जम्मू-कश्मीर की तल्‍ख सच्चाई

डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

जम्मू-कश्मीर राज्य में आमतौर पर यह स्वीकार किया जाता है कि वहॉं सत्ता पर कब्जा किये हुए कश्मीर की सरकार जम्मू संभाग और लद्दाख संभाग के लोगों से भेदभाव करती है। वैसे तो सरकार लोकतांत्रिक ढंग से चुनी जाती है लेकिन आमतौर पर कश्मीर संभाग की विधानसभा की तमाम सीटें वहॉं के दो प्रमुख राजनैतिक दलों नैंका और पी.डी.पी. में ही बंट जाती है। अन्य किसी भी राजनैतिक दल का कोई एक आध सदस्य ही जीत पाता है। इसी प्रकार जम्मू संभाग की सीटें भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में बंट जाती हैं। लेकिन सत्ता के लालच में कांग्रेस या तो पी.डी.पी. से समझौता कर लेती या फिर नैकां से। इस प्रकार कांग्रेस की सहायता से कश्मीर के राजनैतिक दल सत्ता पर एकाधिकार जमा लेते हैं। लोकतंत्र में इस प्रकार के गठबंधन होते रहते हैं और इन पर किसी को आपत्ति भी नहीं हो सकती। परन्तु दुर्भाग्य से राज्य में इस प्रकार के गठजोड़ से जो कश्मीर केन्द्रित सरकार बनती है उसमें न तो जम्मू के लोगों की और न ही लद्दाख संभाग के लोगों की राजनैतिक महत्वकाक्षांओं का प्रतिफलन होता है। उदाहरण के लिए जम्मू संभाग और लद्दाख संभाग के लोगों की राजनैतिक महत्वकांक्षा भारतीय संविधान की धारा 370 को समाप्त करके राज्य के भारत में विलय को असंदिग्ध और अन्तिम बनाना है। इसके विपरीत कश्मीर की सरकार, यहां तक कि उसके मुख्यमंत्री और अन्य मंत्री रियासत के लिए ज्यादा से ज्यादा स्वायतत्ता की मांग करते हैं।

पिछले दिनों राज्य के मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला ने तो विधानसभा में ही यह कह कर तहलका मचा दिया कि राज्य का भारत में विलय नहीं हुआ है, राज्य का भारत के साथ केवल समझौता हुआ है। आजकल केन्द्र सरकार में मंत्री फारूक अबदुल्ला जब भी कश्मीर की चर्चा करते हैं तो भारत पाकिस्तान और कश्मीर को तीन अलग अलग देशों के रूप में ही मानकर व्याख्या शुरू करते हैं। जाहिर है इससे जम्मू संभाग और लद्दाख संभाग के लोग मुतफिक नहीं है, फिर चाहे वे कांग्रेस पार्टी से सम्बन्ध रखने वाले हों चाहे भाजपा से।

इतना ही नहीं कश्मीर की सरकार जम्मू और लद्दाख के लोगों के साथ विकास और आर्थिक क्षेत्र में भी इतना ज्यादा भेदभाव करती है कि उसे कोई भी सामान्य आदमी सहज ही अनुभव कर सकता है। राज्य के बजट में कश्मीर संभाग से राजस्व प्राप्तियां मुश्किल से 20 प्रतिशत होती हैं। इसके विपरीत जम्मू संभाग से 80 प्रतिशत राजस्व की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त केन्द्र से बेतहाशा सहायता मिलती है। परन्तु जब खर्च करने की बारी आती है तो बजट का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा कश्मीर संभाग में खर्च किया जाता है और 30 प्रतिशत हिस्सा जम्मू और लद्दाख संभाग में खर्च किया जाता है। जबकि जम्मू और लद्दाख संभाग का क्षेत्रफल कश्मीर संभाग से कहीं ज्यादा है।

जम्मू और कश्मीर दोनों की जनंसख्या लगभग बराबर है परन्तु दोनों संभागों को विधानसभा में दी गई सीटों में 10 का अन्तर है। कश्मीर संभाग की 46 सीटें और जम्मू संभाग की 37। जहां तक सरकारी नौकरियों में संख्या का प्रश्न है उसमें सबसे ज्यादा गफ्फा कश्मीर के लोगों को ही मिलता है।

जम्मू और लद्दाख के लोग इस अन्याय के खिलाफ पिछले छः दशकों से संघर्ष कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी वोटें तो जम्मू क्षेत्र के लोगों की लेती हैं लेकिन जब जम्मू से हो रहे इस अन्याय के खिलाफ लड़ने की बात आती है तो कांग्रेस नैकां और पी0डी0पी0 दलों की हां में हां मिलाती नजर आती हैं।

लेकिन फिछले दिनों शायद जम्मू संभाग के कांग्रसियों के सब्र का बांध भी टूट गया लगता है। एक आम जनसंभा को संबोधित करते हुए राज्य के स्वास्थ्य मंत्री शाम लाल शर्मा ने उस वक्त सभी को चौंका दिया जब उन्होंने नैंका के नेतृत्व में बनी सरकार पर धावा बोलते हुए कहा कि जम्मू और लद्दाख के लोगों के साथ निरंतर अन्याय हो रहा है। इन क्षेत्रों का विकास ही नहीं रोका जा रहा बल्कि इनके साथ इसलिए भेदभाव हो रहा कि ये डोगरे और लद्दाखी हैं। अन्याय सहने की भी सीमा होती है। शर्मा ने कहा कि राज्य का पुनर्गठन कर देना चाहिए जिसके अन्तर्गत जम्मू को अलग प्रांत और लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बना देना चाहिए। तभी जम्मू और लद्दाख क्षेत्रों की उन्नति हो सकेगी और वहां के लोगों से न्याय हो सकेगा। मीडिया की रपटों के अनुसार शाम लाल शर्मा अपने गुस्से में इतनी दूर तक चले गये कि उन्होंने यहॉं तक कह दिया कि यदि कश्मीरी आजादी ही चाहते हैं तो इस छोटी सी घाटी को आजादी भी दे देनी चाहिए।

कश्मीर की आजादी के बारे में कही गई बातें शामलाल शर्मा के गुस्से और हताशा से उपजी हो सकती हैं परन्तु जम्मू और लद्दाख के बारे में उन्होंने जो कुछ कहा वह एक प्रकार से इस क्षेत्र के लोगों की दशकों से जमा हो रही पीड़ा और दुःख की अभिव्यक्ति ही है। कश्मीरियों को खुश करने में कांग्रेस के अपने राजनैतिक स्वार्थ हो सकते है परन्तु उन राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति जम्मू और लद्दाख के राष्ट्र्भक्त लोगों की छाती पर पांव रख कर नहीं हो सकती। कश्मीर के लोगों का आम तौर पर यह कहना है कि डोगरा राज्य में उनके साथ बहुत अन्याय हुआ है। यह बहस का विषय है। यह सच भी हो सकता है और झूठ भी। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि लोकतांत्रिक संवैधानिक व्यवस्थाओं का दुरउपयोग करते हुए कश्मीर की सरकार अब जम्मू और लद्दाख के लोगों से बदला लेने का निदनीय कार्य करे। परन्तु दुर्भाग्य से कश्मीर में ऐसा ही हो रहा है। इसका एक मात्र समाधान वही है जो कांग्रेस के प्रतिनिधि और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री शाम लाल शर्मा ने सुझाया है।

राज्य का भाषायी आधार पर तीन अलग अलग राज्यों मे पुनर्गठन। कश्मीर के लोग आजादी की मांग नहीं कर रहे। यह शर्मा का भ्रम है। वे उन भ्रष्ट और दलाल नेताओं से मुक्ति चाहते हैं जो उनके नाम पर अपनी राजनैतिक रोटियां सैंक रहे हैं और कश्मीर के आम लोगों को तमाम प्राकृतिक साधनों के होते हुए भी गरीबी में जीने के लिए विवश कर रहे हैं। शायद यही कारण है कि राज्य के कश्मीरी मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला शाम लाल की इस स्पष्टोक्ति से आग बबूला हो रहे हैं। उनके अनुसार शाम लाल के बयान की जांच करवाई जायेगी और यदि उन्होंने जम्मू और लद्दाख के साथ भेदभाव का आरोप लगाया होगा तो उनके खिलाफ कारवाई की जायेगी। कश्मीर के उमर अब्दुल्ला शाम लाल के खिलाफ तो कारवाई कर सकते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि यदि निर्णय की घड़ी आई तो कांग्रेस हाई कमांड अपनी ही पार्टी के शाम लाल के साथ खड़ी नहीं होगी , बल्कि कश्मीर की नैकां के साथ खड़ी होगी। परन्तु उमर अब्दुल्ला जम्मू और लद्दाख के उन लाखों लोंगो पर क्या कार्यवाही करेंगे जो इस अन्याय के खिलाफ लांमबंद हो रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

12,746 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress