जम्मू कश्मीर और अफस्पा को समझना जरुरी

रामेन्द्र मिश्रा

जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर एक बार फिर हलचल शुरू हो गई है | वार्ताकारों ने अपनी रिपोर्ट गृहमंत्री को सौंप दी है और उस रिपोर्ट पर, जो अब तक सार्वजनिक नहीं हुई है, लेखन और चर्चा बड़े स्तर पर प्रारंभ हो गई है | तीन सदस्यीय वार्ताकारों के इस दल ने काफी मेहनत की है | राज्य के 700 प्रतिनिधिमंडलों से वार्ताकारों ने मुलाकात की और उनकी बातें सुनी, उनसे ज्ञापन लिए | ऐसे में जब तक रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हो जाती तब तक बिना सिर पैर के किसी पूर्वाग्रह के साथ अनुमान लगाना ठीक नहीं होगा | हालाँकि वार्ताकारों के दामन पर भी कुछ दाग दिखाई दिए लेकिन फिलहाल हमें रिपोर्ट के सार्वजनिक होने का इन्तजार करना चाहिए |

दूसरी ओर जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जल्द ही राज्य से अफस्पा कानून हटाने की घोषणा करके एक नयी बहस को जन्म दे दिया है | इस बारे में उनका अमला सक्रिय भी हो गया हैं| कैबिनेट सचिव अजित सेठ के नेतृत्व में दिल्ली से एक प्रतिनिधिमंडल जम्मू कश्मीर गया है और बातचीत भी शुरू हो गई है | इसी बीच एक इत्तेफाक हुआ कि अफस्पा हटाने की गर्मागर्म बहस के दौरान ही घाटी में 4 ग्रेनेड फेंके जा चुके हैं | सेना ने भी अफस्पा न हटाने का सुझाव दिया है और मुख्य मंत्री भी कुछ हद तक बैक फुट पर दिखाई दिए और कहीं कि राज्य में सेना की भूमिका महत्वपूर्ण है | अफस्पा हटाना सही है या नहीं, अफस्पा हटेगा या नहीं इसका फैसला तो समय ही करेगा लेकिन हमें अफस्पा यानि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को समझने की जरुरत है क्योंकि जम्मू कश्मीर में अक्सर राजनीतिज्ञ इस कानून के सहारे अपनी राजनीति चमकाते रहते हैं और जम्मू कश्मीर तथा देश की जनता धोखे में रहकर विषय को समझ नहीं पाती |

अफस्पा कानून यानि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून की बात करें तो ये कानून कहीं भी तब लगाया जाता है जब वो क्षेत्र अशांत घोषित कर दिया जाता है | अब कोई क्षेत्र अशांत है या नहीं ये भी उस राज्य का प्रशासन तय करता है | इसके लिए संविधान में प्रावधान किया गया है और अशांत क्षेत्र कानून यानि डिस्टर्बड एरिया एक्ट (डीएए) मौजूद है जिसके अंतर्गत किसी क्षेत्र को अशांत घोषित किया जाता है | जिस क्षेत्र को अशांत घोषित कर दिया जाता है वहाँ पर ही अफस्पा कानून लगाया जाता है और इस कानून के लागू होने के बाद ही वहाँ सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं |

जम्मू कश्मीर के मामले में भी उमर अब्दुल्ला और उनसे पहले के मुख्यमंत्रियों (जिसमें उमर अब्दुल्ला के पिता फ़ारुक अब्दुल्ला भी हैं) ने ही वहाँ अफस्पा कानून लागू कर रखा है | जम्मू कश्मीर के नेताओं ने ही उस क्षेत्र को अशांत घोषित किया था जिसका मतलब था कि स्थिति उनके नियंत्रण से बाहर चली गयी थी, उसके बाद ही वहाँ सेना भेजी गयी थी | ये कानून लागू करने का फैसला या राज्य में सेना भेजने का फैसला दिल्ली ने नहीं किया था | फ़ौज भी अपनी मर्जी से या तानाशाही रवैया अपनाकर वहाँ जबरदस्ती नहीं रह रही है | अगर उमर अब्दुल्ला आज ये घोषणा कर देते हैं कि अब जम्मू कश्मीर अशांत नहीं रहा और स्थिति उनके नियंत्रण में है तो अफस्पा कानून स्वतः ही वहाँ से हट जायेगा और सेनाएं सम्मान सहित वहाँ से लौट आएँगी | लेकिन राज्य के नेता बार-बार अफस्पा हटवाने की बात तो करते हैं जबकि सच्चाई उन्हें भी पता है कि वहाँ इसकी कितनी जरुरत है | इसका साफ़ मतलब ये है कि इस कानून के नाम पार वहाँ के लोग सिर्फ अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते हैं |

वास्तव में हम दिल्ली में बैठकर या दिल्ली की दृष्टि से देखते हुए जम्मू कश्मीर की समस्या को नहीं समझ सकते | जम्मू कश्मीर को समझने के लिए हमें वहाँ के सामाजिक-राजनीतिक हालात, राज्य का वर्तमान और भूत समझने की जरुरत है | इसके लिए वहाँ के लोगों को और उनकी वास्तविक समस्याओं को समझने की जरुरत है | जम्मू कश्मीर में आजादी से पहले कैसी परिस्थितियां थीं, आजादी के बाद वहाँ क्या हालात बने और 90 के दशक के बाद जब वहाँ सीमा पार से आतंकवाद के बीज बोये गए, उसके बाद वहाँ क्या हालात बने इस सबको जानने और समझने की जरुरत है |

इसमें कोई दो राय नहीं कि जम्मू कश्मीर में हालात नाजुक हैं लेकिन देश में ये भ्रम फैला दिया गया है कि पूरा जम्मू कश्मीर जल रहा है, जबकि ये वास्तविकता से कोसों दूर है | जम्मू कश्मीर में सिर्फ कश्मीर के कुछ जिलों में ही हालात खराब हैं और उन जिलों के भी कुछ इलाकों में ही ऐसा है | इससे भी ज्यादा सच्चाई ये है कि कश्मीर के इन चिन्हित इलाकों में कुछ परिवार ऐसे हैं जो दशकों से चिल्लाकर-चिल्लाकर कश्मीर के लोगों को बरगलाते रहते हैं और अपने निजी फायदे के लिए देश भर में ये माहौल बनाकर रखते हैं कि कश्मीर में हालात बेकाबू हैं और चारों तरफ आग लगी हुई है | ये लोग बार-बार पूरे जोर से यही बात चिल्लाते हैं और लगातार रटंत तोते की तरह झूठ को सच बनाने में लगे रहते हैं |

इसका नतीजा ये हुआ कि अब जम्मू कश्मीर के लोगों और देश की जनता को ये लगने लगा है कि हाँ जम्मू कश्मीर में सब कुछ अस्त व्यस्त है, वहाँ बस आतंकवाद है | वहाँ के लोग देश से अलग होना चाहते हैं, वो आजादी चाहते हैं | जबकि हकीकत इससे बिलकुल परे है | कश्मीर का बड़ा तबका ऐसा है जो भारत के साथ ही खुद को देखता है और भारत के संविधान में उसकी पूरी निष्ठा है | आम चुनाव में अपना वोट डालकर ये लोग भारतीय संविधान और संसद के प्रति अपनी निष्ठा को व्यक्त भी करते हैं | आजादी के बाद से लेकर अब तक जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र लगातार मजबूत हुआ है | आम चुनाव हों या विधानसभा चुनाव राज्य की जनता ने अपनी भागीदारी दिखाई है | इस बार तो स्थानीय निकाय के चुनावों ने राज्य में लोकतंत्र को पूरी तरह स्थापित कर दिया है और ये सिद्ध हुआ है कि सूबे के लोग आये दिन होने वाली हडतालों से परेशान हैं और विकास चाहते हैं | हालाँकि अगर इसमें कहीं कोई कमी रह गयी है तो इसके लिए भी वहाँ के तथाकथित कश्मीरियत के झंडाबरदार ही जिम्मेदार हैं | वहाँ के राजनीतिक परिवारों ने स्थिति को लगातार खराब ही किया है जो कश्मीर को अपने बाप की जागीर मानते हैं और उस पर अपनी राय को ही सबकी राय मानते हैं | इन लोगों ने जितना कश्मीर का नुक्सान किया है उतना नुक्सान शायद हथियारबंद आतंकवादियों ने भी नहीं किया होगा |

इसलिए जम्मू कश्मीर विषय पर हमें कश्मीर और कश्मीरी लोगों की भावनाओं को समझकर उसी अनुसार जनमत निर्माण करना होगा | कश्मीर कश्मीर चिल्लाकर ये सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है कि ये समस्या इतनी जटिल है कि इसके सुलझने का कोई मार्ग नहीं है और हल तो सिर्फ अलगाववादियों के पास ही है और वो है स्वायत्ता और कुछ के शब्दों में आजादी | अलगाववादी ये सिद्ध करने की कोशिश करते हैं कि कश्मीर भारत के लिए समस्या है जिसके समाधान के लिए नई दिल्ली को इन अलगाववादियों से मोल भाव करना होगा | कश्मीर की समस्या राजनीतिक इच्छाशक्ति से हल की जा सकती है लेकिन इसके लिए हमारे नेताओं को हिम्मत दिखानी होगी | दुर्भाग्य से वर्तमान में किसी भी राजनीतिक दल में ऐसे नेता या तो है ही नहीं और अगर हैं तो पार्टी में उनका कद उतना बड़ा नहीं कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर कड़ा फैसला ले सकें |

जम्मू कश्मीर राज्य के बाहर राज्य के एक हिस्से यानि केवल कश्मीर की ही बात की जाती है | फलस्वरूप राज्य के अन्य दो महत्वपूर्ण भाग जम्मू और लद्दाख विकास में पीछे रह गए हैं | कश्मीर के कारण जम्मू और लद्दाख से बड़े स्तर पर भेदभाव होता है | जबकि इन दो क्षेत्रों की भी अपनी विशेषताएं हैं और इनके बिना कश्मीर भी अधूरा है | जम्मू इस राज्य का सबसे बड़ा शहर है लेकिन फिर भी कश्मीर के मुकाबले जम्मू में सरकार कम ही ध्यान देती है | लद्दाख जैसा पवित्र और शांत क्षेत्र भी विकास के लिए तरस रहा है | प्रकृति की अनमोल धरोहर के साथ ही बड़ी संख्या में बौद्ध मठ यहाँ है जहाँ दुनिया के कोलाहल से दूर शांति का अनुभव किया जा सकता है | लेकिन केंद्र और राज्य सरकारें इसके प्रति उदासीन हैं |

जम्मू कश्मीर राज्य में और कश्मीर में समस्या, आतंकवाद, हिंसा, हड़ताल के अलावा भी बहुत कुछ है | कश्मीर को, उसके वैभव को, उसकी सांस्कृतिक समृद्धि को, उसकी अद्भुत खूबसूरती को भी जानने की जरुरत है | कश्मीर संतो, ऋषियों और सूफियों की भूमि है | कश्मीर में शंकराचार्य पहाड़ी भी है और भगवान मार्तंड (सूर्य) का विशाल सूर्य मंदिर भी जिसके अब खंडहर ही बचे हैं | कश्मीर में प्रसिद्द हजरत बल धार्मिक स्थल भी है तो केसर की क्यारियां भी | यहीं पर कल्हण के महान ग्रन्थ राजतरंगिणी के स्वर गूंजे | हम यहाँ की झीलों, शिकारे, हाउसबोट आदि की बात भी कर सकते हैं | कश्मीर झीलों के लिए विश्वविख्यात है, यहाँ डल, वुलर, शिशरम, नागिन जैसी झीलें हैं | झेलम और चिनाब जैसी नदियाँ इसी राज्य में बहती हैं | कश्मीर के प्रति हमें खुले दिमाग से सोचने, जानने और समझने की जरुरत है | और इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, हमें इसके आगे की बात करनी चाहिए | यह देश का स्वर्णमुकुट था, है और रहेगा |

 

1 COMMENT

  1. रामेन्द्र जी, अच्छा लेख लिखा है आपने | ये सच्चाई है कि कुछ गद्दार परिवार जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर अपनी दादागिरी चला रहे हैं | लेकिन देश की जनता ने तय कर रखा है भारत का मुकुट जम्मू कश्मीर हमारा अभिन्न अनंग है तो ये राजनीतिज्ञ कुछ नहीं बिगड़ पाएंगे |

Leave a Reply to Vishal Kumar Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here