं या सुविधाएं ऑफलाइन ही उपलब्ध होती थी। दुनियाभर में आज जितने भी इंटरनेट उपभोक्ता हैं, उनका 12 फीसदी भारत में ही हैं। देश में आज करीब 50 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता हैं और आधुनिक दौर में सब कुछ इंटरनेट पर ही निर्भर हो जाने के कारण इंटरनेट पर लगने वाली पाबंदियों के कारण लोगों को ढ़ेरों परेशानियां तो होती ही हैं, इससे देश की अर्थव्यवस्था को भी कितना भारी-भरकम नुकसान झेलना पड़ता है, उस महत्वपूर्ण तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इंटरनेट पर सिर्फ एक घंटे के प्रतिबंध से ही अर्थव्यवस्था को करोड़ों रुपये की चपत लग जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2012 से 2019 के बीच लगाई गई इंटरनेट पाबंदियों के कारण देश की अर्थव्यवस्था को तीन अरब डॉलर अर्थात् करीब 21 हजार करोड़ रुपये की चपत लगी।

            अगर वर्ष 2012 से 2019 तक देश में लगाई गई इंटरनेट पांबदियों की बात की जाए तो भारत में करीब 380 बार इंटरनेट बंद किया गया, जिसमें 236 बार कानून व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से जबकि 144 बार अन्य कारणों से बंद किया गया। वर्ष 2018 में दुनियाभर में लगाई गई इंटरनेट पाबंदियों के करीब 67 फीसदी मामले भारत में ही दर्ज किए गए। इंटरनेट पर लगती पाबंदियों से होते आर्थिक नुकसान का आकलन करने वाली संस्था ब्रूकलिन इंस्टीच्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में इंटरनेट पाबंदी के मामले में भारत म्यांमार तथा चाड के बाद विश्वभर में तीसरे स्थान पर रहा। डिजिटल प्राइवेसी तथा साइबर सिक्योरिटी पर कार्य कर रही ‘टॉप-10 वीपीएन’ वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में यांमार में कुल 4880 घंटे, चाड में 4728 घंटे जबकि भारत के अलग-अलग हिस्सों में कुल 4196 घंटे तक इंटरनेट बंद रहा। पिछले साल इंटरनेट पाबंदी से हुए आर्थिक नुकसान के मामले में भी भारत दुनियाभर में तीसरे स्थान पर रहा। पहले पायदान पर 263 घंटे की इंटरनेट पाबंदी से 16444 करोड़ रुपये के नुकसान के साथ इराक, दूसरे स्थान पर 1560 घंटों की इंटरनेट पाबंदी से 13231 करोड़ रुपये के नुकसान के साथ इराक जबकि तीसरे स्थान पर 4196 घंटे की इंटरनेट पाबंदी से 9423 करोड़ रुपये के नुकसान के साथ भारत रहा। म्यांमार और चाड को क्रमशः 531 व 886 करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ा।

            ‘टॉप-10 वीपीएन’ वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 में दुनिया के 21 देशों में 18225 घंटे इंटरनेट बंद रहा, जिसमें 11857 घंटे इंटरनेट तथा 6368 घंटे सोशल मीडिया पर पाबंदी रही। इसके चलते दुनिया की अर्थव्यवस्था को 57324 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का नुकसान हुआ। जम्मू-कश्मीर में 1 जनवरी से 31 दिसम्बर 2019 तक 3692 घंटे इंटरनेट बंद रहा, जिससे राज्य को बीते वर्ष 7600 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ। कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद 4 अगस्त 2019 को बंद की गई इंटरनेट सेवा पांच माह की अवधि बीत जाने के बाद भी अब तक कुछ क्षेत्रों में बंद है। यह अभी तक की सबसे ज्यादा दिनों तक लगाई गई पाबंदी है। इससे पहले वर्ष 2016 में 133 दिनों तक कश्मीर में इंटरनेट बंद रहा था। उस समय बुरहान वानी की मौत के बाद 8 जुलाई से 19 नवम्बर 2016 तक इंटरनेट बंद था। गत वर्ष नागरिकता संशोधन कानून के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में हुए आन्दोलनों अथवा उनकी आशंका के चलते भी अनेक इलाकों में इंटरनेट सेवा को बाधित किया गया था।

            बहरहाल, प्रशासन द्वारा इंटरनेट पर बार-बार पांबदियां लगाए जाने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय के बाद प्रशासन द्वारा मनमाने तरीके से इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंध लगाने के मामलों पर अंकुश लगने की संभावनाएं बलवती हुुई हैं क्योंकि प्रशासन अगर अभी भी महज कानून व्यवस्था बिगड़ने के अनुमान के आधार पर इंटरनेट पाबंदी का फैसला लेता है तो प्रशासन के ऐसे फैसले को अब अदालत में चुनौती दी जा सकेगी और प्रशासन को अदालत को इंटरनेट पाबंदी का उचित कारण बताना होगा। बेहतर होगा कि इंटरनेट को लोगों का मौलिक अधिकार बताए जाने के बाद प्रशासन इंटरनेट उभोक्ताओं को इंटरनेट का संभलकर इस्तेमाल करने को लेकर जागरूकता अभियान चलाए और इंटरनेट का दुरूपयोग कर माहौल बिगाड़ने की कोशिश करने वालों के खिलाफ नियम कड़े किए जाएं।

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