प्रवक्ता न्यूज़

इतिहास से छेड़छाड़ को अभिव्‍यक्‍ति का नाम देना

डॉ. मयंक चतुर्वेदी


फिल्म डायरेक्टर संजय लीला भंसाली एक श्रेष्‍ठ फिल्‍म निर्देशक हैं, आज इस बात को कोई नकार नहीं सकता हैं । अभी तक की अपनी निर्देशित फिल्‍मों बाजीराव मस्तानी, गोलियों की रासलीला , साँवरिया, ब्लैक, देवदास, हम दिल दे चुके सनम, खामोशी जैसी फिल्‍मों में जिस तरह उन्‍होंने अपनी प्रतिभा का कमाल निर्देशन के जरिए दिखाया है, निसंदेह उसकी चहुंओर तारीफ हुई है। किेंतु इस बार उन्‍हें समुचे देश में ही नहीं दुनिया के तमाम देशों से पद्मावती फिल्‍म को लेकर लगातार आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है। हलांकि यह भी सत्‍य है कि जिस तरह राजपूत करणी सेना ने फिल्‍म निर्माण के सेट पर उनसे बदसुलूकी की है, उसके बाद से फिल्‍मी दुनिया के कई कलाकार एवं निर्माता-निर्देशक इस कृत्‍य को सीधे अभिव्‍यक्‍ति पर किए गए कुठाराघात के रूप में देख रहे हैं । जो लोग इसे अभिव्‍यक्‍ति पर हमला मान रहे हैं उनसे आज यह सीधे जरूर पूछा जाना चाहिए कि क्‍या अपने इतिहास को या अपने एतिहासिक महान चरित्रों को विकृत करके दिखाना, उसे कला – प्रदर्शन मात्र मानकर उससे साथ खिलवाड़ करने को वे कहां तक उचित ठहराएंगे ? भारतीय संविधान तो इस बात की इजाजत नहीं देता कि आप दूसरों की भावनाओं को आहत करें।

वस्‍तुत: वीर रानी पद्मावती का चरित्र तो बिल्‍कुल ऐसा नहीं कि उसके साथ एतिहासिक खिलवाड़ करने की थोड़ी भी गुंजाईश हो । इस वक्‍त जिस तरह से सोशल मीडिया पर भंसाली को लेकर कमेन्‍ट आ रहे हैं, उन्‍हें देखें तो वे साफ कह रहे हैं कि राजपूत वीरों के इतिहास के साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं होगी। पहले छोटे परदे पर यही काम एकता कपूर भी अपने सीरियल जोधा-अकबर के माध्‍यम से कर चुकी हैं जिसका कि भारी विरोध किया गया था। यह सर्वविदित है कि इस सीरियल में इतिहास को तोड़-मरोड़ कर जोधा को गलत तरीके से पेश किया गया था। वस्‍तुत: आज वही इतिहास को गलत तरीके से प्रस्‍तुत करने का कार्य कला, मनोरंजन के नाम पर भंसाली रानी पद्मावती फिल्‍म बनाकर करने जा रहे हैं। जिस रानी ने अपनी शील, चरित्र एवं संस्‍कारों की रक्षा के लिए एक मलैच्‍छ के पास जाने की अपेक्षा मौंत को अंगीकार करना उचित समझा हो, उसके लव सीन तैयार कर देश की वर्तमान पीढ़ी को एतिहासिक आधार पर गुमराह करने का यह प्रयत्‍न क्‍यों किया जा रहा है ?

संजय लीला भंसाली को क्‍या यह साफ-साफ नहीं दिखाई दे रहा है कि रानी पद्मावती चित्तौड़गढ़ की रानी और राजा रतनसिंह की पत्नी थीं। खिलजी वंश का शासक अलाउद्दीन खिलजी खूबसूरती से मोहित हो पद्मावती को पाना चाहता था। रानी को जब ये पता चला तो उन्होंने अलाउद्दीन के पास जाने के बजाय कई दूसरी 16 हजार राजपूत महिलाओं के साथ अपने कुल और देश की मर्यादा के लिए जौहर व्रत (आग में कूदकर आत्मदाह कर लेना ) उचित समझा । राजस्‍थान की धरती, परंरागत गीतों में इसके सत्‍य प्रमाण आज मौजूद हैं । प्रश्‍न यह है कि फिल्‍म निर्माण और मनोरंजन के नाम पर इस साक्ष्‍य को जुठला देना कहां तक उचित माना जाना चाहिए? सच पूछिए तो रानी पद्मावती भारत की हर उस स्‍त्री का आदर्श और गौरव हैं जो यह मानती है कि स्‍वाभिमान और आत्‍मसम्‍मान से बढ़कर जीवन में कुछ भी नहीं है।

भंसाली अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मिनी पर बन रही अपनी इस फिल्म ‘पद्मावती’ की शूटिंग के दौरान उन दोनों के बीच कथित लव सीन दर्शा भी कैसे सकते हैं, जबकि यह बिल्‍कुल असत्‍य है। इसलिए ही भंसाली की इस फिल्‍म को लेकर इस वक्‍त राजस्‍थान में आक्रोश है, वहां चहुंओर कहा यही जा रहा है कि हम राजपूतों की धरती पर अपने पूर्वजों को लेकर दिखाई जा रही अश्‍लीलता को बर्दाश्त नहीं करेंगे। जबकि दूसरी ओर भंसाली के सपोर्ट में बॉलीवुड है। सेंसर बोर्ड के चेयरमैन पहलाज निहलानी ने कहा कि ऐसे में राज्य सरकार क्या कर रही थी ? फिल्म क्रू को सिक्योरिटी क्यों नहीं दी गई? श्याम बेनेगल ने कहा कि इस तरह से फिल्म बनाने वालों पर हमले होंगे तो वे डरने लगेंगे। ऋतिक रोशन का कहना है कि मिस्टर भंसाली सर, मैं आपके साथ हूं , ये वास्तव में गुस्सा दिलाने वाला है। करण जौहर ने ट्वीट किया, संजय भंसाली के साथ जो हुआ, उससे मैं चौंक गया। इस वक्‍त इंडस्ट्री के सभी लोगों को उनके साथ होना चाहिए।

निश्‍चित ही उनके साथ जो मार-पीट हुई उसकी भर्स्‍सना सभी को करनी चाहिए, किंतु क्‍या आज यह फिल्‍म इंडस्‍ट्री के उन तमाम लोगों को जो आज भंसाली के समर्थन में आवाज उठा रहे हैं नहीं सोचना चाहिए कि फिल्‍म निर्माण और मनोरंजन के नाम पर इतिहास के साथ छेड़छाड़ करना कहां तक उचित ठहराया जाना चाहिए। वह इतिहास ही है जो अपनी भावी पीढ़ी को आत्‍मसम्‍मान का भान कराता है । अपने पुरखों पर गौरव करना सिखाता है, अपने कल से सीख लेकर बेहतर भविष्‍य का निर्माण करना सिखाता है । ऐसे इतिहास के साथ खिलबाड़ करने को निश्‍चित ही कहीं से सही नहीं ठहराया जा सकता है । मिस्‍टर भंसाली इतिहास को इतिहास की तरह ही प्रस्‍तुत करें तो ही बेहतर है, अन्‍यथा इस फिल्‍म निर्माण का कोई औचित्‍य नहीं ।