जल से जीवन अस्त व्यस्त है

0
174

संकट में है मांजरकूद गांव

उमेन्द्र सागर,

जल ही जीवन है यह कहावत तो हमने कई बार सुनी है पर जब जल ही मुसीबत बन जाए तो क्या करें? यह प्रश्न उन हजारों लोगों का है। जो जल तांडव के प्रकोप को झेलते रहते हैं| पिछले दिनों देश के कई हिस्सों में आने वाली बाढ़ नें भारी तबाही मचाई । बिहार से लेकर देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को भी काफी नुकसान उठाना पड़ा।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि बड़े शहर और बड़े राज्य में आने वाली प्राकृतिक आपदा के बाद राहत कार्य़ भी बड़े पैमाने पर हो जाता है परंतु कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां तक राहत कार्य नही के बराबर पहुंचता है।

छत्तीसगढ़ के जिला जांजगीर चाम्पा से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव मांजरकूद की स्थिति कुछ ऐसी ही है जहां प्रत्येक साल आने वाली बाढ़ तबाही तो लाती ही है लोगो तक राहत भी जल्दी नही पहुंच पाता। बताते चलें कि साल 2011 की जनगणना के अनुसार इस गांव की कुल आबादी 753 है| 911.72 एकड़ में फैला हुआ यह गांव एक टापू की तरह है जिसकेचारों ओर महानदी अपनी मौजुदगी का एहसास कराती है|

इस संबध में जब मांजरकूद गांव के कुछ लोगो से बात की गई तो 52 वर्ष के जीरालाल माली ने बताया“हमारे गाँव में बरसात के दिनों में लोगो को संघर्ष करना पड़ता है| हमारा गाँव चारों ओर से महानदी से घिरा हुआ है जिसके कारण पानी गाँव की गलियों से लेकर घर के आँगन में भरने लगता है| जन जीवन में अफरा तफरी मच जाती  है| घर ढहने लगते हैं लोग इधर उधर अपनी जान बचाने के लिए चिल्ला चिल्ला कर भागने लगते हैं| हमें अत्यंत दुखों का सामना करना पड़ता है| तब हमें शासन से गुहार लगानी पड़ती है| ताकि हमारे जन जीवन को बचाने में हमें सहायता प्रदान करें| परन्तु राहत का बचाव दल इतना सुस्त होता है की आने में काफी समय लगाता है| हमें मजबूर होकर ऊँचे-ऊँचे पेड़ो   पर  तथा गांव के सामुदायिक भवन में अपना आशियाना बनाना पड़ता है, ताकि बचाव दल के आने तक कम से कम जीवित रह सकें|”

60 वर्ष के बंटीराम माली के अनुसार “ प्राकृतिक रुप से हमारे गांव की जमीन काफी उपजाउ है जो हमारे लिए किसी भेंट से कम नही लेकिन बाढ़ के कारण लगातार जमीन का कटाव होता रहता है|  भूमि कटाव के कारणगाँवका कई एकड़ भू-भाग (ज़मीन) पानी में बह जाता है| जिसके कारण हर वर्ष जमीन कम होती जा रही है और हमारी उपज में काफी गिरावट हो रही है| सरकार को सब मालूम होते हुए भी इस ओर कोई ध्यान नही दिया जा रहा है| भूमि क्षरण के कारण साग, भाजी की खेती भी कम होती जा रही है और लोग अपना जीवन निर्वाह करने के लिए अन्य राज्यों में ईट-भठ्ठे में काम करने को चले जाते हैं| वहां उन्हे अत्यंत दुखों का सामना करना पड़ता है, लोग चाहते हैं कि भूमि क्षरण को रोकने के लिए पत्थरों से घेरा बंदी करवाएं|”

40 वर्ष के छवि लाला माली ने कहा कि “हमारे गाँव मांजरकूद कि आधी से ज्यादा जमीन ग्राम पंचायत कांसा के लोगो की है, जिसे खेती के लिए उपयोग करने पर हमारे गाँव वालों को फसल के कुल लाभ में से आधा उन्हे देना पड़ता है और आधा हम अपने पास रखते हैं। ऐसे मेंगाँव के परिवार को पालन-पोषण में कष्ट का सामना करना पड़ता है| इसी कारणगाँव की अधिकतर आबादी अपने बच्चों को दूसरे परिवार के सहारे छोड़ कर हर वर्ष ईट-भठ्ठे में काम करने के लिए चले जाते हैं|”

60 वर्ष की  दुधीन बाई ने बताया“ बचाव दल के कर्मचारी हमें बाढ़ में बचाने के लिए ज़रूर आते हैं लेकिन बहुत नुकसान होने के बाद। हमें खाना-पीना, कपड़ा तो दिया जाता है परन्तु क्षति पूर्ति के लिए कोई मुआवजा नही देते|”

18 वर्ष की लक्ष्मी यादव कहती हैं “हमारे गाँव के बाढ़ ग्रस्त होने के कारण विकास नही हो पा रहा है| लोग गांव से पलायन करते हैं। बाहर जाकर कमाना चाहते हैं। गांव में जो थोड़े बहुत स्कूल हैं वहां न अधिक छात्र हैं न शिक्षक। गांव की स्थिति के कारण यहां  पर कोई पढ़ाने भी नही आना चाहता। बच्चों की भी रुची पढ़ाई के प्रति ज्यादा नही है। मैने जो थोड़ी बहुत पढ़ाई की है उससे गाँव के छोटे-छोटे बच्चों को शिक्षा प्रदान करती हूँ| भविष्य में और पढ़ लिख कर एक शिक्षिका के रूप में अपने गाँव में शिक्षा देना चाहती हूँ ताकि मेरा गाँव एक शिक्षित और आदर्श गांव बन सके|”

लोगो की बातों से साफ प्रतीत होता है कि बाढ़ का प्रभाव किस तरह गांव को विकास से दूर कर रहा है। इसलिए छत्तीसगढ़ सरकार से मेरा अनुरोध है कि संपूर्ण राज्य के विकास में इस गांव को बढ़-चढ़ कर प्राथमिकता दी जाए ताकि प्राकृतिक आपदा से इन्हे न सिर्फ सुरक्षित किया जा सके बल्कि विकास की मुख्यधारा में जुड़ने का अवसर मांजरकूद को भी प्रदान हो।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,709 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress