पाक कलाकारों पर पाबंदी का औचित्य

0
154

pakistaniप्रमोद भार्गव
उरी हमले के बाद भड़की हिंसा अब नया रूप लेने जा रही है। पाकिस्तान से आए हुए कलाकारों को अब फिल्मी दुनिया में काम करना मुश्किल होगा। क्योंकि पाकिस्तानी कलाकारों वाली फिल्मों का चार राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और गोवा में प्रदर्शन नहीं होगा। सिनेमाघर मलिकों के संगठन आॅनर्स एंड एग्जिबिटर्स एसोसिएशन आॅफ इंडिया ने यह घोषणा की है। दूसरी तरफ तेलंगाना में भी विरोध प्रदर्शन की शुरूआत हो गई है। इधर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने फिल्म निर्माता करण जौहर की उस अपील को ठुकरा दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि आगे से वे अपनी फिल्मों में पाक कलाकारों को काम नहीं देंगे। मनसे ने बुधवार को मुंबई में करण जौहर की फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल‘ के खिलाफ सिनेमाघरों के सामने प्रदर्शन भी किया। मनसे ने कहा है कि वह पाक कलाकारों वाली फिल्मों का सिनेमाघरों में प्रदर्शन नहीं होने देगी। दूसरी तरफ इतने विरोध और राष्ट्रवाद की प्रबल पैरवी करने के बावजूद केंद्र सरकार के विदेश विभाग ने निश्चय किया है कि वह पाक कलाकारों के वीजा खारिज नहीं कर रहा है।
दीपावली के अवसर पर 28 अक्टूबर को करण जौहर की प्रसारित होने जा रही फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल‘ का प्रदर्शन फिलहाल खटाई में पड़ता दिखाई दे रहा है। सीओईएआई मुख्य रूप से एक पर्दे वाले सिनेमाघरों व सिनेप्लेक्स के मालिक सदस्य हैं। मुबंई में हुई बैठक के बाद संस्था के अध्यक्ष नितिन दातार ने बताया कि देशभक्ति की भावना और देशहित में हमारी संस्था ने इस फिल्म का प्रदर्शन नहीं करने का फैसला लिया है। इस फिल्म के अलावा शाहरूख खान की फिल्म ‘रईस‘ और गौरी शिंदे की ‘डियर जिंदगी‘ फिल्मों का भी प्रदर्शन यह संगठन नहीं करेगा। इस विरोध के चलते गौरी शिंदे ने पाक कलाकार अली जफर को हटाने का निर्णय ले लिया है। पाक कलाकारों को हिंदी फिल्मों में काम देना देशभक्ति और देशहित से जुड़ा अहम् मुद्दा तो है ही, साथ ही ये पाक कलाकार स्थानीय लोगों का रोजगार भी छीन रहे हैं। हालांकि किसी फिल्म पर रोक लगाने का अधिकार या तो भारतीय सेंसर बोर्ड को है या फिर न्यायालय को है। इसके इतर कोई फिल्म, राजनीति या समाज से जुड़ा संगठन फिल्म पर रोक नहीं लगा सकता है। बावजूद सिनेमाघर और मल्टीप्लेक्स के मालिक किसी फिल्म को लेकर जब विवाद उत्पन्न होता है, तो वे इसलिए अपने सिनेमाघरों में प्रदर्शन नहीं करते, क्योंकि आंदोलनकारी सिनेमाघरों में तोड़फोड़ करते हैं और सिनेमा मालिकों व कर्मचारियों के साथ भी मारपीट पर उतरआते हैं। राज ठाकरे की पार्टी मनसे अकसर भारतीय सनातन संस्कृति पर चोट करने वाली फिल्मों और साझा संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों का विरोध करती रहती है।
हालांकि यह कहना गलत है कि जो निर्माता पाक कलाकारों को लेकर फिल्में बना रहे हैं, उनकी राष्ट्रभक्ति संदिग्ध है। राज कपूर जैसे बड़े कलाकार भी पाक कलाकारों को लेकर फिल्में बनाते रहे है, लेकिन उनकी देशभक्ति पर कभी संदेह नहीं किया गया। इस लिहाज से करण जौहर ने अनी फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल‘ में पाक कलाकार फवाद खान को काम देकर कोई अपराध नहीं किया है। यह स्थिति अन्य उन फिल्म निर्माताओं के साथ है, जिन्होंने अपनी फिल्मों में पाक कलाकारों को काम दिया है, लेकिन पाक द्वारा भारत के खिलाफ लगातार आतंकी गतिविधियों को सुनियोजित ढंग से अंजाम देने के परिणाम के चलते देश की अवाम चाहती है कि पाक से सभी तरह के रिश्ते खत्म किए जाएं। जनमानस की इस मानसिकता को फिल्म निर्माताओं को भी समझने की जरूरत है। दरअसल सेना के ठिकानों पर जिस तरह से पाक से निर्यात किए गए आतंकियों ने हमले किए हैं, वे आम भारतीयों को झकझोरने वाले हैं।
हालांकि पाक या किसी भी देश के संस्कृतिकर्मियों को आतंकवादियों से न तो तुलना की जा सकती है और न ही उन्हें उस दृष्टि से देखा जा सकता है। वैसे भी भारत ने हमेशा पाक कलाकारों का मान रखा है। पाक गायक कलाकार अदनान सामी को तो भारतीय नागरिकता तक दी है। इसी तरह बांग्लादेश मूल की लेखिका तस्लीमा नसरीन को भारतीय मुस्लिमों के विरोध के बावजूद भारत शरण व संरक्षण दिए हुए हैं। भारत ने कभी हिटलर के रक्तवादी सिद्धांत ‘खून की शुद्धता‘ को महत्व दिया ही नहीं है। इसीलिए देश की आजादी के बाद से ही हिंदी फिल्मों में पाक कलाकारों को जगह मिलती रही है। हिंदी फिल्मों में काम करते हुए उन्होंने खूब भारत व पाक में शोहरत पाई और दौलत भी कमाई। भारत की इस उदारता का परिचय पाकिस्तान ने तो दिया ही नहीं, वहां के फिल्म निर्माताओं ने भी नहीं दिया। इसीलिए पाक फिल्मों में भारतीय कलाकारों को उतनी जगह नहीं मिली, जितनी भारत में मिलती रही है। बावजूद पाक कलाकारों ने भारतीय फिल्म कलाकारों को पाक फिल्मों में काम देने की मांग उठाई हो, ऐसा देखने में नहीं आया। आष्चर्य इस बात पर भी है कि पाक से जो आतंकवाद भारत में फैलाया जा रहा है, उसकी कभी पाक कलाकारों ने न तो निंदा कि और न ही पाक दूतावास के सामने आतंकवाद के खिलाफ प्रदर्शन किया। जबकि उन्हें एक कलाकार होने के नाते आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत थी।
चूंकि जिन फिल्मों के प्रदर्शन को लेकर विवाद चल रहा है, उन फिल्मों में काम करने वाले कलाकार वैध तरीके से वीजा लेकर काम कर रहे हैं। इसलिए फिल्मों में न तो उन्हें काम देना गलत है और न ही उनका काम करना गलत है। इसलिए इन कलाकारों की फिल्मों पर रोक वैधानिक नहीं कहीं जा सकती है। वैसे भीह हमारे यहां अभिव्यक्ति की आजादी को संवैधानिक सुरक्शा प्राप्त है। इस लिहाज से फिल्म निर्माताओं ने देश या राजद्रोह का काम नहीं किया है। उरी के सैनिक ठिकाने पर हमले के बाद ऐसा माहौल जरूर बन गया है कि पाकिस्तान की पैरवी करने वाले हर उस शख्स को राष्ट्रभक्ति के परिप्रेक्ष्य में संदिग्ध निगाह से देखा जाने लगा है। संयोग से पाक कलाकारों को काम देने वाली फिल्में इसी दौर में आई हैं। बावजूद व्यापक जनभावना को नजरअंदाज करते हुए हमारे कई राजनैतिक दल और बुद्धिजीवी सामने आकर यह कहने की हिमाकत कर रहे है कि कला और आतंकवाद में फर्क होता है इस नाते इन फिल्मों का विरोध नहीं होना चाहिए। क्योंकि ऐसे उपायों से अंततः नफरत की बुनियाद और गहरी ही होती है। इसी अंतर को दृष्टिगत रखते हुए भारत सरकार ने पाक कलाकारों के वीजा निरस्त नहीं किए हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,708 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress