अरुण तिवारी
होशियारपुर के धनोआ गांव से निकलकर कपूरथला तक जाती है 160 किमी लंबी कालीबंेई। इसे कालीबेरी भी कहते हैं। कुछ खनिज के चलते काले रंग की होने के कारण ’काली’ कहलाई। इसके किनारे बेरी का दरख्त लगाकर गुरुनानक साहब ने 14 साल, नौ महीने और 13 दिन साधना की। एक बार नदी में डूबे, तो दो दिन बाद दो किमी आगे निकले। मुंह से निकला पहला वाक्य था: ’’न कोई हिंदू, न कोई मुसलमां।’’ उन्होने ’जपजीसाहब’ कालीबेईं के किनारे ही रचा। उनकी बहन नानकी भी उनके साथ यहीं रही। यह कोई 500 साल पुरानी बात है। अकबर ने कालीबेईं के तटों को सुंदर बनाने का काम किया। ब्यास नदी, इसे पानी से सराबोर करती रही। एक बार ब्यास ने अपना पाट क्या बदला; कालीबेईं पर अगले 400 साल संकट ही संकट रहा। उपेक्षा व संवेदनहीनता का नतीजा यह हुआ कि कपूरथला कोच फैक्टरी से लेकर तमाम उद्योगों व किनारे के पांच शहरों ने मिलकर कालीबेईं को कचराघर बना दिया।
इसी बीच काॅलेज की पढाई पूरी न सका एक नौजवान नानक की पढाई पढ़ने निकल पङा। बलबीर सिंह सींचवाल! स्ंात सींचवाल ने किसी काम के लिए कभी सरकार की प्रतीक्षा नहीं की। पहले खुद काम शुरु किया; बाद में दूसरों से सहयोग लिया। उन्होने कारसेवा के जरिए गांवों की उपेक्षित सङकों को दुरुस्त कर ख्याति पाई। वर्ष 2003 में कालीबेईं की दुर्दशा ने संत की शक्ति को गुरु वचन पूरा करने की ओर मोङ दिया – ’’ पवन गुरु, पानी पिता, माता धरती मात्।’’ कहते हैं कि कीचङ में घुसोगे, तो मलीन ही हो जाओगे। सींचवाल भी कीचङ में घुसे, लेकिन मलीन नहीं हुए। उसे ही निर्मल कर दिया। यही असली संत स्वभाव है।
संत ने खुद शुरुआत की। समाज को कारसेवा का करिश्मा समझाया। कालीबेईं से सिख इतिहास का रिश्ता बताया। प्रवासी भारतीयों ने इसे रब का काम समझा। उन्होने धन दिया, अनुनायियों ने श्रम। सब इंतजाम हो गया। काम के घंटे तय नहीं; कोई मजदूरी तय नहीं; बस! तय था, तो एक सपने को सच करने के लिए एक जुनून – ’’यह गुरु का स्थान है। इसे पवित्र होना चाहिए।’’ नदी से कचरा निकालने का सिलसिला कभी रुका नहीं। 27 गावों के कचरा नाले नदी में आ रहे थे। तालाब खोदे। नालों का मुंह उधर मोङा। पांच शहरों के कचरे की सफाई के लिए ट्रीटमेंट प्लांट की मांग बुलंद की। पूरे तीन साल यह सिलसिला चला। ए पी जे अब्दुल कलाम इस काम को देखने सुल्तानपुर लोदी आये। एक वैज्ञानिक राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय तक्नालाॅजी दिवस जैसे तकनीकी रुचि के मौके पर संत के सत्कर्म की सराहना की। प्रशासन को भी थोङी शर्म आई। उसने पांच करोङ की लागत से सुलतानपुर लोदी शहर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया; 10 करोङ की लागत से कपूरथला में। टांडा, बेगोवाल जैसे औद्योगिक नगरांें में भी तैयारी शुरु कर दी गई। ’वीड टैक्नोलाॅजी’ पर आधारित तालाबों ने नतीजे देने शुरु कर दिए हैं।
संत सींचवाल कहते हैं – ’’ अभी लोग प्लान बनाते हैं कि नदी गंदी हो गई हैं; क्या करें ? इसके लिए जाने कितने अध्ययन होते हैं। मीटिंगों में लोग मांग करते हैं कि नया कानून बनाओ। मैं कहता हूं कि भाई, अभी जो कानून है, पहले उसे तो लागू करा लोे। कानून, नदी के पक्ष में है। लोग हाउस टैक्स देते हैं। म्युनिसपलिटी वालों से क्यों नहीं पूछते कि नदी में कचरा क्यों डाल रहे हो ? लोग चुप क्यों रहते हैं ? सरकार जब करेगी, तब करेगी। लोगों को चाहिए कि हिम्मत करें। लोग नदी पर जाकर खुद खङे हों। जहां-जहां लोग जाकर नदी पर खङे हो जायेंगे, कई कालीबेंई निर्मल हो उठेंगी। लोगों के खङे होने से होता है। लोग खङे हों।’’
संत का कहते है कि उन्होने कालीबेंई नदी में कोई अजूबा नहीं दिया – ’’हमने सिर्फ मिस-मैनेजमेंट ठीक किया है। हमने लोगों को 100 प्रतिशत विकल्प दिया। यह साधारण सा काम है। समझें, तो बात भी साधारण सी है। क्या करना है ? पानी कम खींचो। आसमान से बरसा पानी तालाबों में रोको। बाढ का पानी भूजल रिचार्ज के काम में कैसे आये ? सोचो! हर शहर से गंदे पानी की एक नदी निकलती है। उस गंदे पानी को साफ करके, खेती मंे दे दो। नियम बना लो कि शोधन के पश्चात् भी नदी में नहीं डालना है। हमने यही किया है। सुल्तानपुर लोदी के आठ किलोमीटर के दायरे में यही गंदा पानी साफ करके खेती में पहुंचा रहे हैं। लोग आनन्दित हैं। इससे भूजल खींचने का काम कम हुआ है। ग्राउंड वाटर बैंक में हमारा अकाउंट बैलेंस बढ गया है। पानी का टीडीएस नीचे आ गया है। सबसे बङी बात कि इससे कालीबेंई को साफ रखने में हमे मदद मिल रही है। हर शहर में यह हो सकता है। आपको कभी आकर देखना चाहिए।’’
संत का संदेश: नदी से रिश्ता बनाओ, वाहे गुरु फतेह करेगा।
पंजाब में कैंसर बेल्ट.. कैंसर टेªन जैसे शब्द सुनकर संत की आंखों में आंसू आ जाते हैं। कहते हैं कि जिस पानी का काम पानी जीवन देना है, हम उससे मौत ले रहे हैं। यह क्यों हुआ ? क्योंकि हम रिश्ता भूल गये। हमने यह रिश्ता याद रखा होता, तो हम जिस नदी मंे स्नान करते हैं, उसमें पेशाब नहीं करते। कहावत है – ’’जैसा पाणी, वैसा प्राणी। लोगों को सोचना होगा कि पीने के पानी की बोतल कोई मंगल ग्रह से नहीं आने वाली। हम अमृतजल बर्बाद कर रहे हैं। मेरी तो यही प्रार्थना है कि रब के सच्चे बंदों! अपने लिए न सही, अगली पीढ़ी के लिए सही, कुछ करो। जिस पीढी की पढाई, दवाई और परवरिश पर इतना पैसा और समय खर्च करते हो, उसकी खातिर घरों से बाहर निकलो। नदी से रिश्ता बनाओ। वाहे गुरु फतेह करेगा।’’
सत्कर्म से मिली नसीहत: किसी भी काम से लोगों को जोङने के लिए लोगों को उससे उनका रिश्ता समझाना पङता है। आस्था, इतिहास और नियमित संसर्ग इसमंे बङी भूमिका अदा कर सकते हैं। अच्छी नीयत व निस्वार्थ भाव से काम शुरु कीजिए। संसाधन खुद-ब-खुद जुट जायेंगे। शासन-प्रशासन भी एक दिन साथ आ ही जायंेगे।
गंगा का नाम आते ही एक सुखद अहशास का भान होने लगता है
मन में एक पुनीत एक धारणा बनकर प्रवाहित होने लगती है ,एक पवित्रतम विचारशाला का नैसर्गिक ताउदय और अस्त होने को मचल उठना ही गंगा की अविरलतम का द्योतक है ।
हम आज गंगा की स्वक्षता के नाम पर करोडो रुपए बहाकर वहीं हैं जहां से चले थे । हम उस भगीरथ का अभी प्रतीक्षारत है जो लगता है आकर गंगा का उद्धार कर देगा । कितने मुर्ख है हम ?~~
टिहरी बांध बनाकर एक गौरव का एहशास् तो कर रहे हैं पर हमने अपनी संस्कृति अपने इतिहास को दोनों हांथो नष्ट करके रख दिया
है । यदि ऊपर सृंग का जल सीधे नदी तक नहीं पहुंच रहा तो नदी स्वतः एक नाले में परिवर्तित हो जाएगी । इन मूर्ख नेताओं और करोड़ों रुपयों से घर भरने वाले अधिकारियों से देश तवाह हो रहा है और गंगा मैली । ऊपर सृंग का जल निर्बाध आने दो समूर्णतः से नदी को जल मिले अपने आप सफाई हो जाएगी शासन को कुछ करने की आवश्यकता नहीं है ।
हम जितने करोड़ अबतक बरबाद सफाई के नाम कर चुके हैं उतने में तो एक और अन्य जगह टिहरी बाँध का निर्माण हो जाता यह बाँध ही गंगा को मैली करने का सहयोगी है ।
मूर्ख राजनेता नवीनता और विकाश के नाम पर गंगा के जल को बंधक बना दिया और प्रदूषण का नारा दे दिया । अरे मूर्खो जल अधिक मात्रा में आएगा नदियां स्वयं मार्ग तय कर लेंगी । पर धन
कहाँ से कमाया जाय ये सोचकर ही ये राजनेताओं ने अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए टिहरी का जन्म करित किया है जिसे कोई ध्वस्त नहीं करना चाहेगा और न ही कोई गंगा को निर्मलबनाना चाहेगा क्यों की हर एक भृष्ट हरएक से जुड़ा है ।
यमुनाशंकरपाण्डेय,,