नर्मदाघाट का जगदीश  मंदिर है 750 साल पुराना, महन्तों की 12 वीं पीढ़ी कर रही है पूजा


आत्‍माराम यादव पीव

          नर्मदापुरम ऐतिहासिक काल से नंदों, मौर्य तथा शुंगों के विशाल साम्राज्य में शामिल रहा है ओर सातवाहनों दक्षिण के राष्ट्रकूट आभीरों तथा प्रतापी गुप्त सम्राटों के आधिपत्य में रखा है। सन् 1401 में गौरी तथा खिलजी सुल्तानों के नर्मदापुर को अपने राज्य में शामिल करने के पूर्व से ही नर्मदा तट पर सबसे प्राचीन जगदीश मंदिर है जो एक हजार साल पुराना माना गया है जबकि होशंगाबाद गजेटियर में 750 साल पुराने का उल्लेख किया गया है। इस मंदिर के संस्थापक श्री श्री 108 महंत रिध रामदास जी रहे तथा स्थापना जगतगुरु स्वामी रामानंदाचार्य के द्वारा सम्पन्न हुई। आष्चर्य है जहॉ 20-30 साल में बिलि्ंडगों में दरारें पड़ जाने से अनुपयोगी हो जाती है वही आठ-नौ सौ सालों पूर्व बना यह मंदिर कारीगरों की उच्च कलात्मक षिल्प का उदाहरण है जो अब भी यथावत खड़ा है और सैकड़ों भूकम्प के प्रकोपों को झेल चुका है। इस मंदिर में गुरु परंपरा की 11 पीढ़िया महंत के पद पर रही। जिसमें महंत लक्ष्मणदास जी, महंत गैवीदास जी, महंत शीतलदास जी, महंत रघुनाथदास जी, महंत भगवानदास जी, महंत लक्ष्मीदास जी महाराज, महंत बालमुकुंददास जी महाराज के बाद आजादी के पूर्व से महंत बिहारीलाल जी सन् 1981 तक महंत  रहे उसके बाद उनके शिष्य महंत नारायण दास जी वर्तमान में महंत के स्थान को शोभित कर रहे है।

भगवान जगन्नाथ, बलभद्र ओर सुभद्रा अनेक दिव्य स्वरूपों के साथ इस जगदीश मंदिर में विराजमान है। नर्मदापुर पहले एक 50-60 परिवारों का छोटा सा गाँव था तभी से इस मंदिर से विशाल लकड़ी के दो मंज़िला रथयात्रा की शुरुआत हुई जो कालांतर में शहर की वसीयत के साथ ही सन 1721 में ग्वालटोली बस जाने के बाद ग्वालों के शामिल होने से रथयात्रा ने विशाल रूप लेता गया ओर सन् 1865 के बाद यह रथयात्रा नगर में भ्रमण करने लगी ओर आजादी के पूर्व ही ग्वालटोली काली मंदिर पर यह रथयात्रा जाने से पूर्व ग्वाल समाज मंदिर पर भगवान को निमंत्रण देकर जाता और जनकपुरी इतवारा बाजार से यह रथयात्रा धूमधाम से ग्वालटोली पहुॅचती जो यह परम्परा आज भी प्रचलित है और तभी से अनेक भक्त रथ को रोकने ओर भंडारा करने का पुण्य करते रहे।        

 इतवारा बाजार में जगदीश मंदिर की डेढ़ एकड़ भूमि पर रथ के लिए जनकपुरी बनाई गई। यह भूमि जगदीश मंदिर की थी जिसे नगरपालिका, जिला प्रशासन ने बिना मंदिर की अनुमति लिए 1975 में महावीर टाकीज़ के लिए लीज पर दे दी, जब महावीर टाकीज़ के कर्ता धर्ता ओर प्रशासन की नीयत इस कीमती जमीन पर भगवान जगन्नाथ के रथ के रखने के लिए जनकपुरी को जगह देने से मुकर गए तब मंदिर के महंत नारायणदास ने भगवान की जमीन वापसी के लिए न्याय की गुहार किए जाने के बाद महावीर टाकीज़ में ताला डल गया ओर मामले में नगरपालिका ओर जिला प्रशासन से चल रहे प्रकरण में टाकीज़ के कर्ता-धर्ता फौजदार परिवार शामिल हो गए।

    नर्मदापुर के इस प्राचीन जगदीश मंदिर में 400 एकड़ भूमि डोलरिया ओर बाबई के विशाल मंदिर ओर जमीने जुड़ी होने से अब जमीन के कीमती हो जाने से नजर गढ़ाए लालची बिल्डरों, सेठों, साहूकारों की नजरे है ओर वे आए दिन ऐनकेन प्रकरेण मंदिर के महंत नारायणदास को राह का काँटा समझ षड्यंत्र रचकर इसे हथियाने में लगे है। नगर के वे लोग जो 50 वर्ष से ज्यादा आयु के है उन्होने इतवारा बाजार की जगदीश मंदिर की जनकपुरी वाली भूमि ओर टाकीज़ के स्थान पर विशाल कच्चा भवन जिसमे रथ को रखा जाता था देखा होगा ओर इसके पीछे इमलियों के झुरमुट ओर कतार से बने शौचालय जहा मार्केट बना दिया है। आज जैसे जगदीश मंदिर के महंत की लड़ाई प्रशासन से है वैसे है अनेक मामले दिख जाएँगे जो हमारे बुजुर्गों के किए गए दान धर्म के लिए विवादित रूप ले चुके है।

आत्‍माराम यादव पीव

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here