इतिहास से छेड़छाड़ को अभिव्‍यक्‍ति का नाम देना

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी


फिल्म डायरेक्टर संजय लीला भंसाली एक श्रेष्‍ठ फिल्‍म निर्देशक हैं, आज इस बात को कोई नकार नहीं सकता हैं । अभी तक की अपनी निर्देशित फिल्‍मों बाजीराव मस्तानी, गोलियों की रासलीला , साँवरिया, ब्लैक, देवदास, हम दिल दे चुके सनम, खामोशी जैसी फिल्‍मों में जिस तरह उन्‍होंने अपनी प्रतिभा का कमाल निर्देशन के जरिए दिखाया है, निसंदेह उसकी चहुंओर तारीफ हुई है। किेंतु इस बार उन्‍हें समुचे देश में ही नहीं दुनिया के तमाम देशों से पद्मावती फिल्‍म को लेकर लगातार आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है। हलांकि यह भी सत्‍य है कि जिस तरह राजपूत करणी सेना ने फिल्‍म निर्माण के सेट पर उनसे बदसुलूकी की है, उसके बाद से फिल्‍मी दुनिया के कई कलाकार एवं निर्माता-निर्देशक इस कृत्‍य को सीधे अभिव्‍यक्‍ति पर किए गए कुठाराघात के रूप में देख रहे हैं । जो लोग इसे अभिव्‍यक्‍ति पर हमला मान रहे हैं उनसे आज यह सीधे जरूर पूछा जाना चाहिए कि क्‍या अपने इतिहास को या अपने एतिहासिक महान चरित्रों को विकृत करके दिखाना, उसे कला – प्रदर्शन मात्र मानकर उससे साथ खिलवाड़ करने को वे कहां तक उचित ठहराएंगे ? भारतीय संविधान तो इस बात की इजाजत नहीं देता कि आप दूसरों की भावनाओं को आहत करें।

वस्‍तुत: वीर रानी पद्मावती का चरित्र तो बिल्‍कुल ऐसा नहीं कि उसके साथ एतिहासिक खिलवाड़ करने की थोड़ी भी गुंजाईश हो । इस वक्‍त जिस तरह से सोशल मीडिया पर भंसाली को लेकर कमेन्‍ट आ रहे हैं, उन्‍हें देखें तो वे साफ कह रहे हैं कि राजपूत वीरों के इतिहास के साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं होगी। पहले छोटे परदे पर यही काम एकता कपूर भी अपने सीरियल जोधा-अकबर के माध्‍यम से कर चुकी हैं जिसका कि भारी विरोध किया गया था। यह सर्वविदित है कि इस सीरियल में इतिहास को तोड़-मरोड़ कर जोधा को गलत तरीके से पेश किया गया था। वस्‍तुत: आज वही इतिहास को गलत तरीके से प्रस्‍तुत करने का कार्य कला, मनोरंजन के नाम पर भंसाली रानी पद्मावती फिल्‍म बनाकर करने जा रहे हैं। जिस रानी ने अपनी शील, चरित्र एवं संस्‍कारों की रक्षा के लिए एक मलैच्‍छ के पास जाने की अपेक्षा मौंत को अंगीकार करना उचित समझा हो, उसके लव सीन तैयार कर देश की वर्तमान पीढ़ी को एतिहासिक आधार पर गुमराह करने का यह प्रयत्‍न क्‍यों किया जा रहा है ?

संजय लीला भंसाली को क्‍या यह साफ-साफ नहीं दिखाई दे रहा है कि रानी पद्मावती चित्तौड़गढ़ की रानी और राजा रतनसिंह की पत्नी थीं। खिलजी वंश का शासक अलाउद्दीन खिलजी खूबसूरती से मोहित हो पद्मावती को पाना चाहता था। रानी को जब ये पता चला तो उन्होंने अलाउद्दीन के पास जाने के बजाय कई दूसरी 16 हजार राजपूत महिलाओं के साथ अपने कुल और देश की मर्यादा के लिए जौहर व्रत (आग में कूदकर आत्मदाह कर लेना ) उचित समझा । राजस्‍थान की धरती, परंरागत गीतों में इसके सत्‍य प्रमाण आज मौजूद हैं । प्रश्‍न यह है कि फिल्‍म निर्माण और मनोरंजन के नाम पर इस साक्ष्‍य को जुठला देना कहां तक उचित माना जाना चाहिए? सच पूछिए तो रानी पद्मावती भारत की हर उस स्‍त्री का आदर्श और गौरव हैं जो यह मानती है कि स्‍वाभिमान और आत्‍मसम्‍मान से बढ़कर जीवन में कुछ भी नहीं है।

भंसाली अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मिनी पर बन रही अपनी इस फिल्म ‘पद्मावती’ की शूटिंग के दौरान उन दोनों के बीच कथित लव सीन दर्शा भी कैसे सकते हैं, जबकि यह बिल्‍कुल असत्‍य है। इसलिए ही भंसाली की इस फिल्‍म को लेकर इस वक्‍त राजस्‍थान में आक्रोश है, वहां चहुंओर कहा यही जा रहा है कि हम राजपूतों की धरती पर अपने पूर्वजों को लेकर दिखाई जा रही अश्‍लीलता को बर्दाश्त नहीं करेंगे। जबकि दूसरी ओर भंसाली के सपोर्ट में बॉलीवुड है। सेंसर बोर्ड के चेयरमैन पहलाज निहलानी ने कहा कि ऐसे में राज्य सरकार क्या कर रही थी ? फिल्म क्रू को सिक्योरिटी क्यों नहीं दी गई? श्याम बेनेगल ने कहा कि इस तरह से फिल्म बनाने वालों पर हमले होंगे तो वे डरने लगेंगे। ऋतिक रोशन का कहना है कि मिस्टर भंसाली सर, मैं आपके साथ हूं , ये वास्तव में गुस्सा दिलाने वाला है। करण जौहर ने ट्वीट किया, संजय भंसाली के साथ जो हुआ, उससे मैं चौंक गया। इस वक्‍त इंडस्ट्री के सभी लोगों को उनके साथ होना चाहिए।

निश्‍चित ही उनके साथ जो मार-पीट हुई उसकी भर्स्‍सना सभी को करनी चाहिए, किंतु क्‍या आज यह फिल्‍म इंडस्‍ट्री के उन तमाम लोगों को जो आज भंसाली के समर्थन में आवाज उठा रहे हैं नहीं सोचना चाहिए कि फिल्‍म निर्माण और मनोरंजन के नाम पर इतिहास के साथ छेड़छाड़ करना कहां तक उचित ठहराया जाना चाहिए। वह इतिहास ही है जो अपनी भावी पीढ़ी को आत्‍मसम्‍मान का भान कराता है । अपने पुरखों पर गौरव करना सिखाता है, अपने कल से सीख लेकर बेहतर भविष्‍य का निर्माण करना सिखाता है । ऐसे इतिहास के साथ खिलबाड़ करने को निश्‍चित ही कहीं से सही नहीं ठहराया जा सकता है । मिस्‍टर भंसाली इतिहास को इतिहास की तरह ही प्रस्‍तुत करें तो ही बेहतर है, अन्‍यथा इस फिल्‍म निर्माण का कोई औचित्‍य नहीं ।

30 COMMENTS

  1. डॉ. मधुसूदन जी और रमश सिंह जी के बीच वार्तालाप पढ़ सोचता हूँ कौन इतिहासकार और किस इतिहास की बात करते हैं और उस पर इतिहास लेखन में इतिहासकारों, विशेषकर विदेशी इतिहासकारों के अच्छे बुरे उद्देश्य को भूल कल के इतिहासकारों को क्यों सिर पर बिठाए हुए हैं? अब तक राष्ट्रद्रोहियों द्वारा रचाया अथवा व्याख्यित किया इतिहास केवल हमें बांटने, हमारी संस्कृति, हमारी परम्पराओं को निर्बल करने का क्रूर प्रयास रहा है| कल के इतिहासकार भारतीयों को निरंतर शोषित करते “समय है बलवान” के समय को बांधे बैठे हैं जबकि सामान्य भारतीय के लिए परम्परा सदैव उसका साथ देती रही है|

    हमारे ग्रन्थ और शास्त्र इतिहास नहीं हैं| वे हमारी परम्पराओं के आधार हैं| भारतीय ग्रंथों व शास्त्रों का उचित स्पष्टीकरण अथवा अनुवाद कर हमें अपनी परम्पराओं को उचित दिशा देनी होगी| क्यों न हम अपनी परम्पराओं में हिंदुत्व के आचरण व शासकीय न्याय व विधि व्यवस्था द्वारा इक्कीसवीं सदी में ओरों के लिए एक नए संगठित भारतीय समाज के ऐसे इतिहास की रचना करें जिसके गौरव में भारत-पुनर्निर्माण का सपना पूरा हो सके|

  2. इतिहास में संशोधन करनेवालों को ध्यान में लेना चाहिए कि (१) इतिहास लिखनेवालों की प्रदत्त सामग्री कौनसी है? (२) किसने वह इतिहास लिखवाया है?
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    बाबरनामा, जहाम्गिरनामा ऐसी प्रायः ३२ (?) तवारिखें लिखी गयी थीं; जिसका उपयोग कर, हजार हजार पन्नोंके,आंठ ग्रन्थ लिखे गए; जो भारत में नेहरू ने, प्रतिबंधित किए, ये ग्रंथ जॉहन्सन और डाव्सन (?) ने संपादित किए।
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    (क)१८५७ के स्वातंत्र्य युद्ध को “विप्लव” कहना। (ख) स्वातंत्र्य के आंदोलन में, सुभाष, सावरकर, अरविन्द, इत्यादि को उपेक्शित। (ग)हमारा अंक का योगदान उपेक्षित (घ) संस्कृत उपेक्षित (च) आर्यों की घुसपैठ का भ्रम फैलाना (छ)संस्कृत की पाण्डुलिपियाँ चुराना (ज) रॉयल एशियाटिक सोसायटी बनाना(झ)हमारा अंक का योगदान उपेक्षित रखना(ट) संस्कृत उपेक्षित रखना(ठ) आर्यों की घुसपैठ का भ्रम फैलाना …..इत्यादि इत्यादि क्या संकेत करते हैं? जरा पढनेका अनुरोध।
    …..इत्यादि इत्यादि क्या संकेत करते हैं? लिखनेवाला किसने प्रेरित किया था?
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    पंक्तियों के बीच में(अलिखित) जो पढ सकता है, और सच्चे ब्राह्मण का आदर्श और (जीवन समर्पण) जो कर सकता है; इतिहास का संशोधन कर सकता है।
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    सांस्कृतिक राष्ट्रीयता का आधार हमें लेना होगा। यही देश की आत्मा है। उसे खण्डित कर हमारा वयंकार समाप्त हो जाएगा। प्रेरणा ही नहीं बचेगी।

    ऐसे सारे बिन्दू मस्तिष्क में उठ रहे हैं।

    • डॉक्टर साहिब, आप इतिहास लेखन का मूल सिद्धांत भूल रहे हैं.इतिहास में हमेशा संशोधन होता आया है.जैसे जैसे अनुसन्धान में प्रगति होती है,वैसे वैसे इतिहास में संशोधन की आवश्यकता पड़ती है. मोहन जोडारो और हरप्पा के सभ्यता की खोज इसका ज्वलंत उदाहरण हैं. इतिहास का बहुत सा अंश किम्बदंतियों और चारण की रचना पर आधारित होता है,पर उसको वास्तविक इतिहास समझना भूल है.इतिहास लेखक कहानीकार नहीं होता,उसे वास्तविकता तक पहुँचने के लिए इससे बहुत आगे सोचना पड़ता है.

      • सिंह साहब, कृपया आप *इतिहास में संशोधन* विषय पर, *संदर्भ सहित*, सटीक आलेख लिखिए। फिर बिन्दूवार चर्चा सरल होगी। यह अनुरोध करता हूँ।

        • रमश सिंह जी से ऐसा अनुरोध कर आपने तो विषय पर वार्तालाप को सदा के लिए विश्राम दे दिया है| संदर्भ सहित इतिहास में संशोधन करेंगे तो ऊपर अन्तरिक्ष में बैठे लेखकों द्वारा प्रस्तुत लेखों और पाठकों द्वारा उनकी टिप्पणी का निरीक्षण करते रमश सिंह जी को पहले धरती पर लौट अपना दृष्टिकोण बदलना होगा| यह स्थिति मेरी मातृभाषा में “ਸੱਪ ਦੇ ਮੂੰਹ ਵਿਚ ਕੋਹੜ ਕਿਰਲੀ,” अर्थात सांप के मुंह में विषैली छिपकली जो न छोड़े बने और न ही निगलते बने को सार्थक करती है!

        • मुझे ऐसी कोई आकांक्षा नहीं है.मैंने इस विषय पर बोलना इसलिए उचित समझा ,क्योंकि मुझे लग रहा था कि इस विषय पर इस तरह का लेखन एक तो मौलिकता और सृजनात्मकता को चुनौती दे रहा है,दूसरी तरफ एक ऐसे इतिहास को प्रमाणिकता दे रहा है,जिसका आज पद्मावत और राजस्थान में फैले हुए कुछ चारणीय तुकबंदियों के अतिरिक्त कोई आधार नहीं है.चूंकि एक ख़ास जाति के,जिससे मैं भी सम्मिलित हूँ,झूठी दम्भ को हवा दी जा रही थी ,जिसे मैं उचित नहीं समझता,इसलिए मुझे भी इस विवाद में कूदना पड़ा.इतिहास लेखन के बारे में मैंने जो टिपण्णी लिखी है,वह पूर्ण विश्व के इतिहास पर लागू है.अगर आपको यह गलत लग रहा है,तो आप प्रमाण सहित इसको गलत सिद्ध कीजिये.अगर इसके बदले आप मुझे भारत के ईंधन आपूर्ति वाले टिपण्णी पर कुछ लिखने को कहते ,तो मैं अपनी योग्यतानुसार कुछ अवश्य लिखता,क्योंकि उससे भारत का विकास जुड़ा हुआ है.

          • कमसे कम इतिहास संशोधन के सिद्धान्त पर आलेख का अनुरोध करता हूँ।

          • हर टिपण्णी पर आलेख लिखना संभव है क्या? मैंने मोहन जोदड़ो और हरप्पा की खुदाई के पहले और बाद के इतिहास का उदाहरण दिया था. बहुत कालों का इतिहास इसी तरह दफ़न है और उस पर पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई किये जाने का असर पड़ता है.आप किसी भी देश के पुरातत्व विभाग से संपर्क कर यह पूछ सकते हैं.इस पर आलेख लिखने की मैं कोई आवश्यकता नहीं समझता,आपके लिए यह काम ज्यादा आसान है,क्योंकि आप एक प्रसिद्ध व्यक्ति हैं.ऐसे मेरे इस कथन की पुष्टि भी पुरातत्व विभाग कर देगा.अगर आप फिर भी अपनी बात कुतर्क द्वारा मनवाना चाहते हैं ,तो यह संभव नहीं है.ऐसे प्रवक्ता.कॉम पर आपसे हाँ में हाँ मिलाने वाले भी बहुत हैं,पर उससे मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता.

      • जिस इतिहास के लिये राजस्थान की मिट्टी ह्जारो सालो तक खुन मे रंग दि गयी हो
        उस इतिहास की कोमा या खडीपाइ भी हटाने नही देंगे

  3. aajtak.in [Edited By: विष्णु नारायण]

    नई दिल्ली, 28 जनवरी 2017, अपडेटेड 19:24 IST

    बॉलीवुड के मशहूर निर्देशक संजय लीला भंसाली द्वारा बनाई जा रही फिल्म ‘पद्मावती’ पर हुए बवाल के बाद से फिल्म की शूटिंग रोक दी गई है. गौरतलब है कि बीते दिन राजस्थान की करणी सेना ने उन पर इतिहास और तथ्य से खिलवाड़ का आरोप लगाते हुए हमला कर दिया था. उन्होंने जयपुर में हो रही फिल्म की शूटिंग पर रोक लगा दी है.

  4. हमलोगों ने इतिहास में पढ़ा था कि अल्लाउदीन खिलजी ने पद्मिनी के रूप की गाथा सुनकर महाराज रतन सिंह से अनुरोध किया था कि उसे महारानी की एक झलक दिखला दी जाये तो वह संतुष्ट हो जायेगा.इस अनुरोध को मानते हुए रतन सिंह ने महारानी की झलक दर्पण के माध्यम से उसको दिखला दी थी.क्या मैंने यह गलत पढ़ा था? अगर यह सही है,तो उन्होंने ऐसा क्यों किया था?क्या उनको नहीं मालूम था कि इससे उसकी सौंदर्य लोलुपता और भड़केगी?हुआ वही.उसके बाद तो वह पद्मिनीको प्राप्त करने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो गया.इसके बाद जो हुआ,वह इतिहास में वर्णित है.अब बात आती है,फिल्म की.क्या एक सृजन शील लेखक या फिल्म निर्देशक इसी को लिख कर या फिल्मा कर संतुष्ट हो जाये?उसको क्यों यह अधिकार नहीं हैकि वह दिखाए कि उस समय अल्लाउदीन भीतर ही भीतर क्या सोच रहा था?हो सकता है कि उसके मन में यह भी विचार उठ रही हो कि महारानी मेरे जैसे मर मिटने के लिए तैयार प्रेमी को अवश्य प्यार करने लगी होगी.अगर यही प्रसंग उसके सपने में आता है,तो इसमें कहाँ गलत है? इसमें इतिहास से कहाँ छेड़ छाड़ है?पता नहीं संजय लीला भंसाली ने यह भी फिल्माए जाने की जुर्रत की थी या नहीं,पर अगर उन्होंने ऐसा किया था,तो उनकी कोई गलती नहीं है.अगर इसके लिए कोई भड़कता है,तो वह मूर्खता है.इसको जो हवा दे रहे हैं,पता नहीं उनको क्या कहा जाये?
    रही बात जोधा अकबर की,तो मुझे नहीं मालूम कि ऐसा कोई सीरियल है या नहीं,पर फिल्म अवश्य है और विवाद उसी फिल्म पर उठा था..

    • यह ऐसा विषय था कि मुझे आगे भी खोज करनी पडी.अब तो यह तथ्य उभर कर आया है कि इतिहास लेखक इस पर भी सहमत नहीं हैं कि वास्तव में पद्मिनी /पद्मावती नामक कोई ऐसी रानी रतन सेन के रनिवास में मौजूद थी भी या नहीं .इस पर इतिहास लेखक अवश्य सहमत हैं किअल्लाउदीन खिलजी ने चित्तौड़ पर चढ़ाई की थी और जौहर हुआ था,पर इसका कारण पद्मिनी थी,यह कोई नहीं मानता.इसका मतलब हमलोगों ने जो स्कूल में पढ़ा था ,वह भी शायद आज गलत प्रमाणित ओ चूका है.

  5. (१)भणसाली ऐतिहासिक विषयों को छोडकर अपना धंधा करे।
    इतिहास पर ये चोर लोग Disclaimer डाल देते हैं।
    (२)प्रश्न: ==>*तो फिर ऐतिहासिक नाम ही क्यों रखते हो?*
    कला का स्वातंत्र्य आपको झूठ प्रसारित करने की अनुमति नहीं देता।
    ऐसे धंधेबाजों के प्रति हमें कोई आदर नहीं है।
    (३) इतिहास को विकृत कर के पैसा बनानेवालों का कठोरतम विरोध होना चाहिए।
    झूट जब परदेपर दिखाया जाता है; तो भोला युवा प्रेक्षक उसी को सच्चा इतिहास मान लेता है।
    और कहीं पर, शीघ्र गति से Disclaimer चढा देते हैं, जो पढा भी नहीं जा सकता।
    (४) देश की परम्परा और इतिहास को विकृत कर के स्वयं धनवान बननेवालों को बिलकुल सहा न जाए।
    (५) कहता हूँ, कि, जा अपनी माँ, बहन का चारित्र्य विकृत कर के पैसा बना; और सच्चे नाम देकर Disclaimer लगा देना।
    (६) हमारे शत्रु, परदेश में ऐसे देशघातकों का सम्मान करते हैं, और सर पे बिठाते हैं।
    *जिस दिन ये लोग मरेंगे, एक दिन भी जिए बिना मरेंगे।*

    • डॉक्टर मधुसूदन,सच सच बताइये,क्या इसके पहले महाराज रतन सिंह,महारानी पद्मिनी और बादशाह अल्लाउदीन सम्बंधित इस कहानी के बारे में कुछ भी जानते थे?ऐसे” भारत का इतिहास हमारी गलतियों की कहानी “नामक एक आलेख प्रवक्ता पर मौजूद है.अगर समय मिले तो उसको पढ़ कर देखिये कि ,हमलोगों ने क्या किया है?भारतीय इतिहास में राजपूतों की मूर्खता और उनकी गद्दारी की कहानी भी कम नहीं है.

      • aajtak.in [Edited By: विष्णु नारायण]

        नई दिल्ली, 28 जनवरी 2017, अपडेटेड 19:24 IST

        बॉलीवुड के मशहूर निर्देशक संजय लीला भंसाली द्वारा बनाई जा रही फिल्म ‘पद्मावती’ पर हुए बवाल के बाद से फिल्म की शूटिंग रोक दी गई है. गौरतलब है कि बीते दिन राजस्थान की करणी सेना ने उन पर इतिहास और तथ्य से खिलवाड़ का आरोप लगाते हुए हमला कर दिया था. उन्होंने जयपुर में हो रही फिल्म की शूटिंग पर रोक लगा दी है.

        • अपने को स्वयंभू मानने वाले और भारत की पौराणिक गरीमा की सुरक्षा का दावा करने वाले बहुत से दलाल आजकल मैदान में उतर आये हैं.उचित मूल्य देकर बहुतों का मुंह बंद कराया जाता रहा है,पर संजय भंसाली ने शूटिंग रोक कर इनके सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया.

          • चूडावतों के सरदार जैतसिंह चूडावत की कहानी ! मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह की सेना की दो राजपूत रेजिमेंट चूडावत और शक्तावत में अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए एक प्रतियोगिता हुई थी ! इस प्रतियोगिता को राजपूतों की अपनी आन, बान और शान के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर देने का अद्भुत उदाहरण माना जाता है !
            मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह की सेना में ,विशेष पराक्रमी होने के कारण “चूडावत” खाप के वीरों को ही “हरावल” यानी युद्ध भूमि में अग्रिम पंक्ति में रहने का गौरव प्राप्त था व वे उसे अपना अधिकार समझते थे ! किन्तु “शक्तावत” खाप के वीर राजपूत भी कम पराक्रमी नहीं थे ! उनके हृदय में भी यह इच्छा जागृत हुई कि युद्ध क्षेत्र में मृत्यु से पहला मुकाबला हमारा होना चाहिए ! अपनी इस महत्वाकांक्षा को महाराणा अमरसिंह के समक्ष रखते हुए शक्तावत वीरों ने कहा कि हम चूडावतों से त्याग,बलिदान व शौर्य में किसी भी प्रकार कम नहीं है ! कृपया हरावल में रहने का अधिकार हमें दीजिये ! सभी जानते थे कि युद्ध भूमि में सबसे आगे रहना अर्थात मृत्यु को सबसे पहले गले लगाना है ! मौत की इस तरह पहले गले लगाने की चाहत को देख महाराणा धर्म-संकट में पड़ गए कि किस पक्ष को अधिक पराक्रमी मानकर युद्ध भूमि में आगे रहने का अधिकार दिया जाए ?
            हरावल में आगे रहने का निर्णय करने के लिए उन्होंने एक कसौटी तय की, इस कसौटी के अनुसार यह तय किया गया कि दोनों दल उन्टाला दुर्ग पर अलग-अलग दिशा से एक साथ आक्रमण करेंगे व जिस दल का व्यक्ति पहले दुर्ग में प्रवेश करेगा उसे ही युद्ध भूमि में रहने का अधिकार दिया जाएगा !
            प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए दोनों दलों के रण-बांकुरों ने उन्टाला दुर्ग (किले) पर आक्रमण कर दिया ! शक्तावत वीर दुर्ग के फाटक के पास पहुंच कर उसे तोड़ने का प्रयास करने लगे तो चूडावत वीरों ने पास ही दुर्ग की दीवार पर रस्से डालकर चढ़ने का प्रयास शुरू कर दिया ! इधर शक्तावतों ने जब दुर्ग के फाटक को तोड़ने के लिए फाटक पर हाथी को टक्कर देने के लिए आगे बढाया तो फाटक में लगे हुए लोहे के नुकीले शूलों से सहम कर हाथी पीछे हट गया !
            हाथी को पीछे हटते देख शक्तावतों का सरदार बल्लू शक्तावत, अद्भुत बलिदान का उदाहरण देते हुए फाटक के शूलों पर सीना अड़ाकर खड़ा हो गया व महावत को हाथी से अपने शरीर पर टक्कर दिलाने को कहा जिससे कि हाथी शूलों के भय से पीछे न हटे ! एक बार तो महावत सहम गया, किन्तु फिर वीर बल्लू को साक्षात यमराज जैसा क्रोधावेश में देखकर उसे विवश होना पड़ा | अंकुश खाकर हाथी ने शक्तावत सरदार बल्लू को टक्कर मारी, फाटक में लगे हुए शूल वीर बल्लू शक्तावत के सीने में घुस गए और वे वीर-गति को प्राप्त हो गये ! उसके साथ ही दुर्ग का फाटक भी टूट गया !

            शक्तावत के दल ने दुर्ग का फाटक तोड़ दिया ! दूसरी ओर चूडावतों के सरदार जैतसिंह चूडावत ने जब यह देखा कि फाटक टूटने ही वाला है तो उसने पहले दुर्ग में पहुंचने की शर्त जीतने के उद्देश्य से अपने साथी को कहा कि मेरा सिर काटकर दुर्ग की दीवार के ऊपर से दुर्ग के अन्दर फेंक दो ! साथी जब ऐसा करने में असमर्थ दिखा तो उसने स्वयं अपना मस्तक काटकर दुर्ग में फेंक दिया ! फाटक तोड़कर जैसे ही शक्तावत वीरों के दल ने दुर्ग में प्रवेश किया, तो उससे पहले ही चूडावत सरदार का कटा मस्तक दुर्ग के अन्दर मौजूद था ! ,

          • इसमें दोनों को आप वीरता का नाम देंगे,पर कम से कम चूडावत सरदार के कार्य को तो मैं वीरता नहीं मान सकता,पर यह सब बहसआखिर क्यों?बात जब पद्मिनी या पदमावती की है,तो उसको वहीँ तक क्यों न सीमित रखा जाये.बात तो सच पूछिए तो वह भी नहीं है.बात केवल सर्जानत्मकता की है.इतिहास कारों में अल्लाउदीन खिलजी के पद्मावती पर आसक्ति के बारे में भी एकमतता नहीं है. जायसी के पद्मावत में अतिशयोक्ति है,अतः उसको प्रामाणिक इतिहास नहीं माना जा सकता.मेरे विचार से पद्मावत एक मौलिक सृजन है.पद्मावती वहां केवल प्रतीक रूप में है.भंसाली भी मूल आधार के साथ बिना छेड़ छाड़ किये अपनी फ़िल्म बना रहे थे. अगर सपने में अल्लाउदीन की फंतासी दिखलाई भी गयी थी ,तो उससे वास्तविकता में क्या अंतर पड़ रहा था?मैंने तो ‘कैकेई का अन्तर्द्वन्द्व’ नामक एक कहानी लिखी है,जो प्रवक्ता.कॉम पर मौजूद है.उस कहानी में कैकेई का चरित्र रामचरित मानस में दिखाए गए चरित्र से एकदम भिन्न है.उसपर तो प्रवक्ता.कॉम के किसी प्रवेक्षक ने कोई आपत्ति नहीं की.

          • इसमें दोनों को आप वीरता का नाम देंगे,पर कम से कम चूडावत सरदार के कार्य को तो मैं वीरता नहीं मान सकता,पर यह सब बहसआखिर क्यों?बात जब पद्मिनी या पदमावती की है,तो उसको वहीँ तक क्यों न सीमित रखा जाये.बात तो सच पूछिए तो वह भी नहीं है.बात केवल सर्जानत्मकता की है.इतिहास कारों में अल्लाउदीन खिलजी के पद्मावती पर आसक्ति के बारे में भी एकमतता नहीं है. जायसी के पद्मावत में अतिशयोक्ति है,अतः उसको प्रामाणिक इतिहास नहीं माना जा सकता.मेरे विचार से पद्मावत एक मौलिक सृजन है.पद्मावती वहां केवल प्रतीक रूप में है.भंसाली भी मूल आधार के साथ बिना छेड़ छाड़ किये अपनी फ़िल्म बना रहे थे. अगर सपने में अल्लाउदीन की फंतासी दिखलाई भी गयी थी ,तो उससे वास्तविकता में क्या अंतर पड़ रहा था?मैंने तो ‘कैकेई का अन्तर्द्वन्द्व’ नामक एक कहानी लिखी है,जो प्रवक्ता.कॉम पर मौजूद है.उस कहानी में कैकेई का चरित्र रामचरित मानस में दिखाए गए चरित्र से एकदम भिन्न है.उसपर तो प्रवक्ता.कॉम के किसी प्रवेक्षक ने कोई आपत्ति नहीं की.

          • आप कहते हैं, कि *सपने में अल्लाउदीन की फंतासी दिखलाई भी गयी थी ,तो उससे वास्तविकता में क्या अंतर पड़ रहा था?* ऐसी फंतासी भी खिलजी ने बयाँ की थी क्या? जो घटा ही नहीं उसका भी फंतासिक अस्तित्व आप के लिए, ऐतिहासिक प्रमाण, बनता है। इस फंतासी को आपने कहाँ पढा?
            या एक ही विषय को आप दो अलग मानकों पर कस रहे हैं?
            कुछ उत्तर देंगे?वाह! वाह!!==> फंतासी को भी सुविधा से, प्रमाण माननेवाला विद्वान।

          • फंतासी तो फंतासी है,इसका इतिहास से क्या सम्वन्ध?अगर फंतासी किसी के अपने दिमाग की उपज हो,तो वह व्यक्ति उक्त वर्णन कर भी सकता है,पर अगर कोई लेखक किसी दूसरे की फंतासी के बारे में सोचेगा,तो उसका कोई आधार नहीं हो सकता.यह लेखक या कवि की सृजनशीलता है. वह उस चरित्र से एकात्मकता कायम कर लेता है,जिस चरित्र का वह वर्णन कर रहा है.अगर सभी इसकों आत्मसात कर लेते तो कोई भी लेखक या कवि बन जाता,.वास्तविकता यह है कि वे तो इसे समझ भी नहीं ,जो सृजनात्मक लेखन में समर्थ नहीं है.

          • फंतासी यदि है, तो सच्चे ऐतिहासिक नाम नहीं लेने चाहिए।
            यदि कोई आर सिंह को फंतासी में अपशब्द कहे तो कैसे सहेंगे? मैं भी उसका विरोध ही करूँगा। यही तर्क सही है। कोई फंतासी में आप को अपशब्द कह रहा है। और कहता है, कि, यह फंतासी है। क्या कहते हैंं आप?

          • डॉक्टर साहिब ,अब तो आप बच्चों जैसी बातें करने लगे.क्या आप कल्पना और फतांसी का अर्थ एक दम नहीं समझते या बेबुनियादी तर्क करना चाहते हैं?आप अपनी टिपण्णी को फिर से पढ़िए.कल्पना या फंतासी का यही पहलू हैं. जो इतने कवि या कल्पित कथा लेखक हैं,वे क्या करते हैं?लेखकों के लिए अधिकतर एक आधार होता है,जिस पर वे अपनी कल्पना के सहारे बड़े बड़े उपन्यास तक लिख डालते हैं.कहानियां तो लिखी ही जाती है.कविता में तो बहुत बार वह आधार भी नहीं होता.छायावाद और रहस्यवाद की अधिकतर रचनाएँ इसी श्रेणी में आती है.मेरी बीस से अधिक कहानियां प्रवक्ता.कॉम पर हैं,उसमे बहुत सी कहानियों का कोई आधार नहीं है.कल्पना या फंतासी ही उनके आधार हैं.

          • मैं इसका उत्तर दे चूका हूँ.क्या प्रवक्ता.कॉम उसे सामने लाएगा या यह उत्तर भी डॉक्टर साहिब के प्रति श्रद्धा को भेंट हो जायेगा?

          • इस टिपण्णी में मेरा मखौल उड़ाए जाने के बाद मैंने जो टिपण्णी की है,उसे क्यों प्रकाश में नहीं लाया जा रहा है?यह तो अच्छा मजाक है?कोई गाली दे रहा है और मैं उसका प्रतिकार भी नहीं कर सकता.

          • डॉक्टर मधुसूदन जी,एक नेक सलाह. आप जब मुझसे विवाद कर रहे हों या विचार विमर्श कर रहे हों तो अपने साथ जुड़े हुए तगमों को भूल जाइये,क्योंकि मुझ पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता,क्योंकि मैं विवाद के विषय को देखता हूँ,उसके पीछे के व्यक्ति को नहीं.

          • (१)आप कहते हैं; *उचित मूल्य देकर बहुतों का मुंह बंद कराया जाता रहा है* आप चालाकी से,अप्रत्यक्ष रीति से, ऐसा सूचित कर, निश्चित ही, भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
            (२) नोट बन्दी के कारण अब इसकी संभावना भी मोदी ने कम कर दी है। बोलो जय भारत।
            (३) और, संजय लैला भणसाली को भी शायद इतना दुःख नहीं हुआ होगा?

      • ताऊ सा ,एक बार राजस्थान आकर देखो ,
        फ़िर बात करना राजस्थान के इतिहास की ,

      • ताऊ सा ,एक बार राजस्थान आकर देखो ,
        फ़िर बात करना राजस्थान के इतिहास की ,

        • अमर प्रताप जी,मैं राजस्थान बहुत बार जा चूका हूँ और राजस्थान के इतिहास से भी वाकिफ हूँ.वैसे आपको बुरा लागेगा,पर मेरे विचार से राजपूतों का इतिहास उनके वीरता के साथ साथ उनकी मूर्खता से भी भरा हुआ है.वहां गद्दार भी कम नहीं पैदा हुए हैं.

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