जयलालिता को सजा के मायने

संदर्भः जे. जयललिता हुई सजा मुक्त:-
-प्रमोद भार्गव-

Jayalalithaa_4आखिरकार आय से अधिक संपत्ति के मामले में तमिलनाडू की पूर्व मुख्यमंत्री जे.जयललिता को चार साल की सजा से हाईकोर्ट ने मुक्ति दे दी। अब बतौर जुर्माना उनकी अकूत संपत्ति भी राजसात नहीं होगी। हालांकि इस फैसले के बाद ये सवाल उठ रहे हैं कि न्यायमूर्ति सीआर कुमारस्वामी ने किस आधार पर निचली अदालत के न्यायाधीश जेएम कुन्हा के फैसले को पलट दिया। क्योंकि कुन्हा ने भ्रष्टाचार और अनुपातहीन संपत्ति के पुख्ता सबूतों के आधार पर जयललिता को दोशी ठहराया था। इस फैसले में 4 साल की सजा के साथ जयललिता पर सौ करोड़ का जुर्माना भी ठोका था। इस सजा से यह उम्मीद बंधी थी कि अब राजनीति में शुचिता दिखाई देगी। क्योंकि अब तक यह धारणा बनी हुई थी कि भ्रष्टाचार से अर्जित संपत्ति से राजनीति भी चलती है और यदि कानूनी कठघरे में उलझ भी जाएं तो इसी धन से निकलने के उपाय भी तलाशे जाते रहेंगे। गोया,जयललिता को दोष मुक्त कर दिए जाने से एक बार फिर विधायिका में गलत संदेश चला गया है। हालांकि अभी सुप्रीम कोर्ट से इस फैसले को दुरुस्त करने की उम्मीद है ? बावजूद तत्काल तो 67 वर्षीय जयललिता और उनकी पार्टी अन्ना द्रमुक को जीवन दान मिल गया है।
देश की सर्वोच्च न्यायालय ने 10 जुलाई 2013 को दिए ऐतिहासिक फैसले में यह व्यवस्था दी थी कि दागी व्यक्ति जनप्रतिनिधि नहीं हो सकता। इस नाते सत्र न्यायालय से 4 साल की सजा होने के साथ ही जयललिता को मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ गई थी। हाईकोर्ट के फैसले के बाद एक बार वह फिर कुर्सी की हकदार हो गई हैं। कुछ ही दिनों के भीतर उनकी ताजपोशी हो जाएगी। इसीलिए जब अदालत का फैसला आया तो जयललिता के समर्थक उत्सव में डूब गए। क्योंकि अन्ना द्रमुक व्यक्ति केंद्रित दल है,लिहाजा जयललिता की सजा घोषित होने के साथ ही ये दल अस्तित्व के संकट से जूझ रहा था। लेकिन अब जयललिता तमिलनाडू की राजनीति व प्रशासन की बागडोर तो अपने हाथ में ले ही लेंगी, साथ ही यह उम्मीद भी बढ़ गई है कि 10 माह के बाद राज्य विधानसभा के जो चुनाव होंगे, उनमें भी अन्ना द्रमुक जीत हासिल कर लेगी। दरअसल तमिलनाडू का मुख्य विपक्शी दल और उसके प्रमुख सूत्रधार एम करुणानिधि खुद गृहकलह और आंतरिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। कांग्रेस समेत अन्य दल बिखराव की स्थिति में हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा अध्यक्श अमित शाह बीते एक साल में तमिलनाडू में कोई जमीन नहीं तलाश पाए है।

जयललिता को जब 100 करोड़ के जुर्माने के साथ 4 साल की सजा हुई थी,तब अदालती फैसले की पहली शिकार नहीं थी,उनके पहले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में विशेश अदालत द्वारा पांच साल की सजा सुनाई गई थी। नतीजतन 2013 में वे सांसद बने रहने की योग्यता खो बैठे थे और 2014 के आमचुनाव में लोकसभा का चुनाव भी नहीं लड़ पाए थे। कांग्रेस के राशिद मसूद को स्वास्थ्य सेवाओं के भर्ती घोटाले में चार साल की सजा हुई और राज्यसभा सांसद का पद गंवाना पड़ा था। राश्ट्रीय जनता दल के सांसद जगदीश शर्मा को भी चारा घोटाले में चार साल की सजा जैसे ही तय हुई, सांसद की सदस्यता गंवानी पड़ी। शिवसेना के विधायक बबनराव घोलप को भी आय से अधिक संपत्ति के मामले में तीन साल की सजा सुनाई गई थी। हालांकि अभी उन्हें विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहरने का मामला विचाराधीन है। द्रमुक के राज्यसभा सांसद टीएम सेलवे गनपति को जैसे ही दो साल की सजा हुई,उन्होंने अयोग्य ठहराने का फैसला आने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। मसलन सुप्रीम कोर्ट द्वारा महज जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) का अस्तित्व खारिज कर देने से लोकसभा और विधानसभाओं से दागियों के दूर होने का शुभ सिलसिला शुरू हो गया था। लेकिन अब लगता है इन सबके राजनीतिक जीवन का जो पटाक्शेप हो गया था, उसके सम्मानजनक बहाली का क्रम शुरू हो गया है।
जयललिता की सजा से जुड़े और इसके पहले मुंबई हाईकोर्ट से नाटकीय अंदाज में मिली जमानत के मामलों से तय हो गया है कि कानून अंधा नहीं है वह अमीर-गरीब और अपराधी की हैसियत को देखता परखता है और फिर दण्ड निर्धारित करता है। इसीलिए सोशल मीडिया पर अदालत के इन फैसलों के परिप्रेक्श्य में जो टिप्पणियां आ रही हैं, उनसे जनमानस में ये संदेह पैठ बना रहा है कि देश की नामी हस्तियों पर गंभीर या जघन्य आरोप लगे हों और वे निचली अदालतों से सजा भी क्यों ना पा गय हों,आखिरकार ऊपरी अदालतें और बड़े वकील उन्हें बख्सने के ही रास्ते तलाशते है। आरोपी के बच निकलने के ये छेद बंद नहीं किए गए तो न्यायपालिका से गरीब आदमी का विश्वास उठ जाएगा। अब यह दायित्व विधायिका का बनता है कि वह दण्ड प्रक्रिया संहिता में दर्ज छेदों अथवा कानूनी विसंगतियों को तलाशें और उन्हें बंद करे। क्योंकि जयललिता के मामले में लोक अभियोजक कौन हो, यह विवाद सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन था,जिसका निराकरण 2 सप्ताह पहले ही हुआ है। इसीलिए अभियोग पक्श ने कहा है कि उसे अपना पक्श रखने का पूरा समय नहीं मिला। क्योंकि इसी बीच हाईकोर्ट ने सुनवाई की आखिरी तारीख तय कर दी थी और उसने तारीख आगे बढ़ाने की बजाय इतना अहम् फैसला जयललिता के पक्श में सुना भी दिया ?

जयललिता का यह मामला भाजपा के सुब्रामण्यम स्वामी अदालत में ले गए थे। हालांकि उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। लेकिन फिलहाल इस चुनौती का असर जयललिता की सेहत और तमिलनाडू की राजनीति पर पड़ने वाला नहीं है। भारतीय राजनीति में वे शायद इकलौते नेता हैं,जो अकेले अपनी दम पर भ्रष्टाचारियों से चुनौती के साथ लड़ते रहे हैं। जयललिता के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के इस मामले को 1996 में स्वामी ही अदालत ले गए थे। दरअसल जयललिता ने जब 1991 में विधानसभा का चुनाव लड़ा था,तब 1 जुलाई 1991 को नामांकन पर्चे के साथ नत्थी शपथ-पत्र में अपनी कुल चल-अंचल संपत्ति 2.01 करोड़ रूपए घोशित की थी। लेकिन पांच साल मुख्यमंत्री रहने के बाद जयललिता ने 1996 का चुनाव लड़ा तो हलफनामे के जरिए अपनी संपत्ति 66.65 करोड़ बताई। यानी खुद जयललिता अपने ही हस्ताक्शरित दस्तावेजों के जरिए अनुपातहीन संपत्ति के कठघरे में फंस गईं थी। स्वामी ने आय की इस विंसगति को पकड़कर चेन्नई की हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया और सीबीआई को मामले की जांच सौंप दी। सीबीआई ने जब उनके ठिकानों पर छापे डाले तो उनके पास से अकूत संपत्ति और सामंती वैभव प्रगट करने वाली वस्तुएं बड़ी मात्रा में बरामद हुईं। उनके पास से चेन्नई में अनेक मकान,हैदराबाद में कृशि फॉर्म,नीलगिरी में चाय के बागान,28 किलो सोना,800 किलो चांदी,10500 कीमती सांडि़यां,91 घडि़यां और 750 जोड़ी जुतियां व चप्पले मिले थे। ये छापे उनकी करीबी रही शशिकला नटराजन,उनकी भतीजी इलावरासी,उनके भतीजे और जयललिता के दत्तक पुत्र रहे सुधाकरण के यहां छापे डाले गए थे। इन लोगों के पास से भी बड़ी मात्रा में बेनामी संपत्ति बरामद हुई थीं। इन्हें भी अदालत ने चार साल की सजा दी और दस-दस करोड़ का अर्थदण्ड भी दिया है। बाद में जयललिता को भी सजा और जुर्माने से दो-चार होना पड़ा था। किंतु अब हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलटकर जयललिता को संजीवनी दे दी है।

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