तुर्क सुबुक्तगीन और महमूद गजनवी का आक्रमण

—विनय कुमार विनायक
तुर्क अब्बासी वंश के महल रक्षक और सैनिक थे
जब केंद्रीय शासन की नींव हिली,प्रांतीय शासन कुछ फली फुली
तभी तुर्कों को ‘गाजी’/विजेता बनने की नव प्रेरणा मिली!

तब अरबी खिलाफत से होकर खिलाफ बर्बर तुर्क करने लगे खुद ही
इस्लाम का माला जाप ट्रांस-ओकि्सयाना, खुरासान और ईरान के
भूभाग पर जब था गद्दीनशीन एक सामानी गुलाम तुर्क अलप्तगीन
बना खुरासान का सेनापति कमसिन!

पतनशील सामानी सत्ता पर काबिज हुआ अलप्तगीन अलबत्ता,
जिसने गजनी में राजधानी बसा मध्य एशिया पर राज्य किया
इनके थे सत्तरह सौ तुर्क गुलाम जिनमें एक सुबुक्तगीन का नाम
अलप्तगीन के लिए था चहेता जो गजनी का शीघ्र बना नेता!

अपने संरक्षक अलप्तगीन की मौत के बाद सुबुक्तगीन ने किया गद्दी आबाद
गजनी के घोषित शासक अबू बकर लायक को बनाकर नालायक
वह शक्तिशाली बना गजनी का नायक!

नौ सौ सत्तर से नौ सौ सत्तानवे ईस्वी तक गजनी और खुरासान जो मात्र थे ग्राम
जिसे अधीन करने के बाद आसपास कुछ न था सिवा उजाड़ और दुर्गम पर्वत का सुनसान!
इतने में वणिक काफिलों और फकीर जासूसों से सुबुक्तगीन को मिला
भारत की समृद्धि का भान
ईस्वी सन नौ सौ छियासी में उसने पंजाब-अफगानिस्तान को घेरा
अब खुरासान, बल्ख से भारत की पश्चिमी सीमा तक सुबुक्तगीन का बना बसेरा!

अफगानिस्तान और पंजाब पर जब था शाही राजा जयपाल का राज
तभी गिराया उस दैत्य तुर्क ने भारत पर इस्लामी गाज
सुबुक्तगीन सेना ले जब पहुंचा लमैगान जयपाल की सैन्य बल देख निकली उसकी जान
किन्तु पेशावर और खैबर के शाही थानेदार शेख हमीद की गद्दारी वश
वीर जयपाल हुआ विवश और तुर्क सुबुक्तगीन के लिए जीत हुई आसान!

दस लाख दरहम और पचास हाथी के वायदे पर उस दैत्य तुर्क ने राजा जयपाल को आने दिया घर
किन्तु धोखा युक्त वायदे से मुकर दिल्ली, अजमेर, कालिंजर और कन्नौज के शासकों से मिलकर
उसने आक्रांता पर छेड़ा खुला युद्ध अभियान पर नियति वश विपरीत हुआ परिणाम!

बंदी हुए राजा उनकी लुटी गई सम्पदा सारी भारत भूमि लमगान पेशावर का
सुबुक्तगीन हुआ अधिकारी
उसकी मौत के बाद नौ सौ सत्तानवे ईस्वी में महमूद गजनवी; सुबुक्तगीन का बेटा
अनुज इस्माइल को हराकर नौ सौ अठानवे ईस्वी में गजनी की गद्दी पर बैठा!

महमूद गजनवी 998 ई.में गद्दी पर बैठा और सिस्तान शासक खलक बिन अहमद को
पराजित कर खुद को घोषित किया-‘अजाम का प्रथम सुल्तान’
किन्तु तत्कालीन खलीफा से उसे मिला नहीं यह सम्मान!

बाद के दस सौ चालीस ईस्वी में खलीफा से मान्य यह उपाधि-‘सुल्तान-अल-मुअज्जम’
सल्जुक शासक तुगरिल को मिला जो उसके पुत्र मसूद का था विजेता,
यद्यपि तबतक खलीफा पद था मात्र प्रतीक चिह्न,
अजाम का प्रशासन केन्द्र था सल्तनत के अधीन!

फिर भी खलीफा कादिर को महमूद ने दिया भरपूर सम्मान
समस्त राज्य के कुतवा में अंकित कराकर उनका नाम
बदले में खलीफा कादिर ने ‘यमीनुद्दौला’ यानि ‘साम्राज्य का दाहिना हाथ’
तथा अमीन-उल-मिल्लत या ‘मुसलमानों का संरक्षक’ कह उसे दिया आदर!

सन एक हजार ईस्वी से एक हजार छब्बीस ईस्वी के बीच
महमूद ने बरपाया भारत पर सत्रह बार कहर
पंजाब, मुलतान, भटिंडा, थानेश्वर, कन्नौज, मथुरा,
सोमनाथ के जन-मन और मंदिर को किया भग्न, त्रस्त और जर्जर!
‘बुत शिकन’/मूर्ति भंजक उपाधिधारी, इस्लामपरस्त, संस्कृति-संहारक,
खूनी-लुटेरा महमूद गजनवी एक घृणित ऐतिहासिक पात्र रूप में आज भी है अमर!

महमूद समर्थक इतिहासकारों का कहना,मंदिरों का चाँदी-सोना,
हीरा-जवाहरात और खजाना लूट के पीछे महमूद का एकमात्र था सपना
मध्य एशिया में तुर्की-फारसी राज्य स्थापना!

किन्तु क्या इतना ही सही? कुछ और नहीं अनकही क्या वह नहीं?
‘इस्लाम का योद्धा’ ‘एक जेहादी’ था?
फिर हिन्दुस्तान की गैरइस्लामी प्रजा का बेशुमार खून खराबा
विजित हिन्दुस्तानी नारियों को अफगानिस्तान ले जाकर
‘दुख्तरे हिन्दोस्तां, नीलाम ए दो दीनार’ मंडी में बिक्री और
संस्कृति विध्वंशक नीति के पीछे आक्रांता की मंशा और मानसिकता क्या थी?

महमूद समर्थक इतिहासकारों का तर्क कि इस्लामी शरीयत में
मान्य नहीं ध्वंस और संहार, अस्तु इस्लाम प्रेरित नहीं था महमूद का व्यवहार
किन्तु यह तथ्य मात्र कागजी सत्य हकीकत तो यह कि इस्लाम के
प्रचार का आधार रहा खूनी तलवार
मठ-मंदिर के नींव पर स्थित इस्लाम का आधार!
आक्रांताओं ने मजहब के नाम पर बहुत किया था अत्याचार!

देखना हो तो देखें जाकर सोमनाथ, चक्रपाणि थानेश्वर,मथुरा,
विश्वनाथ काशी, हाथ कंगन को आरसी क्या?
देखें कुत्बुद्दीन कालीन दिल्ली में कुब्बत-उल-इस्लाम,
अजमेर का अढाई दिन का झोपड़ा और बाबर कालीन राम जन्मभूमि अयोध्या,
शरीयत में क्या? शरीयत पसंदों ने क्या किया?

एक निष्पक्ष इतिहास और पराजित मन की बात विजेता का अंधभक्त
आक्रांता के धार्मिक गुलाम क्या कभी सच लिख सकता?
ये भला हो पंजाब के उन वीर जाटों का जिन्होंने दस सौ छब्बीस में
उस बर्वर लुटेरा से लूटे धन को कुछ हद तक बचा लिया, और उसे भगा दिया,
किन्तु इतिहासकारों ने उलटे देशभक्त जाटों को लुटेरा कहकर इतिहास में दर्ज किया!

महमूद जन्मा नौ सौ इकहत्तर में एक कहर बनकर
जो मरा नहीं राजपूती शौर्य से वो मर गया दस सौ तीस में मलेरिया के मच्छर से!
महमूद की क्रूरता से उसका दरबारी कवि फिरदौसी भी नाखुश था
उसने कहा था ‘अय शाह-ए-महमूद,केश्वर कुशा जि कसी न तरसी बतरसश खुदा’/
ऐ शाह महमूद देश विजेता अगर किसी से नहीं डरता तो खुदा से डर!

महमूद ने अफगानिस्तान के गोर प्रांत के गोरी जन को
बौद्ध से मुस्लिम बनाया, जिन्होंने बाद के गज़नबियों से
अफगानिस्तान और पंजाब को छीन लिया, गजनी को जलाकर मिट्टी पलीद कर दिया!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here