इतालवी झूठ से संघ को घेरने की राष्ट्रघाती साज़िश

-डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री-    new_media_723112687

आज तक  झूठ दो प्रकार के माने जाते थे। झूठ और सफ़ेद झूठ। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से भारतीय राजनीति में एक तीसरा झूठ प्रचलित हुआ – इतालवी झूठ । अपने तहलका वाले तरुण तेजपाल के जेल में चले जाने के बाद लगता था कि भारतीय राजनीति में इतालवी झूठ की परम्परा फ़िलहाल रुकेगी । लेकिन अंग्रेज़ी की एक पत्रिका कारवां ने छाती ठोंक कर घोषणा कर दी है कि आसन्न लोकसभा चुनावों के कारण इतालवी झूठ की घटनाएं बढ़ेंगीं न कि समाप्त हो जायेंगीं। कारवां ने पिछले दिनों बताया कि उनका एक पत्रकार अम्बाला जेल में ज़बरदस्त सुरक्षा  व्यवस्था में रखे गये स्वामी असीमानन्द से पिछले दो साल से इन्ट्रव्यू ले रहा था । अब जाकर वह इन्टरव्यू मुकम्मल हुआ है। कारवां के अनुसार इस इन्टरव्यू में स्वामी जी ने यह कहा है कि देश में हिंसात्मक गतिविधियां करने के लिये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने परोक्ष रुप से उन्हें सहमति दी थी। कारवां को यह भी मालूम था ही कि उसके इस झूठ पर कोई सहज भाव से विश्वास नहीं करेगा, इसलिये उसने यह भी दावा किया कि उसके पास इस दो साल के लम्बे साक्षात्कार के टेप भी सुरक्षित हैं। इतालवी झूठ की यही ख़ूबी है। वह टेप अपने साथ लेकर चलता है। यह कहानी तरुण तेज़पाल  के वक़्त से चली आ रही है। दरअसल इस प्रकार की राजनैतिक टेप को तैयार करने में जो कौशल ख़र्च होता है , उसी कौशल से इतालवी झूठ ठोस आकार ग्रहण करता है। प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया के बाद टेप मीडिया में घुस जाने के बाद इतालवी झूठ की उम्र थोड़ी लम्बी जरूर हो जाती है, लेकिन इस तीसरे प्रकार के झूठ को चलाने वाले भी जानते हैं कि निश्चित अवधि के बाद, इस झूठ की पोल खुल जाती है। परन्तु इससे उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि तब तक इस झूठ ने अपने शिकार का जितना नुक़सान करना होता है, वह कर चुका होता है। कारवां के इतालवी झूठ को इसी पृष्ठभूमि में समझा जा सकता है।
सोनिया गान्धी की पार्टी की सरकार पिछले कुछ सालों से किसी तरह समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट, अजमेर दरकार विस्फोट और माले गांव  बम विस्फोट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम जोड़ने के लिये बचकाने प्रयास करती रही है । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये भारत सरकार की जांच एजेंसियां पिछले तीन साल से इस इतालवी झूठ के प्रयोग स्वामी असीमानन्द पर कर रहीं हैं । उनका उद्देश्य किसी भी तरीक़े से संघ की हिंसात्मक गतिविधियों में संलिप्तता की तथाकथित अवधारणा को प्रचारित प्रसारित करना है । दो साल पहले राष्ट्रीय जांच अभिकरण ने स्वामी असीमानन्द के हवाले से ही कहा था कि संघ के एक प्रमुख प्रचारक इन्द्रेश कुमार ने इन हिंसात्मक गतिविधियों के लिये धन मुहैया करवाया था। स्वामी जी का यह बयान दिल्ली और पंचकूला हरियाणा के सक्षम अधिकारियों के सम्मुख बाक़ायदा दर्ज भी किया गया। यह अलग बात है कि स्वामी जी ने न्यायालय को पत्र लिखकर तुरन्त अपनी स्थिति स्पष्ट की कि यह बयान पुलिस ने उनसे ज़बर्दस्ती दिलाया है और यह बेबुनियाद है। लेकिन जांच एजेंसियां, (जैसा की सर्वोच्च न्यायालय ने उनका आकलन करते हुये बताया कि वे पिंजरों में बन्द तोते की भूमिका निभा रहीं हैं) इस इतालवी झूठ को फैलाने के लिये कटिबद्ध थीं, क्योंकि इससे पिंजरे के मालिक को राजनैतिक लाभ मिलने की संभावना थी । इसके लिये इन एजेंसियों ने किसी भरत रतनेश्वर को खोज निकाला। उसे इस झूठ का वायदा मुआफ़ गवाह बनाने की कोशिश की । लेकिन जब उसने इन्कार कर दिया तो उसे ही अभियुक्त बना दिया गया। यह अलग बात है कि जब राष्ट्रीय जांच अभिकरण छह मास में भी उसके ख़िलाफ़ आरोप पत्र न्यायालय में दाख़िल नहीं करवा सका तो उसे ज़मानत पर छोड़ना ही पड़ा।
अप्रेल 2012 में राष्ट्रीय जांच अभिकरण एनआईए ने जयपुर जेल में बन्द मुकेश वासनी पर डोरे डाले। उसे एक करोड़ रुपये तक का लालच भी दिया गया । काम केवल इतना ही था कि उसे संघ के तीन बड़े अधिकारियों का नाम आतंकवादी गतिविधियों के साथ जोड़ना था। साथ ही यह बयान भी देना था कि संघ के ही एक ज़िला प्रचारक रह चुके सुनील जोशी की हत्या भी संघ के बड़े अधिकारियों ने करवाई थी। ज्ञात हो कि मध्य प्रदेश के पूर्व ज़िला संघ प्रचारक सुनील जोशी की हत्या हो गई थी और तब ऐसी चर्चा चली थी उसकी हत्या जाँच एजेंसियों ने ही कार्रवाई है ताकि इसमें संघ के कुछ अधिकारियों को इम्पलिकेट किया जा सके। जांच एजेंसियों की तब काफ़ी किरकिरी हुई जब मुकेश ने यह इतालवी झूठ बोलने से इन्कार ही नहीं किया, बल्कि इसकी बाक़ायदा शिकायत भी एनआईई न्यायालय जयपुर में दर्ज करवाई जो अभी तक विचारार्थ लम्बित है।
लेकिन २०१३ तक आते-आते एनआईए के इस इतालवी झूठ की पर्तें उसी के एक पात्र भवेश पटेल ने खोल दीं । एनआईए ने इस पटेल का नाम अजमेर दरगाह विस्फोट में दर्ज करके इसे भगौड़ा घोषित कर रखा था। लेकिन पटेल का कहना है कि वह भगौड़ा बिलकुल नहीं था, बल्कि एक पूर्व युवा कांग्रेस नेता प्रमोद त्यागी के आश्रम में रह रहा था और बाक़ायदा सोनिया गान्धी की पार्टी के नेता दिग्विजय सिंह व केन्द्रीय गृह मंत्री सुशील  कुमार शिन्दे के सम्पर्क में था। पटेल को कहा गया कि हिंसात्मक गतिविधियों में वह मोहन भागवत एवं इन्द्रेश कुमार का नाम ले दे तो वित्तीय सहायता के साथ उसे गिरफ्तारी के बाद ज़मानत पर रिहा भी करवा लिया जायेगा। लेकिन जब पटेल ने भारी दबाव के बावजूद सक्षम अधिकारी के सामने मोहन भागवत और इन्द्रेश कुमार का नाम नहीं लिया तो एनआईए ने अपना सारा ग़ुस्सा पटेल पर निकालना शुरू किया। अपने प्राणों पर आये इस ख़तरे को देखते हुये पटेल ने एनआईए के विशेष न्यायालय को जांच एजेंसी की कार्यप्रणाली का सारा कच्चा चिट्ठा खोलते हुये पत्र ही नहीं लिखा बल्कि अपनी जान की रक्षा के लिये भी गुहार लगाई । यह अभियोग भी अभी तक लम्बित है।
दरअसल सीबीआई और एनआईए लम्बे अरसे से हिंसात्मक गतिविधियों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम जोड़ने के प्रयासों में लगी हुई है । इसके बावजूद वह किसी भी घटना को लेकर न्यायालय में दाख़िल किये गये आरोप पत्रों में संघ के किसी भी अधिकारी का नाम जोड़ नहीं सकी है । लेकिन पिछले दिनों राहुल गान्धी द्वारा एक टीवी न्यूज़ चैनल को दिये गये इन्टरव्यू से हुई क्षतिपूर्ति की भरपाई करने के लिये एक बार फिर सोनिया गान्धी की पार्टी के लिये ज़रूरी हो गया था कि संघ का नाम हिंसात्मक गतिविधियों में पुनः प्रचारित किया जाये। दरअसल अपने इस इन्टरव्यू में राहुल गान्धी ने यह मान लिया था कि दिल्ली में १९८४ में सिक्खों के हुये नरसंहार में कुछ कांग्रेसियों का हाथ हो सकता है। ज़ाहिर है चाहे अनजाने में ही की गई , राहुल गान्धी की इस स्वीकारोक्ति से सोनिया गान्धी की पार्टी के राजनैतिक तौर तरीक़ों और उसकी कार्यप्रणाली का पर्दाफ़ाश हो गया था। पार्टी का असली चेहरा सबके सामने आ गया था । राजीव गान्धी के इस गूढ़ वाक्य की कि जब कोई बड़ा वृक्ष गिरता है तो धरती हिलती ही है, पर से  पहली बार पर्दा हटा था और अन्दर का ख़ूनी सच सब ने देख लिया था । राहुल गान्धी के इस सच से जो क्षति पार्टी को हो रही थी, उसकी भरपाई करने के लिये तुरन्त वही पुराना हथकंडा अपनाया गया। किसी भी तरीक़े से लोगों का ध्यान १९८४ के इस सच से हटाया जाये । इसके लिये भला संघ से आसान शिकार और कौन हो सकता था ? चुने हुये मीडिया की सहायता से इतालवी झूठ का कारवां मोर्चे पर उतारा गया।
संघ को हिंसात्मक गतिविधियों से जोड़ने के लिये स्वामी असीमानन्द के नाम का प्रयोग करने के पीछे भी सोनिया गान्धी की पार्टी शायद एक तीर से दो शिकार करना चाहती है । पहला शिकार तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही है जो आज देश में राष्ट्रवादी चेतना का प्रतीक बन गया है , और दूसरा शिकार स्वयं स्वामी असीमानन्द हो सकते हैं । चर्च द्वारा भारतकोश जनजातिय क्षेत्रों को मतान्रित करने के आन्दोलन के रास्ते में स्वामी असीमानन्द पिछले लम्बे अरसे से , रुकावट बने हुये थे । इस प्रकार की दूसरी दो रुकावटों को पहले ही दूर किया जा चुका है । त्रिपुरा में स्वामी शान्ति काली जी महाराज और ओडीशा में स्वामी लक्ष्मणानन्द को को ईसाई मिशनरियां अपने अन्य सहायकों की सहायता से पहले ही रास्ते से हटा चुकीं हैं । अभी तक उनके असली हत्यारे पकड़े नहीं जा सके हैं । इस त्री में स्वामी असीमानन्द जी ही जीवित बचे थे । इन्हें अब चर्च ने सोनिया गान्धी की पार्टी की सरकार की सहायता से घेर रखा है । यदि कारवां के इस दावे को क्षण भर के लिये सच मान लिया जाये कि उनके लोग इतनी ज़बरदस्त सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद जेल में उनके निकट पहुंचते रहे  हैं तो ज़ाहिर है , उनकी तथाकथित उपयोगिता समाप्त हो जाने पर उनकी हत्या भी हो सकती है । मोहन भागवत का नाम हिंसात्मक गतिविधियों की स्वीकृति में उछालना तो महज़ राजनैतिक चाल हो सकतीहै लेकिन स्वामी जी की जान को ख़तरे से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि भारत विरोधी शक्तियों की घुसपैठ सोनिया गान्धी की पार्टी की सरकार में कितनी गहरी हो गई है । रिकार्ड के लिये बता दिया जाये कि स्वामी असीमानन्द ने कारवाँ के इस इतालवी झूठ का पर्दाफ़ाश करते हुये एक बयान जारी किया है कि कारवाँ को उन्होंने कोई साक्षात्कारः नहीं दिया और उनके नाम पर ग़लत बयानी की जा रही है ।

1 COMMENT

  1. अभी तो कुछ नए आरोप आयेंगे ताकि संघ व मोदी की तथा भा ज पा की छवि ख़राब की जा सके पर शायद देश की जनता अब सब समझ चुकी है, इसलिए इन सब बातों के प्रकाशन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आती.

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